सोमवार, 11 जुलाई 2022

भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय

 भक्ष्य अभक्ष्य निर्णय 

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प्रतिपत्सु च कुष्माण्डमभक्ष्यमर्थनाशनम्!!

द्वितीयायां च वृहती भोजने न स्मरेद्धरिम्!!

अभक्ष्यं च पटोलं च शत्रुवृद्धि करं परम्!

तृतीयायां चतुर्थ्यां च मूलकं धन नाशनं !!

कलंकारणम् चैव पँचम्यां विल्वभक्षणं!

रोग वृद्धिकरं चैव नराणां ताल भक्षणं!!

सप्तम्यां तथा तालं शरीरस्य च नाशनम्!

नारिकेल फलं भक्ष्यमष्टम्यां वुद्धिनाशनम्!!

तुम्बी नवम्यां गोमांसं दशम्यां च कलम्बिका !

एकादश्यां तथा शिम्बी द्वादश्यां पूतिका तथा!!

त्र्योदश्यां च वार्ताकी भक्षणं पुत्र नाशनम्!!


-------प्रतिपदा को कुष्माण्ड न खाएं!!

द्वितीया की वृहती(भटकटैया) निषेध है!!

तृतीया को परवल निषेध है--शत्रुओ की वृद्धि होती है!!

चतुर्थी को मूली धन का नाश करने वाली है!!

पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है!!

षष्ठी को नीम की पत्ती ,फल या दातुन मुंह मे डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है!!

सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर क्षीण होता है!!

अष्टमी को नारियल खाने से वुद्धि क्षीण होती है!!

नवमी को गोल लौकी त्याज्य है!!

दशमी को कलम्बी का शाक त्याज्य है!!

एकादशी को शिम्बी खाने से सन्तति की हानि होती है!!

द्वादशी को पूतिका खाने से भी सन्तति की क्षति होती है!!

त्रयोदशी को वैगन खाने से पुत्र पक्ष को हानि होती है!!


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कुहूपूर्णेन्दुसंक्रांतिचतुर्दश्यष्टमीषु च!

  रवौ श्राद्धे व्रताहे च दुष्टं स्त्री तिलतैलकम्!!


----अमावश्या -पूर्णिमा -संक्रांति- चतुर्दशी ओर अष्टमी तिथि- रविवार ,श्राद्ध ओर ब्रत के दिन तिल का तेल निषिद्ध है!!

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आर्द्रकं रक्तशाकं च रवौ च परिवर्जयेत्!!

 अभक्ष्यमार्द्रकं चैव सर्वेषां च रवेर्दिने!!


---रविवार के दिन अदरख ओर लाल रंग का शाक नही खाना चाहिए!!

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सर्वं च तिलसमबद्धं नाद्यादस्तमिते रवौ!!

 रात्रौ च तिलसमबद्धं प्रयत्नेन दधिं त्यजेत्!!


---सूर्यास्त के उपरांत कोई भी तिलयुक्त पदार्थ नही खाना चाहिए!!

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रात्रौ दधि च सक्तूंश्च नित्यमेव व्यवर्जयन्!!

न पाणौ लवणं विद्वान प्राश्नीयान्न च रात्रिषु !

  दधिसक्तून न भुंजीत्............!!

 रात्रौ न दधि भोक्तव्यं "

 न नक्तं दधि भुंजीत्''

 भक्ष्येद् दधि नो निशि ""

 रात्रौ च दधिभक्ष्यं च शयनं सन्ध्ययोर्दिने ---!!


----लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुष को रात्रि में दही एवं सत्तू नही खाना चाहिए!ऐसा करने से निश्चित ही शारीरिक स्थिति क्षीण होती है!!

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नाश्नीयात् पयसा तक्रम्!

दूध के साथ मट्ठा नही लेना चाहिए!!

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अभक्ष्यं मधुमिश्रम् च घृतं तैलं गुडं तथा!

आर्द्रकं गुडसंयुक्तमभक्ष्यं श्रुतिसम्मतम्!!

सगुडं दधि सगुडमार्द्रकं च मद्यसमम् !!


--मधु मिला हुया घी -तेल और गुड़ अभक्ष्य है !गुड़ सहित दही और गुड सहित अदरक भी निषेध है!!

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पानीयं पायसं चूर्णं घृतं लवणमेव च!

स्वस्तिकं गुडक़ं चैव क्षीरं तक्रं तथा मधु !

 !हस्ताद्धस्तगृहीतं च सद्यो गोमांस एव च!'


पीने का जल ,खीर ,चूर्ण,घी,नमक,स्वस्तिक, गुड दूध,मट्ठा, तथा मधु-ये एक हाथ से दूसरे हाथ पर ग्रहण करने से तत्काल मभक्ष्य हो जाते है!!

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ताम्रपात्रे पयःपानमुच्छिष्टँ घृतभोजनम्!

दुग्धं सलवणं चैव सद्यो गोमांसभक्षणम्!!

ताम्रपात्रे पयःपानमुच्छिष्टे घृतभोजनम्!

दुग्धं लवणसार्द्धं च सद्योगोमांस भक्षणम्!!


--ताँबे के पात्र में दूध पीना ,जूठे भोजन में घी डालकर खाना,ओर नमक के साथ दूध पीना-- अभक्ष्य ओर पाप कारक है!!

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अय:पात्रे पयः पानं गव्यं सिद्धान्नमेव च!

भ्रष्टादिकं मधु गुडं नारिकेलोदकं तथा!!

  फलं मुलं च यत्किंचिदभक्ष्यं मनुरब्रवीत् !


----ग्रहण करते समय लोहे के बर्तन में रखा हुआ जल ,उसमे रखा हुआ गाय का दूध, दही, घी,पकाया हुआ अन्न ,भुना हुआ पदार्थ,मधु ,गुड़, नारियल का जल,फल, मूल आदि सभी पदार्थ अभक्ष्य हो जाते है!

अतः खान-पान में लोहे के पात्र काम मे नही लेना चाहिये!

---- जिस धातु में मोर्चा लग जाता है वही लोहा होता है!!

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 हस्तदत्तास्तु ये स्नेहा लवणव्यंजनानि च !

दातारं नोपतिष्ठन्ति भोक्ता भुंजीत किल्विषम्!!

 प्रदद्यान्न तु हस्तेन नाSSयासेन कदाचन्!वशिष्ट!!

हस्तदत्तं तु यत् स्नेहलवणव्यंजनादिकम्!

दातुश्च नोपतिष्ठेत भोक्ता भुंजीत किल्विषम्!!दालभ्यस्मृति!!

हस्तदत्तास्तु ये स्नेहा लवणव्यंजनादय:!

 दातारं नोपतिष्ठन्ति भोक्ता भुंक्ते च किल्विषम्!!लघुशङ्ख!!

हस्तदत्तास्तु ये स्नेहाल्लवणव्यंजनादि च !-------!!अत्रिस्मृति!!

हस्ते दत्त्वा तु वै स्नेहाल्लवणं व्यंजनानि च!

आयसेन च पात्रेण तद्वै रक्षांसि भुंजते!!स्कंद-प्रभास!!

आयसेन तु पात्रेण यदन्नमुपदीयते!

अन्नं विष्ठासमं भोक्तुर्दाता च नरकं व्रजेत्!!लघु!!

इतरेण तु पात्रेण दीयमानं विचक्षण:!

  न दद्याद्वामहस्तेन आयसेन कदाचन्!!अत्रि!!

लोहपात्रेषु यत्पक्वं तदन्नं काकमांसवत्!

भुक्त्वा चाँद्रायणं कुर्याच्छ्राद्धेनान्येषु कर्मसु!!

ताम्रपात्रे न गोक्षीरं पचेदन्नं न लोहजे!

क्रमेण घृततैलाक्ते ताम्रलौहे न दुष्यत:!!प्रजापति!!

आयसेनैव पात्रेण यदन्नमुपदीयते !

 भोक्ता तद्विट्समं भुंक्ते दाता च नरकं व्रजेत्!!


-----हाथ मे दिया हुआ नमक,तेल व व्यंजन (खीर आदि रसीले पदार्थ) और लोहे के पात्र में दिया हुआ तथा वाये हाथ से दिया हुआ अन्न जल अभक्ष्य होता है !लोहे के पात्र में पकाया हुआ अन्न (चावल) भी मभक्ष्य है!!

++परन्तु लोहे के पात्र में तेल और तांबे के पात्र में घी दूषित नही होता!!

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नारिकेलोदकं कांस्ये ताम्रपात्रे स्थितं मधु!

गव्यं च ताम्र पात्रस्थं सर्वं मद्यं घृतं विना!!ब्रह्मवैवर्त!!

नारिकेलोदकं ....ऐक्षवं ताम्रपात्रस्थं सुरातुल्यं न संशयः!!उपरोक्त!!


-----कांसे के पात्र में नारियल का जल और तांबे के पात्र में ईख का रस एवं सभी गव्य पदार्थ (घी के सिवाय दूध,दही आदि) मदिरा तुल्य अभक्ष्य हो जाते है

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कर्पूरं रौप्यपात्रस्थभक्ष्यं श्रुतिसम्मतम्!!व्रह्मवैवर्त!!


------चांदी के पात्र में रखा हुआ कपूर अभक्ष्य हो जाता है!!

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नोत्सङ्गे भक्ष्येत्भक्ष्यान्नं पाणौ लवणं तथा!!विष्णुधर्मोत्तर!!

न पाणौ लवणं विद्वान् प्राश्नीयात्!!महाभारत अनु!!


----हाथ मे नमक लेकर चाटना नही चाहिये!!

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लशुनं गुंजनं चैव पलाण्डुम् कवनानि च !,

अभक्ष्याणि द्विजातीनाममेध्य प्रभवाणि च!!मनु!!

लशुनं गुंजनं चैव पलाण्डुम् कवनानि च !

वार्ताकं नालिकेरं तु मूलकं जातिदुष्टकम्!!भविष्य!!


लहसुन ,गाजर,प्याज,कुकरमुत्ता,वैगन,करेमु, ओर अपवित्र स्थान (श्मशान आदि)--आदि में उत्पन्न शाक जात्या दूषित है ओर द्विजातियो के लिये अभक्ष्य है!!

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लोहितान्वृक्षनिर्यासान्वृश्चनप्रभवांस्तथा!

शेलुं गव्यं च पेयूषं प्रयत्नेन विवर्जयेत् !!मनु!!

लोहितान्व्रश्चनास्तथा--याज्ञवल्क्य!!


------पेड़ो का लाल गोंद,वृक्ष काटने से निकलने वाला गोंद,ओर गाय का पेयूष त्याज्य है!!


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अंगुल्या दन्तकाष्ठं च प्रत्यक्षं लवणं तथा !

मृत्तिका भक्षणं चैव तुल्यं गोमांस भक्षणं !!अत्रि/वृहत्पाराशर स्मृति!!

अंगुल्या दन्तधावेन प्रत्यक्षलवणेन च!मृत्तिकाभक्षणं-----!!दाल्भ्य!!


------प्रत्यक्ष नमक भक्षण एवम मिट्टी खाना भी मभक्ष्य होता है!!


 अदेयं चाप्यपेयं च तथैवास्पृश्यमेव च !

द्विजातीनामनालोक्यं नित्यं मद्यमिति स्थिति:!!

तस्मात् सर्वप्रकारेण (सर्वप्रयत्नेन)मद्यं नित्यं विवर्जयेत्!पीत्वा पतति कर्मभ्यस्त्वसम्भाष्यो भवेद् द्विजः!!कूर्म पद्म द्वय!!


-----द्विजातियो के लिए किसी को मदिरा देना,स्वयं उसे पीना,उसका स्पर्श करना, तथा उसकी ओर देखना भी पाप है!

उससे सदा दूर ही रहना चाहिए यही सनातनी मर्यादा है!

इसलिये पूर्ण प्रयत्न करके सर्वदा मदिरा का त्याग करें!जो द्विजे मद्यपान करता है ,वह द्विजोचित कर्मो से भ्रष्ट हो जाता है ,उससे बात भी नही करनी चाहिए और उसका वहिष्कार अवश्य करना चाहिए!!


घृतिं लज्जा च बुद्धिं च पानं पीतं प्रणाशयेत्!-----एवं बहुबिधा दोषा:पनपे सन्ति शोभने!

केवलं नरकं यान्ति नास्ति तत्र विचारणा!!महाभारत!!


---मदिरा पीने से मनुष्य के धैर्य ,लज्जा,ओर बुद्धि का नाश हो जाता है!

उसका निश्चय ही इहलोक ओर परलौक नष्ट होता है!!


सुरा भाँडोदरो वारि पीत्वा चाँद्रायणं चरेत्!!कूर्म!!

----मदिरा के पात्र में जल पीने पर 

चांद्रायण -व्रत करना चाहिए!!


सुरा स्पृष्ट्वा द्विजः कुर्यात् प्राणायाम त्रयं शुचि:!!

----मदिरा का स्पर्श मात्र होने से द्विज को प्रायश्चित्त स्वरूप तीन प्राणायाम एवम गायत्री का जप करना चाहिए तभी वह शुद्ध होता है!!


यः स्वार्थ मांसपचनं कुरुते पाप मोहित:!

यावन्त्यस्य तु रोमाणि तावत्स नरके वसेत्!!

परप्राणैस्तु ये प्राणान् स्वान् पुष्णन्ति हि दुर्धियः!

आकल्पं नरकान् भुक्त्वा ते भुज्यन्तेSत्र तै:पुनः!!

जातु मांसं न भोक्तव्यं प्रानै:कंठ गतैरपि!!स्कंद!!


----जो मनुष्य पाप से मोहित होकर मांस पकाता है,वह उस पशु के शरीर मे जितने रोम होते है उतने वर्ष पर्यंत नरक में निवास करता है!

जो दूषित वुद्धिवाले मनुष्य पराए प्राणों से अपने प्राणों का पोषण करता है ,वे एक कल्प तक नरक यातना भोगकर पुनः जन्म लेते है और उन्ही प्राणियों के खाद्य बनते है!!

यदि भूख से प्राण निकलकर कंठ तक आ गए हो तब भी मांस भक्षण नही करना चाहिए!!

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चूर्णपत्रे त्वया वास:सदा कार्यो दरिद्र भो:!

ताम्बूलस्य तो पर्णाग्रे भार्यया मम वाक्यत:!!

पर्णानां चैव वृंतेषु सर्वेषु त्वत्सुतेन च!

रात्रौ खदिरसारे च त्वं ताभ्यां सर्वदा वस!!!!


----ताम्बूल(पान)--पान के पत्ते के अग्रभाग में पत्नि के साथ तथा डंठल में पुत्र के साथ दारिद्र्य निवास करता है !

रात्रि के समय ये तीनो कत्थे में निवास करते है !!

सुरती (खेनी)-में सदा दारिद्र्य निवास करता है!!


ताम्बूलं विधवास्त्रीणां यतीनां व्रह्मचारिणम्!तपस्विनां च विप्रेन्द्र गोमांस सदृशं ध्रुवं!!व्रह्मवैवर्त!!

ताम्बूलं------!!सन्यासिनां च गोमांससुरातुल्यं श्रुतौ श्रुतम्!!व्र-वै,कृष्ण!!

-------विधवा स्त्री ,सन्यासी,ब्रह्मचारी, तथा तपस्वी के लिए ताम्बूल सदा ही अभक्ष्य है!!


परिवेषणकारी चेद्भोक्तारं स्पृशते यदि!

अभक्ष्यं च तदन्नं च सर्वेषामेव सम्मतम् !!व्रह्मवैवर्त!!


-------यदि परोसने वाला व्यक्ति भोजन करने वाले व्यक्ति को स्पर्श कर दे वह अन्न अभक्ष्य हो जाता है!!


--------¥¥अंकुरित अन्न नही खाना चाहिए ,क्योकि अंकुरण के समय जीव उत्पन्न हो जाने के कारण जीव हिंसाजन्य दोष लगता है!!


====जो म्लेच्छ है आचार विचार से --हीन है --उन दानवी वृत्ति वालों के लिए यह लेख नही है!!

>>>कण्टकादिजन्य दोषेण मदीय वुद्धि भ्रम दोषेण वा यानि स्खलितानि गुणैक पक्ष पातिनेधियो विद्वांश: संशोध्य व्यवहन्त्विति प्रार्थये!!

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