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अगस्त, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हरतालिका तीज व्रत, HARTALIKA TEEJ VRAT

  हरतालिका तीज (गौरी तृतीया) व्रत  हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। यह तीज का त्यौहार भाद्रपद मास शुक्ल की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया हैं। विधि-विधान से हरितालिका तीज का व्रत करने से जहाँ कुंवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है, वहीं विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है।   हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं।  यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं। शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधि विधान से करती हैं। महिलाओं में संकल्प शक्ति बढाता है हरितालिका तीज का व्रत 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ हरितालिका तीज का व्रत महिला प्रधान है।इस दिन महिलायें बिना कुछ खायें -पिये व्रत रखती है।यह व्रत संकल्प शक्ती का एक अनुपम उदाहरण है। संकल्प अर्थात किसी कर्म के लिये मन मे निश्चित करना कर्म का मूल संकल्प है।इस प्रकार संकल्प हमारी अन्तरीक शक्तियोंका सामोहिक निश्चय है।इसका...

भाद्रपद कुशोत्पाटिनी (पिठौरी) अमावस्या विशेष

  भाद्रपद कुशोत्पाटिनी (पिठौरी) अमावस्या विशेष 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ हिन्दू धर्म में अमावस्या की तिथि पितरों की आत्म शांति, दान-पुण्य और काल-सर्प दोष निवारण के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। चूंकि भाद्रपद माह भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का महीना होता है इसलिए भाद्रपद अमावस्या का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुशा एकत्रित की जाती है। कहा जाता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली कुशा यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह पुण्य फलदायी होती है। अध्यात्म और कर्मकांड शास्त्र में प्रमुख रूप से काम आने वाली वनस्पतियों में कुशा का प्रमुख स्थान है। इसका वैज्ञानिक नाम Eragrostis cynosuroides है। इसको कांस अथवा ढाब भी कहते हैं। जिस प्रकार अमृतपान के कारण केतु को अमरत्व का वर मिला है, उसी प्रकार कुशा भी अमृत तत्त्व से युक्त है।  अत्यन्त पवित्र होने के कारण इसका एक नाम पवित्री भी है। इसके सिरे नुकीले होते हैं। इसको उखाड़ते समय सावधानी रखनी पड़ती है कि यह जड़ सहित उखड़े और हाथ भी न कटे। कुशल शब्द इसीलिए बना। इस वर्ष कुशोत्पाटिनी अम...

इन इक्कीस वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है

 इन इक्कीस वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है। ये वस्तुयें पृथ्वी की ऊर्जा को अव्यवस्थित करती हैं और उस स्थान को अशुभ बनाती हैं।  ये वस्तुयें हैं - (1) मोती  (2) शुक्ति (सीपी) (3) शालग्राम  (4) शिवलिंग (5) देवी मूर्ति (6) शंख  (7) दीपक (8) यन्त्र  (9) माणिक्य (10) हीरा  (11) यज्ञसूत्र (यज्ञोपवीत) (12) पुष्प (फूल) (13) पुष्पमाला (14) जपमाला  (15) पुस्तक  (16) तुलसीदल  (17) कर्पूर  (18) स्वर्ण (19) गोरोचन  (20) चंदन  (21) शालिग्राम का स्नान कराया अमृत जल ।  इन सभी वस्तुओं को किसी आधार पर रख तभी उस पर इनको स्थापित कर पूजित किया जाता है। पृथ्वी पर अक्षत, आसन, काष्ठ या पात्र रख कर इनको उस पर रखते हैं- मुक्तां शुक्तिं हरेरर्चां शिवलिंगं शिवां तथा । शंखं प्रदीपं यन्त्रं च माणिक्यं हीरकं तथा ।। यज्ञसूत्रं च पुष्पं च पुस्तकं तुलसीदलम् । जपमालां पुष्पमालां कर्पूरं च सुवर्णकम् ।। गोरोचनं च चन्दनं च शालग्रामजलं तथा । एतान् वोढुमशक्ताहं क्लिष्टा च भगवन् शृणु।।        अतएव इन इक्कीस वस्तुओं क...

ऋष्यशृंग

  ऋष्यशृंग कौन थे????? ऋष्यश्रृंग ऋषि का वर्णन पुराणों एवं रामायण में आता है। ब्रह्मदेव के पौत्र महर्षि कश्यप के एक पुत्र थे विभाण्डक। वे स्वाभाव से बहुत उग्र और महान तपस्वी थे। एक बार उनके मन में आया कि वे ऐसी घोर तपस्या करें जैसी आज तक किसी और ने ना की हो। इसी कारण वे घोर तप में बैठे। उनकी तपस्या इतनी उग्र थी कि स्वर्गलोक भी तप्त हो गया।  जब देवराज इंद्र ने देखा कि ऋषि विभाण्डक घोर तप कर रहे हैं तो उन्होंने उनकी तपस्या भंग करने के लिए कई अप्सराएं भेजी किन्तु वे उनका तप तोड़ने में असफल रहीं। तब इंद्र ने उर्वशी को विभाण्डक के पास भेजा। जब विभाण्डक ऋषि ने उर्वशी को देखा तो उसके सौंदर्य देखकर मुग्ध हो गए और उन्होंने उर्वशी के साथ संसर्ग किया जिससे उनकी तपस्या भंग हो गयी। दोनों के संयोग से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसके सर पर मृग की तरह सींघ (श्रृंग) था। उसी कारण उसका नाम "ऋष्यश्रृंग" रखा गया। इस विषय में एक और कथा मिलती है कि उर्वशी का सौंदर्य देख विभाण्डक का तेज स्खलित हो गया जिसे उन्होंने जल में बहा दिया। उस जल को एक मृग ने पिया जिससे वो गर्भवती हो गई और एक बालक को जन्...

राजा भरथरी

  कथा राजा भरथरी (भर्तृहरि) की पत्नी के धोखे से आहत होकर बन गए तपस्वी? उज्जैन में भरथरी की गुफा स्थित है। इसके संबंध में यह माना जाता है कि यहां भरथरी ने तपस्या की थी। यह गुफा शहर से बाहर एक सुनसान इलाके में है। गुफा के पास ही शिप्रा नदी बह रही है।  गुफा के अंदर जाने का रास्ता काफी छोटा है। जब हम इस गुफा के अंदर जाते हैं तो सांस लेने में भी कठिनाई महसूस होती है। गुफा की ऊंचाई भी काफी कम है, अत: अंदर जाते समय काफी सावधानी रखनी होती है। यहाँ पर एक गुफा और है जो कि पहली गुफा से छोटी है। यह गोपीचन्द कि गुफा है जो कि भरथरी का भतीजा था। यहां प्रकाश भी काफी कम है, अंदर रोशनी के लिए बल्ब लगे हुए हैं। इसके बावजूद गुफा में अंधेरा दिखाई देता है। यदि किसी व्यक्ति को डर लगता है तो उसे गुफा के अंदर अकेले जाने में भी डर लगेगा। यहां की छत बड़े-बड़े पत्थरों के सहारे टिकी हुई है।  गुफा के अंत में राजा भर्तृहरि की प्रतिमा है और उस प्रतिमा के पास ही एक और गुफा का रास्ता है। इस दूसरी गुफा के विषय में ऐसा माना जाता है कि यहां से चारों धामों का रास्ता है। गुफा में भर्तृहरि की प्रतिमा के स...

जामवंत

  जामवन्त आज भी जिंदा हैं, जानिए उनके जीवन का रहस्य!!!!!!! जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है।  दरअसल दुनियाभर की पौराणिक कथाओं में इस तरामंडल को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है, लेकिन सप्तऋषि तारामंडल मंडल को यूनान में बड़ा भालू (larger bear) कहा जाता है। इस तरामंडल के संबंध में प्राचीन भारत और यूनान में कई दंतकथाएं प्राचलित हैं।   पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास और जामवन्त आदि कई ऋषि, मुनि और देवता सशरीर आज भी जीवित हैं। कहते हैं कि जामवन्तजी बहुत ही विद्वान् हैं।  वेद उपनिषद् उन्हें कण्ठस्थ हैं। वह निरन्तर पढ़ा ही करते थे और इस स्वाध्यायशीलता के कारण ही उन्होंने लम्बा जीवन प्राप्त किया था। परशुराम और हनुमान के बाद जामवन्त ही एक ऐसे व्यक्ति...

अभिमन्यु

                          अभिमन्यु अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था| श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा इनकी माता थी| यह बालक बड़ा होनहार था| अपने पिता के-से सारे गुण इसमें विद्यमान थे| स्वभाव का बड़ा क्रोधी था और डरना तो किसी से इसने जाना ही नहीं था| इसी निर्भयता और क्रोधी स्वभाव के कारण इसका नाम अभि (निर्भय) मन्यु (क्रोधी) 'अभिमन्यु' पड़ा था| अर्जुन ने धनुर्वेद का सारा ज्ञान इसको दिया था| अन्य अस्त्र-शस्त्र चलाना भी इसने सीखा था| पराक्रम में यह किसी वीर से भी कम नहीं था| सोलह वर्ष की अवस्था में ही अच्छे-अच्छे सेनानियों को चुनौती देने की शक्ति और समार्थ्य इसमें थी| इसकी मुखाकृति और शरीर का डीलडौल भी असाधारण योद्धा का-सा था| वृषभ के समान ऊंचे और भरे हुए कंधे थे| उभरा वक्षस्थल था और आंखों में एक जोश था| महाभारत का भीषण संग्राम छिड़ा हुआ था| पितामह धराशायी हो चुके थे| उनके पश्चात गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों का सेनापतित्व संभाला था| अर्जुन पूरे पराक्रम के साथ युद्ध कर रहा था| प्रचण्ड अग्नि के समान वह बाणों की वर्षा करके कौरव सेना को विचलित क...

श्रीलड्डूगोपाल की पूजा की सरल विधि

  श्रीलड्डूगोपाल की पूजा की सरल विधि!!!!!!!! ‘योगी जिन्हें ‘आनन्द’ कहते हैं, ऋषि-मुनि ‘परमात्मा’ कहते हैं, संत ‘भगवान’ कहते हैं, उपनिषद् ‘ब्रह्म’ कहते हैं, वैष्णव ‘श्रीकृष्ण’ कहते हैं और माताएं व बहनें प्यार से ‘गोपाल’, ‘लाला’ ‘बालकृष्ण’ या ‘श्रीलड्डूगोपाल’ कहती हैं, वह एक ही तत्त्व है । ये सब अनेक नाम एक ही परब्रह्म के हैं।’ ब्रजमण्डल ही नहीं देश-विदेश के अधिकांश वैष्णवों के घर में भगवान श्रीकृष्ण का बालस्वरूप ‘श्रीलड्डूगोपाल’ या ‘गोपालजी’ के रूप में विराजमान है । स्त्रियां इनकी सेवा-लाड़-मनुहार गोपी या यशोदा के भाव से करती हैं, तो कई लोग श्रीलड्डूगोपाल की सेवा स्वामी, सखा, पुत्र या भाई के भाव से करते हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है—‘जो मेरी जिस रूप में आराधना या उपासना करता है, मैं भी उसे उसी रूप में उसी भाव से प्राप्त होता हूँ और उसे संतुष्ट कर देता हूँ।‘ भक्ति करने का अर्थ है भगवान की मूर्ति में, भगवान के मंत्र में मन को पिरो देना । भगवान के बालस्वरूप को घर में प्रतिष्ठित कर देने के बाद उन्हें घर का स्वामी मानते हुए घर का प्रत्येक काम उन्हीं की प्रसन्नता के लिए करना भक...

गोपाल स्तुति

।।गोपाल स्तुति ।।   🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼   नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे। विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमो नमः॥१॥   नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे। कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः॥२   नमः कमलनेत्राय नमः कमलमालिने। नमः कमलनाभाय कमलापतये नमः॥३॥   बर्हापीडाभिरामाय रामायाकुण्ठमेधसे। रमामानसहंसाय गोविन्दाय नमो नमः॥४॥   कंसवशविनाशाय केशिचाणूरघातिने। कालिन्दीकूललीलाय लोलकुण्डलधारिणे॥५ वृषभध्वज-वन्द्याय पार्थसारथये नमः। वेणुवादनशीलाय गोपालायाहिमर्दिने॥६॥   बल्लवीवदनाम्भोजमालिने नृत्यशालिने। नमः प्रणतपालाय श्रीकृष्णाय नमो नमः॥७   नमः पापप्रणाशाय गोवर्धनधराय च। पूतनाजीवितान्ताय तृणावर्तासुहारिणे॥८   निष्कलाय विमोहाय शुद्धायाशुद्धवैरिणे। अद्वितीयाय महते श्रीकृष्णाय नमो नमः॥९॥   प्रसीद परमानन्द प्रसीद परमेश्वर। आधि-व्याधि-भुजंगेन दष्ट मामुद्धर प्रभो॥१०   श्रीकृष्ण रुक्मिणीकान्त गोपीजनमनोहर। संसारसागरे मग्नं मामुद्धर जगद्गुरो॥११॥   केशव क्लेशहरण नारायण जनार्दन। गोविन्द परमानन्द मां समुद्धर माधव॥१२॥   ॥ इत्याथर्वणे ग...

अथ श्री रुद्रकवचम्

 ॥ अथ श्री रुद्रकवचम् ॥ मनुष्य के बुरे कर्मों का फल रुद्र, यम, वरुण और नैऋति के माध्यम से मिलता है यदि जीवन में कष्ट अधिक हो तो महादेव से उदार / आशुतोष कौन हो सकता है? अतः इनका आश्रय परम् कल्याणकारक है। इसी श्रृंखला में "श्रीरूद्रकवच" प्रकाशित कर रहे हैं।  विधिवत शिवलिंग पूजन करके रविवार या सोमवार या त्रयोदशी से आरम्भ करके नित्य 31 पाठ करते हुए 41 दिन में 1200 पाठ पूरे करें। किसी भी तरह के कष्ट में शांति अवश्य प्राप्त होगी। आगे इनके 11000 तक पाठ पूरा करनें का प्रयत्न करें, सब दुख दूर होंगे ; बशर्ते आप सदाचार का कड़ाई से पालन करें। प्याज, लहसुन, मछली, मद्य, मांस, अंडा, तम्बाकू सेवन पूर्णतः निषिद्ध है। 🔱🕉️🔱🕉️🔱🕉️🔱🕉️🔱🕉️🔱🕉️ ॐ अस्य श्री रुद्र कवच स्तोत्र महा मंत्रस्य दूर्वासऋषिः अनुष्ठुप् छंदः त्र्यंबक रुद्रो देवता ह्राम् बीजम् श्रीम् शक्तिः ह्रीम् कीलकम् मम मनसोभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ह्रामित्यादिषड्बीजैः षडंगन्यासः ॥           ॥ ध्यानम् ॥ शांतम् पद्मासनस्थम् शशिधरमकुटम् पंचवक्त्रम् त्रिनेत्रम् शूलम् वज्रंच खड्गम् परशुमभयदम् दक्षभागे महन्तम...

हल षष्ठी विशेष

 हल चंदन षष्ठी 16 अगस्त मंगलवार विशेष 〰️〰️🌸〰️〰️🌸🌸〰️〰️🌸〰️〰️ व्रत महात्म्य विधि और कथा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी बलराम जन्मोत्सव के रूप में देशभर में मनायी जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन भगवान शेषनाग ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में अवतरित हुए थे। इस पर्व को हलषष्ठी एवं हरछठ के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि मान्यता है कि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल हैं जिस कारण इन्हें हलधर कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी के भी कहा जाता है। इस दिन बिना हल चले धरती से पैदा होने वाले अन्न, शाक भाजी आदि खाने का विशेष महत्व माना जाता है। गाय के दूध व दही के सेवन को भी इस दिन वर्जित माना जाता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिये विवाहिताएं व्रत भी रखती हैं।  हिन्दू धर्म के अनुसार इस व्रत को करने वाले सभी लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण और राम भगवान विष्णु जी का स्वरूप है, और बलराम और लक्ष्मण शेषनाग का स्वरूप है. पौराणिक कथाओं के संदर्भ अनुसार एक बार भगवान विष्णु से श...

क्या हुआ जब माता सीता पृथ्वी में समा गयीं

 क्या हुआ जब धरती में समा गईं सीता माता? पहली बात तो यह कि माता सीता का धरती में समा जाने के प्रसंग पर मतभेद और विरोधाभाष है। पद्मपुराण की कथा में सीता धरती में नहीं समाई थीं बल्कि उन्होंने श्रीराम के साथ रहकर सिंहासन का सुख भोगा था और उन्होंने भी राम के साथ में जल समाधि ले ली थी।   वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड के अनुसार प्रभु श्रीराम के दरबार में लव और कुश राम कथा सुनाते हैं। सीता के त्याग और तपस्या का वृतान्त सुनकर भगवान राम ने अपने विशिष्ट दूत के द्वारा महर्षि वाल्मीकि के पास सन्देश भिजवाया, 'यदि सीता का चरित्र शुद्ध है और वे आपकी अनुमति ले यहां आकर जन समुदाय में अपनी शुद्धता प्रमाणित करें और मेरा कलंक दूर करने के लिए शपथ करें तो मैं उनका स्वागत करूंगा।'   यह संदेश सुनकर वाल्मीकि माता सीता को लेकर दरबार में उपस्थित हुए। काषायवस्त्रधारिणी सीता की दीन-हीन दशा देखकर वहां उपस्थित सभी लोगों का हृदय दुःख से भर आया और वे शोक से विकल हो आंसू बहाने लगे। वाल्मीकि बोले, 'श्रीराम! मैं तुम्हें विश्‍वास दिलाता हूं कि सीता पवित्र और सती है। कुश और लव आपके ही पुत्र हैं। मैं कभी मिथ्य...

शनि देव

  शनिदेव की पौराणिक कथा और रहस्य   प्रत्येक इंसान के जीवन मे उतार चढ़ाव लगे ही रहते है इनका मुख्य कारण पुर्व जन्म कृत कर्म ही होते है। ज्योतिषी मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्मो के अनुसार ही ग्रह फल देते है। पौराणिक ग्रंथो में शनि देव को न्यायाधीध के रूप में दर्शाया गया है। शनि देव सदैव से जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं।  पौपौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव कश्यप वंश की परंपरा में भगवान सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र हैं। शनिदेव को सूर्य पुत्र के साथ साथ पितृ शत्रु भी कहा जाता है। शनिदेव के भाई-बहन मृत्यु देव यमराज, पवित्र नदी यमुना व क्रूर स्वभाव की भद्रा हैं।  शनिदेव का विवाह चित्ररथ की बड़ी पुत्री से हुआ था। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म उत्सव मनाया जाता है। शनिदेव का जन्म स्थान सौराष्ट्र में शिंगणापुर माना गया है। हनुमान, भैरव, बुध व राहू को वे अपना मित्र मानते हैं। शनिदेव का वाहन गिद्ध है और उनका रथ लोहे का बना हुआ है।  शनि देव के दस नाम: -  यम, बभ्रु, पिप्पलाश्रय, कोणस्थ, सौरि, शनैश्चर, कृष्ण, रोद्रान्तक, मंद, पिंगल।  शनिदेव अपना शुभ...