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अथ श्री रुद्रकवचम्

 ॥ अथ श्री रुद्रकवचम् ॥



मनुष्य के बुरे कर्मों का फल रुद्र, यम, वरुण और नैऋति के माध्यम से मिलता है यदि जीवन में कष्ट अधिक हो तो महादेव से उदार / आशुतोष कौन हो सकता है? अतः इनका आश्रय परम् कल्याणकारक है। इसी श्रृंखला में "श्रीरूद्रकवच" प्रकाशित कर रहे हैं। 


विधिवत शिवलिंग पूजन करके रविवार या सोमवार या त्रयोदशी से आरम्भ करके नित्य 31 पाठ करते हुए 41 दिन में 1200 पाठ पूरे करें। किसी भी तरह के कष्ट में शांति अवश्य प्राप्त होगी। आगे इनके 11000 तक पाठ पूरा करनें का प्रयत्न करें, सब दुख दूर होंगे ; बशर्ते आप सदाचार का कड़ाई से पालन करें। प्याज, लहसुन, मछली, मद्य, मांस, अंडा, तम्बाकू सेवन पूर्णतः निषिद्ध है।


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ॐ अस्य श्री रुद्र कवच स्तोत्र महा मंत्रस्य

दूर्वासऋषिः अनुष्ठुप् छंदः त्र्यंबक रुद्रो देवता

ह्राम् बीजम् श्रीम् शक्तिः ह्रीम् कीलकम्

मम मनसोभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः

ह्रामित्यादिषड्बीजैः षडंगन्यासः ॥


          ॥ ध्यानम् ॥


शांतम् पद्मासनस्थम् शशिधरमकुटम्

पंचवक्त्रम् त्रिनेत्रम् शूलम् वज्रंच खड्गम्

परशुमभयदम् दक्षभागे महन्तम् ।

नागम् पाशम् च घंटाम् प्रळय हुतवहम्

सांकुशम् वामभागे नानालंकारयुक्तम्

स्फटिकमणिनिभम् पार्वतीशम् नमामि ॥


          ॥ दूर्वास उवाच ॥


प्रणम्य शिरसा देवम् स्वयंभु परमेश्वरम् ।

एकम् सर्वगतम् देवम् सर्वदेवमयम् विभुम् ।

रुद्र वर्म प्रवक्ष्यामि अंग प्राणस्य रक्षये ।

अहोरात्रमयम् देवम् रक्षार्थम् निर्मितम् पुरा ॥


रुद्रो मे जाग्रतः पातु पातु पार्श्वौहरस्तथा ।

शिरोमे ईश्वरः पातु ललाटम् नीललोहितः ।

नेत्रयोस्त्र्यंबकः पातु मुखम् पातु महेश्वरः ।

कर्णयोः पातु मे शंभुः नासिकायाम् सदाशिवः ।

वागीशः पातु मे जिह्वाम् ओष्ठौ पात्वंबिकापतिः ।

श्रीकण्ठः पातु मे ग्रीवाम् बाहो चैव पिनाकधृत् ।

हृदयम् मे महादेवः ईश्वरोव्यात् स्सनान्तरम् ।

नाभिम् कटिम् च वक्षश्च पातु सर्वम् उमापतिः ।

बाहुमध्यान्तरम् चैव सूक्ष्म रूपस्सदाशिवः ।

स्वरंरक्षतु मेश्वरो गात्राणि च यथा क्रमम्

वज्रम् च शक्तिदम् चैव पाशांकुशधरम् तथा ।

गण्डशूलधरान्नित्यम् रक्षतु त्रिदशेश्वरः ।

प्रस्तानेषु पदे चैव वृक्षमूले नदीतटे

संध्यायाम् राजभवने विरूपाक्षस्तु पातु माम् ।

शीतोष्णा दथकालेषु तुहिनद्रुमकंटके ।

निर्मनुष्ये समे मार्गे पाहि माम् वृषभध्वज ।

इत्येतद्द्रुद्रकवचम् पवित्रम् पापनाशनम् ।

महादेव प्रसादेन दूर्वास मुनिकल्पितम् ।

ममाख्यातम् समासेन नभयम् तेनविद्यते ।

प्राप्नोति परम आरोग्यम् पुण्यमायुष्यवर्धनम्

विद्यार्थी लभते विद्याम् धनार्थी लभते धनम् ।

कन्यार्थी लभते कन्याम् नभय विन्दते क्वचित् ।

अपुत्रो लभते पुत्रम् मोक्षार्थी मोक्ष माप्नुयात् ।

त्राहि त्राहि महादेव त्राहि त्राहि त्रयीमय ।

त्राहिमाम् पार्वतीनाथ त्राहिमाम् त्रिपुरंतक

पाशम् खट्वांग दिव्यास्त्रम् त्रिशूलम् रुद्रमेवच ।

नमस्करोमि देवेश त्राहिमाम् जगदीश्वर ।

शत्रु मध्ये सभामध्ये ग्राममध्ये गृहान्तरे ।

गमनेगमने चैव त्राहिमाम् भक्तवत्सल ।

त्वम् चित्वमादितश्चैव त्वम् बुद्धिस्त्वम् परायणम् ।

कर्मणामनसा चैव त्वंबुद्धिश्च यथा सदा ।

सर्व ज्वर भयम् छिन्दि सर्व शत्रून्निवक्त्याय ।

सर्व व्याधिनिवारणम् रुद्रलोकम् सगच्छति

रुद्रलोकम् सगच्छत्योन्नमः ॥


॥ इति स्कंदपुराणे दूर्वास प्रोक्तम् रुद्रकवचम् सम्पूर्णम् ॥

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