सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पितृ स्त्रोत एवं पितृ स्तोत्र का अर्थ !

 इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिए।। 

।।पितृ स्त्रोत पढ़ने के चमत्कारी लाभ ।। 


श्राद्ध पक्ष में पितृ स्तोत्र का पाठ करने से मिलेगा पितृ दोष से छुटकारा, पढ़िए पितृ स्तोत्र भावार्थ के साथ एवं पढ़िए इसके लाभ


पितृ स्त्रोत एवं पितृ स्तोत्र का अर्थ !



।।अथ पितृस्तोत्र ।।

1- अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।


हिन्दी अर्थ – जो सबके द्वारा पूजा किये जाने योग्य, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि से पूर्ण रूप से सम्पन्न है। उन पितरों को मैं सदा प्रणाम करता हूं।


2- इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।


हिन्दी अर्थ– जो इन्द्र आदि समस्त देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता है, हर मनोकामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूं।


3- मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।


हिन्दी अर्थ– जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य देव और चन्द्र देव के भी नायक है। उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूं।


4- नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।


हिन्दी अर्थ– नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। सदैव उनका आशीर्वाद मुझ पर बना रहे।


5- देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।


हिन्दी अर्थ– जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल को देने वाले हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।


6- प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।


हिन्दी अर्थ– प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर सदैव प्रणाम करता हूं।


7- नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।


हिन्दी अर्थ– सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को प्रणाम है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू जगतपिता ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं। सदैव आपका आशीर्वाद मुझ पर बना रहे।


8- सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।


हिन्दी अर्थ– चन्द्र देव के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को प्रणाम करता हूं। सदैव उनका आशीर्वाद मुझ पर बना रहे।


9- अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।

अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।


हिन्दी अर्थ– अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि श्री पितर जी यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।उनका आशीर्वाद सदैव बना रहे।


10- ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।


तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।


हिन्दी अर्थ– जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर हर बार प्रणाम करता हूं। उन्हें बारम्बार प्रणाम है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हो उनका आशीर्वाद सदैव मुझ पर बना रहे।


पितृ स्त्रोत के लाभ !


1.परिवारिक सुख-सम्रद्धि एवँ शांति:-

2. स्वस्थ एवँ प्रसन्न:-

3. पितृ दोष से मुक्ति:-

4. समस्त मनचाहे कार्य पूर्ण:-

5. नोकरी एवँ व्यापार में सफलता:-

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...