श्रीहनुमद्वडवानलस्तोत्रम्
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सर्वरोगनिवारक, धन प्रदायक, सर्वशत्रु शमनकर्ता, राजभय निवारक, तंत्र-मंत्र-यंत्र भय निवारक, भूत-प्रेत-शाकिनी-डाकिनी आदि से रक्षा देने वाला, नवग्रह पीड़ा शांत करने वाला, अनेकों लाभ देने वाला विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र।।
★ इस स्तोत्र के पाठ से पहले और बाद में एक-एक बार श्रीरामरक्षा स्तोत्र या हनुमान कवच का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए, सूक्ष्म जगत के आक्रमण से सुरक्षा हेतु यह आवश्यक है।
बाकी हनुमान जी की पूजा सम्बन्धी विधि-निषेध का पालन करते हुए इसका पाठ करें। सर्वविध लाभ होगा।
★ यदि किसी आवेश का अनुभव करें तो 15 मिनट ""सीताराम"" जप करें।
श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ अस्य श्रीहनुमद्वडवानलस्तोत्रमन्त्रस्य
श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीवडवानलहनुमान् देवता,
(श्रीहनुमान् वडवानल देवता)
ह्रां बीजं, ह्रीं शक्तिः, सौं कीलकं, मम समस्तविघ्नदोषनिवारणार्थे,
सर्वशत्रुक्षयार्थे, सकलराजकुलसंमोहनार्थे,
मम समस्तरोगप्रशमनार्थे, आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्ध्यर्थे,
समस्तपापक्षयार्थे, श्रीसीतारामचन्द्रप्रीत्यर्थे
हनुमद्वडवानलस्तोत्रजपे विनियोगः (सङ्कल्पः) ॥
अथ ध्यानम् ।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्री महाहनुमते प्रकटपराक्रम
सकलदिङ्मण्डलयशोवितानधवलीकृतजगत्त्रितय वज्रदेह
रुद्रावतार लङ्कापुरीदहन उमा-अमल-मन्त्र (उमा-अर्गल-मन्त्र)
उदधिबन्धन दशशिरःकृतान्तक सीताश्वसन वायुपुत्र
अञ्जनीगर्भसम्भूत श्रीरामलक्ष्मणानन्दकर कपिसैन्यप्राकार
सुग्रीवसाह्यरण पर्वतोत्पाटन कुमारब्रह्मचारिन् गभीरनाद
सर्वपापग्रहवारण सर्वज्वरोच्चाटन डाकिनीविध्वंसन
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीरवीराय सर्वदुःखनिवारणाय
ग्रहमण्डलसर्वभूतमण्डलसर्वपिशाचमण्डलोच्चाटन
भूतज्वरएकाहिकज्वरद्व्याहिकज्वरत्र्याहिकज्वरचातुर्थिकज्वर-
सन्तापज्वरविषमज्वरतापज्वरमाहेश्वरवैष्णवज्वरान् छिन्धि छिन्धि
यक्षब्रह्मराक्षसभूतप्रेतपिशाचान् उच्चाटय उच्चाटय (स्वाहा) ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॐ सौं एहि एहि एहि
ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते
श्रवणचक्षुर्भूतानां शाकिनीडाकिनीनां विषमदुष्टानां
सर्वविषं हर हर आकाशभुवनं भेदय भेदय
छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय
ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय सकलमायां भेदय भेदय (स्वाहा) ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महाहनुमते सर्वग्रहोच्चाटन
परबलं क्षोभय क्षोभय सकलबन्धनमोक्षणं कुरु कुरु
शिरःशूलगुल्मशूलसर्वशूलान्निर्मूलय निर्मूलय
नागपाशानन्तवासुकितक्षककर्कोटककालियान्
यक्षकुलजलगतबिलगतरात्रिञ्चरदिवाचर सर्वान्निर्विषं
(यक्षकुलजगत् रात्रिञ्चर दिवाचर सर्पान्निर्विषं)
कुरु कुरु स्वाहा ॥
राजभयचोरभयपरमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्रपरविद्याश्छेदय छेदय
स्वमन्त्रस्वयन्त्रस्वतन्त्रस्वविद्याः प्रकटय प्रकटय
सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्वशत्रून्नाशय नाशय
असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ॥
॥ इति श्रीविभीषणकृतं हनुमद्वडवानलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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