शीतला माता

ज्येष्ठा हिन्दू धर्म की देवी हैं। ज्येष्ठा सौभाग्य और सुंदरता की देवी लक्ष्मी जी की बड़ी बहन मानी जाती हैं जो कि बिलकुल उनके विपरीत हैं। यह अशुभ घटनाओं और पापियों के अलावा आलस, गरीबी, दुख, कुरूपता से भी संबंधित मानी जाती हैं। इन्हें दुर्भाग्य की देवी कहा जाता है। इन्हें अपने घर से दूर रखने के लिए ही लोग इनकी पूजा करते हैं। इन्हें अलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है।
पद्मपुराण का एक कथा के अनुसार जब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया गया तो सबसे पहले समुद्र से विष निकला जिसे शिव जी ने अपने कंठ में भर लिया। इसके बाद समुद्र मंथन से देवी ज्येष्ठा की उत्पत्ति हुई। उस समय उन्होंने लाल रंग के वस्त्र धारण कर रखें थे। इनकी पीठ ठीक लक्ष्मी जी के विपरीत थी। यानि जिस तरह यह जाती हैं उसकी दूसरी तरह लक्ष्मी जी का वास होता है।
पद्मपुराण का एक कथा के अनुसार जब देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया गया तो सबसे पहले समुद्र से विष निकला जिसे शिव जी ने अपने कंठ में भर लिया। इसके बाद समुद्र मंथन से देवी ज्येष्ठा की उत्पत्ति हुई। उस समय उन्होंने लाल रंग के वस्त्र धारण कर रखें थे। इनकी पीठ ठीक लक्ष्मी जी के विपरीत थी। यानि जिस तरह यह जाती हैं उसकी दूसरी तरह लक्ष्मी जी का वास होता है।
देवी ज्येष्ठ का रूप बहुत ही सुंदर है। वह सदा लाल रंग के वस्त्र पहने रहती हैं। उनके चार हाथ है जिनमें से दो अभय और वर मुद्रा में रहते हैं तथा अन्य दो हाथों में तीर धनुष रहता है। इनका वाहन कौआ है। यह सदा कमल पर विराजमान रहती हैं। पीपल के पेड़ में अलक्ष्मी या माता ज्येष्ठा का वास होता है।
देवी ज्येष्ठा का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। उनकी छोटी बहन लक्ष्मी जी हैं। देवी ज्येष्ठा का विवाह एक दुःसह नामक ब्राह्मण के साथ हुआ था। यह नास्तिक और पापियों के घर में निवास करती हैं।
भारत के कुछ हिस्सों में इन्हें शीतला देवी के नाम से भी पूजा जाता है।


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