सीता एक ऐसा चरित्र जिसे सभी को ज्ञान मिलता हैं . सीता माता के चरित्र का वर्णन सभी वेदों में बहुत सुंदर शब्दों में किया गया हैं . वाल्मीकि रामायण में भी देवी सीता को शक्ति स्वरूपा, ममतामयी, राक्षस नाशिनी, पति व्रता आदि कई गुणों से सज्जित बताया गया हैं . सीता मैया के जन्म दिवस को सीता अथवा जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं . सीता जयंती को पुरे देश में उत्साह से मनाया जाता हैं .इसे विवाहित स्त्रियाँ पति की आयु के लिए करती हैं . सीता मैया को जानकी भी कहा जाता हैं अतः उनकी जयंती को जानकी जयंती भी कहा जाता हैं . उनके पिता का नाम जनक था और सीता जनक की गोद ली हुई पुत्री थी . सीता, मिथिला के राजा को यज्ञ के लिए खेत जोतते हुए धरती मैया से प्रकट होती हुई प्राप्त हुई थी इसलिये इनका एक नाम भूमिजा भी हैं . राजा जनक की कोई संतान नहीं थी उन्होंने और पत्नी सुनैना ने सीता को गोद लिया और अपनी बेटी के रूप में पाला . बाद में इन्ही सीता का विवाह भगवान राम से हुआ .
सीता/ जानकी जयंती कब मनाई जाती हैं
फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता जी का जन्म हुआ था . अतः इस दिन को सीता नवमी अथवा सीता जयंती, जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं . नेपाल में इस दिन को बहुत उत्साह से मनाते हैं . वर्तमान में मिथिला नेपाल का हिस्सा हैं और रानी सीता मिथिला की राजकुमारी थी जिन्हें राजा जनक और रानी सुनैना ने सीता को गोद लिया था. वास्तव में सीता, भूमिजा कहलाई क्यूंकि राजा जनक ने उन्हें भूमि से प्राप्त किया था . इस सन्दर्भ में बहुत ही रोचक कथा कही जाती हैं जिसे विस्तार से लिखा गया हैं
सीता के जन्म का रहस्य
सीता मैया जो कि मिथिला नरेश जनक की पुत्री कही जाती हैं, वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राजा जनक ने धरती को जोता था, तब निर्मित हुई क्यारी में उन्हें एक छोटी से कन्या मिली थी, तब ही राजा जनक ने इन्हें धरती माता की पुत्री के रूप में अपना लिया था . यह भी कहा जाता हैं जब राजा जनक ने यज्ञ कार्य हेतु धरती को जोता , तब धरती में एक गहरी दरार उत्पन्न हुई ,उस दरार से एक सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई सुंदर छवि वाली कन्या प्राप्त हुई . राजा जनक की कोई संतान नहीं थी इसलिए इस छोटी सी कन्या को जैसे ही उन्होंने अपने हाथों में लिया , उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई और उन्होंने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी बेटी के रूप में सम्मान दिया . राजा जनक मिथिला के राजा थे जनक उनके पूर्वजों द्वारा दी गई उपाधि थी उनका असली नाम सीराध्वाज था एवं उनकी पत्नी का नाम महारानी सुनैना था . सीता इन दोनों की एकमात्र पुत्री थी .
सीता कौन थी ?
कई मतों के अनुसार सीता के जन्म के विषय में एक कथा कही जाती हैं जिसमे स्पष्ट किया गया हैं कि सीता कौन थी और वो क्यूँ रावण की मृत्यु का कारण बनी ?
असल में सीता रावण और मंदोदरी की बेटी थी इसके पीछे बहुत बड़ा कारण थी वेदवती . सीता वेदवती का पुनर्जन्म जन्म थी .वेदवती एक बहुत सुंदर, सुशिल धार्मिक कन्या थी जो कि भगवान विष्णु की उपासक थी और उन्ही से विवाह करना चाहती थी . अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वेदवती ने कठिन तपस्या की . उसने सांसारिक जीवन छोड़ स्वयं को तपस्या में लीन कर दिया था . वेदवती उपवन में कुटिया बनाकर रहने लगी .
एक दिन वेदवती उपवन में तपस्या कर रही थी . तब ही रावण वहां से निकला और वेदवती के स्वरूप को देख उस पर मोहित हो गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा, जिस कारण वेदवती ने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया और वेदवती ने ही मरने से पूर्व रावण को श्राप दिया कि वो खुद रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और रावण की मृत्यु का कारण बनेगी .
कुछ समय बाद रावण को मंदोदरी से एक पुत्री प्राप्त हुई जिसे उसने जन्म लेते ही सागर में फेंक दिया.सागर ने डूबती वह कन्या सागर की देवी वरुणी को मिली और वरुणी ने उसे धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और देवी पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया,जिसके बाद वह कन्या सीता के रूप में जानी गई और बाद में इसी सीता के अपहरण के कारण भगवान राम ने रावण का वध किया .
जिस तरह सीता मैया धरती से प्रकट हुई थी , उसी प्रकार वह धरती में समा गई थी . रावण के संहार के बाद , जब राम अयोध्या पहुंचे , तब उन्हें किन्ही कारणों से सीता का त्याग करना पड़ा . उस समय सीता ने अपना जीवन वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में व्यतीत किया और दो सुंदर राजकुमार लव कुश को जन्म दिया . राम इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनकी दो अतिबलशाली संतान हैं . जब राम ने अश्वमेध यज्ञ के लिये अपने अश्व को छोड़ा , तब इन दोनों राजकुमारों ने उस अश्व को पकड़ लिया और कहा कि अपने राजा को बोलो कि हमसे युद्ध करे . लव कुश भी अपने जन्म के रहस्य को नहीं जानते थे . लव कुश के साथ हनुमान जैसे सभी योद्धाओं ने युद्ध किया लेकिन कोई उन से जीत नहीं पाया . तब आखरी में राम वहाँ आये , तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह दोनों दिव्य बालक उनकी और सीता की संतान हैं . तब सीता को वापस अयोध्या आने को कहा गया . तब सीता अयोध्या की भरी सभा में गई और उन्होंने धरती माँ का आव्हाहन किया और लव कुश को पिता को सौंप . स्वयं को धरती माँ को सौंप दिया . इस प्रकार जिस प्रकार दिव्य जन्म के साथ सीता मैया प्रकट हुई, उसी तरह से वो धरती में समां गई .
सीता मैया एक दिव्य स्वरूपा मानी जाती हैं इसलिए कहते हैं कि जब रावण उनका अपहरण करने आया था उसके पहले ही सीता के वास्तविक शरीर को अग्नि देव को सौंप दिया गया था क्यूंकि अगर रावण वास्तविक सीता को बुरी निगाह से देखता तो उसे देखकर ही भस्म हो जाता . अगर ऐसा होता तो मनुष्य को जाति को नारी के साथ अपनी मर्यादा का सबक नहीं मिलता जो कि रावण के अंत और उसके घमंड के अंत के साथ मिला . इसलिए अंत में भगवान राम ने अग्नि परीक्षा के रूप में अग्नि देवता से सीता को पुनः प्राप्त किया .<iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=tf_til&ad_type=product_link&tracking_id=radrad0c-21&marketplace=amazon®ion=IN&placement=B01NCZ738X&asins=B01NCZ738X&linkId=9849736022d65e6498af36e91690bacb&show_border=false&link_opens_in_new_window=false&price_color=333333&title_color=0066C0&bg_color=FFFFFF"> </iframe>
सीता एक ऐसा चरित्र जिसे सभी को ज्ञान मिलता हैं . सीता माता के चरित्र का वर्णन सभी वेदों में बहुत सुंदर शब्दों में किया गया हैं . वाल्मीकि रामायण में भी देवी सीता को शक्ति स्वरूपा, ममतामयी, राक्षस नाशिनी, पति व्रता आदि कई गुणों से सज्जित बताया गया हैं . सीता मैया के जन्म दिवस को सीता अथवा जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं . सीता जयंती को पुरे देश में उत्साह से मनाया जाता हैं .इसे विवाहित स्त्रियाँ पति की आयु के लिए करती हैं . सीता मैया को जानकी भी कहा जाता हैं अतः उनकी जयंती को जानकी जयंती भी कहा जाता हैं . उनके पिता का नाम जनक था और सीता जनक की गोद ली हुई पुत्री थी . सीता, मिथिला के राजा को यज्ञ के लिए खेत जोतते हुए धरती मैया से प्रकट होती हुई प्राप्त हुई थी इसलिये इनका एक नाम भूमिजा भी हैं . राजा जनक की कोई संतान नहीं थी उन्होंने और पत्नी सुनैना ने सीता को गोद लिया और अपनी बेटी के रूप में पाला . बाद में इन्ही सीता का विवाह भगवान राम से हुआ .
सीता/ जानकी जयंती कब मनाई जाती हैं
फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता जी का जन्म हुआ था . अतः इस दिन को सीता नवमी अथवा सीता जयंती, जानकी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं . नेपाल में इस दिन को बहुत उत्साह से मनाते हैं . वर्तमान में मिथिला नेपाल का हिस्सा हैं और रानी सीता मिथिला की राजकुमारी थी जिन्हें राजा जनक और रानी सुनैना ने सीता को गोद लिया था. वास्तव में सीता, भूमिजा कहलाई क्यूंकि राजा जनक ने उन्हें भूमि से प्राप्त किया था . इस सन्दर्भ में बहुत ही रोचक कथा कही जाती हैं जिसे विस्तार से लिखा गया हैं
सीता के जन्म का रहस्य
सीता मैया जो कि मिथिला नरेश जनक की पुत्री कही जाती हैं, वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राजा जनक ने धरती को जोता था, तब निर्मित हुई क्यारी में उन्हें एक छोटी से कन्या मिली थी, तब ही राजा जनक ने इन्हें धरती माता की पुत्री के रूप में अपना लिया था . यह भी कहा जाता हैं जब राजा जनक ने यज्ञ कार्य हेतु धरती को जोता , तब धरती में एक गहरी दरार उत्पन्न हुई ,उस दरार से एक सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई सुंदर छवि वाली कन्या प्राप्त हुई . राजा जनक की कोई संतान नहीं थी इसलिए इस छोटी सी कन्या को जैसे ही उन्होंने अपने हाथों में लिया , उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई और उन्होंने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी बेटी के रूप में सम्मान दिया . राजा जनक मिथिला के राजा थे जनक उनके पूर्वजों द्वारा दी गई उपाधि थी उनका असली नाम सीराध्वाज था एवं उनकी पत्नी का नाम महारानी सुनैना था . सीता इन दोनों की एकमात्र पुत्री थी .
सीता कौन थी ?
कई मतों के अनुसार सीता के जन्म के विषय में एक कथा कही जाती हैं जिसमे स्पष्ट किया गया हैं कि सीता कौन थी और वो क्यूँ रावण की मृत्यु का कारण बनी ?
असल में सीता रावण और मंदोदरी की बेटी थी इसके पीछे बहुत बड़ा कारण थी वेदवती . सीता वेदवती का पुनर्जन्म जन्म थी .वेदवती एक बहुत सुंदर, सुशिल धार्मिक कन्या थी जो कि भगवान विष्णु की उपासक थी और उन्ही से विवाह करना चाहती थी . अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वेदवती ने कठिन तपस्या की . उसने सांसारिक जीवन छोड़ स्वयं को तपस्या में लीन कर दिया था . वेदवती उपवन में कुटिया बनाकर रहने लगी .
एक दिन वेदवती उपवन में तपस्या कर रही थी . तब ही रावण वहां से निकला और वेदवती के स्वरूप को देख उस पर मोहित हो गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा, जिस कारण वेदवती ने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया और वेदवती ने ही मरने से पूर्व रावण को श्राप दिया कि वो खुद रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और रावण की मृत्यु का कारण बनेगी .
कुछ समय बाद रावण को मंदोदरी से एक पुत्री प्राप्त हुई जिसे उसने जन्म लेते ही सागर में फेंक दिया.सागर ने डूबती वह कन्या सागर की देवी वरुणी को मिली और वरुणी ने उसे धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और देवी पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया,जिसके बाद वह कन्या सीता के रूप में जानी गई और बाद में इसी सीता के अपहरण के कारण भगवान राम ने रावण का वध किया .
जिस तरह सीता मैया धरती से प्रकट हुई थी , उसी प्रकार वह धरती में समा गई थी . रावण के संहार के बाद , जब राम अयोध्या पहुंचे , तब उन्हें किन्ही कारणों से सीता का त्याग करना पड़ा . उस समय सीता ने अपना जीवन वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में व्यतीत किया और दो सुंदर राजकुमार लव कुश को जन्म दिया . राम इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनकी दो अतिबलशाली संतान हैं . जब राम ने अश्वमेध यज्ञ के लिये अपने अश्व को छोड़ा , तब इन दोनों राजकुमारों ने उस अश्व को पकड़ लिया और कहा कि अपने राजा को बोलो कि हमसे युद्ध करे . लव कुश भी अपने जन्म के रहस्य को नहीं जानते थे . लव कुश के साथ हनुमान जैसे सभी योद्धाओं ने युद्ध किया लेकिन कोई उन से जीत नहीं पाया . तब आखरी में राम वहाँ आये , तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह दोनों दिव्य बालक उनकी और सीता की संतान हैं . तब सीता को वापस अयोध्या आने को कहा गया . तब सीता अयोध्या की भरी सभा में गई और उन्होंने धरती माँ का आव्हाहन किया और लव कुश को पिता को सौंप . स्वयं को धरती माँ को सौंप दिया . इस प्रकार जिस प्रकार दिव्य जन्म के साथ सीता मैया प्रकट हुई, उसी तरह से वो धरती में समां गई .
सीता मैया एक दिव्य स्वरूपा मानी जाती हैं इसलिए कहते हैं कि जब रावण उनका अपहरण करने आया था उसके पहले ही सीता के वास्तविक शरीर को अग्नि देव को सौंप दिया गया था क्यूंकि अगर रावण वास्तविक सीता को बुरी निगाह से देखता तो उसे देखकर ही भस्म हो जाता . अगर ऐसा होता तो मनुष्य को जाति को नारी के साथ अपनी मर्यादा का सबक नहीं मिलता जो कि रावण के अंत और उसके घमंड के अंत के साथ मिला . इसलिए अंत में भगवान राम ने अग्नि परीक्षा के रूप में अग्नि देवता से सीता को पुनः प्राप्त किया .<iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=tf_til&ad_type=product_link&tracking_id=radrad0c-21&marketplace=amazon®ion=IN&placement=B01NCZ738X&asins=B01NCZ738X&linkId=9849736022d65e6498af36e91690bacb&show_border=false&link_opens_in_new_window=false&price_color=333333&title_color=0066C0&bg_color=FFFFFF"> </iframe>
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