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मेथी के फायदे

**1 महीने पीएं मेथी का पानी, शरीर के हर पार्ट में आएगा ये चमत्कारिक बदलाव* 🌼घर पर आसानी से मिल जाने वाली मेथी में इतने सारे गुण है कि आप सोच भी नहीं सकते है। यह सिर्फ एक मसाला नहीं है बल्कि एक ऐसी दवा है जिसमें हर बीमारी को खत्म करने का दम है। आइए आज हम आपको मेथी के पानी के कुछ चमत्कारिक तरीके बताते हैं। *करें ये काम* 🌼एक पानी से भरा गिलास ले कर उसमें दो चम्‍मच मेथी दाना डाल कर रातभर के लिये भिगो दें। सुबह इस पानी को छानें और खाली पेट पी जाएं। रातभर मेथी भिगोने से पानी में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी ऑक्‍सीडेंट गुण बढ जाते हैं। इससे शरीर की तमाम बीमारियां चुटकियों में खत्म हो जाती है। आइए आपको बताते है कि कौन सी है वो खतरनाक 7 बीमारियां जो भग जाएंगी इस पानी को पीने से। *वजन होगा कम* 🌼यदि आप भिगोई हुई मेथी के साथ उसका पानी भी पियें तो आपको जबरदस्‍ती की भूख नहीं लगेगी। रोज एक महीने तक मेथी का पानी पीने से वजन कम करने में मदद मिलती है। *गठिया रोग से बचाए* 🌼इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होने के नातेए मेथी का पानी गठिया से होने वाले दर्द में भी राहत दिलाती है।

पूजा - पाठ में इतनी सावधानी जरूर बरतें

🌿🌸 अति महत्वपूर्ण बातें 🌸🌿 🌸1. घर में सेवा पूजा करने वाले जन भगवान के एक से अधिक स्वरूप की सेवा पूजा कर सकते हैं । 🌸2. घर में दो शिवलिंग की पूजा ना करें तथा पूजा स्थान पर तीन गणेश जी नहीं रखें। 🌸3. शालिग्राम जी की बटिया जितनी छोटी हो उतनी ज्यादा फलदायक है। 🌸4. कुशा पवित्री के अभाव में स्वर्ण की अंगूठी धारण करके भी देव कार्य सम्पन्न किया जा सकता है। 🌸5. मंगल कार्यो में कुमकुम का तिलक प्रशस्त माना जाता हैं। 🌸6.  पूजा में टूटे हुए अक्षत के टूकड़े नहीं चढ़ाना चाहिए। 🌸7. पानी, दूध, दही, घी आदि में अंगुली नही डालना चाहिए। इन्हें लोटा, चम्मच आदि से लेना चाहिए क्योंकि नख स्पर्श से वस्तु अपवित्र हो जाती है अतः यह वस्तुएँ देव पूजा के योग्य नहीं रहती हैं। 🌸8. तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए क्योंकि वह मदिरा समान हो जाते हैं। 🌸9. आचमन तीन बार करने का विधान हैं। इससे त्रिदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश प्रसन्न होते हैं। 🌸10.  दाहिने कान का स्पर्श करने पर भी आचमन के तुल्य माना जाता है। 🌸11. कुशा के अग्रभाग से दवताओं पर जल नहीं छिड़के। 🌸12. देव

देवयानी

 प्राचीनकाल में देवताओं और राक्षसों के कई युद्ध हुए। इन युद्धों में कभी देवता जीतते और कभी राक्षस। लेकिन एक समय ऐसा आया कि राक्षसों की शक्ति तेजी से बढ़ने लगी। इसका कारण था मृतसंजीवनी विद्या। राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य को भगवान शिव के आशीर्वाद से मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान मिल गया था। अब युद्ध में जो राक्षस मर जाते, शुक्राचार्य उन्हें फिर से जीवित कर देते। देवताओं के लिए यह बड़ी समस्या बन गयी। क्या उपाय किया जाये? देवताओं के गुरु बृहस्पति भी इस विद्या से अनजान थे।  देवगुरु बृहस्पति को एक उपाय सूझा! उन्होंने अपने पुत्र कच से कहा कि वो जाकर गुरु शुक्राचार्य का शिष्य बन जाए और मृतसंजीवनी विद्या सीखने का प्रयास करे।  बृहस्पति जानते थे कि यह कार्य इतना आसान नहीं होगा। उन्होंने अपने पुत्र कच से कहा कि अगर वो किसी प्रकार शुक्राचार्य की सुन्दर पुत्री देवयानी को प्रभावित या आकर्षित कर लेता है तो संभवतः काम आसान हो जाये। देवयानी और कच : - कच जाकर गुरु शुक्राचार्य का शिष्य बन गया। कच एक तेजस्वी युवक था। देवयानी कच को मन ही मन चाहने लगी पर यह बात उसने किसी से कही नही। इसी बीच राक्षसों को यह ब

पद्मा एकादशी

पद्मा एकादशी (20/09/2017 ब्रहस्पतिवार) व्रत कथा (एकादशी व्रत की कथा पढ़ऩे वाले तथा श्रवण करने वालों को हजार अशवमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है) युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो। यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेत

पद्मा (जलझूलनी) एकादशी

*20 सितम्बर 2018 वीरवार को  होगी श्री विष्णु के वामन रूप की पूजा* *जानिए महत्व और पौराणिक व्रतकथा* युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो। यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी, जयंती और जलझूलनी एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी

कलयुग वर्णन

🥀🥀🥀...कलयुग वर्णन (उत्तरकाण्ड)...🥀🥀🥀 कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ। दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥ 1क॥ कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रंथ लुप्त हो गए, दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत से पंथ प्रकट कर दिए॥1(क)॥ भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म। सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म॥1 ख॥ सभी लोग मोह के वश हो गए, शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया। हे ज्ञान के भंडार! हे श्री हरि के वाहन! सुनिए, अब मैं कलि के कुछ धर्म कहता हूँ॥ (1ख)॥ बरन धर्म नहिं आश्रम चारी। श्रुति बिरोध रत सब नर नारी। द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन। कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥ कलियुग में न वर्णधर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब पुरुष-स्त्री वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता॥2॥ मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥ मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥3॥ जिसको जो अच्छा लग जाए, वही मार्ग है। जो डींग मारता है, वही पंडित

पितृपक्ष_विशेष

*पितृपक्ष  25  सितंम्बर से शुरूश्राद्ध कर्म: कब,*  भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान , जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं। पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के स

भगवान शिव को भांग धतूरा क्यों चढाते हैं

       हे भोले नाथ! कुछ परम पाप पीड़ित एवं कलिकाल के प्रचंड ताप से उत्तप्त अधम भाग्य वाले निरीह एवं लाचार, मानव शरीर प्राप्त कुमार्ग गामी अपने अनेक प्रच्छन्न कुतर्को एवं मतिमन्दता के सहारे पौराणिक मान्यताओं एवं परम्पराओं को पाखण्ड एवं झूठी दन्त कथा बता कर भोली भाली जनता के बीच परम विद्वान के रूप में अपने आप को प्रस्तुत कर उच्च स्तरीय समाज सुधारक बता रहे हैं. तथा अपना स्थान नर्क के लिए सुरक्षित कर रहे हैं, उन्हें आप क्षमा करेगें। यद्यपि आप ने कहा है कि - "जौं खल दंड करों नहि तोरा। भ्रष्ट होय श्रुति मारग मोरा।" अर्थात हे खल! यदि मैं तुम्हारी खलता को दण्डित नहीं करता हूँ। तो श्रुति-उपनिषद् निर्धारित मेरा मार्ग या उत्तरदायित्व पथ भ्रष्ट हो जाएगा। क्योकि सृष्टि में मेरी भूमिका पापियों को दण्डित करने की है। कल्पारम्भ में जब सृष्टि रचना के चक्र में समुद्र से कुछ निर्माण कार्य के लिए आवश्यक उपादानो की आवश्यकता पड़ी तो समुद्र मंथन का सहारा लिया गया। उस समय समुद्र से चौदह रत्न निकले- "श्री मणि रम्भा वारूणी अमिय शँख गजराज। कल्प वृक्ष धनु धेनु शशी धन्वन्तरि विष वाजि। इस

वाल्मीकि रामायण की कुछ रोचक और अनसुनी बातें

भगवान राम को समर्पित दो ग्रंथ मुख्यतः लिखे गए है एक तुलसीदास द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ और दूसरा वाल्मीकि कृत ‘रामायण’। इनके अलावा भी कुछ अन्य ग्रन्थ लिखे गए है पर इन सब में वाल्मीकि कृत रामायण को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते है की श्री रामचरित मानस और रामायण में कुछ बातें अलग है जबकि कुछ बातें ऐसी है जिनका वर्णन केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है।  आज इस लेख में हम आपको वाल्मीकि कृत रामायण की कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएँगे। 1- तुलसीदास द्वारा श्रीरामचरित मानस में वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया, जबकि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे थे। विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने खेल ही खेल में उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत

राजा मोरध्वज

*🌺🌺राजा  मोरध्वज की कथा🌺🌺* 〰️ महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अर्जुन को वहम हो गया की वो श्रीकृष्ण के सर्वश्रेष्ठ भक्त है, अर्जुन सोचते की कन्हैया ने मेरा रथ चलाया, मेरे साथ रहे इसलिए में भगवान का सर्वश्रेष्ठ भक्त हूँ। अर्जुन को क्या पता था की वो केवल भगवान के धर्म की स्थापना का जरिया था। फिर भगवान ने उसका गर्व तोड़ने के लिए उसे एक परीक्षा का गवाह बनाने के लिए अपने साथ ले गए। श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जोगियों का वेश बनाया और वन से एक शेर पकड़ा और पहुँच जाते है भगवान विष्णु के परम-भक्त राजा मोरध्वज के द्वार पर। राजा मोरध्वज बहुत ही दानी और आवभगत वाले थे अपने दर पे आये किसी को भी वो खाली हाथ और बिना भोज के जाने नहीं देते थे। दो साधु एक सिंह के साथ दर पर आये है ये  जानकर राजा नंगे पांव दौड़के द्वार पर गए और भगवान के तेज से नतमस्तक हो आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा। भगवान कृष्ण ने मोरध्वज से कहा की हम मेजबानी तब ही स्वीकार करेंगे जब राजा उनकी शर्त मानें, राजा ने जोश से कहा आप जो भी कहेंगे मैं तैयार हूँ। भगवान कृष्ण ने कहा, हम तो ब्राह्मण है कुछ भी खिला देना पर ये सिंह नरभक्षी है, तु

सरयू नदी

🌺विविधापतित पावनी सरयू नदी की महिमा🌺 भारत की प्राचीन नदियों में उत्तर प्रदेश के अयोध्या के निकट बहने वाली नदी के रूप में सरयू को देखा जाता है। घाघरा तथा शारदा नाम भी इसे ही कहा जाता है। यूं तो उत्तर में हिमालय के कैलाश मानसरोवर से इसका उद्गम माना जाता है, जो किसी प्राकृतिक या भौगोलिक कारणों से बाद में वहां से लुप्त हो जाती हैं। अब यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के खैरीगढ़ रियासत की राजधानी रही ‘‘सिंगाही’’ के जंगल की एक विशाल झील से निकलकर गंगा के मैदानी भागों में बहने वाली नदी बन गई हैं। यह बलिया और छपरा के बीच गंगा नदी में मिल जाती हैं। हिमालय से निकलने पर नेपाल में यह काली नदी के नाम से जानी जाती हैं। यह उत्तराखंड और नेपाल की प्राकृतिक सीमांकन भी करती हैं। मैंदान पर उतरने पर ‘करनाली’ या ‘घाघरा’ आकर इसमें मिलती है। फिर इसका नाम सरयू हो जाता है। ज्यादातर ब्रिटिश मानचित्रकार इसे पूरे मार्ग पर्यन्त घाघरा या गोगरा नाम से पुकारते हैं। परम्परा तथा स्थानीयजन इसे सरयू या सरजू के नाम से उद्बोधन करते हैं। इसके अन्य नाम देविका व रामप्रिया भी है। इसकी पूरी लम्बाई 160 किमी है। उत्तर प्रदेश मे

स्यमंतक मणि की कथा

*🌹स्यमंतक मणि की कथा  (  गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन करने पर अभिशापित हुए मनुष्य को दोष-मुक्त करने वाली कथा )* 🌹श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें स्कंध के अध्याय 56 और 57 में श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं,'' परीक्षित ! सत्राजित ने श्री कृष्ण पर मणि चोरी का झूठा कलंक लगाया था और फिर अपने उस अपराध का मार्जन करने के लिए उसने स्वयं स्यमंतक मणि सहित अपनी कन्या सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण को सौंप दी। '' 🌹राजा परीक्षित ने पूछा," भगवन् ! सत्राजित ने भगवान श्री कृष्ण का क्या अपराध किया था ? उसे स्यमंतक मणि कहाँ से मिली ? और उसने अपनी कन्या श्री कृष्ण को क्यों सौंप दी ? '' 🌹श्री शुकदेव जी कहते हैं," परीक्षित ! सत्राजित भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था। सूर्यदेव उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसके बहुत बड़े मित्र बन गये। सूर्य भगवान ने ही प्रसन्न होकर बड़े प्रेम से उसे स्यमंतक मणि दी थी। सत्राजित उस दिव्य मणि को गले में धारण करके ऐसा चमकने लगा, मानों स्वयं सूर्यदेव ही हों । 🌹जब सत्राजित द्वारका आया, तो अत्यंत तेजस्विता के कारण लोग उसे पहचान न सके । दूर से ही

छठी का दूध

*छठी के दूध  के बारे में सुना है???*  *आज छठी है l* छठिहार क्यूँ होता है,,,?ये बात हर कोई जानना चाहेगा,,क्यूंकि यदा कदा लोग ये सवाल उठाते रहते हैं,,,, बात कन्हैया की जन्म पश्चात की है,,बडा ही मनोरम समय था हर तरफ संगीत और बधाई के गीत बज रहे थे,,सारा नन्द ग्राम फूलों से सजा हुआ था,,हो भी क्यों न ,,आज कान्हा का छठा दिन जो था,,परन्तु ये क्या ,कनहा तो जोर जोर से रोये जा रहा था,,,हर कोई लल्ला को चुप करने का प्रयास कर रहा था,,मगर सब विफल... देव गण भी  प्रभू की ये लीला देख अचंभित थे,,देवों ने ब्रह्मा जी से निराकरण के लिए कहा तो ब्रह्मा जी ने,,शक्ति स्वरूपणी महामाया को भेज दिया ,,,कान्हा को चुप करने के लिए,,ये सुनके महामाया आनंदित हो गई इस कार्य को पाकर ,,,,और भांति भांति के रूप बदल कर लल्ला को चुप करने की प्रयास करने लगी ,,,कभी फूल बनती तो कभी पक्षी ,,,,कभी इधर जाती तो कभी उधर जाती,,,,लल्ला चुप ,,सबको शांति मिली,,,लेकिन लल्ला अपनी सर को कभी इधर तो कभी उधर क्यों कर रहा है,,,फिर खुद ही मुस्कुरा रहा है,,,दरअसल माया की माया सिर्फ प्रभू देख रहे थे और कोई नहीं,,,और फिर लल्ला रोने लगे,,,तो माया

हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद

ये जानना बहुत जरुरी है.! हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद.! क्या कारण है.? हमने दाल खाई, हमने सब्जी खाई, हमने रोटी खाई, हमने दही खाया, लस्सी पी, दूध, दही, छाछ, लस्सी, फल आदि.! ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया ये सब कुछ हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है.! पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय" उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर" उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है "epigastrium" ये एक थैली की तरह होता है और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है। ये बहुत छोटा सा स्थान हैं इसमें अधिक से अधिक 350gms खाना आ सकता है.! हम कुछ भी खाते सब ये अमाशय मे आ जाता है.! आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हे "जठराग्नि".! ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी.. यह ऑटोमेटिक है, जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो

क्यों होते है माला में 108 दाने

क्यों करते है मंत्र जाप के लिए माला का प्रयोग? हिन्दू धर्म में हम मंत्र जप के लिए जिस माला का उपयोग करते है, उस माला में दानों की संख्या 108 होती है। शास्त्रों में इस संख्या 108 का अत्यधिक महत्व होता है । माला में 108 ही दाने क्यों होते हैं, इसके पीछे कई धार्मिक, ज्योतषिक और वैज्ञानिक मान्यताएं हैं। आइए हम यहां जानते है ऐसी ही चार मान्यताओ के बारे में तथा साथ ही जानेंगे आखिर क्यों करना चाहिए मन्त्र जाप के लिए माला का प्रयोग। सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक होता है माला का एक-एक दाना एक मान्यता के अनुसार माला के 108 दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता

कामदेव भगवान

कामदेव के तेरह तथ्य जानकर चौंक जाएंगे आप!!!!!   हिन्दू धर्म में कामदेव, कामसूत्र, कामशास्त्र और चार पुरुषर्थों में से एक काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से संबंधित कई मूर्तियां हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्स ही होता है? नहीं, काम का अर्थ होता है कार्य, कामना और कामेच्छा से। वह सारे कार्य जिससे जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है काम के अंतर्गत ही आते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। आपने कामदेव के बारे में सुना या पढ़ा होगा। पौराणिक काल की कई कहानियों में कामदेव का उल्लेख मिलता है। जितनी भी कहानियों में कामदेव के बारे में जहां कहीं भी उल्लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात जो समझ में आती है वह यह कि कि कामदेव का संबंध प्रेम और कामेच्छा से है। लेकिन असल में कामदेव हैं कौन? क्या वह एक काल्पनिक भाव है जो देव और ऋषियों को सताता रहता था या कि वह भी किसी देवता की तरह एक देवता थे?आजो जानते हैं कामदेव के बारे में 13 रहस्य... कामदेव का परिवार :पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं। उनका विवाह रति नाम की देवी से हुआ थ