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जानिये घर में किस चीज़ की धूनी (धूप) करने से होता है क्या फायदा

  जानिये घर में किस चीज़ की धूनी (धूप) करने से होता है क्या फायदा 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 हिंदू धर्म के अनुसार घरों में धूनी (धूप) देने की परंपरा काफी प्राचीन है। धूप देने से मन को शांति और प्रसन्नता मिलती है। साथ ही, मानसिक तनाव दूर करने में भी इससे बहुत लाभ मिलता है। घरों में धूनी देने के लिए कई तरह की चीज़ें आती है। आइए जानते है किस चीज़ की धूनी करने से क्या फायदे होते है। 1- कर्पूर और लौंग 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ रोज़ाना सुबह और शाम घर में कर्पूर और लौंग जरूर जलाएं। आरती या प्रार्थना के बाद कर्पूर जलाकर उसकी आरती लेनी चाहिए। इससे घर के वास्तुदोष ख़त्म होते हैं। साथ ही पैसों की कमी नहीं होती। 2- गुग्गल की धूनी 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ हफ्ते में 1 बार किसी भी दिन घर में कंडे जलाकर गुग्गल की धूनी देने से गृहकलह शांत होता है। गुग्गल सुगंधित होने के साथ ही दिमाग के रोगों के लिए भी लाभदायक है। 3- पीली सरसों 〰️〰️〰️〰️〰️ पीली सरसों, गुग्गल, लोबान, गौघृत को मिलाकर सूर्यास्त के समय उपले (कंडे) जलाकर उस पर ये सारी सामग्री डाल दें। नकारात्मकता दूर हो जाएगी। 4- धूपबत्ती 〰️〰️〰️〰️ घर में पैसा नहीं टिकता हो तो ...

शिवनामावल्यष्टकम्

 *नित्य पाठ के लिए भगवान शिव का नामावली अष्टक* 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 संसार में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है, जो स्तुति से प्रसन्न न हो जाता हो। भगवान शिव आशुतोष (शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले) हैं। अत: यदि उनके विभिन्न नामों के साथ उनकी आराधना की जाए तो वे शीघ्र ही प्रसन्न होकर आराधक को सांसारिक पीड़ाओं से मुक्त कर मनवांछित वस्तु प्रदान कर देते हैं। भगवान शिव का नामावल्यष्टक (नामावली का अष्टक) श्रीशंकराचार्यजी द्वारा रचित एक ऐसा ही सुन्दर स्तोत्र है जिसके आठ पदों में भगवान शिव के विभिन्न नामों का गान कर सांसारिक दु:खों से रक्षा की प्रार्थना की गई है और नवें पद में उन्हें वंदन किया गया है। श्रद्धा भक्ति से किए गए इस स्तोत्र के नित्य पाठ से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर आराधक का कल्याण कर देते हैं। सांसारिक दु:खों से मुक्ति के लिए भगवान शिव का नामावली अष्टक *हे चन्द्रचूड मदनान्तक शूलपाणे* *स्थाणो गिरीश गिरिजेश महेश शम्भो।* *भूतेश भीतभयसूदन मामनाथं* *संसारदु:खगहनाज्जगदीश रक्ष।।१।।* हे चन्द्रचूड! (चन्द्रमा को सिर पर धारण करने वाले), हे मदनान्तक! (कामदेव को भस्म कर देने वाले), हे ...

भीष्म पंचक व्रत विधि, और महत्त्व

  भीष्म पंचक व्रत विधि, और महत्त्व 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ पुराणों तथा हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में कार्तिक स्नान को बहुत महत्त्व दिया गया है। अतः कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था इसलिए यह ‘भीष्म पंचक’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक के अंतिम पाँच दिन पुण्यमयी तिथियाँ मानी जाती हैं। इनका बड़ा विशेष प्रभाव माना गया है। अगर कोई कार्तिक मास के सभी दिन स्नान नहीं कर पाये तो उसे अंतिम पांच दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लेने से सम्पूर्ण कार्तिक मास के प्रातःस्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है। जैसे कहीं अनजाने में जूठा खा लिया है तो उस दोष को निवृत्त करने के लिए बाद में आँवला, बेर या गन्ना चबाया जाता है। इससे उस दोष से आदमी मुक्त होता है, बुद्धि स्वस्थ हो जाती है। जूठा खाने से बुद्...

शास्त्रों के अनुसार स्त्री सहवास

 अनेकों जन्मों के पुण्यकर्मों से जीव मनुष्य शरीर प्राप्त करता है। माता-पिता द्वारा खाये हुए अन्न से शुक्र-शोणित बनता है , माता के पेट में मिलकर रज की अधिकता से स्त्री , शुक्र की अधिकता से पुरुष होता है , यदि दोनों का तेज समान हो तो नपुंसक होता है । ऋतुस्नाता पत्नी के ४ दिन बाद ५वें दिन से लेकर १६ दिन तक ऋतुकाल होता है । विषम रात्रियों में ५, ७, ९, ११, १३, १५ रात्रियों में भोग से कन्या तथा सम रात्रियों में ६ , ८, १०, १२, १४, १६ इनमें बालक का जन्म होता है । विषम रात्रियों में यदि पति का शुक्र अधिक है तो होता तो बालक है , किन्तु आकार बालिका की तरह तथा सम रात्रियों के संयोग में स्त्री की रज की अधिकता में कन्या होती है , किन्तु उसका रूप पुत्र जैसा होता है । लिङ्गपुराण में कहा है ----- "चतुर्थ्यां रात्रौ विद्याहीनं व्रतभ्रष्टम् पतितं परदारिकम् दरिद्रार्णव मग्नं च तनयं सा प्रसूयते । पञ्चम्यामुत्तमांकन्यां षष्ठ्यां सत्पुत्रं सप्तम्यां कन्यां अष्टम्यां सम्पन्नं पुत्रम् ।। त्रयोदश्यां व्यभिचारिणी कन्या चतुर्दश्यां सत्पुत्रं पंचदश्यां धर्मज्ञा कन्यां षोडश्यां ज्ञानं पारंगपुत्रं प्रसूयते ।...

प्रणाम के नियम

 * प्रणाम या नमस्कार* *या* *अभिवादनके मुख्य नियम* ---------------------------------- अभिवादन प्रणाम या नमस्कार के कुछ ऐसे नियम शास्त्रों में बताए हैं, जो जीवन में अत्यंत आवश्यक हैं प्रायः हम लोग जिन्हें नहीं जानते ,उन नियमों का कुछ अंश इस लेख में लिखा गया है। आप सभी लोग इसे अवश्य ही पढ़ें और परिपालन भी करें। *अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः!*  *चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ||* मनुः२/१२१||## अर्थात् जो वृद्धजनों,गुरुजनों,तथा माता-पिताको नित्य प्रणाम करता हैं और उनकी सेवा करता हैं,उसके आयु,विद्या,यश और बलकी वृद्धि होती हैं | *मातापितरमुत्थायपूर्वमेवाभिवादयेत् |* *आचार्यमथवाप्यन्यं तथायुर्विन्दते महत् ||* १०४/४३-४४महाभा० || महाभारतमें भी बताया गया हैं कि अभिवादनसे दीर्घ अयुकी प्राप्ति होती हैं ||  अपनेसे बड़े आनेपर उन्हें देखतें ही खड़े हो जाना चाहिये | यदि विशेष स्थिति न हो तो उनके समीप आनेकी प्रतिक्षा नहीं करनी चाहिये | यह सर्वसामान्य हैं कि मनुष्य शरीरमें एक प्रकारकी विद्युत-शक्ति हैं |  दुर्बलको प्रबल विद्युत् अपनी और खींचती हैं | शास्त्रानुसार कि...

हमारे पापकर्म और हमारी पीडाएं

  हमारे पापकर्म और हमारी पीडाएं 🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔸🔹🔸🔸 हम अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि मैंने कभी कोई बुरा काम नहीं किया फिर भी मैं बीमारियों से परेशान हूँ. ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा हैं. क्या भगवान बहुत कठोर और निर्दयी हैं ? पहली बात तो हमें ये समझ लेनी चाहिए कि हमारे कार्यों और भगवान का कोई सम्बन्ध नहीं है। इसलिए हमें अपनी परेशानियों और पीडाओं के लिए ईश्वर को दोषी नहीं मानना चाहिए। यदि आप सह्गुनी हैं तो आप जीवन में संपन्न और सुखी रहते हैं. यदि आप लोगों को सताते हैं या पाप कर्म करते हैं तो आप पीड़ित होते हैं और तरह तरह की बीमारियाँ कष्ट देती हैं. हमारे कार्यों का हम पर निश्चित रूप से असर होता है. कभी हमारे कर्मों का प्रभाव इसी जन्म में तो कभी अगले जन्म में मिलता हैं लेकिन मिलता जरुर है. आशय है कि हम अपने कर्मों के प्रभाव से कभी मुक्त नहीं होते यह बात अलग है कि इसका प्रभाव तुरंत दिखाई न दे। इस लेख में इस बात का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है कि हमारे पाप हमें किस रूप में लौटकर मिलते हैं और पीड़ित करते हैं. यदि आप किसी रोग से पीड़ित है तो ये समझें कि आपने अवश्य ही कोई पाप पूर...

*ब्राह्मण के दश प्रकार*

 🔥 *ब्राह्मण के दश प्रकार* 🔥 * जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः  - अत्रि स्मृति १३८ ब्राह्मण वंश में जन्म लेने वाला जन्म से ही ब्राह्मण है।  भले ही वो नीच कार्य भी क्यों न करें वह अंत तक ब्राह्मण ही रहेगा। महर्षि अत्रि ने ब्राह्मणो का कर्म अनुसार विभाग किया है। देवो मुनिर्द्विजो राजा वैश्यः शूद्रो निषादकः ॥ पशुम्लेच्छोपि चंडालो विप्रा दशविधाः स्मृताः॥  - अत्रि स्मृति ३७१ देव, मुनि, द्विज, राजा, वैश्य, शूद्र, निषाद, पशु, म्लेच्छ, चांडाल यह दश प्रकार के ब्राह्मण कहे हैं ॥ ३७१ ॥ १.देव ब्राह्मण -  ब्राह्मणोचित श्रोत स्मार्त कर्म करने वाला हो  २. मुनि ब्राह्मण - शाक पत्ते फल आहार कर वन में रहने वाला ३. द्विज ब्राह्मण - वेदांत,सांख्य,योग आदि अध्ययन व ज्ञान पिपासु ४. क्षत्रिय ब्राह्मण - युद्ध कुशल हो ५. वैश्य ब्राह्मण - व्यवसाय गोपालन आदि ६. शुद्र ब्राह्मण - लवण,लाख,घी,दूध,मांस आदि बेचने वाला ७. निषाद ब्राह्मण - चोर, तस्कर, मांसाहारी,व्यसनी हो ८. पशु ब्राह्मण - शास्त्र विहीन हो किन्तु मिथ्याभिमान हो ९. म्लेच्छ ब्राह्मण - बावड़ी,कूप,बाग,तालाब को बंद करने वाला १०. चांडाल ब...

नवरात्रि में कन्या पूजन विधि

 नवरात्रि पर्व कन्या पूजन विधान विशेष 〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰 नवरात्र पर्व  के दौरान कन्या पूजन का बडा महत्व है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं। कन्या पूजन के लिए निर्दिष्ट दिन 〰🌼〰🌼〰🌼〰🌼〰 कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं लेकिन अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ रहता है। कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम नहीं तो दो कन्याओं से भी काम चल सकता है। इस वर्ष इन तिथियों को लेकर उलझन की स्थिति इसलिए है क्योंकि 23 तारीख से सप्तमी उपरांत अष्टमी और 24 तारीख को अष्टमी और नवमी तिथि लग रही है। यही स्थिति दशमी तिथि को लेकर भी है क्योंकि 25 तारीख को नवमी उपरांत दशमी लग रही है। इसलिए उलझन यह है कि किस दिन कौन सी तिथि मान्य होगी?  इस विषय में हमारे शास्त्र और धर्मग्रंथ का प्रमाण यथोचित दिया जा रहा है? शास्त्रों में बताया गया है कि जिस दिन सूर्योदय के समय आश्विन शुक्ल अष्टमी तिथ...

पंच-कन्या

 *💐 पवित्र कन्याओं का रहस्य 💐* अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा।  पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥ पुराणानुसार पांच स्त्रियां विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र मानी गई है। अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा और मंदोदरी।  हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं में ज्यादातर प्रसिद्ध पात्र पुरुषों के ही हैं। पुरुषों को ही महायोद्धा, अवतार आदि का दर्जा दिया गया और उन्हीं से जुड़े चमत्कारों का भी वर्णन हुआ। लेकिन उनके जीवन से जुड़ी महिलाएं, जिनके बिना उनका अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना तक मुश्किल था, उन्हें मात्र एक भूमिका में लाकर छोड़ दिया गया।   यही वजह है कि पौराणिक स्त्रियां जैसे मंदोदरी रावण की अर्धांगिनी के तौर पर, तारा को बाली की पत्नी के बतौर, अहिल्या को गौतम ऋषि की पत्नी के रूप में, कुंती और द्रौपदी को पांडवों की माता और पत्नी के रूप में ही जाना जाता है।   पंचकन्या : हिन्दू धर्म में इन पांचों स्त्रियों को पंचकन्याओं का दर्जा दिया गया है। जिस स्वरूप में हम अपने पौराणिक इतिहास को देखते हैं, उसे विशिष्ट स्वरूप को गढ़ने का श्रेय इन स्त्रियों को देन...

पुरुषोत्तम मास - विशेष

 .                             "पुरुषोत्तम मास व्रत"            पुरुषोत्तम व्रत करने वाले को क्या भोजन करना चाहिए और क्या नहीं, क्या वर्ज्य है और क्या अवर्ज्य इसके संबंध में श्रीवाल्मीकि ऋषि ने कहा है :-            पुरुषोत्तम मास में एक समय हविष्यान्न भोजन करना चाहिए। भोजन में गेहूँ, चावल, सफेद धान, जौ, मूंग, तिल, बथुआ, मटर, चौलाई, ककड़ी, केला, आंवला, दही, दूध, घी, आम, हर्रे, पीपल, जीरा, सोंठ, सेंधा नमक, इमली, पान-सुपारी, कटहल, शहतूत, सामक, मेथी आदि का सेवन करना चाहिए। केवल सावां या केवल जौ पर रहना अधिक हितकर है। माखन-मिस्री पथ्य है। गुड़ नहीं खाना चाहिए, लेकिन ऊख का या ऊख के रस का सेवन करना चाहिए। मांस, शहद, चावल का मांड़, उड़द, राई, मसूर की दाल, बकरी, भैंस और भेड़ का दूध ये सब त्याज्य कहा हैं। काशीफल (कुम्हड़ा), मूली, प्याज, लहसुन, गाजर, बैगन, नालिका आदि का सेवन वर्जित है। तिलका तेल, दूषित अन्न, बासी अन्न आदि भी ग्रहण न करें। अभक्ष्य और नशे की चीजों का ...

वैभव-लक्ष्मी व्रत कथा , विधि और महात्म्य

  श्री वैभव लक्ष्मी व्रत विधि, कथा और महात्मय 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ सुख, शांति, वैभव और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए वैभव लक्ष्मी व्रत करने का नियम 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ 👉 यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उनका अति उत्तम फल मिलता है, पर घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां न हों तो कोई भी स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती है। स्त्री के बदले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य मिलता है। खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत नहीं करना चाहिए।  👉 यह व्रत किसी भी मास के शुल्क पक्ष प्रथम शुक्रवार से आरम्भ किया जाता है। व्रत शुरु करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार का  संकल्प करना चाहिये और बताई गई शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिए। संकल्प के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और बताई गई शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन करना चाहिए।  👉  माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं। उनमें उनका ‘धनलक्ष्मी’ स्वरूप ही ‘वैभवलक्ष्मी’ है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते समय माता लक्ष्मी के विविध स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्...

पितृदोष - क्या है, लक्षण, कारण और निवारण

  पित्र दोष का प्रभाव ,कारण और निवारण -  घर में पितृ दोष होगा तो घर के बच्चे की शिक्षा , दिमाग , व्यवहार पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता। जिन जातकों को पितृ दोष होता है उनके बहुत से कारण होते है की हमारे अपने पितरों से सम्बन्ध अच्छे नहीं हो पाते , कारण , आपके जीवन में रुकावटें , परेशानियाँ और क्या नहीं होता* पितृ दोष कही न कही अनेको दोषों को उत्पन्न करने वाला होता है जैसे की वंश न बढ़ने का दोष , असफलता मिलने का दोष , बाधा दोष और भी बहुत कुछ । तो पित्र पक्ष में की गयी पूजा और तर्पण अगर विधि विधान और मन लगाकर किया जाए तो अच्छे फल देने वाली सिद्ध होती है । हर कार्य में नाकामी हाथ लगाना , घर में हमेशा कलह रहना , बीमारी घर के सदस्यों को चाहे छोटी हो या बड़ी घेरे रखती है , यह सब लक्षण पितृ दोषघर में है इसको बताते है । और अगर घर में पितृ दोष है तो किसी भी सदस्य को सफलता आसानी से हाथ नहीं लगती । पितृ दोष कुंडली में है अगर , तो कुंडली के अच्छे ग्रह उतना अच्छा फल जितना उन्हें देना चाहिए ।  घर के सभी लोग आपस में झगड़ते है , घर के बच्चों के विवाह देरी से होते है , और काफी दिक्कतों का सामना भ...

श्री राधाष्टमी

भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है। इस वर्ष यह 25 अगस्त को मनाया जाएगा. राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊँची पहाडी़ पर पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। इस दिन रात-दिन बरसाना में बहुत रौनक रहती है. विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. धार्मिक गीतों तथा कीर्तन के साथ उत्सव का आरम्भ होता है। राधाष्टमी की कथा  〰️〰️〰️〰️〰️〰️ राधाष्टमी कथा, राधा जी के जन्म से संबंधित है. राधाजी, वृषभानु गोप की पुत्री थी.  राधाजी की माता का नाम कीर्ति था. पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है. इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे तब भूमि कन्या के रुप में इन्हें राधाजी मिली थी. राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया। इसके साथ ही यह कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था, तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्...