मंगलवार, 23 जुलाई 2024

श्री केशवाचार्य जी

 *(((( श्री केशवाचार्य जी ))))*

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श्रीकृष्ण के पौत्र वज्रनाभ जी ने ब्रज में चार देवालय स्थापित किए थे। उनमें से एक है श्री हरिदेव जी। कालांतर मे मुग़ल आक्रमण के कारण यह विग्रह लुप्त हो गया था।  

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श्री केशवाचार्य जी नाम के रसिक संत बिलछू कुंड पर भजन करते थे। "वृषभानु सुता श्री नंद सुवन" इस नाम का निरंतर जप करते थे। 

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एक दिन भजन करते समय श्री ठाकुर जी ने उनके ध्यान मे प्रकट  होकर कहा - मैने जिस स्वरूप से इंद्र के मान का मर्दन किया है और गिरराज पर्वत को अपनी कनिष्ठिका के अग्र भाग पर धारण किया, वह मेरा स्वरूप बिलछू कुंड के बगल वाले खेत के कुंए के पास विराजमान है। उसे आप प्रकट करो। 

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श्री केशवाचार्य जी ने ठाकुर जी से पूछा की क्या आप अकेले है ? तो ठाकुर जी बोले - हां ! हम अकेले है।

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श्री केशवाचार्यजी बोले - तब तो आप वही पौढ़े रहो क्योंकि अकेले श्रीकृष्ण की सेवा हमे नही करनी। हमे तो श्री राधारानी के सहित ठाकुर जी चाहिए। 

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ठाकुर जी बोले - अकेले क्यो नही चाहिए? 

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श्री केशवाचार्यजी बोले - श्री राधारानी के बिना आपमे स्थिरता नही है। आप स्वभाव से चंचल है। हमने आपको प्राप्त किया और फिर आप छोड़ कर चले गए तो हमको रोना पड़ेगा। 

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श्री राधारानी के नीलाम्बर से आपके पीताम्बर की गांठ बंधी रहेगी तो उस प्रेम की गांठ को तोड़कर आप कही जा नही पाएंगे। 

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श्री ठाकुर जी बोले - जब हमने गिरिराज पर्वत धारण किया तब मैया बाबा बड़े व्याकुल हो गए। 


उन्होंने सोचा की हमारा सात वर्ष के इतने छोटे लाला ने इतने बड़े गिरिराज पर्वत को धारण कर लिया है, कही इसके हाथ को कष्ट न हो जाये। 

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उन्होंने अपने कुलपुरोहित महर्षि शांडिल्य के पास जाकर प्रार्थना की के ऐसा कुछ पूजा पाठ, उपाय करवा दो जिससे हमारे लाला मे शक्ति की कमी नही पड़े। 

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महर्षि बोले की इनकी शक्ति तो श्री वृषभानुनंदिनी राधारानी है। इसका एक यही उपाय है की श्रीराधा जू को दिव्य सिंहासन पर अष्टसाखियो सहित लाल के सामने विराजमान हो जाए और लाला श्री राधा जू के दर्शन करता रहे तो इसमें शक्ति की कमी नही होगी।

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इनकी शक्ति सामने रहेगी तो कैसे शक्ति की कमी पड़ेगी। 

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श्री नंदबाबा ने राधारानी का विधिवत पूजन करके सिंहासन पर विराजमान कराया। तो सात दिन और सात रात्रि तक राधारानी का दर्शन करते करते मैने अपने रोम रोम मे श्रीराधा तत्व को समाहित कर लिया है। 

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यह मेरा हरिदेव स्वरूप श्री राधाभाव भावित स्वरूप है। एक प्राण दो देह का स्वरुप है। 

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श्री केशवाचार्य जी बड़े प्रसन्न हुए। उस स्थान पर कुछ लोगो के साथ जाकर श्री केशवाचार्य जी ने खुदाई कराई। 

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सूंदर श्रीविग्रह को देखकर सबने कहा की इसपर मेरा अधिकार है, किसी ने कहा की यह मेरी खेती की जमीन है इसको मैं रखूंगा, किसी ने कहा मै जमींदार हूँ मैं इसको रखूंगा। 

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तब आकाशवाणी हुई की जो भी इस विग्रह को उठा पायेगा वही इसको रखे। सबने उठाने का प्रयास किया पर विग्रह जरा नही हिला। 

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श्री केशवाचार्यजी ने जैसे ही उठाने का प्रयास किया वैसे ही श्रीठाकुर जी उनके हृदय से आ लगे। श्री हरदेवजी के विग्रह को श्री केशवाचार्य जी अपनी कुटिया में ले आये और उनकी सेवा पूजा करने लगे।

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श्री भक्तमाल मूल ग्रंथ मे श्री नाभादास जी वर्णन करते है - 

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" नंदसुवन की छाप कबित केसव की नीको।"

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एक दिन संतो की मंडली श्री केशवाचार्य जी के स्थान पर आयी। श्री केशवाचार्य जी ने ठाकुर जी को भोग लगाया और संतो से प्रसाद पाने के लिए कहा। 

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उस जमाने मे बड़ी मर्यादा का ध्यान रखा जाता था। संतो ने श्री केशवाचार्य जी से पूछा की क्या आपके पांचो संस्कार हो चुके है? (वैष्णवो मे पांच संस्कार होते है - ताप: पुण्ड्र: तथा नाम: मंत्रो माला च पंचम:। 

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जिसमे एक संस्कार होता है कंधे-बाहू पर शंख चक्र की गर्म छाप अंकित करना)। 

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श्री केशवाचार्य जी बोले - मेरे चार संस्कार तो हो गए परंतु ताप (छाप) संस्कार नही हुआ। संतो ने कहा तब तो हम यहां भोजन नही कर सकते। 

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श्री केशवाचार्य जी को बड़ा दुख हुआ की संत प्रसाद पाए बिना वापस चले जायेंगे। 

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श्री केशवाचार्य जी ने कहा - नाम में जिनकी निष्ठा है उन्हें अलग से छाप लेने की आवश्यकता नही है। उनके तो रोम रोम मे भगवन्नाम की छाप लग जाती है। 

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यह बात सुनकर संत मंडली मे से एक संत ने कहा - बातो से कुछ नही होता है, प्रत्यक्ष अनुभव कराओ तो माने। 

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श्री केशवाचार्य जी ने कहा - जो आज्ञा संत भगवान और अपने वस्त्र को उतार दिया। सभी ने दर्शन किया की उनके सारे शरीर पर 'वृषभानु सुता श्री नंद सुवन' यह नाम अंकित था। 

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अब तो सारे संत मंडली ने श्री केशवाचार्य को दंडवत प्रणाम किया और बोले महाराज - वस्तुतः सच्ची छाप तो आपकी ही है।

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एक बार श्री हरिदेव जी ने खीरभोग आरोगने की इच्छा प्रकट करी। 

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श्री केशवाचार्य जी ने कहा - प्रभु ! मेरे पास खीर की सामग्री का आभाव है और मेरा नियम है की मै किसी से याचना नही करता। 

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श्री हरिदेव जी ने आमेर नरेश भगवान दास को स्वप्न मे सेवा करने का आदेश दिया। राजा ने श्री केशवाचार्यजी का दर्शन किया। 

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मानसी गंगा के दक्षिण तट पर श्री हरिदेव जी के मंदिर का निर्माण कराया और सेवा के लिए धन व खेती दिया।

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एक दिन श्री ठाकुर जी ने श्रीकेशवाचार्य जी से कहा की मै तुम्हे एक आज्ञा प्रदान करता हूं, उसे तुम बिन उत्तर दिये स्वीकार कर लेना। 

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जगन्नाथपुरी मे एक ब्राह्मण ने मेरी सेवा करके संतान की कामना की और प्रथम संतान मुझे ही अर्पण करने की प्रतिज्ञा की। 

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उसके यहां प्रथम एक कन्या हुई। मैने उस ब्राह्मण को  देकर कहा की गोवर्धन मे श्रीकेशवाचार्य जी के रूप में मैं ही विद्यमान हूं, अतः अपनी कन्या श्री केशवाचार्य जी को ही अर्पण करो। 

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श्री केशवाचार्य जी का उस कन्या से विवाह हुआ और उनके दो पुत्र हुए - श्री परशुराम और श्री बालमुकुंद, जिनके साथ श्री हरिदेव जी खेलते थे और उनको भोग में कौन सी वस्तु आरोगने की इच्छा है यह भी बताते थे।

 

*जय जय श्री सीताराम*

शनिवार, 13 जुलाई 2024

जाने कौन सा पूजन- अनुष्ठान किस कामना के लिए किया जाना चाहिए

 *🚩 जाने कौन सा पूजन- अनुष्ठान किस कामना के लिए किया जाना चाहिए ? 🚩*


१ : बटुक भैरव स्त्रोत्र : इस स्त्रोत्र के पाठ करने मात्र से

महामारी राजभय अग्निभय चोरभय उत्पात भयानक स्वप्न के भय

में घोर बंधन में इस बटुक भैरव का पाठ अति लाभदाई है |

तथा हर प्रकार की सिद्धी हो जाती है | इस प्रयोग

का कम से कम १०८ पाठ करना चाहिए |


२ : श्री सूक्त प्रयोग : श्री सूक्त प्रयोग एक ऐसा प्रयोग है

जिससे लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर घर में स्थिर रूप से निवास

करती है | इसके ११०० आवृति [ पाठ ] कराने पर विशेष लाभ

होता है |


३ : श्री कनकधारा स्तोत्र : यह स्तोत्र आद्य शंकराचार्य

जी द्वारा रचित है जिसके पाठ से स्वर्ण वर्षा हुई थी |

कनकधारा स्तोत्र के पाठ करवाने से घर ऑफिस व्यापार

स्थल में उतरोत्तर वृद्धि होती रहती है कनकधारा में

कमला प्रयोग से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है |


३ : श्री मद भागवत गीता : यह महाभारत के भीष्म पर्व से

लिया गया है | इसमें भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन

को आत्मज्ञान दिया तथा कर्म में लगे रहने के विषय में

बतलाया है | इस के पाठ करवाने से घर में शांति सुख व्

समृद्धि आती है , तथा सभी दोष पाठ मात्र से नष्ट होते है

यह अत्यंत लाभकारी है |


४ : श्री अखंड रामचरित मानस पाठ : यह तुलसीदास

द्वारा रचित है | इस मानसमें सात कांड जिसका पारायण

[पाठ] अनवरत है | इसलिए इसे अखंड पाठ कहते है | यह २० से

२५ घंटे में पूर्ण होता है | मानस पाठ से घर मे

काफी शांती तथा यश व कीर्ती बढती हे तथा मनुष्य

सही नीती से चलता है |


५ : सुंदर कांड पाठ : सुंदर कांड पाठ तुलसीदास द्वारा रचित

रामचरित मानस से लिया गया है इस पाठ से हनुमान

जी को प्रसन्न किया जाता है विशेषतः शनी के प्रकोप

को शांत करणे के लिये सुंदरकांड का पाठ लाभदायक

होता है , वैसे कम से कम १०८ पाठ ब्राह्मण के

द्वारा करवाया जाता है |


६ : हनुमान चालीसा : हनुमान चालीसा कलियुग मे मनुष्य

के जीवन का आधार है इसका पाठ प्रायः प्रतिदिन

किया जाता है | परंतु विशेष रूप से ४१ दिन मे प्रतिदिन १००

पाठ कराने से कोई भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए किये

गया सभी अनुष्ठान पूर्ण होता है |


७ : बजरंग बाण : बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य स्वयं सुरक्षित

रहता है | बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य सुरक्षित राहता है

इसका कम से कम ५२ पाठ करके हवन करने पर विशेष लाभ

प्राप्त होता है |


८ : हरि किर्तन [ हरे राम हरे कृष्ण ] : प्रभू

कि कृपा प्राप्ती तथा घर मे आनंद एवं सुख के लिये

तथा सन्मार्ग प्राप्ती के लिये हरि किर्तन

करवाया जाता है |


९ : श्री सुंदर कांड [ वाल्मिकी रामायण ] :

वाल्मिकी रामायण के सुंदर कांड का पाठ करने से संतान

बाधा दूर होती है तथा इसके प्रयोग से सारी कठिनाइय

समाप्त हो जाती है | वाल्मिकी द्वारा रचित सुंदर कांड

एक याज्ञिक प्रयोग है | इस पाठ का १०८ पाठ

विशेषतः हवनात्मक रूप से लाभ दायक है |


१० : श्री ललिता सहस्त्र नामावली : ललिता सहस्त्र नाम

अर्थात दुर्गा माताकि प्रतिमूर्ती है | इस सहस्त्र नाम के

पाठ से अर्चन व अभिषेक तथा हवन करने से विशेषतः रोग

बाधा दूर होता है |


११ : श्री शिव सहस्त्र नामावली : शिव सहस्त्र

नामावली के कई प्रयोग है | इस प्रयोग से कई लाभ मिळते है

| सहस्त्र नामावली के द्वारा अर्चन व अभिषेक तथा हवन

प्रयोग से अपारशांती मिळती है |


१२ : श्री हनुमत सहस्त्र नामावली : श्री हनुमत सहस्त्र

नामावली के प्रयोग से विशेषतः शनी शांती होती है |


१३ : श्री शनी सहस्त्र नामावली : शनी के प्रकोप

या शनी कि साढे साती या अढ्या चाल

रही हो तो शनी सहस्त्रनाम का प्रयोग किया जाता है |


१४ : श्री कात्यायनी देवी जप : जिस किसी भी कन्या के

विवाह मे बाधा आ रही हो या विलंब

हो रहा हो तो कात्यायनी देवी का ४१००० मंत्र का जप

केले के पत्ते पर ब्राह्मण पान खाकर जप करता है , तो उस

कन्या के विवाह मे आने वाली सभी बाधाये दूर

हो जाती है | यह अनुष्ठान २१ दिन मे पूर्ण हो जाता है |

यह प्रयोग अनुभव सिद्ध है |


१५ : श्री गोपाल सहस्त्र नाम : जब

किसी भी दंपती को पुत्र या संतान कि प्राप्ती न

हो रही हो तो ,वह सदाचार तथा धार्मिक पुत्र

कि प्राप्ती के लिये गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करावे |

गोपाल मंत्र का सवा लाख जप पुत्र प्राप्ती मे अत्यंत

लाभदायक है | यह प्रयोग अनुभूत है |


१६ : श्री हरिवंश पुराण : श्री हरिवंश पुराण कथा का श्रवण

अत्यंत प्रभावी होता है | जिस किसी भी परिवार मे

संतान न उत्पन्न हो रहा हो तो इस पुराण के पारायण

[ पाठ ] से घर मे संतान उत्पत्ती होती है |यह अनुभूत है तथा ,

यह ७ दिन का कार्यक्रम होता है |


१७ : श्री शिव पुराण : श्री शिव पुराण मे शिव जी के

महिमा का हि विशेष वर्णन है तथा उनके

सभी अवतरो का वर्णन किया गया है | यह श्रावण मास

या पुरुषोत्तम मास मे विशेष रूप से पाठ बैठाया जाता है |


१८ : श्री देवी भागवत : श्री देवी भागवत मे भी १८०००

श्लोक है तथा यह माता जी के प्रसन्नता के लिये

किया जाता है ,यह प्रयोग नवरात्र या विशेष पर्व पर

किया जाता है |


१९ : श्री गणपती पूजन एवं अभिषेक : किसी भी शुभ अवसर

पर यह पूजन किया जा सकता है | इससे सभी बाधाये दूर

हो जाती है तथा कार्य मे उत्तरोत्तर वृद्धि होती है |


२० : भूमी पूजन ,आफिस एवं दुकान उदघाटन : भूमि पूजन एवं

दुकान उदघाटन उस भूमि पर कार्य शुरू करने के पूर्व

वहा का भूमि पूजन सम्पन्न किया जाता है | जिससे

वहा किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो और कार्य

आसानी से सम्पन्न हो जाता हैं

शुक्रवार, 12 जुलाई 2024

विवस्वत सप्तमी

 विवस्वत सप्तमी 12 जुलाई विशेष

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आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को विवस्वत सप्तमी के रुप में मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में विवस्वत सप्तमी तिथि 12 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य देव की उपासना का विशेष महत्व बताया जाता है। सूर्य के अनेकों नाम हैं जिनमें से एक नाम विवस्वत भी कहलाता है। प्रत्येक वर्ष की सप्तमी में सुर्य के पूजन की तिथि के लिए भी अत्यंत शुभदायक मानी गई है। 


विवस्वत सप्तमी महत्व

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विवस्वत के संदर्भ को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित होती हैं वैदिक साहित्य में मनु को विवस्वत् का पुत्र माना गया है, एवं इसे 'वैवस्वत' नाम दिया गया है। सूर्य का संबंध इसके साथ जुड़ने कारण ही इस दिन सूर्य उपासना का भी बहत मह्त्व रहा है इस दिन विवस्वत मनु का पूजन होता है इस दिन मनु कथा का श्रवण किया जाता है वैवस्वत मनु के नेतृत्व में सृष्टि का सूत्रपात होता है इसी से श्रुति और स्मृति की परम्परा चल पड़ी विवस्वत से ही सूर्य वंश का आरंभ होता है जिसमें श्री राम का जन्म हुआ जो विष्णु के अवतार स्वरुप पृथ्वी पर आते हैं।


विवस्वत सप्तमी के लाभ

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विवस्वत सप्तमी के दिन सूर्यदेव का पूजन करने से मान-सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।


नेत्र और मस्तिष्क संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है।


पूरा शरीर निरोगी बनता है और आयु में वृद्धि होती है।


सूर्यदेव की कृपा से जन्मकुंडली के समस्त दोषों का निवारण होता है।


जिनकी जन्मकुंडली में सूर्य ग्रहण दोष है उन्हें विवस्वत सप्तमी पर सूर्यदेव का पूजन अवश्य करना चाहिए।


विवस्वत सप्तमी कथा

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वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार होता है। इस पर कथा भी प्राप्त होती है। इस कथा को सुनने वाले परीक्षित थे। परीक्षित को शुकदेव जी ने सत्यव्रत की कथा सुनाते हैं - सत्यव्रत नाम के एक बड़े उदार राजा थे वह नित्य धर्म अनुरुप आचरण करते थे। एक बार अपनी तपस्या के दौरान वह जब कृतमाला नदी में खड़े होकर तर्पण का कार्य कर रहे होते हैं तभी उस समय के दौरान उनके हाथ में एक मछली आ जाती है। सत्यव्रत ने अपने हाथों में आई उस मछली को जैसे ही जल में छोड़ने का प्रयास किया उस मछली ने सत्यव्रत को ऎसा नहीं करने का आग्रह किया। मछली की वेदना सुन कर राजा सत्यव्रत ने उसके जीवन की रक्षा करने का प्रण किया मछली को अपने कमण्डल पात्र के जल में रख दिया और उसे अपने साथ ले आए।


लेकिन एक दिन में ही वह मछली आकार में इतनी बढ़ जाती है कि उस कमण्डल पात्र में समा ही नहीं पाती है। ऎसे में मछली राजा से पुन: आग्रह करती है की वह उसे यहां से निकाल कर किसी ओर स्थान में रखें राजा सत्यव्रत ने मछली को उस पात्र से निकालकर एक बड़े पानी से भरे घड़े में डाल दिया पर राजा के देखते ही देखते वह मछली उस घड़े में भी नहीं समा पाई और आकार में अधिक बढ़ गई वह राजा से फिर से अपने लिए किसी सुखद स्थान की मांग करती है। इसके बाद राज ने उस मछली को घड़े से निकाल कर सरोवर में डाल देते हैं

 मछली का आकार वहां भी बढ़ जाता है और सरोवर में भी पूरी नहीं आ पाती है। ऎसे में राजा सत्यव्रत उसे अनेक बड़े-बड़े सरोवरों में डालते हैं लेकिन मछली का आकार किसी भी सरोवर में नहीं समा पाता है अंत में राजा उस मछली को समुद्र में डाल देते हैं,


पर मछली समुद्र से भी विशाल हो जाती है अंत में राजा को उस मछली को प्रणाम करते हुए कहते हैं की - “मैने आज तक ऎसा जीव नहीं देखा आप कोई सामान्य जीव नहीं हैं कृप्या करके आप मुझे अपना भेद बताएं और मुझे दर्शन दीजिये” सत्यव्रत की निष्ठा को देख भगवान श्री विष्णु उसे दर्शन देते हैं ओर कहते हैं की आज से ठीक सात दिन बाद पृथ्वी पूर्ण रुप से जल मग्न हो जाएगी अर्थात जल में डूब जाएगी इसलिए मै तुम्हें यह कार्य सौंपने आया हूं की तुम ऋषियों मुनियों और सभी महत्वपूर्ण वस्तुओं जीवों वनस्पतियों को अपने साथ लेकर तैयार कर लीजिये आज से सातवें दिन बाद तीनों लोक प्रलय के समुद्र में डूबने लगेंगे तब तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आयेगी उस नौका में तुम समस्त प्राणियों, वस्तुओं और सप्तर्षियों के साथ लेकर उस नौका में चढ़ जाना तब मैं इसी मछली रूप में वहा आ उपस्थित हो जाउंगा तब तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग में बांध देना इतना कहकर श्री विष्णु अंतर्ध्यान हो जाते हैं।


प्रभु के कहे वचन अनुसार ही सत्यव्रत ने वही किया तब सातवें दिन प्रलय आती है और सत्यव्रत ऋषियों समेत नौका में बैठा जाते हैं और मछली स्वरुप जब विष्णु भगवान मछली का रुप लिए वहां आते हैं तो वह उनके सींग पर उस ना व को बांध देते हैं और नाव में ही बैठकर प्रलय का अंत होता है।


यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेव के नाम से विख्यात हुए और वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने गए

 सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ही मनु स्‍मृति के रचयिता है नव ग्रहों के राजा सूर्य देव की उपासना की परंपरा में विवस्वत सप्तमी का भी बहुत महत्व है प्राचीन काल से ही इस दिन सूर्य के इस स्वरुप का पूजन होता आता रहा है।


विवस्वत सप्तमी पूजा

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विवस्वत सप्तमी के दिन सूर्यदेव का पूजन करने से सभी सुख और परेशानियां समाप्त होती हैं स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए इस दिन अवश्य ही सूर्य देव का पूजन बहुत ही सकारात्मक होता है सरकार की ओर से यदि कोई परेशानी मिल रही है या फिर कोई प्रोपर्टी से संबंधित अगर कोई मामला हो तो वह भी इस स्थिति में दूर हो सकता है।


नियम 👉 विवस्वत सप्तमी के दिन सूर्य उदय से पुर्व उठ्ना चाहिये।


स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिये।


सूर्य को ज्ल देते समय जल में रोली, अक्षत और चीनी व लाल फूल जल में डालकर अर्घ्य देना चाहिये.


'ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:' मंत्र का जाप करना चाहिये।


इस दिन सिफ मीठी वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।


हलवा बनाकर सूर्य देव को भोग लगाना चाहिए।


आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ एवं सूर्याष्टक का पाठ करना चाहिए।

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आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार

 आहार के नियम भारतीय 12 महीनों अनुसार



1:-चैत्र ( मार्च-अप्रैल) – इस महीने में चने का सेवन करे क्योकि चना आपके रक्त संचार और रक्त को शुद्ध करता है एवं कई बीमारियों से भी बचाता है। चैत्र के महीने में नित्य नीम की 4 – 5 कोमल पतियों का उपयोग भी करना चाहिए इससे आप इस महीने के सभी दोषों से बच सकते है। नीम की पतियों को चबाने से शरीर में स्थित दोष शरीर से हटते है।


2:-वैशाख (अप्रैल – मई)- वैशाख महीने में गर्मी की शुरुआत हो जाती है। बेल का इस्तेमाल इस महीने में अवश्य करना चाहिए जो आपको स्वस्थ रखेगा। वैशाख के महीने में तेल का उपयोग बिल्कुल न करे क्योकि इससे आपका शरीर अस्वस्थ हो सकता है।


3:-ज्येष्ठ (मई-जून) – भारत में इस महीने में सबसे अधिक गर्मी होती है। ज्येष्ठ के महीने में दोपहर में सोना स्वास्थ्य वर्द्धक होता है , ठंडी छाछ , लस्सी, ज्यूस और अधिक से अधिक पानी का सेवन करें। बासी खाना, गरिष्ठ भोजन एवं गर्म चीजो का सेवन न करे। इनके प्रयोग से आपका शरीर रोग ग्रस्त हो सकता है।


4:-अषाढ़ (जून-जुलाई) – आषाढ़ के महीने में आम , पुराने गेंहू, सत्तु , जौ, भात, खीर, ठन्डे पदार्थ , ककड़ी, पलवल, करेला, बथुआ आदि का उपयोग करे व आषाढ़ के महीने में भी गर्म प्रकृति की चीजों का प्रयोग करना आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।


5:-श्रावण (जूलाई-अगस्त) – श्रावण के महीने में हरड का इस्तेमाल करना चाहिए। श्रावण में हरी सब्जियों का त्याग करे एव दूध का इस्तेमाल भी कम करे। भोजन की मात्रा भी कम ले – पुराने चावल, पुराने गेंहू, खिचड़ी, दही एवं हलके सुपाच्य भोजन को अपनाएं।


6:-भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) – इस महीने में हलके सुपाच्य भोजन का इस्तेमाल कर  वर्षा का मौसम् होने के कारण आपकी जठराग्नि भी मंद होती है इसलिए भोजन सुपाच्य ग्रहण करे।  इस महीने में चिता औषधि का सेवन करना चाहिए।


7:-आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) – इस महीने में दूध , घी, गुड़ , नारियल, मुन्नका, गोभी आदि का सेवन कर सकते है। ये गरिष्ठ भोजन है लेकिन फिर भी इस महीने में पच जाते है क्योकि इस महीने में हमारी जठराग्नि तेज होती है।


8:-कार्तिक (अक्टूबर-नवम्बर) – कार्तिक महीने में गरम दूध, गुड, घी, शक्कर, मुली आदि का उपयोग करे।  ठंडे पेय पदार्थो का प्रयोग छोड़ दे। छाछ, लस्सी, ठंडा दही, ठंडा फ्रूट ज्यूस आदि का सेवन न करे , इनसे आपके स्वास्थ्य को हानि हो सकती है।


9:-अगहन (नवम्बर-दिसम्बर) – इस महीने में ठंडी और अधिक गरम वस्तुओ का प्रयोग न करे।


10:-पौष (दिसम्बर-जनवरी) – इस ऋतू में दूध, खोया एवं खोये से बने पदार्थ, गौंद के लाडू, गुड़, तिल, घी, आलू, आंवला आदि का प्रयोग करे, ये पदार्थ आपके शरीर को स्वास्थ्य देंगे। ठन्डे पदार्थ, पुराना अन्न, मोठ, कटु और रुक्ष भोजन का उपयोग न करे।


11:-माघ (जनवरी-फ़रवरी) – इस महीने में भी आप गरम और गरिष्ठ भोजन का इस्तेमाल कर सकते है। घी, नए अन्न, गौंद के लड्डू आदि का प्रयोग कर सकते है।


12:-फाल्गुन (फरवरी-मार्च) – इस महीने में गुड का उपयोग करे। सुबह के समय योग एवं स्नान का नियम बना ले। चने का उपयोग न करे।

रविवार, 7 जुलाई 2024

रवि पुष्य योग



रवि पुष्य योग 


सिंहो यथा सर्व चतुष्पदानां,

तथैव पुष्यो बलवानुडुनां ।

चन्द्रे विरुद्धोSस्यथ गोवरेSपी

सिद्धयंति कार्याणि कर्तानि पुष्ये।।


अर्थात:

जैसे सिंह चौपायों में बलवान होता है ऐसे ही नक्षत्रो में पुष्य नक्षत्र बलवान होता है। चन्द्रमा भी विरोधी हो तो पुष्य नक्षत्र में कार्य नही बिगड़ता। पुष्य नक्षत्र अंतर्गत किया गया कार्य सिद्ध होता है।


पुष्य नक्षत्र फलम:


न योगीयोगं न च लग्नीलग्नम न,

तारिका चन्द्र बलं गुरुश्च ।

न योगिनी राहुर्नबलिष्ठकालः,

एतानि विघ्नानि हरंति पुष्यः ।।


अर्थात:

योगिनी अच्छी न हो, चन्द्रमा अच्छा ना हो, तारा अच्छा ना हो,भद्रा, राहु ये भी अच्छे ना हो परन्तु पुष्य नक्षत्र उस दिन हो तो इतने दोषों को दूर करता है पुष्य योग।


पुष्य नक्षत्र वैदिक मंत्र-

ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाददुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु ।

यददीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम।।


तो आज पुष्य नक्षत्र का लाभ ले दान, जप, पूजा पाठ करें, शुभ कार्यों मंत्र पाठ, नया काम आदि आज से शुरू करें।


ग्रह जनित पीड़ा की शांति और ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने के जो उपाय में अक्सर लिखती रहती हूं आज इस शुभ योग में आप उन मंत्र स्तोत्र का पाठ अधिकतम संख्या में करें और उपायों को भी अवश्य करें, ग्रह प्रधान व नित्य दान दोनों ही करें। 


विष्णुसहस्रनाम, विष्णु महालक्ष्मी स्तोत्रादि, सुन्दरकाण्ड, रामरक्षास्तोत्र, आदि जो भी पाठ आदि आप करना चाहें आज अवश्य करें।


जगन्नाथ जी रथ यात्रा की शुभकामनाएं

जय जगन्नाथ

शनिवार, 6 जुलाई 2024

आषाढ गुप्त नवरात्रि विशेष

 आषाढ गुप्त नवरात्रि विशेष

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आसाढ मास में मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्रि इस बार प्रतिपदा 06 जुलाई शनिवार से शुरू होंगी और 15 जुलाई सोमवार तक रहेगी। इस वर्ष नवरात्रि का पर्व 10 दिन मनाया जाएगा। पुराणों की मान्यता के अनुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गे की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं जिसमें दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। बता दें, अप्रत्यक्ष नवरात्रि को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर चैत्र और आश्विन की महीने में मनाई जाती हैं, और अप्रत्यक्ष यानी कि गुप्त आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती हैं।


गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ एवं आषाढ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है । आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है । वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का भी विशेष महत्व है।


जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।


“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ॥”


प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र

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गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं। जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है । लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं । जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है । इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है । यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं । लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती । उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई । पति सन्मार्ग पर आ गया और जीवन माता की कृपा से खिल उठा । यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें । तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं। मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है। हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी । वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी । इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है । यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए । गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है। इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें। गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है। इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। दरअसल इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है। 


देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है । यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं । यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’ । देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं। 


नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं । ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। 

                         

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

          

देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है । ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। 


गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है । इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है।


गुप्त नवरात्र पूजा विधि

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घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना-श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है।


मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।


गुप्तनवरात्री पूजा तिथि

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प्रतिपदा तिथि 

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6 जुलाई 2024) 👉 सोमवार, माँ काली

और माँ शैलपुत्री पूजा घटस्थापना।


कलश स्थापना मुहूर्त👉

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घटस्थापना मुहूर्त 👉 6 जुलाई 2024 को प्रातः 05:27 से 10:05 तक रहेगा इसके बाद 


अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना दिन 11:55 मिनट से 12:50 मिनट तक कर सकेंगे।


द्वितीया, 7 जुलाई 👉 माँ तारा और माँ ब्रह्मचारिणी पूजन,।


तृतीया, 8 जुलाई 👉 माँ त्रिपुरसुंदरी और माँ चंद्रघंटा पूजा।


तृतीया, 9 जुलाई 👉माँ भुवनेश्वरी माँ कुष्मांडा पूजन।


चतुर्थी 10 जुलाई 👉 माँ छिन्नमस्ता और माँ स्कन्द की पूजा।


पंचमी 11 जुलाई 👉 मां त्रिपुर भैरवी और माँ कात्यायनी पूजन।


षष्ठी 12 जुलाई 👉 माँ धूमावतीमां और माँ कालरात्रि पूजन, संक्रान्ति।


सप्तमी 13 जुलाई 👉मां बगलामुखी और मां महागौरी पूजन। 


अष्टमी, 14 जुलाई 👉 मां मतांगी और मां सिद्धिदात्री पूजन, गुप्त नवरात्रि पूर्ण, नवरात्रि पारण।


नवमी 15 जुलाई 👉 माँ कमला पूजन गुप्त नवरात्री पारण।


नवरात्रि में दस महाविद्या पूजा

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पहला दिन- मां काली👉 गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के दौरान उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है. इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी. शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा. नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं और अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं.

मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है।


मंत्र- क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा।

 

ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।


दूसरी महाविद्या👉 मां तारा- दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है. इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिये किया जाता है. इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करने हैं।


मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट।


तीसरी महाविद्या👉 मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी पूजा- अच्छे व्यक्ति व निखरे हुए रूप के लिये इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन बुध ग्रह के लिये पूजा की जाती है. इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए।


मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:।


चौथी महाविद्या👉 मां भुवनेश्वरी पूजा- इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा. चंद्रमा ग्रह संबंधी परेशानी के लिये इस पूजा की जाती है।


मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:।


ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:।


पांचवी महाविद्या👉 माँ छिन्नमस्ता- नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा होती है. इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है. इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए. अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है. राहू से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है. इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं।


मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा।


छठी महाविद्या👉 मां त्रिपुर भैरवी पूजा- इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है. मूंगे की माला से पूजा करें. मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा. इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो सभ दूर होता है।


मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा।


सांतवी महाविद्या👉 मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से द्ररिता का नाश होता है. इस दिन हकीक की माला का पूजा करें।


मंत्र- धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा।


आंठवी महाविद्या👉 मां बगलामुखी- माँ बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी परेशानी दूर हो जाती है. इस दिन पीले कपड़े पहन कर हल्दी माला का जप करना है. अगर आप की कुंडली में मंगल संबंधी कोई परेशानी है तो मा बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा।


मंत्र-ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा।


नौवीं महाविद्या👉 मां मतांगी- मां मतांगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए. इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है. बुद्धि संबंधी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है।


मंत्र- क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा।


दसवी महाविद्या👉 मां कमला- मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौंवे दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है।


मंत्र- क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा


नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता है।

 

लग्न अनुसार घटस्थापना का फल

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देवी पूजा में शुद्ध मुहूर्त एवं सही व शास्त्रोक्त पूजन विधि का बहुत महत्व है। शास्त्रों में विभिन्न लग्नानुसार घट स्थापना का फल बताया गया है।

 

1. मेष लग्न - धन लाभ


2. वृष लग्न - कष्ट


3. मिथुन लग्न - संतान को कष्ट


4. कर्क लग्न - सिद्धि


5. सिंह लग्न - बुद्धि नाश


6. कन्या लग्न - लक्ष्मी प्राप्ति


7. तुला लग्न - ऐश्वर्य प्राप्ति


8. वृश्चिक लग्न - धन लाभ


9. धनु लग्न - मान भंग


10. मकर लग्न - पुण्यप्रद


11. कुंभ लग्न - धन-समृद्धि की प्राप्ति


12. मीन लग्न - हानि एवं दुःख की प्राप्ति होती है।


मेष राशि👉 इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें।


वृषभ राशि👉 इस राशि के लोग देवी के महागौरी स्वरुप की पूजा करें व ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करें।


मिथुन राशि👉 इस राशि के लोग देवी यंत्र स्थापित कर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। इससे इन्हें लाभ होगा।


कर्क राशि👉 इस राशि के लोगों को मां शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ भी करें।

 

सिंह राशि👉 इस राशि के लोगों के लिए मां कूष्मांडा की पूजा विशेष फल देने वाली है। दुर्गा मन्त्रों का जाप करें।


कन्या राशि👉 इस राशि के लोग मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। लक्ष्मी मंत्रो का विधि-विधान पूर्वक जाप करें।


तुला राशि👉 इस राशि के लोगों को महागौरी की पूजा से लाभ होता है। काली चालीसा का पाठ करें।


वृश्चिक राशि👉 स्कंदमाता की पूजा से इस राशि वालों को शुभ फल मिलते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।


धनु राशि👉 इस राशि के लोग मां चंद्रघंटा की आराधना करें। साथ ही उनके मन्त्रों का विधि-विधान से जाप करें।


मकर राशि👉 इस राशि वालों के लिए मां काली की पूजा शुभ मानी गई है। नर्वाण मन्त्रों का जाप करें।


कुंभ राशि👉 इस राशि के लोग मां कालरात्रि की पूजा करें। नवरात्रि के दौरान रोज़ देवी कवच का पाठ करें।


मीन राशि👉 इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की पूजा करें। हल्दी की माला से बगलामुखी मंत्रो का जाप भी करें।

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शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

आषाढ़ गुप्त नवरात्र

 🔴आषाढ़ गुप्त नवरात्र🔴



~जप, साधना और सिद्धि के दस दिन~


कल से आषाढ़ गुप्त नवरात्र शुरू हैं इन दिनों गुप्त स्थान पर गुप्त जप करने का विधान कहा जाता है। तंत्र मार्ग और शाक्त सम्प्रदाय के लोग इस समय आंतरिक ऊर्जा की प्राप्ति व मंत्रों की सिद्धि के लिए, विशेषकर जप आदि करते हैं, दस महाविद्या के मंत्र जप के साधन के ये एक उत्तम समय है। जिस भी शक्ति का साधन कारण चाहें,चित्र की जगह माता के यंत्र का प्रयोग करें।


सकाम साधकों के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ है अथवा आप इसमें से अपनी समस्या या मनोकामना को सिद्ध करने वाला कोई एक मंत्र/श्लोक ले लें।


अगर कार्य मे बार बार बाधाएं आ रही हैं तो


 ◆सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।

 एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्।।

हे सर्वेश्वरी – तीनों लोकों की माता! जब आप प्रसन्न होते हैं, तो आप सभी बाधाओं और परेशानियों को दूर करते हैं, और आपके आशीर्वाद से सभी (आंतरिक-बाहरी) शत्रु नष्ट हो जाते हैं।


◆ॐ सर्व-बाधा विनिर्-मुक्तो, 

धन धान्यः सुतां-वितः।

मानुष्यो मत-प्रसादेन 

भविष्यति न संशयः ।।


इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो आपको प्रणाम करता है उसका भविष्य सभी बाधाओं से मुक्त होगा और धन, भोजन, और संतान।


रोगनाश के लिए मंत्र-

◆रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा 

तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां 

त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥


अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर सभी अभीष्ट कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।


लड़को के शीघ्र विवाह के लिए मंत्र-


◆पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥ 


अर्थ- हे देवी, मुझे मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार सागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।


इसके अलावा आप हनुमान चालीसा का यथाशक्ति नौ दिन पाठ करें, प्रतिदिन सुन्दरकाण्ड, बाहुक आदि का पाठ करें।


कलश स्थापना,अखंड दीपक आदि सम्भव नही हैं तो नित्य पूजा के समय सरसों तेल का दीपक लगाएं।


जपकाल- रात्रि

आसन - लाल अथवा जप पर निर्भर पर ऊनी आसान लें।

माला- जप पर निर्भर (रुद्राक्ष, स्फटिक, कमलगट्टे, हल्दी आदि)

जप का समय निश्चित रखें रोज़ समय न बदलें। कुछ भी कठिन न करें, वो जो आसानी से उपलब्ध है उसके साथ पूर्ण भावना और शुद्धता पूर्वक नियमानुसार जप करें। कम बोलें अच्छा और मधुर बोलें, सुपाच्य और केवल एक समय भोजन करें, फल आदि लेते रहें, पानी पीते रहें।

याद रखें दूसरे को अच्छा बुरा बोलने/कोसने में आप अपने पुण्यों/मंत्रजप से प्राप्त ऊर्जा का क्षय करते हैं इसलिए साधना काल मे मौन रहने का निर्देश दिया जाता है।


गुरुवार, 4 जुलाई 2024

कलंक या बदनामी

 कलंक या बदनामी


कलंक या बदनामी किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बुरा समय कहा जा सकता है। जीवन में कई बार आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे होते हैं, फिर भी जब समय चक्र की गति विपरीत होती है, तो आप इसके निशाने पर आ जाते हैं। आप किसी के बारे में अच्छा सोचते हैं और अच्छा करते हैं, लेकिन वही व्यक्ति आपके बारे में गलत धारणा बना लेता है। यह स्थिति डरावनी होती है, क्योंकि ऐसी स्थिति से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल होता है।


ऐसी स्थितियों के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार ग्रह शनि है। आमतौर पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या में सबसे ज़्यादा प्रतिकूल परिणाम देखने को मिलते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली के अनुसार वह साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव में है, तो उसे अक्सर बिना किसी कारण के कलंक और बदनामी का सामना करना पड़ता है।


इसके अलावा कुंडली में कई अन्य ग्रह संयोजन भी ग्रहों की दोषपूर्ण स्थिति के कारण व्यक्ति को बदनामी का सामना करवा सकते हैं। ख़ास तौर पर प्रेम संबंधों में, बदनामी एक ऐसा विषय है जो अक्सर जीवन में तब सामने आता है जब दोष युक्त ग्रह स्थिति होती है।  ऐसे व्यक्ति को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए। कुछ विशेष प्रकार के ज्योतिषीय योगों के बारे में जो किसी को भी प्रेम में बदनाम कर सकते हैं। अक्सर शनि का दोष व्यक्ति को प्रेम संबंध में बदनामी का कारण बन सकता है। यदि कुंडली के पंचम भाव में शनि स्थित हो और उसके साथ किसी अन्य क्रूर ग्रह की युति या दृष्टि हो तो ऐसे व्यक्ति को प्रेम में अपयश का सामना करना पड़ सकता है।


दूसरी स्थिति राहु या केतु की खराब दशा में तब होती है जब व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार हो जाता है। खुद को श्रेष्ठ समझने लगता है और परिणामस्वरूप वह अक्सर गलतियां कर बैठता है। जब राहु और केतु किसी क्रूर या पापी ग्रह के साथ हों तो इनके बुरे प्रभाव और भी भयावह हो जाते हैं।


ऐसे ही अपयश या बदनामी देने वाले दर्जनों ग्रह योग होते हैं। जैसे कि यदि नवमांश कुंडली में शुक्र और मंगल की युति किसी भी राशी में बने तो भी बदनामी योग बनता है । ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम प्रणय का कारक मानते हैं। और मंगल को उत्तेजना का कारक कहा जाता हैं। जब भी प्रेम और उत्तेजना कि युति योगी तो बदनामी योग का निर्माण होगा ।


यदि कुंडली में 5,7,11,12 भाव में क्रूर या दुष्ट ग्रहों की युति या द्रष्टि संबंध बने तो बदनामी योग का उपयोग व्यावसायिक कार्यों में होता है और यदि कुंडली में 5,8,12 भावेशो की युति या द्रष्टि संबंध बने तो बदनामी या लांछन का प्रबल योग भी बनता है। क्यों कि अष्टम भाव बदनामी का भाव होता हैं और यदि इस योग में 1,5,6,8,12 व् शनि की युति भी हो जाये तो जातक किसी कोर्ट केस में उलझ जाता है।


साथ ही राहू और शुक्र की युति विरोधी सेक्स के प्रति तीव्र आकर्षण और गुप्त संबंधों का निर्देश देते हैं। राहू के साथ शुक्र के जुड़े होने से जातक को अपने चरित्र में सयंम बनाये रखने के लिये स्वयं से संघर्ष करना पड़ता है।


इसी तरह अन्य आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, व्यवसायिक, क़ानूनी आदि मामलों में बदनामी, लालछन, कलंक आदि योगों के लिये अन्य भावेश और ग्रह फलों का भी अध्ययन अनिवार्य है | बस आवश्यकता है जातक के जन्म के समय के स्पष्ट जानकारी और उसके सटीक विशलेषण की और इन आरोपों से बचने के लिये शास्त्र सम्मत सही पध्यति से उपाय कर के बचा भी जा सकता है।

दुर्गा सप्तशती के किस पाठ को करने पर क्या मिलता है फल।


दुर्गा सप्तशती के किस पाठ को करने पर क्या मिलता है फल। 


भगवती दुर्गा की पूजा एवं जप-तप के लिए नवरात्रि के 09 दिन बेहद शुभ माने गए हैं. मान्यता है कि शक्ति की साधना के लिए अत्यधिक फलदायी माने जाने वाले इन 09 दिनों में यदि कोई साधक देवी दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है तो उसके जीवन से जुड़ी बड़ी से बड़ी कामना शीघ्र ही पूरी होती है. दुर्गा सप्तशती को शक्ति की साधना का पुण्यफल पाने का सबसे उत्तम माध्यम माना गया है. जिसका श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करने पर साधक को भगवती दुर्गा से मनचाहा वरदान प्राप्त होता है. आइए जानते हैं कि दुर्गा सप्तशती के किस पाठ को करने पर साधक को किस पुण्यफल की प्राप्ति होती है.


दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का फल

हिंदू मान्यता के अनुसार दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय का पाठ करने पर मां भगवती की कृपा से साधक के सभी मानसिक कष्ट दूर होते हैं और वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है.


दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय का फल

भगवती की पूजा में दुर्गा सप्तशती का दूसरा पाठ करने से साधक को भूमि-भवन से जुड़े मामलों में सफलता प्राप्त होती है. भगवती की कृपा से कोर्ट-कचहरी में चल रहे मुकदमें में उसे राहत मिलती है.


दुर्गा सप्तशती के तीसरे अध्याय का फल

देवी पूजा के लिए दुर्गा सप्तशती का तीसरा पाठ करने पर साधक का जाने-अनजाने शत्रुओं से छुटकारा मिलता है. जीवन से जुड़े तमाम तरह के विवाद दूर होते हैं.


दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का फल

यदि आप अपने जीवन में ईश्वर की भक्ति की चाह है और आपके साधना मार्ग में कोई बाधा आ रही है तो उसे दूर करने के लिए आपको दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय का विशेष रूप से पाठ करना चाहिए.


दुर्गा सप्तशती के पांचवें अध्याय का फल

यदि आपको लगता है कि आपके आस-पास नकारात्मक ऊर्जा का वास बना रहता है या फिर आपकी साधना कठिन तप और जप के बाद भी सफल नहीं हो पा रही है तो आपको दुर्गा सप्तशती के पाठ को जरूर करनी चाहिए. इसका पाठ करने से आपकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी.


दुर्गा सप्तशती के छठवें अध्याय का फल

यदि असफलता को लेकर आपका मन हमेशा परेशान रहता है और आपके काम में अक्सर कोई न कोई अड़ंगा आ जाता है तो ऐसी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए साधक को दुर्गा सप्तशती के छठवें अध्याय का पाठ करना चाहिए.


दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय का फल

हिंदू मान्यता के अनुसार यदि आप बगैर दूसरों का बुरा सोचते हुए देवी दुर्गा के सातवें अध्याय का पाठ करते हैं तो आपकी बड़ी से बड़ी कामना शीघ्र ही पूरी होती है.


दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय का फल

भगवती दुर्गा की साधना में दुर्गा सप्तशती के आठवें अध्याय का पाठ करने से राह भटक गया व्यक्ति शीघ्र ही सीधे रास्ते पर लौट आता है और वह स्वयं से जुड़ी भलाई की बात को समझने और मानने लगता है.


दुर्गा सप्तशती के नौवें अध्याय का फल

मान्यता कि दुर्गा सप्तशती के नौवें अध्याय का पाठ करने से व्यक्ति गुमशुदा व्यक्ति शीघ्र ही मिल जाता है.


दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का फल

धार्मिक मान्यता के अनुसार दुर्गा सप्तशती के दसवें अध्याय का पाठ को करने से बिगड़े हुए बच्चे सुधर जाते हैं और अपने से बड़ों की बात का कहना मानने लगते हैं.


दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का फल

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करने पर साधक को करियर-कारोबार में मनचाही सफलता प्राप्त होती है.


दुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय का फल

हिंदू मान्यता के अनुसार नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय का पाठ करने पर व्यक्ति झूठे आरोपों से पाक-साफ होकर बच जाता है और उसका समाज में मान-सम्मान बढ़ सकता है.


दुर्गा सप्तशती के तेरहवें अध्याय का फल

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के तेरहवें या फिर कहें अंतिम अध्याय का पाठ करने पर साधक को शक्ति की भक्ति का परम सुख प्राप्त होता है.

Secrets of Strength: What to Keep Hidden for a Successful Life

 This is a book written by Awneesh Dwivedi for personal life improvement in self help group.

In the complex tapestry of human life, the ability to

navigate challenges, manage personal affairs, and

cultivate meaningful relationships often hinges on a subtle

yet powerful principle: discretion. This book, "Secrets of

Strength: What to Keep Hidden for a Successful Life,"

draws its inspiration from the ancient wisdom of

Shukraniti, a revered text attributed to the sage

Shukracharya. The teachings of Shukraniti offer timeless

insights into the importance of keeping certain aspects of

one's life private to enhance personal and professional

success.

In an era where transparency is often heralded as a virtue,

and where social media encourages public sharing of

every facet of life, the art of discretion can seem

counterintuitive. Yet, the profound wisdom of Shukra

reminds us that there is strength in what remains

unspoken and unseen. By carefully guarding details about

age, wealth, personal challenges, and other intimate

aspects of life, individuals can protect their dignity, build

resilience, and foster genuine growth.

Historical Context and Relevance

Shukraniti is a significant work within the broader

corpus of Niti Shastra, ancient Indian literature dedicated2

to ethics, statecraft, and practical wisdom. Shukracharya,

the author, was a respected sage known for his profound

understanding of human nature and societal dynamics.

His teachings, compiled in Shukraniti, provide guidance

on governance, personal conduct, and ethical living.

Despite its ancient origins, Shukraniti's principles

resonate deeply with contemporary life. In a world

marked by rapid change, intense competition, and

constant information flow, the ability to exercise

discretion and maintain privacy is increasingly vital. The

teachings of Shukraniti offer practical strategies for

managing life's complexities with wisdom and grace.

Themes and Structure

This book explores ten key themes from Shukraniti, each

offering valuable insights into the art of discretion and its

impact on various aspects of life:

1. Age and Wisdom: The benefits of keeping one's age

private, and balancing experience with youthful

energy.

2. Wealth and Privacy: The advantages of discreet

wealth management and strategies for avoiding envy

and exploitation.

3. Home and Defects: The importance of concealing

imperfections in one's living space and quietly

addressing them.

4. Mantra and Inner Peace: The power of personal

mantras and their role in fostering inner peace and

growth.

5. Intimacy and Boundaries: The value of privacy in

intimate relationships and the importance of

respecting boundaries.

6. Medicine and Health: Managing health issues

confidentially to protect personal dignity and well-

being.

7. Charity and Humility: The virtue of anonymous

charity and the balance between public recognition

and genuine altruism.

8. Honour and Reputation: The role of discretion in

protecting and managing one's honour and reputation.

9. Insult and Resilience: Strategies for handling insults

and criticisms privately, and building resilience.

10. Incompetence and Self-Improvement:

Concealing personal limitations while working on

them and quietly developing competence and

confidence.

Each chapter delves into practical strategies for applying

these principles in everyday life, blending historical

wisdom with modern insights. Through thoughtful

reflection and actionable advice, this book encourages

readers to embrace the power of discretion as a means to

achieve personal and professional success.4

Personal Journey and Reflections

My journey in writing this book has been one of

discovery and introspection. In exploring the teachings of

Shukraniti, I have come to appreciate the profound impact

of discretion on personal integrity and resilience. The

wisdom of Shukracharya has guided me to understand

that the strength we draw from what we choose to keep

hidden is as crucial as the abilities and achievements we

openly display.

In an age where the line between public and private life is

increasingly blurred, embracing the art of discretion is not

merely a choice but a necessity. This book is an invitation

to reflect on what we reveal and what we guard, to

cultivate a life that balances openness with privacy, and to

find strength in the quiet spaces of our existence.

Encouragement to Readers

I invite you, dear reader, to embark on this journey of

exploration and growth. As you delve into the teachings

of Shukraniti, may you discover the profound wisdom of

discretion and its potential to transform your life. Whether

you seek to enhance your personal relationships, manage

your career, or navigate life's challenges with grace, the

principles outlined in this book offer valuable guidance.

Embrace the power of what you keep hidden. Let the

wisdom of Shukracharya inspire you to build a life of

integrity, resilience, and quiet excellence. Through

thoughtful application of these teachings, may you

achieve a deeper understanding of yourself and a greater

sense of fulfillment in your personal and professional

endeavors.

कुंभ महापर्व

 शास्त्रोंमें कुंभमहापर्व जिस समय और जिन स्थानोंमें कहे गए हैं उनका विवरण निम्नलिखित लेखमें है। इन स्थानों और इन समयोंके अतिरिक्त वृंदावनमें...