सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रवि पुष्य योग



रवि पुष्य योग 


सिंहो यथा सर्व चतुष्पदानां,

तथैव पुष्यो बलवानुडुनां ।

चन्द्रे विरुद्धोSस्यथ गोवरेSपी

सिद्धयंति कार्याणि कर्तानि पुष्ये।।


अर्थात:

जैसे सिंह चौपायों में बलवान होता है ऐसे ही नक्षत्रो में पुष्य नक्षत्र बलवान होता है। चन्द्रमा भी विरोधी हो तो पुष्य नक्षत्र में कार्य नही बिगड़ता। पुष्य नक्षत्र अंतर्गत किया गया कार्य सिद्ध होता है।


पुष्य नक्षत्र फलम:


न योगीयोगं न च लग्नीलग्नम न,

तारिका चन्द्र बलं गुरुश्च ।

न योगिनी राहुर्नबलिष्ठकालः,

एतानि विघ्नानि हरंति पुष्यः ।।


अर्थात:

योगिनी अच्छी न हो, चन्द्रमा अच्छा ना हो, तारा अच्छा ना हो,भद्रा, राहु ये भी अच्छे ना हो परन्तु पुष्य नक्षत्र उस दिन हो तो इतने दोषों को दूर करता है पुष्य योग।


पुष्य नक्षत्र वैदिक मंत्र-

ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाददुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु ।

यददीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम।।


तो आज पुष्य नक्षत्र का लाभ ले दान, जप, पूजा पाठ करें, शुभ कार्यों मंत्र पाठ, नया काम आदि आज से शुरू करें।


ग्रह जनित पीड़ा की शांति और ग्रहों के शुभ प्रभाव बढ़ाने के जो उपाय में अक्सर लिखती रहती हूं आज इस शुभ योग में आप उन मंत्र स्तोत्र का पाठ अधिकतम संख्या में करें और उपायों को भी अवश्य करें, ग्रह प्रधान व नित्य दान दोनों ही करें। 


विष्णुसहस्रनाम, विष्णु महालक्ष्मी स्तोत्रादि, सुन्दरकाण्ड, रामरक्षास्तोत्र, आदि जो भी पाठ आदि आप करना चाहें आज अवश्य करें।


जगन्नाथ जी रथ यात्रा की शुभकामनाएं

जय जगन्नाथ

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...