सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

श्रीमज्जगद्गुरुशङ्करभगवत्पूज्यपादाचार्यस्तवः


॥ श्रीमज्जगद्गुरुशङ्करभगवत्पूज्यपादाचार्यस्तवः ॥
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः ।
मुदा करेण पुस्तकं दधानमीशरूपिणं
तथाऽपरेण मुद्रिकां नमत्तमोविनाशिनीम् ।
कुसुंभवाससावृतं विभूतिभासिफालकं
नताघनाशने रतं नमामि शङ्करं गुरुम् ॥ १॥
पराशरात्मजप्रियं पवित्रितक्षमातलं
पुराणसारवेदिनं सनंदनादिसेवितम् ।
प्रसन्नवक्त्रपंकजं प्रपन्नलोकरक्षकं
प्रकाशिताद्वितीयतत्त्वमाश्रयामि देशिकं ॥ २॥
सुधांशुशेखारार्चकं सुधीन्द्रसेव्यपादुकं
सुतादिमोहनाशकं सुशान्तिदान्तिदायकम् ।
समस्तवेदपारगं सहस्रसूर्यभासुरं
समाहिताखिलेन्द्रियं सदा भजामि शङ्करम् ॥ ३॥
यमीन्द्रचक्रवर्तिनं यमादियोगवेदिनं
यथार्थतत्त्वबोधकं यमान्तकात्मजार्चकम् ।
यमेव मुक्तिकांक्षया समाश्रयन्ति सज्जना
नमाम्यहं सदा गुरुं तमेव शङ्कराभिधम् ॥ ४॥
स्वबाल्य एव निर्भरं य आत्मनो दयालुतां
दरिद्रविप्रमन्दिरे सुवर्णवृष्टिमानयन् ।
प्रदर्श्य विस्मयाम्बुधौ न्यमज्जयत् समान् जनान्
स एव शङ्करः सदा जगद्गुरुर्गतिर्मम ॥ ५॥
यदीयपुण्यजन्मना प्रसिद्धिमाप कालटी
यदीयशिष्यतां व्रजन् स तोटकोऽपि पप्रथे ।
य एव सर्वदेहिनां विमुक्तिमार्गदर्शको
नराकृतिं सदाशिवं तमाश्रयामि सद्गुरुम् ॥ ६॥
सनातनस्य वर्त्मनः सदैव पालनाय यः
चतुर्दिशासु सन्मठान् चकार लोकविश्रुतान् ।
विभाण्डकात्मजाश्रमादिसुस्थलेषु पावनान्
तमेव लोकशङ्करं नमामि शङ्करं गुरुम् ॥ ७॥
यदीयहस्तवारिजातसुप्रतिष्ठिता सती
प्रसिद्धशृङ्गभूधरे सदा प्रशान्तिभासुरे ।
स्वभक्तपालनव्रता विराजते हि शारदा
स शङ्करः कृपानिधिः करोतु मामनेनसम् ॥ ८॥
इमं स्तवं जगद्गुरोर्गुणानुवर्णनात्मकं
समादरेण यः पठेदनन्यभक्तिसंयुतः ।
समाप्नुयात् समीहितं मनोरथं नरोऽचिरात्
दयानिधेः स शङ्करस्य सद्गुरोः प्रसादतः ॥ ९॥
इति श्रीभारतीतीर्थमहास्वामिभिः विरचितम्
शंकरभगवत्पूज्यपादाचार्यस्तवः सम्पूर्णं ॥

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

शिव नाम महिमा

भगवान् श्रीकृष्ण कहते है ‘महादेव महादेव’ कहनेवाले के पीछे पीछे मै नामश्रवण के लोभ से अत्यन्त डरता हुआ जाता हूं। जो शिव शब्द का उच्चारण करके प्राणों का त्याग करता है, वह कोटि जन्मों के पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त करता है । शिव शब्द कल्याणवाची है और ‘कल्याण’ शब्द मुक्तिवाचक है, वह मुक्ति भगवन् शंकर से ही प्राप्त होती है, इसलिए वे शिव कहलाते है । धन तथा बान्धवो के नाश हो जानेके कारण शोकसागर मे मग्न हुआ मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण करके सब प्रकार के कल्याणको प्राप्त करता है । शि का अर्थ है पापोंका नाश करनेवाला और व कहते है मुक्ति देनेवाला। भगवान् शंकर मे ये दोनों गुण है इसीलिये वे शिव कहलाते है । शिव यह मङ्गलमय नाम जिसकी वाणी मे रहता है, उसके करोड़ जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है । शि का अर्थ है मङ्गल और व कहते है दाता को, इसलिये जो मङ्गलदाता है वही शिव है । भगवान् शिव विश्वभर के मनुष्योंका सदा ‘शं’ कल्याण करते है और ‘कल्याण’ मोक्ष को कहते है । इसीसे वे शंकर कहलाते है । ब्रह्मादि देवता तथा वेद का उपदेश करनेवाले जो कोई भी संसार मे महान कहलाते हैं उन सब के देव अर्थात् उपास्य होने...

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

              __श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्__ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार के है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे | फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा | और फिर … राजा च...