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*न नर्मयुक्तं वचनं हिनस्ति,*
*न स्त्रीषु राजन्न विवाहकाले।*
*प्राणात्यये सर्वधनापहारे,*
*पंचानृतान्याहुरपातकानि।।*
*(महाभारत, आदि प. - ८२/१६)*
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*अर्थात 👉 हे राजन्! परिहासयुक्त वचन असत्य होने पर भी हानिकारक नहीं होता, स्त्री के प्रति, विवाह के समय, प्राण-संकट के समय तथा सर्वस्व का अपहरण होते समय विवश होकर असत्य भाषण करना पड़े तो वह दोषकारक नही होता, ये पाँच प्रकार के असत्य पापशून्य कहे गए हैं।*
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