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अगस्त, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शत्रुघ्न जी महाराज का त्याग

भरत जी तो नंदिग्राम में रहते हैं, शत्रुघ्नलालजी महाराज उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं । एक एक दिन रात करते करते, भगवान को वनवास हुए तेरह वर्ष बीत गए । एक रात की बात है, कौशल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी । नींद खुल गई । पूछा कौन है ? मालूम पड़ा श्रुतिकीर्तिजी हैं । नीचे बुलाया गया । श्रुति, जो सबसे छोटी हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं । राममाता ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए । उफ ! कौशल्या जी का कलेजा काँप गया । तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्नजी की खोज होगी, माँ चलीं । आपको मालूम है शत्रुघ्नजी कहाँ मिले ? अयोध्या के जिस दरवाजे के बाहर भरतजी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला है, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले । माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में हाथ फिरा...

भगवान शिव के 35 रहस्य

  🙏  💐1. आदिनाथ शिव  💐 सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।  💐 2. शिव के अस्त्र-शस्त्र  💐 शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।  💐 3. शिव का नाग  💐 शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।  💐 4. शिव की अर्द्धांगिनी शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा काली कहलाई।  💐 5. शिव के पुत्र  💐 शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।  💐 6. शिव के शिष्य  💐 शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव न...

माद्री

पाण्डु की दो पत्नियां थीं - माद्री और कुंती| दोनों रूपवती और गुणवती थीं| दोनों के हृदय में धर्म और कर्तव्य के प्रति अत्यधिक निष्ठा थी| दोनों पाण्डु को अपने जीवन का सर्वस्व समझती थीं| दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था| माद्री अवस्था में कुछ बड़ी थी| अत: कुंती उसे अपनी बड़ी बहन समझती थी| माद्री मद्र देश की राजकन्या थी| कुंती का जन्म शूरसेन प्रदेश में हुआ था| दोनों के जन्मस्थान में बहुत बड़ा अंतर था, किंतु दोनों ने अपने हृदय की विशालता और उदारता से उस अंतर को पाट दिया था| दोनों का पृथक-पृथक शरीर था, पृथक-पृथक नाम भी था, किंतु दोनों को शरीर एक प्राण थीं| दोनों में कभी भी अधिकार को लेकर विवाद उत्पन्न नहीं हुआ| पाण्डु चाहे जिसके भवन में रहें, दोनों सुखी और संतुष्ट रहती थीं| पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों को समान रूप से प्यार करते थे| एक बार वेदव्यास जी ने पाण्डु से पूछा, राजन ! आप अपनी दोनों पत्नियों में किसे सबसे अधिक प्यार करते हैं? पाण्डु ने उत्तर दिया, व्यास जी, मैं तो जानता ही नहीं कि मेरी दो पत्नियां हैं| मेरी दोनों पत्नियां एक समान हैं| इसलिए मैं क्या बताऊं कि मैं किसे सबसे अधिक प्यार...

SugarCane गन्ने के फायदे

गन्ना (sugar cane) दिलाएगा इन 49 बीमारियों से राहत गन्ने का परिचय- आहार के 6 रसों में मधुर रस का विशेष महत्व है। गुड़, चीनी, शर्करा आदि मधुर (मीठे) पदार्थ गन्ने के रस से बनते हैं। गन्ने का मूल जन्म स्थान भारत है। हमारे देश में यह पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दक्षिण भारत आदि प्रदेशों में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। संसार के अन्य देशों में जावा, क्यूबा, मारीशस, वेस्टइण्डीज, पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में बहुत अधिक मात्रा में गन्ने का उत्पादन किया जाता है। 1 साल में गन्ने की बुवाई तीन बार जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। गन्ने को ईख या साठा भी कहते हैं। वात एवं पित्त से जिनका वीर्य दूषित हो गया हो उनके लिए गन्ने का रस लाभप्रद है। गन्ने का रस पेशाब के अवरोध को खत्म करता है। यह गले के लिए भी हितकारी है। गन्ना शर्करा की तरह मधुर (मीठा) होता है। यह पुष्टिबल (ताकत) देने वाला और तृप्तदायक (प्यास) बुझाने वाला है।अम्लपित्त, थकान, मूत्रकृच्छ, भ्रम, जलन, प्यास और दुर्बलता में गन्ना का रस लाभप्रद है। पीलिया रोग में गन्ना बहुत ही लाभकारी होता है। पीलिया से...

श्री कृष्ण का नाम मुरारी क्यों पड़ा।

श्री कृष्ण का नाम मुरारी क्यों पड़ा। वामन पुराण व भागवत पुराण के दसवें स्कंध में मुरासुर नामक एक राक्षस की कथा वर्णित है। कश्यप प्रजापति के एक पुत्र था ‘मुर’ नामक राक्षस। एक बार देवता व दानवों के बीच भयंकर संग्राम हुआ। उस युद्ध में अनगिनत राक्षस वीर हताहत हुए। उस वीभत्स दृश्य को मुरासुर ने देखा। तभी से वह मृत्यु भय से व्याकुल रहने लगा। आखिर में उसने सोचा कि तपस्या करके मृत्यु पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। उसने कई वर्षो तक ब्रह्मा की घोर तपस्या की। ब्रह्मा उसके सामने प्रकट हुए और वर मांगने को कहा। मुरासुर ने प्रसन्न होकर कहा, भगवन! मुझ पर कृपा करके ऐसा वरदान दीजिए कि मैं जिसका भी स्पर्श करूं, चाहे वे मृत्यु भय से मुक्त ही क्यों न हों, उनकी तत्काल मृत्यु हो जाए। विधाता ने तथास्तु कहकर उसकी इच्छा पूरी कर दी। इसके बाद मुरासुर के अहंकार की कोई सीमा न रही। वह तीनों लोकों में निर्भय घूमने लगा। देवताओं को ललकार कर युद्ध की चुनौती देने लगा। लेकिन तीनों लोकों के लोग विधाता के वरदान से परिचित थे, इसलिए मुरासुर से युद्ध करने का साहस कोई नहीं करता था। एक बार मुरासुर सुरपुरी अमरावती पहुंचा और ...

जागृत महादेव

केदारनाथ  को  जागृत  महादेव  कहते  है , क्यो की :- ", दो मिनट की ये कहानी रौंगटे खड़े कर देगी " एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी। पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा ...

देवरहा बाबा

एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे! परम पूज्य गुरदेव देवरहा बाबा । देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं.) भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवरहा बाबा. डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था. पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे। श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे. प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखत...

अठारह पुराण

१ ब्रह्मपुराण - १०००० श्लोक २ पद्मपुराण - ५५००० श्लोक ३ विष्णुपुराण -२३००० श्लोक ४ वायुपुराण  - २४६०० श्लोक ५ श्रीमद्भागवत-१८००० श्लोक ६ भविष्यपुराण -१४५०० श्लोक ७ नारदीयपुराण -२५००० श्लोक ८ मार्कण्डेयपुराण-९००० श्लोक ९ अग्निपुराण    - १६००० श्लोक १० ब्रह्मवैवर्तपुराण-१८००० श्लोक ११ लिङ्गपुराण।   - ११००० श्लोक १२ वराहपुराण    - २४००० श्लोक १३ स्कन्दपुराण   - ८१००० श्लोक १४ वामनपुराण   - १०००० श्लोक १५ कूर्मपुराण     - १७००० श्लोक १६ मत्स्यपुराण   -१४००० श्लोक १७ गरुड़पुराण   -१९००० श्लोक १८ ब्रह्माण्डपुराण -१२१०० श्लोक

कामाख्या माता

कामाख्या मंदिर को हिंदुओं का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। यह मंदिर असम के नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह 51 शक्ति पीठ में से सबसे पुराना मंदिर है, इस मंदिर में आपको कामाख्या देवी के अलावा कुछ अन्य देवियों के रूप भी देखने को मिलेंगे। इन देवियों में कमला, भैरवी, तारा, मतंगी, बगला मुखी, भुवनेश्वरी, धूमावती, छिन्नमस्ता और त्रिपुरा सुंदरी जैसी देवियां देखने को मिलेंगी। इस आर्टिकल में हम आपको इस मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे ही रहस्यों के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपको अब तक कोई जानकारी नहीं होगी। कामाख्या मंदिर के पीछे कहानी – देवी सती राजा दक्ष की बेटी थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने पिता की अनुमति के बिना ही भगवान शिव से शादी कर ली थी। एक बार राजा ने एक विशाल यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने सती और भगवान शिव के अलावा सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। सती अपने पिता के महल में गई, जहां राजा दक्ष ने भगवान शिव को सबके सामने अपमान किया। सती से पति का यह अपमान सहन ना हुआ और उन्होंने आयोजित यज्ञ में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। जब भगवान शिव को इस घटना के बारे में पता चला तो वह काफी गुस...

ब्राह्मण वंशावली

सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव : गर्ग (शुक्ल- वंश) गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज  कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है| (१) मामखोर (२) खखाइज खोर  (३) भेंडी  (४) बकरूआं  (५) अकोलियाँ  (६) भरवलियाँ  (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार  गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं| उपगर्ग (शुक्ल-वंश) उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं| बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल     बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| गौतम (मिश्र-वंश) गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे| (१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) ...

भारत रत्न विजेताओं की लिस्ट

भारत रत्न विजेताओं की लिस्ट - चन्द्रशेखर वेंकटरमन (1954) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (1954) सर्वेपल्लि राधाकृष्णन (1954) भगवान दास (1955) मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (1955) जवाहरलाल नेहरू (1955) गोविन्द बल्लभ पन्त (1957) धोंडो केशव कर्वे (1958) बिधान चंद्र रॉय (1961) पुरुषोत्तम दास टंडन (1961) राजेन्द्र प्रसाद (1962) पांडुरंग वामन काणे (1963) ज़ाकिर हुसैन (1963) लालबहादुर शास्त्री (1966) इन्दिरा गांधी (1971) वी॰ वी॰ गिरि (1975) के० कामराज (1976) मदर टेरेसा (1980) विनोबा भावे (1983) ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान (1987) एम० जी० रामचन्द्रन (1988) नेल्सन मंडेला (1990) भीमराव अम्बेडकर (1990) वल्लभ भाई पटेल (1991) राजीव गांधी (1991) मोरारजी देसाई (1991) सत्यजित राय (1992) अबुल कलाम आज़ाद (1992) जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (1992) अरुणा आसफ अली (1997) गुलज़ारीलाल नन्दा (1997) ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम (1997) एम॰ एस॰ सुब्बुलक्ष्मी (1998) चिदम्बरम् सुब्रह्मण्यम् (1998) अमर्त्य सेन (1999) रवि शंकर (1999) गोपीनाथ बोरदोलोई (1999) जयप्रकाश नारायण (1999) बिस्मिल्ला ख़ाँ (2...

मकोय के आयुर्वेदिक लाभ

मकोय के आयुर्वेदिक लाभ (BLACK NIGHT) OR (NIGHT SHADE) मकोय एक छोटा-सा पौधा है जो भारतवर्ष के छाया-युक्त स्थानों में हमेशा पाया जाता है। मकोय में पूरे वर्ष फूल और फल होते हैं।परिचय :            मकोय एक छोटा-सा पौधा है जो भारतवर्ष के छाया-युक्त स्थानों में हमेशा पाया जाता है। मकोय में पूरे वर्ष फूल और फल होते हैं। विभिन्न भाषाओ में नाम : हिन्दी मकोय संस्कृत काकमाची, रसायनवरा, काकिनी, सर्वतिक्ता मराठी कुदा गुजराती पीलुडी बंगाली काकमाची, गुड़कामाई अंग्रेजी ब्लाक नाईट ऑर नाईट पेड़, नाईट सीड पंजाबी केचूमेच, मको तेलगू काचि कन्नड़ गारीकेसोप्पू अरबी इनबुस्सा-लब फारसी अंगूर, रोबाह वैज्ञानिक नाम सोलनंम निर्गरूम कुलनाम सोलनंस रंग : कच्चे मकोय का रंग हरा होता है तथा ये पक जाने पर लाल, पीले और काले होते हैं। स्वाद : कच्चे मकोय का स्वाद कड़वा और तीखा होता है। पका मकोय खट्टा-मीठा होता है। स्वरूप : मकोय की शाखाएं एक-डेढ़ फुट तक ऊंची तथा शाखाओं पर उभरी हुई रेखाएं होती हैं। इसके पत्ते हरे, अण्डाकर या आयताकार, दन्तुर या खण्डित, 2-3 इंच लम्बे, एक-डेढ़ इंच ...

पुत्रदा एकादशी

---------------------------- श्रावण पुत्रदा एकादशी -------------------------------------- इस वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है का  दिन बुधवार २२  अगस्त २०१८ Wednesday  the  22nd  August 2018 को व्रत रखा जा रहा है एवं पूजा की जा रही है I श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत पूजन सामग्री:- (Puja Saamagree for shravana putrada Ekadashi Vrat) ∗ श्री विष्णु जी की मूर्ति ∗ वस्त्र ∗ पुष्प ∗ पुष्पमाला ∗ नारियल ∗ सुपारी ∗ अन्य ऋतुफल ∗ धूप ∗ दीप ∗ घी ∗ पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण) ∗ अक्षत ∗ तुलसी दल ∗ चंदन ∗ मिष्ठान श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि (Puja Method Of shravana putrada Ekadashi) दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रम कर स्नान कर लें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। आसन पर बैठ जाये। अब हाथ में जल लेकर श्रावण पुत्रदा व्रत का संकल्प करें। देवदेवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करें। श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत...

अटल बिहारी वाजपायी

अमर हो गये मरे नही हैं कालकूट से डरे नहीं हैं सूरज अस्त नही होता है बस आंखों से ओझल होता है जन में रहेगे जनमन मे रहेगे अटल हर भारतीय के जीवन में रहेगे #RIPVAjpayee 

आजादी?

बड़ी कीमत गयी चुकाई| फिर हमने आजादी पाई|| आजादी? गुलामी से कि अंग्रेजों से? शोषण से? भ्रस्टाचार के थपेड़ों से? सबको मिली आजादी? सबको मिला अधिकार? इस तथाकथित आजादी से क्या सबका है सरोकार? कुछ और ही है इसकी सच्चाई| गोरों के बदले बस नौकरशाही आयी| बड़ी कीमत गयी चुकाई | फिर जाकर आजादी आई|

दान करने के तरीके

🔯#शास्त्रीय_दान_विधि🔯🚩 श्रीराम!      शास्त्रों में छोटे छोटे दानों का भी बहुत बड़ा महान् फल देखा जाता है। किन्तु कई ऐसे लोग हैं जो बहुत बड़े बड़े दान करते हैं, उन्हें महान् तो क्या लघु फल भी मिलता हुआ नहीं दीखता, वल्कि कभी कभी शङ्कट ग्रस्त देखे जाते हैं। इस प्रकार नास्तिकों को ही नहीं आस्तिक श्रद्धालुओं में भी शास्त्रीय दान आदि विधियों पर सन्देह उत्पन्न होना स्वाभाविक है।       इसका समाधान इस प्रकार है-- अङ्ग रूपसे कही गईं शुद्ध द्रव्य, सुपात्र, सात्विक श्रद्धा, आदि शास्त्र-विधि पूर्वक जो दानादि दिए जाते हैं ,उन्हीं के ही फल शास्त्रों में कहे गए अनुसार प्राप्त होते हैं। उनके फल भी प्रायः जन्मान्तर में ही प्राप्त होते हैं।इसी जन्म में तो किसी अति उत्कृष्ट दान का ही फल प्राप्त होता है।       दान आदि पुण्य करने वालों को भी जो अधिक शङ्कट प्राप्त होताे है, उसका कारण भी पूर्व जन्म के पाप होते हैं।       शास्त्र कथित दान आदि का  उसी अनुरूप फल प्राप्त करने के लिये  निम्न विधियों का पालन अनिवार्य है-- #शुद्धद्रव्य :--न्...

योगिनी एकादशी

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🌹#योगिनी_एकादशी🌹 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🌹अलकापुरी नगर के राजा कुबेर भगवान शिव के अन्यय भक्त हैे। राजा कुबेर का एक हेममाली नाम का एक यक्ष सेवक था, जो नित्य प्रतिदिन राजा के पूजा के लिए फूल लाया करता था। उस यक्ष हेममाली की पत्नी अत्यधिक रूपवान थी, एक दिन वह यक्ष मानसरोवर से पूजा हेतु फूल लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण वह फूल को वही रख अपनी पत्नी के साथ समय व्यतीत करने लगा। इधर राजा हेममाली का इंतजार करते हुए दोपहर हो गया। 🌹हेममाली के नहीं आने से राजा क्रोधित हो गये, और अपने अन्य सेवको को आदेश दिया, तुम जाकर पता लगाओं की हेममाली अभी तक फूल लेकर क्यों नहीं आया है। राजा का आदेश मान सेवक हेममाली के घर पहुचे। उन्होंने देखा हेममाली अपनी स्त्री के साथ है, सेवक वापस आकर यह संदेश राजा को दी। राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। राजा का संदेश मिलते ही वह यक्ष हेममाली डर से कापते हुए, राजा के दरबार पहुचा। 🌹राजा ने हेममाली से कहाॅ - अरे अधर्मी, तेरे कारण मेरे पूज्य देव भगवान शिव जी का अपमान हुआ है। मैं तुम्हें श्राप देता हॅू, कि तू स्त्री के वियोग में तड़प-तड़प कर...

मानव जीवन के बीस दोष

*🍂🔺👦#मानव_जीवन_के🔺🍂*  *💥🔥🌷#बीस_दोष💥🔥🌷* 📖 *महाभारत के अनुशासन पर्व में देवगुरु बृहृस्पति एवं धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद आता है। धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर धर्मशास्त्रज्ञ, संयममूर्ति, देवों से पूजित, देवगुरु बृहस्पतिजी जीव के दोषों एवं उनकी गति का वर्णन करते हुए कहते हैं-* *1.जो ब्राह्मण चारों वेदों का अध्ययन करने के बाद भी मोहवश पतित व्यक्ति का दान लेता है, वह 15 वर्ष तक गधे की योनि में रहकर 7 वर्ष तक बैल बनता है। बैल का शरीर छूटने पर 3 मास तक ब्रह्मराक्षस होता है।* *2.जो ब्राह्मण पतित पुरुष का यज्ञ कराता है, वह मरने के बाद 15 वर्ष कीड़ा बनता है। फिर 5 वर्ष गधा, 5 वर्ष शूकर, 5 वर्ष मुर्गा, 5 वर्ष सियार और 1 वर्ष कुत्ता होता है।* *3.धर्मराज युधिष्ठिर हाथ जोड़कर नम्रता से प्रश्न करते हैं- “हे देवगुरु बृहस्पति जी ! जो शिष्य मूर्खतावश गुरु का अपराध करता है, गुरु हित चाहते हैं फिर भी गुरु की बात को महत्त्व नहीं देता है और अपने मान-अपमान को पकड़कर, गुरु के कहने का सीधा अर्थ नहीं लेता है उसकी क्या गति होती है ?”* *बृहस्पति जी बोलेः “इस अपराध से वह मरने के बाद कुत्...

रामायण के अल्‍पज्ञात दुर्लभ प्रसंग

रामायण के अल्‍पज्ञात दुर्लभ प्रसंग,सुमंत्र को दशरथजी के समय ही रघुवंश का भूत भविष्‍य ज्ञात था!!!!!! श्रीराम राज्‍याभिषेक उपरान्‍त सखाओं के साथ बैठकर अनेक प्रकार की हास्‍य विनोदपूर्ण कथाएँ कहा करते थे। इन सखाओं के नाम थे- विजयो मधुमत्तश्‍व काश्‍यपो मंगलः कुलः। सूराजिः कालियो भद्रो दन्‍तवक्‍त्र सुमागधः॥ -वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 43। 2 विजय, मधुमत्त, काश्‍यप, मंगल, सुराजि, कालिय, भद्र, दन्‍तवक्‍त्र और सुमागध। भद्र से श्रीराम ने एक दिन पूछा कि सखा सही-सही बताओं कि मेरे बारे में पुरवासी कौन-कौन सी शुभ व अशुभ बाते कहते हैं। तब भद्र ने कहा कि- हत्‍वा च रावणं संख्‍ये सीतामाहृत्‍य राघवः। अमर्ष पृष्‍ठतः कृत्‍वा स्‍ववेश्‍म पुनरायत्‌॥ -वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 43।16 परन्‍तु एक बात खटकती है कि युद्ध में रावण को मारकर श्री रघुनाथजी सीता को अपने घर ले आये। उनके मन में सीता के चरित्र को लेकर रोष या अमर्ष नहीं हुआ। इस चर्चा के उपरान्‍त राम ने समस्‍त सुहृदयों से पूछा कि भद्र का यह कथन सत्‍य है? सभी सखाओं ने कहा कि भद्र का कथन सत्‍य है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है। इसके पश्‍चात्‌ मित्र मण्...