बुधवार, 22 अगस्त 2018

कामाख्या माता

कामाख्या मंदिर को हिंदुओं का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है।

यह मंदिर असम के नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह 51 शक्ति पीठ में से सबसे पुराना मंदिर है, इस मंदिर में आपको कामाख्या देवी के अलावा कुछ अन्य देवियों के रूप भी देखने को मिलेंगे। इन देवियों में कमला, भैरवी, तारा, मतंगी, बगला मुखी, भुवनेश्वरी, धूमावती, छिन्नमस्ता और त्रिपुरा सुंदरी जैसी देवियां देखने को मिलेंगी।
इस आर्टिकल में हम आपको इस मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे ही रहस्यों के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में आपको अब तक कोई जानकारी नहीं होगी।

कामाख्या मंदिर के पीछे कहानी –
देवी सती राजा दक्ष की बेटी थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने पिता की अनुमति के बिना ही भगवान शिव से शादी कर ली थी। एक बार राजा ने एक विशाल यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने सती और भगवान शिव के अलावा सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। सती अपने पिता के महल में गई, जहां राजा दक्ष ने भगवान शिव को सबके सामने अपमान किया। सती से पति का यह अपमान सहन ना हुआ और उन्होंने आयोजित यज्ञ में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी। जब भगवान शिव को इस घटना के बारे में पता चला तो वह काफी गुस्सा हो गए और उन्होंने अपनी पत्नी के मृत शरीर को पकड़ कर तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया, जो कि पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने लगा। पूरे ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अंगों के 52 टुकड़ों में काट कर, इन टुकड़ों को धरती पर अलग-अलग जगह पर फेंक दिया। जहां-जहां यह टुकड़े गिरे, उस जगह को शक्ति पीठ के नाम से जाना जाने लगा। जिस जगह पर देवी का योनि हिस्सा गिरा, उसे कामाख्या नाम दे दिया गया।

मंदिर की अधूरी सीढ़ी के बारे में एक कहानी-
दूसरी कथा के अनुसार, एक नरक नाम का दानव, मां कामाख्या के आकर्षण और सुंदरता की तरफ आकर्षित हो गया। उस दानव को मां से प्यार हो गया और उसने मां को शादी का प्रस्ताव भेजा। देवी मां ने उसके सामने एक र्शत रखी कि अगर वह मंदिर की सीढ़ी का निर्माण नीचे से लेकर नीलांचल की पहाड़ी तक करता हैं, तो वह उससे शादी कर लेंगी। दानव ने इस शर्त को मान लिया और वह मंदिर के लिए सीढ़िया बनवाने लगा। उसका यह काम पूरा ही होने वाला था कि मां ने कहा कि वह उसके साथ एक चाल खेली और एक मुर्गा लेकर आई और उसे यह कहा कि सुबह होने पर आवाज करें। जब मुर्गा ने आवाज की तो दानव को लगा कि सुबह हो गई हैं, वह अपना काम आधा छोड़कर चला गया। जब नरक को यह पता लगा कि यह महज एक चाल थी तो वह बहुत गुस्सा हुआ और मुर्गे के पीछे भाग कर उसे मार डाला, जिस जगह पर मुर्गे को मारा उस जगह को कुकुराकटा के नाम से जाना जाने लगा। यह अधूरी सीढ़ी नरक ने बनाई थी, जिसे मेखेलउजा पथ के नाम से जाना जाता है।

क्यों कामाख्या देवी को “ब्लीडिंग देवी” के नाम से जाना जाता है –
देवी कामाख्या को ब्लीडिंग देवी के नाम से भी जाना जाता है। भक्तों का मानना है कि आषाढ़ के महीने में तीन दिनों के लिए मंदिर को बंद कर दिया जाता है, क्योंकि इन दिनों देवी माहवारी से ग्रस्त होती हैं। इसके बाद चौथे दिन मंदिर खुलता है और मंदिर के बाहर अंबुबच्ची मेला लगाया जाता है। लाखों श्रद्धालु और तीर्थयात्री दूर-दूर से इस विशाल महोत्सव में हिस्सा लेने के लिए आते हैं। इन दिनों मंदिर के पास बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल रंग में बदल जाती है। इस बात के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है कि इस नदी के पानी का रंग लाल क्यों होता है।

कामाख्या नाम क्यों?
ऐसा कहा जाता है कि प्यार के देवता कामदेव एक अभिशाप के कारण अपनी शक्ति और सत्ता खो देते है। यह वह जगह है, जहां पर भगवान को उनका प्यार और शक्ति वापस मिली और यहां पर कामाख्या देवी को स्थापित किया गया और उनकी पूजा की जाने लगी। कुछ लोगों के अनुसार यह वह जगह है जहां पर शिव और पार्वती का मिलन हुआ था, इस जगह को कामाख्या के नाम से जाना जाने लगा। कामा का अर्थ संस्कृत में प्यार करना माना जाता है।

कामाख्या मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य-
आइए आज हम आपको कामाख्या मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे रहस्यों के बारे में बताते हैं जिनके बारे में आपको शायद अब तक कोई जानकारी नहीं होगी।

 कामाख्या मंदिर को हिंदुओं का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। यह मंदिर असम में नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह 51 शक्ति पीठ में से सबसे पुराना मंदिर है। यह मंदिर समुद्र के स्तर से 800 फीट ऊपर गोवहाटी के पश्चिमी हिस्से में बनाया गया है। यह एक ऐसा मंदिर है, जहां पर किसी देवी की मूर्ति नहीं है। हालांकि मंदिर के गुफा के कोने में जिस जगह पूजा होती है, वह देवी की योनि के तराशे छवि की ही होती है। यह मंदिर 16 वीं सदी में नष्ट हो गया था। बाद में 17 वीं सदी में राजा नर नारायण ने इसे दोबारा बनवाया था, इस मंदिर को विशाल मान्यता प्राप्त है। मंदिर में तीन प्रमुख कक्ष होते हैं, जो कि पश्चिमी चैंबर का एक आयताकार और समकोण के आकार में है। लेकिन इसकी पूजा तीर्थयात्री द्वारा नहीं की जाती है। मध्य या दूसरा कक्ष वर्ग के आकार का होता है, और इसमें माता की एक छोटी सी मूर्ति भी है, जिसे बाद में जोड़ा गया था। इस मंदिर के दूसरे कक्ष को गर्भगृह के नाम से भी जाना जाता है। यह एक तरह की गुफा है, जहां पर कोई छवि नहीं होती, लेकिन एक प्राकृतिक भूमिगत वसंत होता है, जो कि योनि के आकार का छिद्र में प्रवाह होता है। रोजाना पूजा के अलावा इस मंदिर में साल भर में कई खास पूजा भी होती हैं, जैसे वंसती पूजा, दूर्गा पूजा, अम्बुबाची पूजा, पोहन बिया, मडानडियूल पूजा और मानासा पूजा।

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