गन्ना (sugar cane) दिलाएगा इन 49 बीमारियों से राहत
गन्ने का परिचय-
आहार के 6 रसों में मधुर रस का विशेष महत्व है। गुड़, चीनी, शर्करा आदि मधुर (मीठे) पदार्थ गन्ने के रस से बनते हैं। गन्ने का मूल जन्म स्थान भारत है। हमारे देश में यह पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दक्षिण भारत आदि प्रदेशों में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। संसार के अन्य देशों में जावा, क्यूबा, मारीशस, वेस्टइण्डीज, पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में बहुत अधिक मात्रा में गन्ने का उत्पादन किया जाता है। 1 साल में गन्ने की बुवाई तीन बार जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। गन्ने को ईख या साठा भी कहते हैं।
वात एवं पित्त से जिनका वीर्य दूषित हो गया हो उनके लिए गन्ने का रस लाभप्रद है। गन्ने का रस पेशाब के अवरोध को खत्म करता है। यह गले के लिए भी हितकारी है। गन्ना शर्करा की तरह मधुर (मीठा) होता है। यह पुष्टिबल (ताकत) देने वाला और तृप्तदायक (प्यास) बुझाने वाला है।अम्लपित्त, थकान, मूत्रकृच्छ, भ्रम, जलन, प्यास और दुर्बलता में गन्ना का रस लाभप्रद है। पीलिया रोग में गन्ना बहुत ही लाभकारी होता है। पीलिया से पीड़ित रोगी को गन्ने को चूसकर सेवन करना चाहिए। इससे पेशाब खुलकर आता है और पीलिया में शीघ्र ही आराम मिलता है। गन्ने का रस चूसने से थकान दूर होती है। इसका रस स्त्रियों के स्तनों में दूध की वृद्धि करता है। यह शरीर को शक्तिशाली और बुद्धिमान बनाता है और वीर्य की वृद्धि करता है। जिन्हें थोड़ा सा ही परिश्रम करने से थकान हो जाती है। उनके लिए गन्ने का रस बहुत ही लाभकारी होता है। शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली जलन के लिए गन्ना लाभकारी होता है।
गन्ने का रस भोजन से पहले सेवन करने से पित्त का नाश होता है। यह बाद में खाने से वायु (गैस) तथा मन्दाग्नि (भूख) करता है। गन्ने का कोई भी हिस्सा व्यर्थ नहीं होता है। इसके जड़ के टुकड़े पशुओं को खिलाएं जाते हैं। सभी प्रकार के गन्ने का रस-पित्त को मिटाने वाला, बलप्रद, सेक्स शक्ति को बढ़ाने वाला, कफ को बढ़ाने वाला, रस तथा पाक में मीठा, चिकना, भारी, मूत्रवर्धक और शीतल है। कच्चा गन्ना कफ, भेद तथा प्रमेह उत्पन्न करता है। मध्यम गन्ना वायुनाशक, मधुर और पित्तनाशक है।
हानिकारक : ईख मधुर, ठण्डा तथा चिकना होता है। अत: मधुमेह, बुखार, सर्दी, मन्दाग्नि, त्वचा रोग और कृमि रोगों में छोटे बच्चों के लिए हितकारी नहीं है। इसके अलावा जिन लोगों को जुकाम, श्वास और खांसी की स्थायी तकलीफ बनी रहती है तथा जो कफ प्रकृति वाले व्यक्ति हो तो उन्हें गन्ने का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. पेट दर्द:
5 किलो गन्ने के रस को चिकनी मिट्टी के बर्तन में भरकर उसके मुंह को कपड़े में मिट्टी भरकर बंद कर देते हैं। 1 सप्ताह बाद इसे खोलकर रस को छानकर रख लें। फिर 1 महीने में इस रस में 3 ग्राम कालानमक मिलाकर मिश्रण बना लें। इसे 10 मिलीलीटर की मात्रा में गुनगुना करके पिलाने से पेट का दर्द शीघ्र ही दूर हो जाता है।
गुड़ के साथ अजवायन चूर्ण 2-4 ग्राम मिलाकर सेवन करने से तथा पथ्यपूर्वक रहने से 7 दिनों में रक्तज विकार विशेषकर पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
2. अरुचि (भोजन की इच्छा) न होना: गन्ने के रस को आग या धूप में हल्का गर्म करके शीशी या चीनी मिट्टी के बर्तन के अन्दर भरकर रखें। इस रस का 7 दिनों के बाद सेवन करने से अरुचि नष्ट हो जाती है और भोजन पचने की क्रिया भी तेज हो जाती है। इस रस से कुल्ला करने से गला साफ हो जाता है। इस रस को 10 से 20 ग्राम तक ही सेवन करना चाहिए।
3. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना):
गन्ने के ताजे रस को पीने से पेशाब खुलकर आता है एवं मूत्रसंबन्धी समस्त रोग दूर होते हैं।
40 से 60 ग्राम गन्ने के जड़ का काढ़ा रोगी को पिलाने से पेशाब की जलन समाप्त हो जाती है।
गन्ने के रस को पकाने के बाद जब रस आधा रह जाए तो ठण्डा होने पर उसमें चौथाई शहद मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रख देते हैं या तो गन्ने का रस 120 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम और शहद 20 ग्राम को एक साथ मिलाकर बर्तन में 2 महीने तक रखकर सिरका बना लेते हैं। इस सिरके को 10 से 20 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से बुखार की जलन और मूत्रकृच्छ (पेशाब की जलन) के रोग में लाभ होता है।
4. कास (खांसी): 1 किलो गन्ने के ताजे रस में, 250 ग्राम ताजा शुद्ध घी मिलाकर पकाते रहें जब घी की मात्रा शेष रह जाए तब 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में बहुत लाभ होता है।
5. मन्थर ज्वर: गन्ने के 10 ग्राम रस में 30 ग्राम पानी मिलाकर हल्के हाथों से शरीर पर लगाने से चेचक, मसूरिका तथा मन्थर ज्वर दूर हो जाता है।
6. प्रतिश्याय (नजला-जुकाम): 10 ग्राम गुड़, 40 ग्राम दही, 3 ग्राम मिर्च का चूर्ण, तीनों को मिलाकर सुबह 3 दिन तक लेने से बिगड़ा हुआ सूखा जुकाम, नाक और मुंह से दुर्गन्ध आना, गला पक जाना, कास श्वासयुक्त प्रतिश्याय रोग नष्ट हो जाता है।
7. शक्तिवर्धक (ताकत को बढ़ाने वाला): गन्ना भोजन पचाता है और भरपूर शक्ति भी प्रदान करता है। यह शरीर को मोटा करता है तथा पेट की गर्मी तथा सीने की जलन को दूर करती है।
8. हिक्का (हिचकी):
थोडे़ से गुड़ को पानी में घोलकर और उसमें थोड़ी सी सोंठ को घिसकर रोगी के नाक के नथुने में डालने से हिक्का व सिर दर्द का रोग मिट जाता है।
केवल गन्ने के रस का सेवन 10-20 ग्राम की मात्रा में करने से हिक्का के रोग में लाभ प्राप्त होता है।
9. सिरदर्द: 10 ग्राम गुड़ और 6 ग्राम तिल को दूध के साथ पीसकर इसमें 6 ग्राम घी मिलाकर गर्म करके सेवन करने से सिर के दर्द में लाभ मिलता है।
10. गलगण्ड: 2 से 4 ग्राम हरड़ का चूर्ण खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीने से गलगण्ड के रोग में लाभ प्राप्त होता है।
11. स्वरभंग (आवाज का बैठ जाना): गन्ने को गर्म राख में सेंककर चूसने से स्वरभंग (गला बैठने) के रोग में लाभ होता है।
12. श्वास: 3 से 6 ग्राम गुड़ को बराबर मात्रा में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सेवन करने से श्वास में लाभ प्राप्त होता है।
13. स्तनों में दूध की वृद्धि: ईख की 5-10 ग्राम जड़ को पीसकर कांजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ता है।
14. रक्तातिसार (खूनी दस्त): गन्ने का रस और अनार का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।
15. अग्निमान्द्य (अपच): गुड़ के साथ थोड़ा सा जीरा मिलाकर सेवन करने से अग्निमान्द्य, शीत और वात रोगों में लाभ मिलता है।
16. अश्मरी (पथरी):
अश्मरी (पथरी) को निकलने के बाद रोगी को गर्म पानी में बैठा दें और मूत्रवृद्धि के लिए गुड़ को दूध में मिलाकर कुछ गर्म पिला दें।
गन्ने को चूसते रहने से पथरी चूर-चूर होकर निकल जाती है। गन्ने का रस भी लाभदायक है।
17. वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द): 11 ग्राम गुड़ और बुझा हुआ चूना 500 मिलीग्राम दोनों को एकसाथ पीसकर 2 गोलियां बना लें, पहले एक गोली गर्म पानी से दें। अगर गुर्दे का दर्द शांत न हो तो दूसरी गोली दें।
18. प्रदर रोग:
गुड़ की खाली बोरी जिसमें 2-3 साल तक गुड़ भरा रहा हो, उसे लेकर जला डाले और उसकी राख को छानकर रख लें। इस राख को रोजाना 3 ग्राम सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्तप्रदर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
गन्ने का रस पीने से पित्तज प्रदर मिट जाता है।
19. वीर्यवृद्धि (धातु को बढ़ाने वाला): गुड़ को आंवलों के 2-4 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि होती है तथा थकान, रक्तपित्त (खूनी पित्त), जलन, दर्द और मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) आदि रोग नष्ट होते हैं।
20. कनखजूरा के काटने पर: कनखजूरा आदि जन्तुओं के काटने या चिपक जाने पर गुड़ को जलाकर लगाने से लाभ होता है।
21. विभिन्न रोगों में: 5 ग्राम गुड़ के साथ, 5 ग्राम अदरक या सोंठ या पीपल अथवा हरड़ इनमें से किसी भी एक चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से सूजन, प्रतिश्याय (जुकाम), गले के रोग, मुंह के रोग, खांसी, श्वास, अरुचि, पीनस (नजला), जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार में), बवासीर, संग्रहणी आदि रोग तथा कफवात जैसे दूसरे रोग भी दूर हो जाते हैं।
22. दाह (जलन): गुड़ को पानी में मिलाकर 25 बार कपड़े में छानकर पीने से दाह (जलन) शांत होती है। बुखार की गर्मी की शान्ति के लिए इसे पिलाया जाता है।
23. कंटक शूल (नुकीली चीजों के पैरों में गड़ जाने का दर्द): कांटा, पत्थर कांच आदि के पैरों में गड़ जाने पर गुड़ को आग पर रखकर गर्म-गर्म चिपका देने पर लाभ प्राप्त होता है।
24. नलवात पर: गुड़ को ताजे गाय के दूध में इतना मिलायें कि वह मीठा हो जाए और फिर खडे़-खड़े ही इसको पी लें। इसके बाद 3 घंटे बाद तक बैठना नहीं चाहिए। उसी समय लाभ मिलता है।
25. मुंह के छाले, आंखों की दृष्टि और बुखार में:
मिश्री के टुकड़े के साथ एक छोटा सा कत्थे का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह के छाले आदि में लाभ प्राप्त होता है।
मिश्री को पानी में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों की सफाई होती है तथा दृष्टिमान्द्य (आंखों की रोशनी कम होने का रोग) दूर होता है।
मिश्री और घी मिले हुए दूध को पीने से ज्वर का वेग (बुखार) कम हो जाता है।
26. नकसीर (नाक से खून आना): गन्ने के रस की नस्य (नाक में डालने) देने से नकसीर में लाभ होता है।
27. कफ: पुराने गुड़ को अदरक के रस के साथ सेवन करने से कफ दूर होता है।
28. कब्ज: गन्ने के रस के साथ जौ की बाली पीसकर पीने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) दूर होती है।
29. अफारा (पेट में गैस का होना): गन्ने के रस को पकाकर, ठण्डाकर पीने से अफारा का रोग मिटता है।
30. प्रसूता स्त्री के रोग: पुराना गुड़ प्रसूत सम्बन्धी रोगों को दूर करता है।
31. पित्त की गर्मी: गन्ने के रस में शहद मिलाकर पीने से पित्त से उत्पन्न गर्मी दूर होती है।
32. शरीर में आई कठोरता: भोजन के बीच में गुड़ का सेवन करने से शरीर में जड़ता आती है।
33. हृदय विकार: गुड़ की पपड़ी या गुड़ की बनी चीजें खाने से दिल मजबूत होता है।
34. अपच: भोजन के बाद गुड़ खाने से भोजन अच्छी तरह पचता है। 1 साल पुराना गुड़ नये गुड़ की तुलना में ज्यादा लाभकारी होता है।
35. वात रोग: पुराने गुड़ का सेवन हरड़ के साथ करने से पित्त नष्ट होता है और सोंठ के साथ करने से समस्त वात संबन्धी विकार दूर होते हैं।
36. आंखों की बीमारी: गर्मी के मौसम में गन्ने का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
37. कुकर खांसी: 60 मिलीलीटर कच्ची मूली का रस गन्ने के रस में मिलाकर दिन में 2 बार पिलाने से कुकर खांसी में लाभ मिलता है।
38. सूखी खांसी:
1 गिलास गन्ने का रस रोजाना 2 बार पीने से सूखी खांसी में लाभ मिलता है।
गन्ने का रस पीने से सूखी खांसी में लाभ मिलता है और सीने की घरघराहट दूर हो जाती है।
39. वमन (उल्टी):
अगर गर्मी के कारण उल्टी हो रही हो तो 1 गिलास गन्ने के रस में 2 चम्मच असली शहद को मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर के बाद पिलाने से रोगी को आराम आ जाता है।
गन्ने के रस को ठण्डा करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
40. अतिसार (दस्त):
गन्ने के रस में अनार के रस को मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
गन्ने का रस और अनार के रस मिलाकर लेने से खूनी अतिसार में लाभ मिलता है।
41. खूनी अतिसार: गन्ने के रस में अनार के रस को मिलाकर पीने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
42. अम्लपित्त: गन्ने के रस को थोड़ा गर्म करके थोड़ा नींबू और अदरक का रस मिलाकर पीने से अफारा (गैस), बदहजमी की बीमारी दूर हो जाती है।
43. पेट के कीड़े: गन्ने के सिरके में 25 ग्राम कच्चे चने रात को भिगोकर सुबह छानकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
44. नाखूनों का जख्म: पिसी हल्दी का चूर्ण गन्ने के गुड़ के साथ मिलाकर आग पर गर्म करके नाखूनों के जख्म पर बांधने से नाखून का जख्म जल्द ठीक होता है।
45. पीलिया का रोग:
गन्ने का रस पीना इस रोग की प्रमुख प्राकृतिक औशधि है। जब गन्ने का मौसम न हो तो चीनी का शर्बत नींबू डालकर पीयें।
1 गिलास गन्ने के रस में दो-चार चम्मच ताजे आंवले का रस 2-3 बार रोज पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गन्ने के टुकड़े करके रात के समय घर की छत पर ओस में रख दें और सुबह मंजन के बाद उन्हें चूसकर रस का सेवन करें। 4 दिन में ही कामला (पीलिया) के रोग में बहुत अधिक लाभ होगा।
गन्ने के शुद्ध ताजे रस के साथ जौ के सत्तू का सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग में लाभ मिलता है।
अमलतास का गूदा अल्पमात्रा में लेकर उसे गन्ने के रस के साथ 2-3 बार रोज सेवन करें।
गन्ने का रस, अनार का रस, आंवले का रस और शहद एकसाथ सेवन करने से पीलिया दूर हो जाता है और खून भी बढ़ता है।
जौ का सत्तू (जौ को रेत में भूनकर और पीसकर बनाया जाता है) खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीयें। एक सप्ताह में पीलिया ठीक हो जाएगा। सुबह गन्ना भी चूसें। गन्ने का रस दिन में कई बार पीयें। तरल पदार्थ अधिक लें।
46. तुन्डिका शोथ (टांसिल): गन्ने के रस को गर्म करके उसके अन्दर थोड़ा सा दूध मिलाकर पीने से टांसिल की सूजन दूर हो जाती है।
47. कण्ठमाला: गन्ने के रस में हरड़ का चूर्ण मिलाकर खाने से कण्ठमाला (गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।
48. खून की कमी: गन्ने के रस में 5 ग्राम आंवले का रस और 5 ग्राम शहद मिलाकर पीने से खून की कमी दूर हो जाती है।
49. शरीर में ताकत बढ़ाना: गन्ना का रस रोजाना पीने से शरीर में खून बढ़ता है और खून बढ़ने से शरीर में ताकत आती है।
गन्ने का परिचय-
आहार के 6 रसों में मधुर रस का विशेष महत्व है। गुड़, चीनी, शर्करा आदि मधुर (मीठे) पदार्थ गन्ने के रस से बनते हैं। गन्ने का मूल जन्म स्थान भारत है। हमारे देश में यह पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दक्षिण भारत आदि प्रदेशों में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। संसार के अन्य देशों में जावा, क्यूबा, मारीशस, वेस्टइण्डीज, पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में बहुत अधिक मात्रा में गन्ने का उत्पादन किया जाता है। 1 साल में गन्ने की बुवाई तीन बार जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। गन्ने को ईख या साठा भी कहते हैं।
वात एवं पित्त से जिनका वीर्य दूषित हो गया हो उनके लिए गन्ने का रस लाभप्रद है। गन्ने का रस पेशाब के अवरोध को खत्म करता है। यह गले के लिए भी हितकारी है। गन्ना शर्करा की तरह मधुर (मीठा) होता है। यह पुष्टिबल (ताकत) देने वाला और तृप्तदायक (प्यास) बुझाने वाला है।अम्लपित्त, थकान, मूत्रकृच्छ, भ्रम, जलन, प्यास और दुर्बलता में गन्ना का रस लाभप्रद है। पीलिया रोग में गन्ना बहुत ही लाभकारी होता है। पीलिया से पीड़ित रोगी को गन्ने को चूसकर सेवन करना चाहिए। इससे पेशाब खुलकर आता है और पीलिया में शीघ्र ही आराम मिलता है। गन्ने का रस चूसने से थकान दूर होती है। इसका रस स्त्रियों के स्तनों में दूध की वृद्धि करता है। यह शरीर को शक्तिशाली और बुद्धिमान बनाता है और वीर्य की वृद्धि करता है। जिन्हें थोड़ा सा ही परिश्रम करने से थकान हो जाती है। उनके लिए गन्ने का रस बहुत ही लाभकारी होता है। शरीर के किसी भी हिस्से में होने वाली जलन के लिए गन्ना लाभकारी होता है।
गन्ने का रस भोजन से पहले सेवन करने से पित्त का नाश होता है। यह बाद में खाने से वायु (गैस) तथा मन्दाग्नि (भूख) करता है। गन्ने का कोई भी हिस्सा व्यर्थ नहीं होता है। इसके जड़ के टुकड़े पशुओं को खिलाएं जाते हैं। सभी प्रकार के गन्ने का रस-पित्त को मिटाने वाला, बलप्रद, सेक्स शक्ति को बढ़ाने वाला, कफ को बढ़ाने वाला, रस तथा पाक में मीठा, चिकना, भारी, मूत्रवर्धक और शीतल है। कच्चा गन्ना कफ, भेद तथा प्रमेह उत्पन्न करता है। मध्यम गन्ना वायुनाशक, मधुर और पित्तनाशक है।
हानिकारक : ईख मधुर, ठण्डा तथा चिकना होता है। अत: मधुमेह, बुखार, सर्दी, मन्दाग्नि, त्वचा रोग और कृमि रोगों में छोटे बच्चों के लिए हितकारी नहीं है। इसके अलावा जिन लोगों को जुकाम, श्वास और खांसी की स्थायी तकलीफ बनी रहती है तथा जो कफ प्रकृति वाले व्यक्ति हो तो उन्हें गन्ने का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. पेट दर्द:
5 किलो गन्ने के रस को चिकनी मिट्टी के बर्तन में भरकर उसके मुंह को कपड़े में मिट्टी भरकर बंद कर देते हैं। 1 सप्ताह बाद इसे खोलकर रस को छानकर रख लें। फिर 1 महीने में इस रस में 3 ग्राम कालानमक मिलाकर मिश्रण बना लें। इसे 10 मिलीलीटर की मात्रा में गुनगुना करके पिलाने से पेट का दर्द शीघ्र ही दूर हो जाता है।
गुड़ के साथ अजवायन चूर्ण 2-4 ग्राम मिलाकर सेवन करने से तथा पथ्यपूर्वक रहने से 7 दिनों में रक्तज विकार विशेषकर पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
2. अरुचि (भोजन की इच्छा) न होना: गन्ने के रस को आग या धूप में हल्का गर्म करके शीशी या चीनी मिट्टी के बर्तन के अन्दर भरकर रखें। इस रस का 7 दिनों के बाद सेवन करने से अरुचि नष्ट हो जाती है और भोजन पचने की क्रिया भी तेज हो जाती है। इस रस से कुल्ला करने से गला साफ हो जाता है। इस रस को 10 से 20 ग्राम तक ही सेवन करना चाहिए।
3. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना):
गन्ने के ताजे रस को पीने से पेशाब खुलकर आता है एवं मूत्रसंबन्धी समस्त रोग दूर होते हैं।
40 से 60 ग्राम गन्ने के जड़ का काढ़ा रोगी को पिलाने से पेशाब की जलन समाप्त हो जाती है।
गन्ने के रस को पकाने के बाद जब रस आधा रह जाए तो ठण्डा होने पर उसमें चौथाई शहद मिलाकर मिट्टी के बर्तन में रख देते हैं या तो गन्ने का रस 120 ग्राम, गुड़ 10 ग्राम और शहद 20 ग्राम को एक साथ मिलाकर बर्तन में 2 महीने तक रखकर सिरका बना लेते हैं। इस सिरके को 10 से 20 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ मिलाकर सेवन करने से बुखार की जलन और मूत्रकृच्छ (पेशाब की जलन) के रोग में लाभ होता है।
4. कास (खांसी): 1 किलो गन्ने के ताजे रस में, 250 ग्राम ताजा शुद्ध घी मिलाकर पकाते रहें जब घी की मात्रा शेष रह जाए तब 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में बहुत लाभ होता है।
5. मन्थर ज्वर: गन्ने के 10 ग्राम रस में 30 ग्राम पानी मिलाकर हल्के हाथों से शरीर पर लगाने से चेचक, मसूरिका तथा मन्थर ज्वर दूर हो जाता है।
6. प्रतिश्याय (नजला-जुकाम): 10 ग्राम गुड़, 40 ग्राम दही, 3 ग्राम मिर्च का चूर्ण, तीनों को मिलाकर सुबह 3 दिन तक लेने से बिगड़ा हुआ सूखा जुकाम, नाक और मुंह से दुर्गन्ध आना, गला पक जाना, कास श्वासयुक्त प्रतिश्याय रोग नष्ट हो जाता है।
7. शक्तिवर्धक (ताकत को बढ़ाने वाला): गन्ना भोजन पचाता है और भरपूर शक्ति भी प्रदान करता है। यह शरीर को मोटा करता है तथा पेट की गर्मी तथा सीने की जलन को दूर करती है।
8. हिक्का (हिचकी):
थोडे़ से गुड़ को पानी में घोलकर और उसमें थोड़ी सी सोंठ को घिसकर रोगी के नाक के नथुने में डालने से हिक्का व सिर दर्द का रोग मिट जाता है।
केवल गन्ने के रस का सेवन 10-20 ग्राम की मात्रा में करने से हिक्का के रोग में लाभ प्राप्त होता है।
9. सिरदर्द: 10 ग्राम गुड़ और 6 ग्राम तिल को दूध के साथ पीसकर इसमें 6 ग्राम घी मिलाकर गर्म करके सेवन करने से सिर के दर्द में लाभ मिलता है।
10. गलगण्ड: 2 से 4 ग्राम हरड़ का चूर्ण खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीने से गलगण्ड के रोग में लाभ प्राप्त होता है।
11. स्वरभंग (आवाज का बैठ जाना): गन्ने को गर्म राख में सेंककर चूसने से स्वरभंग (गला बैठने) के रोग में लाभ होता है।
12. श्वास: 3 से 6 ग्राम गुड़ को बराबर मात्रा में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सेवन करने से श्वास में लाभ प्राप्त होता है।
13. स्तनों में दूध की वृद्धि: ईख की 5-10 ग्राम जड़ को पीसकर कांजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ता है।
14. रक्तातिसार (खूनी दस्त): गन्ने का रस और अनार का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।
15. अग्निमान्द्य (अपच): गुड़ के साथ थोड़ा सा जीरा मिलाकर सेवन करने से अग्निमान्द्य, शीत और वात रोगों में लाभ मिलता है।
16. अश्मरी (पथरी):
अश्मरी (पथरी) को निकलने के बाद रोगी को गर्म पानी में बैठा दें और मूत्रवृद्धि के लिए गुड़ को दूध में मिलाकर कुछ गर्म पिला दें।
गन्ने को चूसते रहने से पथरी चूर-चूर होकर निकल जाती है। गन्ने का रस भी लाभदायक है।
17. वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द): 11 ग्राम गुड़ और बुझा हुआ चूना 500 मिलीग्राम दोनों को एकसाथ पीसकर 2 गोलियां बना लें, पहले एक गोली गर्म पानी से दें। अगर गुर्दे का दर्द शांत न हो तो दूसरी गोली दें।
18. प्रदर रोग:
गुड़ की खाली बोरी जिसमें 2-3 साल तक गुड़ भरा रहा हो, उसे लेकर जला डाले और उसकी राख को छानकर रख लें। इस राख को रोजाना 3 ग्राम सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्तप्रदर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
गन्ने का रस पीने से पित्तज प्रदर मिट जाता है।
19. वीर्यवृद्धि (धातु को बढ़ाने वाला): गुड़ को आंवलों के 2-4 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि होती है तथा थकान, रक्तपित्त (खूनी पित्त), जलन, दर्द और मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) आदि रोग नष्ट होते हैं।
20. कनखजूरा के काटने पर: कनखजूरा आदि जन्तुओं के काटने या चिपक जाने पर गुड़ को जलाकर लगाने से लाभ होता है।
21. विभिन्न रोगों में: 5 ग्राम गुड़ के साथ, 5 ग्राम अदरक या सोंठ या पीपल अथवा हरड़ इनमें से किसी भी एक चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से सूजन, प्रतिश्याय (जुकाम), गले के रोग, मुंह के रोग, खांसी, श्वास, अरुचि, पीनस (नजला), जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार में), बवासीर, संग्रहणी आदि रोग तथा कफवात जैसे दूसरे रोग भी दूर हो जाते हैं।
22. दाह (जलन): गुड़ को पानी में मिलाकर 25 बार कपड़े में छानकर पीने से दाह (जलन) शांत होती है। बुखार की गर्मी की शान्ति के लिए इसे पिलाया जाता है।
23. कंटक शूल (नुकीली चीजों के पैरों में गड़ जाने का दर्द): कांटा, पत्थर कांच आदि के पैरों में गड़ जाने पर गुड़ को आग पर रखकर गर्म-गर्म चिपका देने पर लाभ प्राप्त होता है।
24. नलवात पर: गुड़ को ताजे गाय के दूध में इतना मिलायें कि वह मीठा हो जाए और फिर खडे़-खड़े ही इसको पी लें। इसके बाद 3 घंटे बाद तक बैठना नहीं चाहिए। उसी समय लाभ मिलता है।
25. मुंह के छाले, आंखों की दृष्टि और बुखार में:
मिश्री के टुकड़े के साथ एक छोटा सा कत्थे का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह के छाले आदि में लाभ प्राप्त होता है।
मिश्री को पानी में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों की सफाई होती है तथा दृष्टिमान्द्य (आंखों की रोशनी कम होने का रोग) दूर होता है।
मिश्री और घी मिले हुए दूध को पीने से ज्वर का वेग (बुखार) कम हो जाता है।
26. नकसीर (नाक से खून आना): गन्ने के रस की नस्य (नाक में डालने) देने से नकसीर में लाभ होता है।
27. कफ: पुराने गुड़ को अदरक के रस के साथ सेवन करने से कफ दूर होता है।
28. कब्ज: गन्ने के रस के साथ जौ की बाली पीसकर पीने से कोष्ठबद्धता (कब्ज) दूर होती है।
29. अफारा (पेट में गैस का होना): गन्ने के रस को पकाकर, ठण्डाकर पीने से अफारा का रोग मिटता है।
30. प्रसूता स्त्री के रोग: पुराना गुड़ प्रसूत सम्बन्धी रोगों को दूर करता है।
31. पित्त की गर्मी: गन्ने के रस में शहद मिलाकर पीने से पित्त से उत्पन्न गर्मी दूर होती है।
32. शरीर में आई कठोरता: भोजन के बीच में गुड़ का सेवन करने से शरीर में जड़ता आती है।
33. हृदय विकार: गुड़ की पपड़ी या गुड़ की बनी चीजें खाने से दिल मजबूत होता है।
34. अपच: भोजन के बाद गुड़ खाने से भोजन अच्छी तरह पचता है। 1 साल पुराना गुड़ नये गुड़ की तुलना में ज्यादा लाभकारी होता है।
35. वात रोग: पुराने गुड़ का सेवन हरड़ के साथ करने से पित्त नष्ट होता है और सोंठ के साथ करने से समस्त वात संबन्धी विकार दूर होते हैं।
36. आंखों की बीमारी: गर्मी के मौसम में गन्ने का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
37. कुकर खांसी: 60 मिलीलीटर कच्ची मूली का रस गन्ने के रस में मिलाकर दिन में 2 बार पिलाने से कुकर खांसी में लाभ मिलता है।
38. सूखी खांसी:
1 गिलास गन्ने का रस रोजाना 2 बार पीने से सूखी खांसी में लाभ मिलता है।
गन्ने का रस पीने से सूखी खांसी में लाभ मिलता है और सीने की घरघराहट दूर हो जाती है।
39. वमन (उल्टी):
अगर गर्मी के कारण उल्टी हो रही हो तो 1 गिलास गन्ने के रस में 2 चम्मच असली शहद को मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर के बाद पिलाने से रोगी को आराम आ जाता है।
गन्ने के रस को ठण्डा करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
40. अतिसार (दस्त):
गन्ने के रस में अनार के रस को मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।
गन्ने का रस और अनार के रस मिलाकर लेने से खूनी अतिसार में लाभ मिलता है।
41. खूनी अतिसार: गन्ने के रस में अनार के रस को मिलाकर पीने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
42. अम्लपित्त: गन्ने के रस को थोड़ा गर्म करके थोड़ा नींबू और अदरक का रस मिलाकर पीने से अफारा (गैस), बदहजमी की बीमारी दूर हो जाती है।
43. पेट के कीड़े: गन्ने के सिरके में 25 ग्राम कच्चे चने रात को भिगोकर सुबह छानकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
44. नाखूनों का जख्म: पिसी हल्दी का चूर्ण गन्ने के गुड़ के साथ मिलाकर आग पर गर्म करके नाखूनों के जख्म पर बांधने से नाखून का जख्म जल्द ठीक होता है।
45. पीलिया का रोग:
गन्ने का रस पीना इस रोग की प्रमुख प्राकृतिक औशधि है। जब गन्ने का मौसम न हो तो चीनी का शर्बत नींबू डालकर पीयें।
1 गिलास गन्ने के रस में दो-चार चम्मच ताजे आंवले का रस 2-3 बार रोज पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गन्ने के टुकड़े करके रात के समय घर की छत पर ओस में रख दें और सुबह मंजन के बाद उन्हें चूसकर रस का सेवन करें। 4 दिन में ही कामला (पीलिया) के रोग में बहुत अधिक लाभ होगा।
गन्ने के शुद्ध ताजे रस के साथ जौ के सत्तू का सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग में लाभ मिलता है।
अमलतास का गूदा अल्पमात्रा में लेकर उसे गन्ने के रस के साथ 2-3 बार रोज सेवन करें।
गन्ने का रस, अनार का रस, आंवले का रस और शहद एकसाथ सेवन करने से पीलिया दूर हो जाता है और खून भी बढ़ता है।
जौ का सत्तू (जौ को रेत में भूनकर और पीसकर बनाया जाता है) खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीयें। एक सप्ताह में पीलिया ठीक हो जाएगा। सुबह गन्ना भी चूसें। गन्ने का रस दिन में कई बार पीयें। तरल पदार्थ अधिक लें।
46. तुन्डिका शोथ (टांसिल): गन्ने के रस को गर्म करके उसके अन्दर थोड़ा सा दूध मिलाकर पीने से टांसिल की सूजन दूर हो जाती है।
47. कण्ठमाला: गन्ने के रस में हरड़ का चूर्ण मिलाकर खाने से कण्ठमाला (गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।
48. खून की कमी: गन्ने के रस में 5 ग्राम आंवले का रस और 5 ग्राम शहद मिलाकर पीने से खून की कमी दूर हो जाती है।
49. शरीर में ताकत बढ़ाना: गन्ना का रस रोजाना पीने से शरीर में खून बढ़ता है और खून बढ़ने से शरीर में ताकत आती है।
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