सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मानव जीवन के बीस दोष

*🍂🔺👦#मानव_जीवन_के🔺🍂*
 *💥🔥🌷#बीस_दोष💥🔥🌷*
📖 *महाभारत के अनुशासन पर्व में देवगुरु बृहृस्पति एवं धर्मराज युधिष्ठिर का संवाद आता है। धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर धर्मशास्त्रज्ञ, संयममूर्ति, देवों से पूजित, देवगुरु बृहस्पतिजी जीव के दोषों एवं उनकी गति का वर्णन करते हुए कहते हैं-*

*1.जो ब्राह्मण चारों वेदों का अध्ययन करने के बाद भी मोहवश पतित व्यक्ति का दान लेता है, वह 15 वर्ष तक गधे की योनि में रहकर 7 वर्ष तक बैल बनता है। बैल का शरीर छूटने पर 3 मास तक ब्रह्मराक्षस होता है।*

*2.जो ब्राह्मण पतित पुरुष का यज्ञ कराता है, वह मरने के बाद 15 वर्ष कीड़ा बनता है। फिर 5 वर्ष गधा, 5 वर्ष शूकर, 5 वर्ष मुर्गा, 5 वर्ष सियार और 1 वर्ष कुत्ता होता है।*

*3.धर्मराज युधिष्ठिर हाथ जोड़कर नम्रता से प्रश्न करते हैं- “हे देवगुरु बृहस्पति जी ! जो शिष्य मूर्खतावश गुरु का अपराध करता है, गुरु हित चाहते हैं फिर भी गुरु की बात को महत्त्व नहीं देता है और अपने मान-अपमान को पकड़कर, गुरु के कहने का सीधा अर्थ नहीं लेता है उसकी क्या गति होती है ?”*

*बृहस्पति जी बोलेः “इस अपराध से वह मरने के बाद कुत्ते की योनि में जाता है और भौं-भौं करता रहता है, बकवास करता है। गुरु अपने हित की बात बतायें और वह सफाई देता है तो देता रहे… रात भर भौंकता रहे, ऐसी कुत्ते की योनि उसे मिलती है। उसके बाद राक्षस एवं गधे की योनि में भटकता है, फिर प्रेत-योनि में भटकता है। इस प्रकार अनेक कष्ट भुगतने के बाद उसे मनुष्य योनि मिलती है।”*

*4.जो शिष्य मूर्खतावश गुरु की बात का अनादर करता है उसको पशु योनि मिलती है और हिंसक मनुष्यों के बाण सहने पड़ते हैं। गुरु हित की बात करें और शिष्य न सुने तो फिर वह ऐसी पाशवी नीच योनियों में जायेगा कि दुःख-पीड़ा सहेगा, मरेगा-जन्मेगा और अन्य पशुओं से, शिकारियों से शोषित होगा….*

*5.जो पुत्र अपने माता-पिता का अनादर करता है वह भी मरने के बाद पहले 10 साल तक गधे का शरीर पाता है। फिर 1 साल तक घड़ियाल की योनि में रहने के बाद मानव-योनि का अवसर पाता है।*

*6.जिस पुत्र पर माता-पिता रुष्ट हों, उसकी क्या गति होती है ? वह मरकर 10 मास तक गधे की योनि में, 14 महीने तक कुत्ते की योनि में और 7 माह तक बिलाव की योनि में भटककर फिर मनुष्य होने का अवसर पाता है।*

*7.जो व्यक्ति माता-पिता को गाली देता है, तू कहकर बुलाता है – ‘ऐ बुढ़िया ! तू चुप रह। ऐ बुड्ढे ! तू चुप रह। तू क्या जाने ?’ ऐसा व्यक्ति मरने के बाद मैना बनता है।*

*8.जो माता-पिता को मारता है वह 10 वर्ष तक कछुआ होता है। वैसे तो कछुए की आयु लंबी होती है लेकिन वह 10 वर्ष तक कछुआ रहकर मर जाता है फिर 3 वर्ष तक साही और 6 महीने तक सर्प होता है।*

*9.जो किसी राजा का सेवक होते हुए भी मोहवश राजा के शत्रुओं की सेवा करता है अथवा जो गुरु का सेवक है लेकिन गुरु की सेवा के बहाने उनकी अवहेलना करके उनके उपदेश के विपरीत काम करता है, वह मरने के बाद 10 वर्ष तक वानर, 5 वर्ष चूहा और 6 महीने तक कुत्ता होकर फिर मनुष्य-शरीर को पाता है।*

*10.दूसरों की धरोहर हड़पने वाला मनुष्य यमलोक में जाता है और क्रमशः सौ योनियों में भ्रमण करके अंत में 15 वर्ष तक कीड़ा होता है।*

*11.जो दूसरों के दोष देखता है और एक दूसरे को चिढ़ाता रहता है वह हिरण की योनि में जन्म लेता है।*

*12.दूसरों से विश्वासघात करने वाला 8 वर्ष तक मछली की योनि में भटकता है, 4 मास तक मृग बनता है, 1 वर्ष तक बकरा होने के बाद कीड़े की योनि में जन्म लेता है। इस प्रकार की नीच योनियों को भोगने के बाद उसे मनुष्य योनि मिलती है।*

*13.जो अनाज चुराता है वह मरने के बाद पहले चूहा बनता है। फिर गोदाम में से अनाज चुराते रहो और बिल में ले जाओ….। चूहे की योनि के बाद सूअर की योनि पाता है। वह सुअर जन्म लेते ही रोग से मर जाता है। फिर 5 वर्ष तक कुत्ता होने के पश्चात मनुष्य जन्म पाता है।*

*14.परस्त्रीगमन का पाप करके मनुष्य क्रमशः भेड़िया, कुत्ता, सियार, गीध, साँप, कंक (सफेद चील) और बगुला होता है।*

*15.जो भाई की स्त्री के साथ व्यभिचार करता है, वह 1 वर्ष तक कोयल की योनि में पड़ा रहता है।*

*16.जो मित्र, गुरु और राजा की पत्नी के साथ कुकर्म करता है वह 5 वर्ष तक सुअर, 10 वर्ष तक भेड़िया, 5 वर्ष तक बिलाव, 10 वर्ष तक मुर्गा, 3 महीने तक चींटी और 14 महीने तक कीड़े की योनि में रहता है। ऐसे करते-कराते फिर मनुष्य योनि में आने का वह अवसर पाता है।*

*17.जो यज्ञ, दान अथवा विवाह के शुभ वातावरण में विघ्न डालता है वह 15 वर्ष तक कीड़े की योनि में जन्म लेता है।*

*18.बड़ा भाई पिता के समान होता है। जो बड़े भाई का अनादर करता है उसे मृत्यु के बाद 1 वर्ष तक क्रौंच पक्षी की योनि में रहना पड़ता है। फिर वह चीरक की जाति का पक्षी होता है, उसके बाद मनुष्य योनि में आता है।*

*19.जो कृतघ्न है अर्थात् किसी के द्वारा की गयी भलाई या उपकार को न मानने वाला, ऐसे व्यक्ति को यमलोक में बड़ी कठोर यातनाएँ मिलती हैं। उसके पश्चात 15 वर्ष तक कीड़े की योनि में जन्मता है। फिर पशुओं के गर्भ में आकर गर्भावस्था में ही मर जाता है। इस प्रकार सौ बार गर्भ की यंत्रणा भोगकर फिर तिर्यग (पक्षी) योनि में जन्म लेता है। इन योनियों में बहुत वर्षों तक दुःख भोगने के पश्चात वह फिर कछुआ होता है।*

*20.जो मानव विश्वासपूर्वक रखी हुई किसी की धरोहर को हड़प लेता है, वह मछली की योनि में जन्म पाता है। फिर मनुष्य बनता है लेकिन उसकी आयु बहुत कम होती है। मनुष्य तो बनता है, गर्भ की पीड़ा सहता है, बचपन की मारपीट सहता है और कुछ समझने की उम्र आती है तब तक तो मर जाता है। जैसे तुम्हारी मानवीय सृष्टि में 307 के केस की कितनी सज़ा…. पहले से निर्धारित है, ऐसे ही ईश्वरीय सृष्टि का कायदा भी पहले से ही बना-बनाया है। इन कर्मजन्य, भावजन्य, विचारजन्य, संगजन्य आदि दोषों से बचने का उपाय है-सत्संग एवं भगवन्नाम-जप, जिनसे अपनी मति-गति एवं कर्म ऊँचे बन जाते हैं और ईश्वरार्पण बुद्धि से किये गये सत्कर्म नैष्कर्म सिद्धि देकर ईश्वरप्राप्ति करा देते हैं। अतः बुद्धिमान मनुष्यों को चाहिए कि वे नीच कर्मों से बचें एवं ईश्वरीय आनंद ईश्वरीय सुख को पा लें और मुक्त हो जायें। नीच कर्मवाले निगुरे व्यक्ति नीच योनियों में भटकते हैं और सत्कर्म में रत सत्संगी-सन्मार्गी सत्पद को पाते हैं।*

*जिसके जीवन में सत्संग नहीं होगा, भगवन्नाम-जप नहीं होगा, जो सावधान नहीं होगा, वह, इन 20 दोषों में से किसी-न-किसी दोष का शिकार बन जायेगा। चाहे विश्वासघाती बने, चाहे कृतघ्नी बने, चाहे विघ्न डालने वाला बने, चाहे बड़े भाई का अनादर करने वाला बने, चाहे माता-पिता का अनादर करने वाला बने…. लेकिन ईश्वर के मार्ग पर चलने से भाई, माता-पिता, कुटुम्बी कोई भी रोके तो उनकी बात की अवहेलना करने से कोई पाप नहीं लगता है। इन 20 दोषों से बचने हेतु सत्शास्त्र का पठन-मनन और सच्चे संतों का सत्संग सर्वोपरि है।*
*🌸🍂#जय_राम_जी_की🍂🌸*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...