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🌹#योगिनी_एकादशी🌹
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🌹अलकापुरी नगर के राजा कुबेर भगवान शिव के अन्यय भक्त हैे। राजा कुबेर का एक हेममाली नाम का एक यक्ष सेवक था, जो नित्य प्रतिदिन राजा के पूजा के लिए फूल लाया करता था। उस यक्ष हेममाली की पत्नी अत्यधिक रूपवान थी, एक दिन वह यक्ष मानसरोवर से पूजा हेतु फूल लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण वह फूल को वही रख अपनी पत्नी के साथ समय व्यतीत करने लगा। इधर राजा हेममाली का इंतजार करते हुए दोपहर हो गया।
🌹हेममाली के नहीं आने से राजा क्रोधित हो गये, और अपने अन्य सेवको को आदेश दिया, तुम जाकर पता लगाओं की हेममाली अभी तक फूल लेकर क्यों नहीं आया है। राजा का आदेश मान सेवक हेममाली के घर पहुचे। उन्होंने देखा हेममाली अपनी स्त्री के साथ है, सेवक वापस आकर यह संदेश राजा को दी। राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। राजा का संदेश मिलते ही वह यक्ष हेममाली डर से कापते हुए, राजा के दरबार पहुचा।
🌹राजा ने हेममाली से कहाॅ - अरे अधर्मी, तेरे कारण मेरे पूज्य देव भगवान शिव जी का अपमान हुआ है। मैं तुम्हें श्राप देता हॅू, कि तू स्त्री के वियोग में तड़प-तड़प कर मृत्युलोक में जाकर भी कोढ़ी का जीवन व्यतीत करेगा।
🌹राजा कुबेर के श्राप से वह यक्ष तत्क्षण ही स्वर्ग से गिर पृथ्वी पर आ गिरता है, और उसे कोढ़ हो जाता है। पृथ्वी पर आने के कारण उसका पत्नी से वियोग हो जाता है। स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के कारण उसे अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ते है, इस प्रकार वह यक्ष अनेक कष्टों को भोग अपने कुकर्मो को याद करते हुए हिमालय की तरफ चल पड़ता है। हिमालय की ओर चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में आ पहुचता है। वह यक्ष हेममाली ऋषि को देख प्रणाम कर उनके चरणों में गिर जाता है।
🌹हेममाली को देख ऋषि मार्कडेण्य कहते है - तूने कौन से निकृष्ट कर्म किये है, जिसके कारण तुम्हें कोढ़ जैसे भयानक रोग का कष्ट भोगना पड़ रहा है।
🌹ऋषि मार्कण्डेय के वचन सुन हेममाली कहता है - हे ऋषिवर मै राजा कुबेर का यक्ष सेवक था। मेरा नाम हेममाली है, मै प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा हेतु राजा कुबेर के लिए मानसरोवर से पुष्प लाया करता था। परन्तु एक दिन मुझे अपनी पत्नी के साथ कामासक्त सुख में फसने के कारण मुझे समय का बोध नहीं रहा, और मैं दोपहर तक राजा के पूजा के लिए पुष्प नहीं पहुचा सका। इसलिए राजा ने मुझे स्त्री वियोग और मृत्युलोक में कोढ़ी होने का श्राप दिया। इसी कारण में इस पृथ्वी लोक पर इस भयंकर कोष्ट का भोग कर रहा हूॅ, हे ऋषिवर कृपा कर आप मुझे इस भयानक रोग मुक्ति हेतु कोई उपाय बताये जिससे मेरी मुक्ति हो।
🌹ऋषि मार्कण्डेय उस हेममाली की बात सुन कहते है - मैं तुम्हारे उद्धार हेतु एक व्रत बताता हूॅ। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे सारे पाप समाप्त हो जायेंगे।
🌹ऋषि मार्कण्डेय द्वारा बताए एकादशी का हेममाली ने विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप समाप्त हो गये और वह अपने पहले के स्वरूप को पुन प्राप्त कर अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन करने लगा।
🌹योगिनी एकादशी की कथा का फल अट्टीसी सहस्त्र ब्राम्हणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके करने से सभी पाप समाप्त हो जाते है। परन्तु मनुष्यों को भी पूजा आदि धर्म के कार्य करने के समय मन में संयम सदैव रख केवल भगवान की सेवा में तत्पर होना चाहिए।
🌹🌹 !!जय श्री हरि!!🌹🌹
🌹🌹महादेव 💓🌿👣हर हर 👣🌿💓महादेव 🌹🌹
🌹#योगिनी_एकादशी🌹
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🌹अलकापुरी नगर के राजा कुबेर भगवान शिव के अन्यय भक्त हैे। राजा कुबेर का एक हेममाली नाम का एक यक्ष सेवक था, जो नित्य प्रतिदिन राजा के पूजा के लिए फूल लाया करता था। उस यक्ष हेममाली की पत्नी अत्यधिक रूपवान थी, एक दिन वह यक्ष मानसरोवर से पूजा हेतु फूल लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण वह फूल को वही रख अपनी पत्नी के साथ समय व्यतीत करने लगा। इधर राजा हेममाली का इंतजार करते हुए दोपहर हो गया।
🌹हेममाली के नहीं आने से राजा क्रोधित हो गये, और अपने अन्य सेवको को आदेश दिया, तुम जाकर पता लगाओं की हेममाली अभी तक फूल लेकर क्यों नहीं आया है। राजा का आदेश मान सेवक हेममाली के घर पहुचे। उन्होंने देखा हेममाली अपनी स्त्री के साथ है, सेवक वापस आकर यह संदेश राजा को दी। राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। राजा का संदेश मिलते ही वह यक्ष हेममाली डर से कापते हुए, राजा के दरबार पहुचा।
🌹राजा ने हेममाली से कहाॅ - अरे अधर्मी, तेरे कारण मेरे पूज्य देव भगवान शिव जी का अपमान हुआ है। मैं तुम्हें श्राप देता हॅू, कि तू स्त्री के वियोग में तड़प-तड़प कर मृत्युलोक में जाकर भी कोढ़ी का जीवन व्यतीत करेगा।
🌹राजा कुबेर के श्राप से वह यक्ष तत्क्षण ही स्वर्ग से गिर पृथ्वी पर आ गिरता है, और उसे कोढ़ हो जाता है। पृथ्वी पर आने के कारण उसका पत्नी से वियोग हो जाता है। स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के कारण उसे अनेक प्रकार के कष्ट सहने पड़ते है, इस प्रकार वह यक्ष अनेक कष्टों को भोग अपने कुकर्मो को याद करते हुए हिमालय की तरफ चल पड़ता है। हिमालय की ओर चलते-चलते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में आ पहुचता है। वह यक्ष हेममाली ऋषि को देख प्रणाम कर उनके चरणों में गिर जाता है।
🌹हेममाली को देख ऋषि मार्कडेण्य कहते है - तूने कौन से निकृष्ट कर्म किये है, जिसके कारण तुम्हें कोढ़ जैसे भयानक रोग का कष्ट भोगना पड़ रहा है।
🌹ऋषि मार्कण्डेय के वचन सुन हेममाली कहता है - हे ऋषिवर मै राजा कुबेर का यक्ष सेवक था। मेरा नाम हेममाली है, मै प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा हेतु राजा कुबेर के लिए मानसरोवर से पुष्प लाया करता था। परन्तु एक दिन मुझे अपनी पत्नी के साथ कामासक्त सुख में फसने के कारण मुझे समय का बोध नहीं रहा, और मैं दोपहर तक राजा के पूजा के लिए पुष्प नहीं पहुचा सका। इसलिए राजा ने मुझे स्त्री वियोग और मृत्युलोक में कोढ़ी होने का श्राप दिया। इसी कारण में इस पृथ्वी लोक पर इस भयंकर कोष्ट का भोग कर रहा हूॅ, हे ऋषिवर कृपा कर आप मुझे इस भयानक रोग मुक्ति हेतु कोई उपाय बताये जिससे मेरी मुक्ति हो।
🌹ऋषि मार्कण्डेय उस हेममाली की बात सुन कहते है - मैं तुम्हारे उद्धार हेतु एक व्रत बताता हूॅ। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे सारे पाप समाप्त हो जायेंगे।
🌹ऋषि मार्कण्डेय द्वारा बताए एकादशी का हेममाली ने विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप समाप्त हो गये और वह अपने पहले के स्वरूप को पुन प्राप्त कर अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक जीवन यापन करने लगा।
🌹योगिनी एकादशी की कथा का फल अट्टीसी सहस्त्र ब्राम्हणों को भोजन कराने के बराबर है। इसके करने से सभी पाप समाप्त हो जाते है। परन्तु मनुष्यों को भी पूजा आदि धर्म के कार्य करने के समय मन में संयम सदैव रख केवल भगवान की सेवा में तत्पर होना चाहिए।
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