अर्चाविग्रह की पूजा विधि

अर्चाविग्रह की पूजा विधि


श्रीमद् भागवत (*स्कन्ध ११ अध्याय २७*) में भगवान् कृष्ण, उद्धव के पूछने पर अर्चविग्रह की नियत तथा विशिष्ट विधि का वर्णन इस प्रकार करते हैं :

भगवान् के अर्चविग्रह रूप का आठ प्रकारों में अर्थात “पत्थर, काष्ठ, धातु, मिटटी, चित्र, बालू, मन या रत्न” में प्रकट होना बतलाया गया है | समस्त जीवों के शरण रूप भगवान् का अर्चविग्रह दो प्रकारों से स्थापित किया जा सकता है, अस्थायी अथवा स्थायी रूप से | किन्तु हे उद्धव, स्थायी अर्चविग्रह का आवाहन हो चुकने पर उसका विसर्जन नही किया जा सकता | जो अर्चविग्रह अस्थायी रूप से स्थापित किया गया हो उसका आवाहन और विसर्जन विकल्प रूप में किया जा सकता है किन्तु ये दोनों अनुष्ठान तब अवश्य करने चाहिए जब अर्चविग्रह को जमीन पर अंकित किया गया हो | अर्चविग्रह को जल से स्नान कराना चाहिए यदि वह मिटटी या काष्ठ से न बनाया गया हो | ऐसा होने पर जल के बिना ही ठीक से सफाई करनी चाहिए |

हे उद्धव! मनुष्य को चाहिए कि उत्तम से उत्तम साज Prabhupada_Installationसामग्री भेंट करके मेरे अर्चविग्रह रूप में मेरी पूजा करे | किन्तु भौतिक इच्छा से पूर्णतया मुक्त भक्त मेरी पूजा, जो भी वस्तु मिल सके उसी से करे, यहाँ तक कि वह अपने हृदय के भीतर मानसिक साज सामग्री भी से मेरी पूजा कर सकता है |

हे उद्धव! मदिर के अर्चविग्रह की पूजा में स्नान कराना तथा सजाना सर्वाधिक मनोहारी भेंट हैं | तिल तथा जौ को घी में सिक्त करके जो आहुतियाँ दी जाती हैं, उन्हें यज्ञ की अग्नि भेंट से अधिक अच्छा माना जाता है | वस्तुतः मेरे भक्त द्वारा श्रद्धापूर्वक मुझे जो कुछ भी अर्पित किया जाता है, भले ही वह थोडा सा जल ही क्यों न हो, मुझे अत्यन्त प्रिय है | बड़ी से बड़ी  ऐश्वर्यपूर्ण भेंट भी मुझे तुष्ट नही कर पाती यदि वे अभक्तों द्वारा प्रदान की जाएँ | किन्तु मैं अपने प्रेमी भक्तों द्वारा प्रदत्त तुच्छ भेंट से भी प्रसन्न हो जाता हूँ और जब सुगंधित तेल, अगरु, फूल तथा स्वादिष्ट भोजन की उत्तम भेंट प्रेमपूर्वक चढाई जाती है, तो मैं निश्चय ही सर्वाधिक प्रसन्न होता हूँ |

हे उद्धव! मनुष्य को चाहिए कि पहले वह अपने दांत साफ़ कर, स्नान करे अपना शरीर शुद्ध बनाये | सारी सामग्री एकत्र करके पूजक को चाहिए कि अपना आसन कुशो को पूर्वाभिमुख करके बनाये अन्यथा यदि अर्चविग्रह किसी स्थान पर स्थिर है तो अर्चविग्रह के सामने मुख करके बैठे |  भक्त को चाहिए कि अपने शरीर के विभिन्न अंगों का स्पर्श करके तथा मंत्रोच्चार करते हुए उन्हें पवित्र बनाये | उसे मेरे अर्चविग्रह रूप के साथ भी ऐसा ही करना चाहिए | अर्चविग्रह पर चढ़े पुराने फूलों तथा अन्य भेंटों को हटाना चाहिए |

हे उद्धव! पूजा करने वाले को चाहिए की जल से भरे तीन पात्रो को शुद्ध करे | भगवान् के चरण पखारने के लिए जल वाले पात्र को हृदयाय नमःमन्त्र से पवित्र करे; अर्ध्य के लिए जल-पात्र को शिर से स्वाहा मन्त्र से तथा भगवान् का मुख धोने वाले जल के पात्र को शिखाये वषट मन्त्र का उच्चारण करके पवित्र बनाये | पूजा करने वाले को चाहिए कि वह मेरे आसन को आठ पंखड़ियों वाले कमल के रूप में मान ले | वह चरण पखारने का जल, मुख साफ़ करने का जल, अर्ध्य तथा पूजा की अन्य वस्तुएँ मुझे अर्पित करे | इस विधि से उसे भौतिक भोग तथा मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है |

हे उद्धव! मनुष्य को चाहिए कि भगवान् के सुदर्शन चक्र, पाच्चजन्य शंख, गदा, तलवार, धनुष, बाण तथा हल, मूसल, कौस्तुभ मणि, फूलमाला तथा उनके वक्षस्थल के केश-गुच्छ श्रीवत्स की पूजा इसी क्रम से करे | नन्द, सुनन्द, गरुड, प्रचण्ड तथा चण्ड, महाबल तथा बल एवं कुमुद तथा कुमुदेक्षण नामक भगवान् के पार्षदों की पूजा करे |

हे उद्धव! पूजा करने वाले को अपनी आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार प्रतिदिन अर्चविग्रह को स्नान करने के लिए चन्दन लेप, उशीर, कपूर, कुंकुम तथा अगरु से सुंगधित किये गए जल का प्रयोग करे | मेरे भक्त को चाहिए कि वह मुझे वस्त्रों, जनेऊ, विविध आभूषणों, तिलक तथा मालाओं से अच्छी तथा अलंकृत करे और मेरे शरीर पर प्रेमपूर्वक सुगन्धित तेल का लेप करे | अपने साधनों के ही अन्तर्गत भक्त मुझे गुड, खीर, घी, शष्कुली (चावल के आटे, चीनी तथा तिल से बनी व घी में तली गई पूड़ी), आपूप (मीठा व्यंजन), मोदक, संयाव (आटा,घी तथा दूध से बनी आयताकार रोटी जिस पर चीनी व मसाला चुपड़ा हो), दही, शाक-शोरबा तथा अन्य स्वादिष्ट भोजन भेंट करने के लिए व्यवस्था करे |   

हे उद्धव! विशेष अवसरों पर और यदि संभव हो तो नित्यप्रति अर्चविग्रह को उबटन लगाया जाय, दर्पण दिखाया जाय, दांत साफ़ करने के लिए नीम की दातून दी जाय, पंचामृत से नहलाया जाय, विविध कोटि के व्यंजन भेंट किये जाए तथा गायन व नृत्य से मनोरंजन किया जाय | (श्रील श्रीधर स्वामी के अनुसार विशेष अर्चापूजन के लिए एकादशी की तिथि सर्वोपयुक्त है ) |

हे उद्धव! बुद्धिमान भक्त को चाहिए कि वह भगवान् के उस रूप का ध्यान करे जिसका रंग पिघले सोने जैसा, जिसकी चारों भुजायें शंख, चक्र, गदा तथा कमल-फूल से शोभायमान हैं, जो सदैव शान्त रहता है और कमल के तन्तुओ जैसा रंगीन वस्त्र पहने रहता है | उनका मुकुट, कंगन, करघनी तथा बाजूबन्द खूब चमकते रहते हैं | उनके वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह, चमकीली कौस्तुभ मणि तथा जंगली फूलों की माला रहती है |  भगवान् के अर्चविग्रह का मूल मन्त्र मन ही मन जपे और भगवान् नारायण के रूप में परम सत्य का स्मरण करे | भोजन के बाद अर्चविग्रह को मुख धोने के लिए जल दे तथा सुगन्धित पान का बीड़ा दे |

हे उद्धव! भक्त दूसरों के साथ गाते हुए, जोर से कीर्तन करते तथा नाचते हुए, मेरी दिव्य लीलाओं का अभिनय करते हुए तथा मेरे विषय में कथाएँ सुनते व सुनाते हुए कुछ समय के लिए आनंदमग्न हो जाए | भक्त को चाहिए कि पुराणों व शास्त्रों के अनुसार स्तुतियों तथा प्रार्थनाओं से अपनी श्रद्धा अर्पित करे|“हे प्रभु, मुझ पर दयालु हों” ऐसी प्रार्थना करते हुए प्रथ्वी पर दण्ड की तरह गिर कर नमस्कार करे |

हे उद्धव!  अर्चविग्रह के चरणों पर अपना सिर रख कर और तब भगवान् के समक्ष हाथ जोड़े खड़े होकर उसे प्रार्थना करनी चाहिए “हे प्रभु, मैं आपकी शरण में हूँ, कृपा मेरी रक्षा करें | मैं इस भवसागर से अत्यन्त भयभीत हूँ क्योंकि मैं मृत्यु के मुख पर खड़ा हूँ” | इस प्रकार प्रार्थना करता हुआ भक्त मेरे द्वारा प्रदत्त उचिछ्ष्ठ को आदर सहित अपने सिर पर रखे |

हे उद्धव! भक्त को चाहिए कि सुन्दर बगीचों सहित मंदिर बनवाकर मेरे अर्चविग्रह को ठीक से स्थापित करे | जो व्यक्ति अर्चविग्रह पर भूमि, बाजार, शहर तथा गांव की भेंट चढ़ाता है, जिससे अर्चविग्रह की नियमित तथा विशेष त्योहारों पर पूजा निरन्तर चलती रहे, वह मेरे ही तुल्य ऐश्वर्य प्राप्त करता है | अर्चविग्रह की स्थापना करने से मनुष्य सारी प्रथ्वी का राजा बन जाता है; भगवान् के लिए मंदिर बनवाने से तीनों लोकों का शासक बन जाता है; अर्चविग्रह की पूजा व सेवा करने से वह ब्रह्मलोक को जाता है और इन तीनों कार्यों को करने से वह मुझ जैसा ही दिव्य स्वरुप प्राप्त करता है | किन्तु जो व्यक्ति कर्मफल पर विचार किये बिना, भक्ति में लगा रहता है, वह मुझे प्राप्त करता है | इस तरह जो कोई भी मेरे द्वारा वर्णित विधि के अनुसार मेरी पूजा करता है, वह अन्ततः मेरी शुद्ध भक्ति प्राप्त करता है |

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