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जनवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पीपल पूजन से पहले रखें सावधानी

पीपल पूजन से पहले रखें सावधानी, अनजाने में पाप के भागीदार तो नहीं बन रहे? हमारे शास्त्रों के अनुसार कल्पवृक्ष के नीचे खड़े होकर जिस वस्तु की भी कामना की जाती है वह अवश्य पूरी हो जाती है। कलियुग में लोगों के लिए कल्पवृक्ष तो सुलभ नहीं है परंतु सर्वदेवमय वृक्ष पीपल (अश्वत्थ) पर सच्चे भाव से संकल्प लेकर नियमित रूप से जल चढ़ाने, पूजा एवं अर्चना करने से मनुष्य वह सब कुछ सरलता से पा सकता है जिसे पाने की उसकी इच्छा हो। इसीलिए पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि ‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:’ अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं। पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है। भारतीय जन जीवन ...

हिदु धर्म और पीपल

!!! हिदु धर्म और पीपल !!! पीपल को वृक्षों का राजा कहते है। इसकी वंदना में एक श्लोक देखिए:- मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच । पत्रे-पत्रेका सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमोस्तुते ।। हिदु धर्म में पीपल के पेड़ का बहुत महत्व माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं और हमारे पितरों का वास भी माना गया है। पीपल वस्तुत: भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप ही है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा है की वृक्षों में मैं पीपल हूँ। पुराणो में उल्लेखित है कि, मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।। अर्थात्, इसके मूल में भगवान ब्रह्म, मध्य में भगवान श्री विष्णु तथा अग्रभाग में भगवान शिव का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार पीपल की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से समस्त देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं। कहते है पीपल से बड़ा मित्र कोई भी नहीं है, जब आपके सभी रास्ते बंद हो जाएँ, आप चारो ओर से अपने को परेशानियों से घिरा हुआ समझे, आपकी परछांई भी आपका साथ ना दे, हर काम बिगड़ रहे हो तो, आप पीपल के शरण में चले जाएँ, ...

नरक

गरुड़ पुराण में वर्णन है 36 नर्क का, जानिए किसमें कैसे दी जाती है सजा हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी अनेक कथाओं में स्वर्ग और नर्क के बारे में बताया गया है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग वह स्थान होता है जहां देवता रहते हैं और अच्छे कर्म करने वाले इंसान की आत्मा को भी वहां स्थान मिलता है, इसके विपरीत बुरे काम करने वाले लोगों को नर्क भेजा जाता है, जहां उन्हें सजा के तौर पर गर्म तेल में तला जाता है और अंगारों पर सुलाया जाता है। यह भी पढ़े- गरुड़ पुराण- इन 5 कामों से कम होती है उम्र हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में 36 तरह के मुख्य नर्कों का वर्णन किया गया है। अलग-अलग कर्मों के लिए इन नर्कों में सजा का प्रावधान भी माना गया है। गरूड़ पुराण, अग्रिपुराण, कठोपनिषद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। आज हम आपको उन नर्कों के बारे में संक्षिप्त रूप से बता रहे हैं- 1. महावीचि- यह नर्क पूरी तरह रक्त यानी खून से भरा है और इसमें लोहे के बड़े-बड़े कांटे हैं। जो लोग गाय की हत्या करते हैं, उन्हें इस नर्क में यातना भुगतनी पड़ती है। 2. कुंभीपाक- इस नर्क की जमीन गरम बालू और अंगारों से भरी है। जो ...

माघ स्नान का महत्व

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यज्ञ - पात्र

यज्ञ-पात्र (श्री पं. दौलत राम जी गौड़, वेदाचार्य, बनारस) श्रौत-स्मार्त यज्ञों में विविध प्रयोजनों के लिये विभिन्न यज्ञ पात्रों की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार कुँड मंडप आदि को विधि पूर्वक निर्धारित माप के अनुसार बनाया जाता है, उसी प्रकार इन यज्ञ पात्रों को निश्चित वृक्षों के काष्ठ से, निर्धारित माप एवं आकार का बनाया जाता है। विधि पूर्वक बने यज्ञ पात्रों का होना यज्ञ की सफलता के लिये आवश्यक है। नीचे कुछ यज्ञ पात्रों का परिचय दिया जा रहा है। इनका उपयोग विभिन्न यज्ञों में, विभिन्न शाखाओं एवं सूत्र-ग्रन्थों के आधार पर दिया जाता है। 1.अन्तर्धानकट:—वारण काष्ठ का आधा अंगुल मोटा, बारह अंगुल का अर्द्ध चन्द्राकार पात्र। गार्हपत्य कुण्ड के ऊपर पत्नी संयाज के समय देव पत्नियों को आढ़ करने के लिए इसका उपयोग होता है। 2. पशु-रशना:—तीन मुख वाली बारह हाथ की पशु बाँधने की रस्सी। 3. मयूख:—गूलर का एक अंगुल मोटा, बारह अंगुल का वत्स-बन्धन के लिये शकु मयूख होता है। 4. वसा हवनी:—पाक भाण्ड स्थित स्नेह-वसा हवन करने का जूहू सदृश घाऊ का स्रुक। 5. वेद:—दर्शपूर्णमासादि में 50 कुशाओं से रचित वेणी सदृश क...

इंक्यावन शक्तिपीठ

इक्यावन शक्तिपीठ की  पौराणिक कथा  हिन्दू धर्म के अनुसार जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ बना। यह अत्यन्त पावन तीर्थ कहलाए। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं।पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्तिपीठो का निर्माण हुआ था। दक्ष प्रजापति ने कनखल हरिद्वार में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया। लेकिन जान बूझकर अपने दामाद भगवान् शंकर को नहीं बुलाया। शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी यज्ञ में भाग लेने गईं। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती ने यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर के आदेश पर उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण ...

मत्स्य अवतार

 मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुनः जीवन का निर्माण किया।  एक दूसरी मन्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुनः स्थापित किया।  मत्स्य अवतार की कथा एक बार ब्रह्माजी की असावधानी के कारण एक बहुत बड़े दैत्य ने वेदों को चुरा लिया। उस दैत्य का नाम हयग्रीव था। वेदों को चुरा लिए जाने के कारण ज्ञान लुप्त हो गया। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार फैल गया और पाप तथा अधर्म का बोलबाला हो गया। तब भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए मत्स्य रूप धारण करके हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। भगवान ने मत्स्य का रूप किस प्रकार धारण किया।  इसकी विस्मयकारिणी कथा इस प्रकार है-  कल्पांत के पूर्व एक पुण्यात्मा राजा तप कर रहा था। राजा का नाम ...

आइए जानें इन 14 अखाड़ों के बारे में

*आइए जानें इन 14 अखाड़ों के बारे में🚩🙏🏻👇🏻👇🏻👇🏻* *1. अटल अखाड़ा👉🏻* इनके ईष्ट देव भगवान गणेश हैं. इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं और कोई अन्य इस अखाड़े में नहीं आ सकता है. यह सबसे प्राचीन अखाड़ों में से एक माना जाता है।।🚩 *2. अवाहन अखाड़ा-👉🏻* इनके ईष्ट देव श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन दोनो हैं. इस अखाड़े का केंद्र स्थान काशी है।।🚩 *3. निरंजनी अखाड़ा👉🏻-* यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है. इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्र्चर हैं. इनके ईष्ट देव भगवान शंकर के पुत्र कार्तिक हैं. इस अखाड़े की स्थापना 826 ईसवी में हुई थी।।🚩 *4. पंचाग्नि अखाड़ा 👉🏻* इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है. इनकी इष्ट देव गायत्री हैं और इनका प्रधान केंद्र काशी है.🚩 *5. महानिर्वाण अखाड़ा-👉🏻* महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्‍मा इसी अखाड़े के पास है. इनके ईष्ट देव कपिल महामुनि हैं. इनकी स्थापना 671 ईसवी में हुई थी।।🚩 *6. आनंद अखाड़ा- 👉🏻* इस अखाड़े की स्थापना 855 ईसवी में हुई थी. इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्र...

'ब्रज चौरासी-कोस यात्रा'

वराह पुराण वर्णन है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही वजह है कि व्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहाँ खिंचे चले आते हैं। हज़ारों-लाखों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं।ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा हज़ारों साल पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथ-संहिता में भी है। कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं से ही नहीं, सतयुग में भक्त ध्रुव  ने  यही आकर नारद जी से गुरू मंत्र लेकर  अखंड तपस्या की व ब्रज परिक्रमा की थी। त्रेतायुग में प्रभु राम के लघु भ्राता शत्रुघ्न ने मधु पुत्र लवणासुर को मार कर ब्रज परिक्रमा की थी। गली बारी स्थित शत्रुघ्न मंदिर यात्रा मार्ग में अति महत्व का माना जाता है। द्वापर युग में उद्धव जी ने गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की। कलियुग में जैन और बौद्ध धर्मों के स्तूप बैल्य संघाराम आदि स्थलों के सांख्य इस परियात्रा की पुष्टि करते हैं।14वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी की में ब्रज यात्रा का उल्लेख आता है।15वीं शताब्दी में माध्व सम्प...

पारिजात वृक्ष

!!! पारिजात वृक्ष : इस वृक्ष के कारण हुआ था इंद्र और कृष्ण में युद्ध !!! पारिजात वृक्ष तो पुरे भारत में पाये जाते है, लेकिन किंटूर में पाया जाने वाला यह पारिजात वृक्ष अपने आप कई विशेषताए रखता है और यह अपनी तरह का पुरे भारत में इकलौता पारिजात वृक्ष है। उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से ३८ किलोमीटर कि दूरी पर किंटूर गाँव है। इस जगह का नामकरण पाण्डवों कि माता कुन्ती के नाम पर हुआ है। यहाँ पर पाण्डवों ने माता कुन्ती के साथ अपना अज्ञातवास बिताया था। इसी किंटूर गाँव में भारत का एक मात्र पारिजात का पेड़ पाया जाता है। कहते है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से सारी थकान मिट जाती है | *** पारिजात वृक्ष के बारे में - आमतौर पर पारिजात वृक्ष १० फीट  से २५ फीट तक ऊंचे होता है, पर किंटूर में स्तिथ पारिजात वृक्ष लगभग ४५ फीट ऊंचा और ५० फीट मोटा है। इस पारिजात वृक्ष कि सबसे बड़ी विशेषता यह है कि, यह अपनी तरह का  इकलौता पारिजात वृक्ष है, क्योंकि इस पारिजात वृक्ष पर बीज नहीं लगते है तथा इस पारिजात वृक्ष कि कलम बोने से भी दूसरा वृक्ष तैयार नहीं होता है। पारिजात वृक्ष ...

पुत्रदा एकादशी

                   "पुत्रदा (पौष शुक्ल) एकादशी"       पुत्रदा एकादशी व्रत हिंदूधर्म में मनाए जाने वालें महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। इस व्रत को पूरे भारत देश में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। पुत्रदा एकादशी व्रत हिंदूपंचांग के अनुसार पौषमाह में मनाया जाता है। पश्चिमी पंचांग के अनुसार यह माह हर वर्ष जनवरी में पड़ता है।  कहा जाता है कि इस व्रत में भगवान विष्णु की उपासना की जाती है और उनकी आस्था में ही व्रत भी रखा जाता है। यह व्रत पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है।                                  व्रत कथा         महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- "हे भगवन् ! कृपा करके यह बतलाइए कि पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है।" भगवान श्रीकृष्ण बोले- "हे राजन ! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर स...

कुंभ (KUMBHA) 2019

2019 में संगम नगरी प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुंभ मेला लग रहा है। कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार लगता है हमारे हिंदू धर्म में इसका काफी महत्व है। इस दौरान लोग संगम में स्नान कर पुण्य के भागी बनते हैं। कुंभ के स्‍नान की तारीखों का भी ऐलान हो चुका है। शाही स्नान 14 जनवरी से शुरू होगा। कुंभ स्नान से होती है मोक्ष की प्राप्ति:- हमारे धर्म में कुंभ की धार्मिक मान्यता है और इसे एक महत्‍वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है। कुंभ मेला हर 12 साल में आता है। दो बड़े कुंभ मेलों के बीच एक अर्धकुंभ भी लगता है। इस बार साल 2019 में आने वाला कुंभ मेला दरअसल, अर्धकुंभ ही है। प्रयाग में दो कुंभ मेलों के बीच 6 वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। कुंभ का मेला मकर संक्रांति के दिन शुरु होता है। इस दिन जो योग बनता है उसे कुंभ स्नान-योग कहते हैं। हिंदू धार्मिक मान्‍यता के अनुसार किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्‍नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं और मनुष्‍य को मोक्ष की प्राप्‍ति होती है। ग्रहों की चाल के कारण गंगा जल हो जाता है औषधिकृत:- कहा जाता है कि इस दौरान ग्रहों की स्थि...

भगवान सूर्य के अष्टोत्तरशतनाम

🙏🌞🙏🌞🙏🌞  🌞🌹🙏    *🙏🏻भगवान सूर्य के अष्टोत्तरशतनाम नाम (हिन्दी में)–ब्रह्माजी द्वारा बताए गए भगवान सूर्य के एक सौ आठ नाम जो स्वर्ग और मोक्ष देने वाले हैं, इस प्रकार हैं–* १. सूर्य, २. अर्यमा, ३. भग, ४. त्वष्टा, ५. पूषा (पोषक), ६. अर्क, ७. सविता, ८. रवि, ९. गभस्तिमान (किरणों वाले), १०. अज (अजन्मा), ११. काल, १२. मृत्यु, १३. धाता (धारण करने वाले), १४. प्रभाकर (प्रकाश का खजाना), १५. पृथ्वी, १६. आप् (जल), १७. तेज, १८. ख (आकाश), १९. वायु, २०. परायण (शरण देने वाले), २१. सोम, २२. बृहस्पति, २३. शुक्र, २४. बुध, २५. अंगारक (मंगल), २६. इन्द्र, २७. विवस्वान्, २८. दीप्तांशु (प्रज्वलित किरणों वाले), २९. शुचि (पवित्र), ३०. सौरि (सूर्यपुत्र मनु), ३१. शनैश्चर, ३२. ब्रह्मा, ३३. विष्णु, ३४. रुद्र, ३५. स्कन्द (कार्तिकेय), ३६. वैश्रवण (कुबेर), ३७. यम, ३८. वैद्युताग्नि, ३९. जाठराग्नि, ४०. ऐन्धनाग्नि,  ४१. तेज:पति, ४२. धर्मध्वज, ४३. वेदकर्ता, ४४. वेदांग, ४५. वेदवाहन, ४६. कृत (सत्ययुग), ४७. त्रेता, ४८. द्वापर, ४९. सर्वामराश्रय कलि, ५...

नरेंद्र मोदी को मिला फिलिप कोटलर पुरस्कार

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को उनके "उत्कृष्ट नेतृत्व" के लिए पहली बार फिलिप कोटलर राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। पुरस्कार समिति ने अपनी "अथक ऊर्जा" के साथ नेता की "भारत के प्रति निस्वार्थ सेवा" की सराहना की। पीएम मोदी को राजधानी में उनके सरकारी आवास, 7 लोक कल्याण मार्ग में कोटलर से सम्मानित किया गया। फिलिप कोटलर पुरस्कार तीन पहलुओं पर केंद्रित है - लोग, लाभ और ग्रह। यह पुरस्कार, यहां दिया जाएगा, प्रतिवर्ष एक राष्ट्र के नेता को दिया जाएगा। पुरस्कार के उद्धरण में लिखा गया है: "श्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्र के लिए उनके उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए चुना गया है। उनकी अथक ऊर्जा के साथ भारत के प्रति निस्वार्थ सेवा के कारण देश में असाधारण आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी विकास हुआ है।" प्रशस्ति पत्र में आगे कहा गया है कि प्रधान मंत्री के नेतृत्व में, भारत को मेक इन इंडिया का उल्लेख करते हुए नवाचार और मूल्य वर्धित विनिर्माण के केंद्र के रूप में पहचाना गया है। उद्धरण में आगे कहा गया है कि भारत पेशेवर सेवाओं जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, लेखा और वित्त के लिए भी एक वैश्विक...

मकर संक्रांति विशेष

मकर संक्रांति विशेष 🔸🔸🔹🔹🔸🔸 मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व  की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल प...

अभिलाष्टकम्

। अभिलाष्टकम् ।। एकं ब्रह्मैवाद्वितीयं समस्तं सत्यं सत्यं नेह नानास्ति कित्र्चित् । एको रुद्रो न द्वितीयोऽवतस्थे तस्मादेकं त्वां प्रपद्ये महेशम् ।। कर्ता हर्ता त्वं हि सर्वस्य शम्भो नानारूपेष्वेकरूपोऽप्यरूप: । यद्वत्प्रत्यग्धर्म एकोऽप्यनेक स्तस्मान्नायं त्वा विनेशं प्रपद्ये ।। रज्जौ सर्प: शुक्तिकायां च रौप्यं नैर: पूरस्तन्मृगाख्ये मरीचौ । यद्यत्सद्वद्विष्वगेव प्रपत्र्चो यस्मिन् ज्ञाते तं प्रपद्ये महेशम् ।। तोये शैत्यं दाहकत्वं च वह्यौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसाद: । पुष्पे गन्धो दुग्धमध्येऽपि सर्पिर्यत्तच्छम्भो त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये ।। शब्दं गृह्णास्यश्रावस्त्वं हि जिघ्रस्याघ्राणस्त्वं व्यंघ्रिरायासि दूरात् । व्यक्ष: पश्येस्त्वं रसज्ञोऽप्यजिह्व: कस्त्वां सम्यग्वेत्त्यतस्त्वां प्रपद्ये ।। नो वेद त्वामीश साक्षाद्धि वेदो नो वा विष्णुर्नो विधाताखिलस्य । नो योगीन्द्रा नेन्द्रमुख्याश्र्च देवा भक्तो वेद त्वामतस्त्वां प्रपद्ये ।। नो ते गोत्रं नेश जन्मापि नाख्या नो वा रूपं नैव शीलं न देश: । इत्थम्भूतोऽपीश्वरस्त्वं त्रिलोक्या: सर्वान्कामान्पूरयेस्त्वं भजे त्वाम् ।। त्वत्त: सर्वं ...