मकर संक्रांति विशेष
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मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।
मकर संक्रांंति पूजा विधि
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भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए इसके बाद यथा सामर्थ्य गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य के इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिये।
मन्त्र 👉 १- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:
२- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:
पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। तदोपरान्त ज्यादा से ज्यादा भोग प्रसाद बांटे।
इसके घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।
मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।
राशि के अनुसार दान योग्य वस्तु
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मेष🐐 गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान करें।
वृषभ🐂 सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान करें।
मिथुन👫 मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान करें।
कर्क🦀 चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान करें।
सिंह🦁 तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान करें।
कन्या👩 खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान करें।
तुला⚖️ सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान करें।
वृश्चिक🦂 मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान करें।
धनु🏹 पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान करें।
मकर🐊 काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान करें।
कुंभ🍯 काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान करें।
मीन🐳 रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान करें।
कुछ अन्य उपाय
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सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है
👉 कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं
👉 आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है
👉 अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं
👉 जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है
👉 पहली होरा में स्नान करें,सूर्य को अर्घ्य दें
👉 श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें,या गीता का पाठ करें
👉 मनोकामना संकल्प कर नए अन्न,कम्बल और घी का दान करें
👉 लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें
मंत्र "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
👉 संध्या काल में अन्न का सेवन न करें
👉 तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 शनि देव के मंत्र का जाप करें
👉 मंत्र "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
-👉 घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें।
मकर संक्रांति १४ या १५ जनवरी को, शंका समाधान
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मकर संक्रांति का त्योहार हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों से मकर संक्रांति की तिथि और पुण्यकाल को लेकर उलझन की स्थिति बनने लगी है। इस साल भी कुछ ज्योतिषी कह रहे हैं कि मकर संक्रांति १४ की नहीं बल्कि १५ जनवरी को मनाई जाएगी। आइए देखें कि यह उलझन की स्थिति क्यों बनी हैं और मकर संक्रांति का पुण्यकाल और तिथि मुहूर्त क्या है।
दरअसल इस उलझन के पीछे खगोलीय गणना है। गणना के अनुसार हर साल सूर्य के धनु से मकर राशि में आने का समय करीब २० मिनट बढ़ जाता है। इसलिए करीब ७२ साल के बाद एक दिन के अंतर पर सूर्य मकर राशि में आता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान मकर संक्रांति १० जनवरी को मनाई जाती थी। अब सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय १४ और १५ के बीच में होने लगा क्योंकि यह संक्रमण काल है।
साल २०१२ में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश १५ जनवरी को हुआ था इसलिए मकर संक्रांति इस दिन मनाई गई थी। आने वाले कुछ वर्षों में तथा इस साल भी मकर संक्रांति १५ जनवरी को ही मनाई जाएगी ऐसी गणना कहती है। इतना ही नहीं करीब पांच हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनाई जाने लगेगी
ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस साल सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सायं ०७:५० पर होगा। देवी पुराण के अनुसार संक्रांति से १५ घटी पहले और बाद तक का समय पुण्यकाल होता है। संक्रांति १४ तारीख की संध्या के समय होने की वजह से साल २०१९ में मकर संक्रांति का त्योहर १५ जनवरी को मनाया जाएगा और इसका पुण्यकाल १४ जनवरी मध्यान से लेकर १५ जनवरी मध्यान तक रहेगा जो बहुत ही शुभ संयोग है।
१५ जनवरी को उदया तिथि के कारण ही मकर संक्रांति १५ जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन मकर राशि में सूूर्योदय होने के कारण करीब ढ़ाई घंटे तक संक्रांति के पुण्यकाल का दान पुण्य करना भी शुभ रहेगा। इसलिए इस साल मेघ मेले में मकर संक्रांति का स्नान दोनों दिन यानी १४ और १५ जनवरी को होगा।
मकर संक्रांति फल
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भगवान सूर्य देव १४ जनवरी सोमवार को रात्रि ०७:५० बजे उतराषाढ़ा
नक्षत्र के दूसरे चरण मकर राशि में प्रवेश करेगें। उस समय चन्द्र देव
अश्विनी नक्षत्रमेष राशि में विचरण करेगें। इस अवधि में सिद्धि योग व
बवकरण रहेगा। सक्रान्ति का वाहन सिंह (शेर) उप वाहन हाथी है वार नाम व
नक्षत्र नाम ध्वांक्षी है। जो उद्योगपतियों, व्यापारियों, आयात निर्यात
करने वालो, शेयर कारोबारियों के लिये सुख फलदायक है। सक्रान्ति का उत्तर
दिशा की और गमन एवं ईशान कोण पर दृष्टि है। जिसके प्रभाव से देश के
उत्तरी प्रांतों एवं उत्तरी क्षैत्रों के लिए कष्टकारक योग बनेगें। देव
जाति की यह सक्रान्ति शरीर पर कस्तूरी का लेप लगाकर सफेद वस्त्र पहने,
पिरोज के आभूषण धारण कर पुनांग का पुष्प एवं माला पहने, हाथों में शस्त्र
भाला लेकर सोने का पात्र लिये हुये अन्न का भोजन कर वैश्य के घर में
प्रवेश कर रही है। जो ३० मुहूर्त वाली है जिससे सभी धान्य पदार्थो के भाव
स्थिर रहेगें चावल, फल-फूल, सब्जी, सुगन्धित पदार्थ, सुत, कपास, वस्त्र,
धातु, सोना-चांदी, सफेद वस्तुओं के भाव तेज होगें शेयर बाजार में तेजी
आयेगी। संक्रान्ति रात्रि एक याम व्यापिनी होने से आतंकवादियों, हिसंक
प्रवृत्ति वालों, देश द्रोहियों के लिये कष्ट कारक रहेगी।
वेदों में सूर्य उपासना को सर्वोपरि माना गया है। जो आत्मा,
जीव, सृष्टि का कारक एक मात्र देवता है जिनके हम साक्षात रूप से दर्शन
करते है। सूर्य देव कर्क से धनु राशि में ६ माह भ्रमण कर दक्षिणयान होते
है जो देवताओं की एक रात्रि होती है। सूर्य देव मकर से मिथुन राशि में ६
माह भ्रमण कर उत्तरायण होते है जो एक दिन होता है। जिसमें सिद्धि साधना
पुण्यकाल के साथ-साथ मांगलिक कार्य विवाह, ग्रह प्रवेश, जनेउ, संस्कार,
देव प्राण, प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य आदि सम्पन्न होते है। सूर्य देव मकर
राशि में प्रवेश करते है इस सक्रमण को मकर सक्रान्ति कहा जाता है जिसमें
स्वर्ग के द्वार खुलते है। मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार सूर्य सक्रान्ति
समय से १६ घटी पहले एवं १६ घटी बाद तक का पुण्य काल होता है निर्णय
सिन्धु के अनुसार मकर सक्रान्ति का पुण्यकाल सक्रान्ति से २० घटी बाद तक
होता है किन्तु सूर्यास्त के बाद मकर सक्रान्ति प्रदोष काल रात्रि काल
में हो तो पुण्यकाल दूसरे दिन माना जाता है। इस वर्ष सक्रान्ति का
शुभारंभ १४ सोमवार की रात्रि को ०७:५० बजे होने से पंचागों की गणना अनुसार
पुण्यकाल दिन में ०१:२६ बजे से होगा। किन्तु सक्रान्ति रात्रि एक याम
व्यापिनी होने से ग्रन्थों के अनुसार सक्रान्ति का पुण्यकाल १५ जनवरी
मंगलवार को सूर्योदय ०७:१९ बजे से दिन में ११:५० बजे तक रहेगा। जिसमें
अमृत सिद्धि योग दोपहर ०१:५४ बजे तक एवं उपरांत रवि योग का अदभुत संयोग
होगा। पुण्यकाल समय में अमृत सिद्धि योग रवि योग में दान पुण्य स्नान
आदि समस्त कार्य करने से हजार गुना फल मिलेगा।
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मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।
मकर संक्रांंति पूजा विधि
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भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए इसके बाद यथा सामर्थ्य गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य के इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिये।
मन्त्र 👉 १- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:
२- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:
पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। तदोपरान्त ज्यादा से ज्यादा भोग प्रसाद बांटे।
इसके घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।
मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।
राशि के अनुसार दान योग्य वस्तु
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मेष🐐 गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान करें।
वृषभ🐂 सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान करें।
मिथुन👫 मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान करें।
कर्क🦀 चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान करें।
सिंह🦁 तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान करें।
कन्या👩 खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान करें।
तुला⚖️ सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान करें।
वृश्चिक🦂 मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान करें।
धनु🏹 पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान करें।
मकर🐊 काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान करें।
कुंभ🍯 काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान करें।
मीन🐳 रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान करें।
कुछ अन्य उपाय
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सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है
👉 कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं
👉 आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है
👉 अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं
👉 जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है
👉 पहली होरा में स्नान करें,सूर्य को अर्घ्य दें
👉 श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें,या गीता का पाठ करें
👉 मनोकामना संकल्प कर नए अन्न,कम्बल और घी का दान करें
👉 लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें
मंत्र "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
👉 संध्या काल में अन्न का सेवन न करें
👉 तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 शनि देव के मंत्र का जाप करें
👉 मंत्र "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
-👉 घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें।
मकर संक्रांति १४ या १५ जनवरी को, शंका समाधान
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मकर संक्रांति का त्योहार हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों से मकर संक्रांति की तिथि और पुण्यकाल को लेकर उलझन की स्थिति बनने लगी है। इस साल भी कुछ ज्योतिषी कह रहे हैं कि मकर संक्रांति १४ की नहीं बल्कि १५ जनवरी को मनाई जाएगी। आइए देखें कि यह उलझन की स्थिति क्यों बनी हैं और मकर संक्रांति का पुण्यकाल और तिथि मुहूर्त क्या है।
दरअसल इस उलझन के पीछे खगोलीय गणना है। गणना के अनुसार हर साल सूर्य के धनु से मकर राशि में आने का समय करीब २० मिनट बढ़ जाता है। इसलिए करीब ७२ साल के बाद एक दिन के अंतर पर सूर्य मकर राशि में आता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान मकर संक्रांति १० जनवरी को मनाई जाती थी। अब सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय १४ और १५ के बीच में होने लगा क्योंकि यह संक्रमण काल है।
साल २०१२ में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश १५ जनवरी को हुआ था इसलिए मकर संक्रांति इस दिन मनाई गई थी। आने वाले कुछ वर्षों में तथा इस साल भी मकर संक्रांति १५ जनवरी को ही मनाई जाएगी ऐसी गणना कहती है। इतना ही नहीं करीब पांच हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनाई जाने लगेगी
ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस साल सूर्य का मकर राशि में प्रवेश सायं ०७:५० पर होगा। देवी पुराण के अनुसार संक्रांति से १५ घटी पहले और बाद तक का समय पुण्यकाल होता है। संक्रांति १४ तारीख की संध्या के समय होने की वजह से साल २०१९ में मकर संक्रांति का त्योहर १५ जनवरी को मनाया जाएगा और इसका पुण्यकाल १४ जनवरी मध्यान से लेकर १५ जनवरी मध्यान तक रहेगा जो बहुत ही शुभ संयोग है।
१५ जनवरी को उदया तिथि के कारण ही मकर संक्रांति १५ जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन मकर राशि में सूूर्योदय होने के कारण करीब ढ़ाई घंटे तक संक्रांति के पुण्यकाल का दान पुण्य करना भी शुभ रहेगा। इसलिए इस साल मेघ मेले में मकर संक्रांति का स्नान दोनों दिन यानी १४ और १५ जनवरी को होगा।
मकर संक्रांति फल
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भगवान सूर्य देव १४ जनवरी सोमवार को रात्रि ०७:५० बजे उतराषाढ़ा
नक्षत्र के दूसरे चरण मकर राशि में प्रवेश करेगें। उस समय चन्द्र देव
अश्विनी नक्षत्रमेष राशि में विचरण करेगें। इस अवधि में सिद्धि योग व
बवकरण रहेगा। सक्रान्ति का वाहन सिंह (शेर) उप वाहन हाथी है वार नाम व
नक्षत्र नाम ध्वांक्षी है। जो उद्योगपतियों, व्यापारियों, आयात निर्यात
करने वालो, शेयर कारोबारियों के लिये सुख फलदायक है। सक्रान्ति का उत्तर
दिशा की और गमन एवं ईशान कोण पर दृष्टि है। जिसके प्रभाव से देश के
उत्तरी प्रांतों एवं उत्तरी क्षैत्रों के लिए कष्टकारक योग बनेगें। देव
जाति की यह सक्रान्ति शरीर पर कस्तूरी का लेप लगाकर सफेद वस्त्र पहने,
पिरोज के आभूषण धारण कर पुनांग का पुष्प एवं माला पहने, हाथों में शस्त्र
भाला लेकर सोने का पात्र लिये हुये अन्न का भोजन कर वैश्य के घर में
प्रवेश कर रही है। जो ३० मुहूर्त वाली है जिससे सभी धान्य पदार्थो के भाव
स्थिर रहेगें चावल, फल-फूल, सब्जी, सुगन्धित पदार्थ, सुत, कपास, वस्त्र,
धातु, सोना-चांदी, सफेद वस्तुओं के भाव तेज होगें शेयर बाजार में तेजी
आयेगी। संक्रान्ति रात्रि एक याम व्यापिनी होने से आतंकवादियों, हिसंक
प्रवृत्ति वालों, देश द्रोहियों के लिये कष्ट कारक रहेगी।
वेदों में सूर्य उपासना को सर्वोपरि माना गया है। जो आत्मा,
जीव, सृष्टि का कारक एक मात्र देवता है जिनके हम साक्षात रूप से दर्शन
करते है। सूर्य देव कर्क से धनु राशि में ६ माह भ्रमण कर दक्षिणयान होते
है जो देवताओं की एक रात्रि होती है। सूर्य देव मकर से मिथुन राशि में ६
माह भ्रमण कर उत्तरायण होते है जो एक दिन होता है। जिसमें सिद्धि साधना
पुण्यकाल के साथ-साथ मांगलिक कार्य विवाह, ग्रह प्रवेश, जनेउ, संस्कार,
देव प्राण, प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य आदि सम्पन्न होते है। सूर्य देव मकर
राशि में प्रवेश करते है इस सक्रमण को मकर सक्रान्ति कहा जाता है जिसमें
स्वर्ग के द्वार खुलते है। मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार सूर्य सक्रान्ति
समय से १६ घटी पहले एवं १६ घटी बाद तक का पुण्य काल होता है निर्णय
सिन्धु के अनुसार मकर सक्रान्ति का पुण्यकाल सक्रान्ति से २० घटी बाद तक
होता है किन्तु सूर्यास्त के बाद मकर सक्रान्ति प्रदोष काल रात्रि काल
में हो तो पुण्यकाल दूसरे दिन माना जाता है। इस वर्ष सक्रान्ति का
शुभारंभ १४ सोमवार की रात्रि को ०७:५० बजे होने से पंचागों की गणना अनुसार
पुण्यकाल दिन में ०१:२६ बजे से होगा। किन्तु सक्रान्ति रात्रि एक याम
व्यापिनी होने से ग्रन्थों के अनुसार सक्रान्ति का पुण्यकाल १५ जनवरी
मंगलवार को सूर्योदय ०७:१९ बजे से दिन में ११:५० बजे तक रहेगा। जिसमें
अमृत सिद्धि योग दोपहर ०१:५४ बजे तक एवं उपरांत रवि योग का अदभुत संयोग
होगा। पुण्यकाल समय में अमृत सिद्धि योग रवि योग में दान पुण्य स्नान
आदि समस्त कार्य करने से हजार गुना फल मिलेगा।
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