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रामायण का एक अनजान सत्य

रामायण का एक अनजान सत्य! केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे,क्या कारण था ?..पढिये पुरी कथा।  हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया ।  भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा॥ अगस्त्य मुनि बोले- श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे, लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥ ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥ लक्ष्मण ने उसका वध किया इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥  श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥ अगस्त्य मुनि ने कहा- प्रभु

राधे कृष्ण की प्रेम लीला

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राधे कृष्ण की प्रेम लीला 🍁🍁🍁🍁 . एक बार बरसाने में एक वृजबासी के बेटे की शादी हुई, वो वृजबसिन् ने सबको बुलाया पर राधा रानी को न्योता देना भूल गयी । . उसको शादी के पहले याद था  पर शादी के समय ही भूल गयी। . जब शादी हो गयी और बहु घर मे आ गयी तब उसको याद आया , हाय रे  राधा रानी को बुलाना तो भूल गयी। . तब वो राधा रानी के पास गयी बोली राधा रानी माफ़ कर दो आपको बुलाना तो भूल गयी मैं। . राधा रानी बोली कोई बात नहीं भूल गयी तो पर आपने मुझे अपने दिल में तो रखा यही मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है। . कितनी उदार है राधा रानी कितनी करुणा शील है . राधा रानी बोली नयी नवेली बहु कैसी है ? . वृजबसिन् बोली अभी अपनी नयी बहु को बुला के लाती हुँ। . जब राधारानी से मिलने गयी थी तो अपनी बहु की रखवाली के लिए वो एक सखी को साथ छोड के गयीं थी बहु के पास। . वृज वासिन के आने से पहले ठाकुर जी उसके घर गये और  हमारे ठाकुर जी तो है ही शरारती । तो उन्होने दुल्हन का श्रृंगार करके बहु को सुला दिया और खुद बहु बनके घुंघट ओढ़ कर बैठ गए। . वृजबसिन् जल्दी घर मे आई और बोली बहु से : राधा रानी तुझ से मिलन

अमरनाथ गुफा में हिमलिंग स्थापित होने की पौराणिक कथा!

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अमरनाथ गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमृत प्रवचन दिए थे, जिसे कबूतरों के जोड़ों ने भी सुन लिया था जिसे सुनकर वे भी अमर हो गए। कहते हैं कि आज भी वे कबूतर आपको अमरनाथ की गुफा के आसपास नजर आ जाएंगे। हालांकि उनके दर्शन दुर्लभ ही होते हैं। पार्वतीजी भगवान सदाशिव से कहती हैं- 'प्रभो! मैं अमरेश महादेव की कथा सुनना चाहती हूं। मैं यह भी जानना चाहती हूं कि महादेव गुफा में स्थित होकर अमरेश क्यों और कैसे कहलाए?' सदाशिव भोलेनाथ बोले, 'देवी! आदिकाल में ब्रह्मा, प्रकृति, स्थावर (पर्वतादि) जंगल, (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, कूष्मांड, भैरव, गीदड़, दानव आदि की उत्पत्ति हुई। इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टि हुई, परंतु इंद्रादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में थे।' इसके बाद भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मृत्यु से भयभीत देवता उनके पास आए। सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की और कहा कि 'हमें मृत्यु बाधा करती है। आप कोई ऐसा उपाय बतलाएं जिससे मृत्यु हमें बाधा न करे।' 'मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्ष

आंवले के अनगिनत फायदे

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इस अमृत फल के हैं बड़े फायदे .... .. खाने से इन गंभीर बीमारियों में मिलेगा लाभ .... $ आंवला खाने से कई प्रकार की शरीरिक समस्याओं और रोगों से बचाव होता है ~ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है ! कहते हैं बुजुर्गों की बात का और आंवले के स्वाद का पता बाद में चलता है ! जी - आंवला बेहद गुणकारी है ! इसलिए इसे हर मर्ज की दवा भी कहा जाता है ! आंवला पाचन तंत्र से लेकर स्मरण शक्ति को दुरुस्त करता है ! नियमित रूप से आंवले का सेवन करने से बुढ़ापा भी दूर रहता है ! मधुमेह - बवासीर - नकसीर - दिल की बीमारी जैसी समस्याओं का इलाज आंवले में छिपा है ! आंवला सेहत के लिए कितना फायदेमंद है .... ? * आंवला वृक्ष की उत्पत्ति ... ! ईसा से पांच सौ साल पहले महान आयुर्वेदाचार्य चरक द्वारा लिखी चरक संहिता में एक मात्र जिस जड़ी - बूटी का बार - बार उल्लेख है - वह आंवला है ! हमारे मनीषियों ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी पर अगर आंवले की पूजा का विधान किया है तो उसके पीछे यही कारण है कि ...  आम नहीं - बहुत खास है आंवला ! अमृत फल देने वाले इस आंवले के एक पेड़ को अगर घर के आंगन या आसपास लगा दिय

श्री विन्ध्येश्वरीस्तोत्रं

⬛सुप्रभात मानस परिवार⬛ 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 निशुम्भ-शुम्भ मर्दिनीं, प्रचन्ड मुन्ड खन्डिनीं। वने रणे प्रकशिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् ॥ त्रिशुल-मुन्डधारिणीं, धराविघाहारिणीम्। गृहे-गृहे निवासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥ दरिद्र्-दुःख हारिणीं, सदा विभूतिकारिणीम्। वियोगशोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥लसत्सुलोत-लोचनीं, जने सदा वरप्रदाम्। कपाल-शूल धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥कराब्जदानदाधरां, शिवां शिवप्रदायिनीम्। वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥ कपीन्द्र-जामिनीप्रदां, त्रिधास्वरूपधारिणीम्। जले-स्थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥ विशिष्ट-शिष्टकारिणीं, विशालरूप धारिणीम्। महोदरे-विलासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥पुरन्दरादिसेवितां , सुरारिवंशखंडिताम्। विशुद्ध-बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम्॥ """"" इति श्री विन्ध्येश्वरीस्तोत्रं// #जयमाँ विन्ध्यवासिनी । जय हो माता विन्ध्यवासिनी जी जय हो//

श्री राधा जी के सोलह नाम

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श्री राधा के सोलह नाम राधा रासेस्वरी रासवासिनी रसिकेश्वरी। कृष्णप्राणाधिका कृष्णप्रियाव् कृष्णस्वरूपिणी॥ कृष्णवामांगसम्भूता परमानन्दरूपिणी। कृष्णा वृन्दावनी वृन्दा वृन्दावनविनोदिनी॥ चन्द्रावली चन्द्रकान्ता शरच्चन्द्रप्रभानना। नामान्येतानि साराणि तेषामभ्यन्तराणि च॥ (ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण जन्म खण्ड, १७। २२०-२२२) श्री राधा के इन सोलह नामों की व्याख्या स्वयं भगवान नारायण ने नारदजी को बताया था जो कि इस प्रकार है– १. राधा–ये निर्वाण (मोक्ष) प्रदान करने वाली हैं। २. रासेस्वरी–रासेश्वर की प्राणप्रिया हैं, अत: रासेश्वरी हैं। ३. रासवासिनी–रासमण्डल में निवास करने वाली हैं। ४. रसिकेश्वरी–समस्त रसिक देवियों की सर्वश्रेष्ठ स्वामिनी हैं। ५. कृष्णप्राणाधिका–श्री कृष्ण को वे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं इसलिए उन्हें कृष्णप्राणाधिका कहा जाता है। ६. कृष्णप्रिया–वे श्री कृष्ण की परम प्रिया हैं या श्री कृष्ण उन्हें परम प्रिय हैं अत: उन्हें कृष्णप्रिया कहते हैं। ७. कृष्णस्वरूपिणी–ये स्वरूपत:  श्री कृष्ण के समान हैं। ८. कृष्णवामांगसम्भूता–ये श्री कृष्ण के वामांग से प्रकट हुई हैं।

राम-रक्षा स्तोत्र की अर्थ सहित व्याख्या

मित्रो आज हम आपको रामरक्षास्त्रोत भावार्थ सहित बतायेगें, बहुत चमत्कारी है,मुर्दे में भी जान डाल देता है राम रक्षा स्त्रोत!!!!! राम रक्षा स्त्रोत को  एक बार में पढ़ लिया जाए तो पूरे दिन तक इसका प्रभाव रहता है। अगर आप रोज ४५ दिन तक राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं तो इसके फल की अवधि बढ़ जाती है। इसका प्रभाव दुगुना तथा दो दिन तक रहने लगता है और भी अच्छा होगा यदि कोई राम रक्षा स्त्रोत  प्रतिदिन ११ बार पढ़े,अगर ग्यारह सम्भव न हो तो दिन में एक बार करना भी बहुत लाभदायक है। सरसों के दाने एक कटोरी में दाल लें। कटोरी के नीचे कोई ऊनी वस्त्र या आसन होना चाहिए। राम रक्षा मन्त्र को ११ बार पढ़ें और इस दौरान आपको अपनी उँगलियों से सरसों के दानों को कटोरी में घुमाते रहना है। ध्यान रहे कि आप किसी आसन पर बैठे हों और राम रक्षा यंत्र आपके सम्मुख हो या फिर श्री राम कि प्रतिमा या फोटो आपके आगे होनी चाहिए जिसे देखते हुए आपको मन्त्र पढ़ना है। ग्यारह बार के जाप से सरसों सिद्ध हो जायेगी और आप उस सरसों के दानों को शुद्ध और सुरक्षित पूजा स्थान पर रख लें। जब आवश्यकता पड़े तो कुछ दाने लेकर आजमायें। सफलता अवश्य

पूजा-पाठ में जरूरी सावधानी

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पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ इस प्रकार हैं????? 1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है। 2 गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए। 3 दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए। 4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए। 5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं। 6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए। 7 दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए। 8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए। ९ कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं। 10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं। .11 तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं। 12 हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं च

शुक्रवार व्रत कथा

शुक्रवार व्रत कथा एक बुढिया थी।उसका एक ही पुत्र था। बुढिया पुत्र के विवाह के बाद ब से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लडका देखता पर माँ से कुछ भी नहीं कह पाता। ब दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपडे धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता। काफी सोच-विचारकर एक दिन लडका माँ से बोला- 'माँ, मैं परदेस जा रहा ँ। माँ को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- 'मैं परदेस जा रहा ँ। अपनी कुछ निशानी दे दे। ब बोली- 'मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई। पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढते गए। एक दिन ब दु:खी हो मंदिर चली गई। वहाँ उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियाँ पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है। स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक ल

जल्द करो मंदिर निर्माण

अभी वक्त है होश में आओ| इसी सत्र में बिल ले आओ| जनमन का कर लो अनुमान | जल्द करो मंदिर निर्माण | राम से जिसने की गद्दारी | सबकी बिगड़ गई तैयारी | तूने राम की रोटी खाई| राम नाम से सत्ता पाई| जब निर्माण की बेला आई| मौन धरे हो लाज न आई| कारसेवकों की कुरबानी | भूलोगे होगी नादानी| अभी वक्त है होश में आओ| ऐसा न हो बस पछताओ| छोड़ो तुम झूठा अभिमान | जनमन का कर लो सम्मान | जल्द करो मंदिर निर्माण || जय श्री राम       - अवनीश द्विवेदी 

हृदय रोग से कैसे बचें

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आजकल हार्ट अटेक से मृत्यु ज्यादा हो रही है। इसके लिए एक अच्छा उपाय जो अपने घर मे उपलब्ध सामग्री से कर सकते है। सामग्री :: 1. शहद 2. लहसुन 3. खाने वाला पान ( बंगला पान ) 4. अदरक लहसुन 2 कली , पान 2 डंठल सहित , अदरक 5 ग्राम इनको अच्छे से पीस कर इसमे 2 चम्मच शहद मिला देवे । इस मिश्रण को भूखे पेट 30 से 45 मिंट में धीरे धीरे चाटे । मिश्रण चाटने के 1 घंटे बाद ही कुछ खाना पीना करे । सिर्फ 5 से 7 दिनों में ही आपका हृदय ठीक होने लगेगा। और हार्ट अटैक जैसी बीमारी से दूर हो जाएंगे ।

हरिदास जी की कथा

|| ॐ श्री परमात्मने नम: || सन्त-संग की महिमा श्रीचैतन्य-महाप्रभुके कई शिष्य हुए हैं । उनमें एक यवन हरिदासजी महाराज भी थे । वे थे तो मुसलमान, पर चैतन्य-महाप्रभुके संगसे भगवन्नाममें लग गये । सनातन धर्मको स्वीकार कर लिया । उस समय बड़े-बड़े नवाब राज्य करते थे, उनको बड़ा बुरा लगा । लोगोंने भी शिकायत की कि यह काफिर हो गया । इसने हिन्दूधर्म को स्वीकार कर लिया । उन लोगोंने सोचा‒‘इसका कोई-न-कोई कसूर हो तो फिर अच्छी तरहसे इसको दण्ड देंगे ।’ एक वेश्या को तैयार किया और उससे कहा‒‘यह भजन करता है, इसको यदि तू विचलित कर देगी तो बहुत इनाम दिया जायगा ।’ वेश्या ने कहा‒‘पुरुष जातिको विचलित कर देना तो मेरे बायें हाथ का खेल है ।’ ऐसे कहकर वह वहाँ चली गयी जहाँ हरिदास जी एकान्त में बैठे नाम-जप कर रहे थे । वह पासमें जाकर बैठ गयी और बोली‒‘महाराज, मुझे आपसे बात करनी है ।’ हरिदास जी बोले‒‘मुझे अभी फुरसत नहीं है ।’ ऐसा कह कर भजन में लग गये । ऐसे उन्होंने उसे मौका दिया ही नहीं । तीन दिन हो गये, वे खा-पी लेते और फिर ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥’ मन्त्र-जपमें लग जात

किसके यहां भोजन न करें

गरुड़ पुराण ज्ञान 〰〰🌼〰〰 गरुण पुराण, वेदव्यास जी द्वारा रचित 18 पुराणो में से एक है। गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा भी इस ग्रन्थ में कई मानव उपयोगी बातें लिखी है जिनमे से एक है की किस तरह के लोगों के घर भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि एक पुरानी कहावत है, जैसा खाएंगे अन्न, वैसा बनेगा मन। यानी हम जैसा भोजन करते हैं, ठीक वैसी ही सोच और विचार बनते हैं। इसका सबसे सशक्त उदाहरण महाभारत में मिलता है जब तीरों की शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह से द्रोपदी पूंछती है- "आखिर क्यों उन्होंने भरी सभा में मेरे चीरहरण का विरोध नहीं किया जबकि वो सबसे बड़े और सबसे सशक्त थे।" तब भीष्म पितामह कहते है की मनुष्य जैसा अन्न खता है वैसा ही उसका मन हो जाता है। उस वक़्त में कौरवों का अधर्मी अन्न खा रहा था इसलिए मेरा दिमाग भी वैसा ही हो गया और मुझे उस कृत्य में कुछ गलत नज़र नहीं आया। हमारे समाज में एक परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है

विवाह पंचमी

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विवाह पंचमी के दिन हुआ था प्रभु राम-जानकी का विवाह भारत में कई स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था। तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रथों के अनुसार इस तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था। जिसका वर्णन श्रीरामचरितमानस में महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने बड़ी ही सुंदरता से किया है। श्रीरामचरितमानस के अनुसार- महाराजा जनक ने सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचाया। सीता के स्वयंवर में आए सभी राजा-महाराजा जब भगवान शिव का धनुष नहीं उठा सकें, तब ऋषि विश्वामित्र ने प्रभु श्रीराम से आज्ञा देते हुए कहा- हे राम! उठो, शिवजी का धनुष तोड़ो और जनक का संताप मिटाओ। गुरु विश्वामित्र के वचन सुनकर श्रीराम तत्पर उठे और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए आगे बढ़ें। यह दृश्य देखकर सीता के मन में उल्लास छा गया। प्रभु की ओर देखकर सीताजी ने मन ही मन निश्चय किया कि यह शरीर इन्हीं का होकर रहेगा या तो रहेगा ही नहीं। म

शिव पंचाक्षर मंत्र की महिमा

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🔴🍃#शिवपंचाक्षर_मन्त्र🍃🔴  🔺🍁🍃‘#नम:#शिवाय’🍁🍃🔺 🌞🌸💥🍃🔥🍃💥🌸🌞 *#किं_तस्य_बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:।* *यस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर:।।* (स्कन्दपुराण) 🕉️🚩 अर्थात्–‘जिसके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ यह मन्त्र निवास करता है, उसके लिए बहुत-से मन्त्र, तीर्थ, तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है!’ 🕉️🚩 भगवान शिव का पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र :- जैसे सभी देवताओं में त्रिपुरारि भगवान शंकर देवाधिदेव हैं, उसी प्रकार सब मन्त्रों में भगवान शिव का पंचाक्षर मन्त्र ‘नम: शिवाय’ श्रेष्ठ है। इसी मन्त्र के आदि में प्रणव (ॐ) लगा देने पर यह षडक्षर मन्त्र ‘ॐ नम: शिवाय’ हो जाता है। वेद अथवा शिवागम में षडक्षर मन्त्र स्थित है; किन्तु संसार में पंचाक्षर मन्त्र को मुख्य माना गया है। संसारबंधन में बंधे हुए मनुष्यों के हित की कामना से स्वयं भगवान शिव ने ‘ॐ नम: शिवाय’ इस आदि मन्त्र का प्रतिपादन किया। पंचाक्षर व षडक्षर मन्त्र में सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान शिव सदा रमते हैं। इसे ‘पंचाक्षरी विद्या’ भी कहते हैं। यह मन्त्रराज समस्त श्रुतियों का सिरमौर, सम्पूर्ण उपनिषदों की आत्मा और श

वास्तुशास्त्र के प्रयोग

* 🌞 ~* 🌞 🌷 *वास्तु शास्त्र* 🌷 . 🏡 *घर में सुख और समृद्धि बनी रहे, इसके लिए पुराने समय से ही कई परंपराएं प्रचलित हैं। ये परंपराएं अलग-अलग वस्तुओं और कार्यों से जुड़ी हैं। सभी के घरों में कुछ न कुछ वस्तुएं टूटी-फूटी होती है, बेकार होती है, फिर भी किसी कोने में पड़ी रहती हैं। 7 वस्तुएं ऐसी बताई गई हैं जो टूटी-फूटी अवस्था में घर में नहीं रखना चाहिए।* . 🏡 *यदि ये चीजें घर में होती हैं तो इनका नकारात्मक असर परिवार के सभी सदस्यों पर होता है। जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है और कार्यों में गति नहीं बन पाती है। इसी वजह से धन संबंधी कार्यों में भी असफलता के योग बनते हैं। घर में दरिद्रता का आगमन हो सकता है। यहां जानिए ये 7 चीजें कौन-कौन सी हैं...*. . 👉🏻 *वास्तु अनुसार घर में नहीं रखनी चाहिए ये 7 टूटी-फूटी चीजें, बढ़ती है नकारात्मक ऊर्जा ।* . 🏡 *1. बर्तन* *कई लोग घर में टूटे-फूटे बर्तन भी रखे रहते हैं जो कि अशुभ प्रभाव देते हैं। शास्त्रों के अनुसार घर में टूटे-फूटे बर्तन नहीं रखना चाहिए। यदि ऐसे बर्तन घर में रखे जाते हैं तो इससे महालक्ष्मी असप्रसन्न होती हैं और दरिद्रता का प्रवेश हमा

डिविडेंड क्या होता है?

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इन छ चीजों पर बहुत सजगता से विचार करें

गुरु शुक्राचार्य चतुर नीतिकार थे। उन्होंने अपनी नीतियों को लिपिबद्ध करके शुक्रनीति नाम के प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ की रचना की। इस नीतिसार का जो व्यक्ति अनुसरण करता है, उसका जीवन बेहतर और चरित्र सशक्तन बनता है। एक शुक्र नीति में ऐसी बातों के बारे में बताया है, जिन्हें सदैव साथ रख पाना संभव नहीं है। इस बात को समझ लेने वाला व्यक्ति धर्म को समझ सकता है। यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता। चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।। प्रत्येक व्यक्ति की चाह होती है कि उसकी सुंदरता सदैव बरकरार रहे लेकिन ऐसा नहीं होता। यह प्रकृति का नियम है कि युवा अवस्था सदैव नहीं रहती। कुछ समय के पूर्व युवा अवस्था ढल जाती है। शुक्रनीति के अनुसार मन की भांति ही धन का स्वबाव भी चंचल होता है। यह भी किसी एक के पास टिक कर नहीं रहता, इसलिए इसके मोह में स्वयं को बांधना ठीक नहीं है। कहा जाता है कि इंसान की परछाई सदैव उसके साथ रहती है लेकिन परछाई भी मनुष्य का साथ तब तक देती है जब तक वह धूप में चलता है। जब इंसान की परछाई ही सदैव उसका साथ नहीं दे सकती तो ऐसे में किसी अन्य से ये उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।

श्री कृष्ण

श्रीकृष्ण के मोरपंख व गुँजामाला धारण करने का रहस् बर्हापीडं नटवरवपु: कर्णयो: कर्णिकारं बिभ्रद् वास: कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम्। रन्ध्रान् वेणोरधरसुधया पूरयन् गोपवृन्दै-र्वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद् गीतकीर्ति:॥ प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण की अद्भुत मोहिनी शोभा का वर्णन है।एक ओर कृष्ण नट की भांति नाना रूप धर लेते हैं, कभी वर दूल्हे की तरह दिखते हैं।माथे पर मोर मुकुट, कानों में कनेर के फूल खुँसे हुए, नीलकमल सी देह पर सुनहले पीताम्बर कीआभा, गले में वैजयन्ती माला, बाँस की बाँसुरी के छिद्रों को अपने अधरामृत का पान कराते हुये, ग्बाल-बालों के साथ वे वृन्दावन में ऐसे प्रवेश कर रहे हैं जैसे रंगमंच पर कोई नायकप्रवेश कर रहा हो। पर श्रीकृष्ण वृन्दावन में विहार के लिए नंगे पैर आते हैं क्योंकि उनके चरणों के स्पर्श से ही भूमि पर तृण अंकुरित होंगे और उन तृणांकुरों से गउओं की तृप्ति होगी इसीलिए वह गोपाल कहलाये। बर्हापीड :- श्रीकृष्ण के मस्तक पर मोर पंख का मुकुट है। बालकृष्ण को मोर बहुत पसन्द है, श्रीकृष्ण का मयूर नृत्य भी बहुत प्रसिद्ध है। मोर में अनेक गुण हैं–वह दूसरों के दु:ख से दु:खी औ

मां सरस्वती

 मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा शास्त्र ज्ञान को देने वाली है। भगवती शारदा का मूलस्थान अमृतमय प्रकाशपुंज है। जहां से वे अपने उपासकों के लिए निरंतर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है। उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्द ब्रह्म के रूप में पूजी जाती हैं। सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। श्रीमद्देवीभागवत और श्रीदुर्गा सप्तशती में भी आद्याशक्ति द्वारा अपने आपको तीन भागों में विभक्त करने की कथा है। आद्याशक्ति के ये तीनों रूप महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से संसार में जाने जाते हैं। भगवती सरस्वती सत्वगुणसंपन्न हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें से वाक्‌, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि प्रसिद्ध हैं। ब्राह्मणग्र

दही के साथ नमक ना खायें

क्या_आप_दही_में_नमक_मिलाकर_खाते_है? खाने से पहले इसको जरूर पढ़ें.... प्रायः हम सभी दही खाते हैं। कोई इसमें नमक डालकर तो कोई चीनी मिलाकर खाते हैं। लेकिन कभी भी नमक के साथ दही नहीं खाना चाहिए। दही हमेशा मीठी चीज़ों के साथ ही खाना चाहिए... जैसे गुड़, बूरा या चीनी आदि के साथ। दही को आयुर्वेद की भाषा में जीवाणुओं  (बैक्टीरिया) का घर माना जाता है। लेंस से देखने पर दही में छोटे-छोटे अनगिनत बैक्टीरिया चलते फिरते नजर आते हैं। दही में मौजूद इन्हीं बैक्टीरियल गुण की वजह से तो हम दही खाते हैं। ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में ही हमारे शरीर में जाने चाहिए, क्योंकि जब हम दही खाते हैं तो हमारे शरीर में एंजाइम गतिविधि अच्छे से चलती है। अगर दही में एक चुटकी भी नमक डालते हैं तो एक मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जायेंगे तथा दही के सारे बैक्टीरियल गुण खत्म हो जायेंगे। क्योंकि नमक में जो केमिकल्स हैं वह इन जीवाणुओं के दुश्मन हैं। फिर यह दही शरीर में जाने पर हमारे किसी काम की नहीं। आयुर्वेद में कहा गया है कि दही में ऐसी चीज मिलाएं, जो उसमें मौजूद जीवाणुओं को बढ़ाए.. ना कि उन्हें मारे या खत्म करे। दही में

जामवंत जी की कथा

जामवंत थे वाली और सुग्रीव की माँ, ब्रह्मा जी के नाती (दौहित्र) थे दोनों! जाने जन्म की कथा... "वाली और सुग्रीव रामायण के प्रमुख पात्र है लेकिन वो कहा से आये कैसे जन्मे कब हुआ उनका जन्म ये कम ही लोग जानते है. जाने उनके जन्म की कथा जो की रहस्यों से भरपूर है" धर्म के घिसते स्तर के चलते आज लोग कर्तव्य कर्मो (धर्म) से दूर हो गए है, गुरुकुल तो बंद हो गए है ऐसे में कुछ लोग घर पर ही स्वाध्याय करते है. वेद, शास्त्र और ग्रन्थ इतने वृहद है की सालो लग जाने पर भी कोई पूर्ण नहीं हो सकता है, भारतीय आज जो भी शास्त्र या ग्रन्थ पढ़ रहे है वो भी संक्षित है. ऐसे में रामायण जैसे ग्रन्थ को बहुत से लोग सिर्फ टीवी देखकर ही जानते है उन्हें उतने में ही लगता है की बस हम रामायण जान चुके है. लेकिन असल रामायण को जानने में पूरी जिंदगी निकल जायेगी लेकिन उसका पार नहीं पा सकेंगे आप, मसलन क्या आप जानते है की जामवंत, वाली और सुग्रीव का जन्म कैसे हुआ? 99% लोगो के जवाब ना ही होंगे क्योंकि ये सच विभिन्न रामायणो के गहन अध्ययन से ही प्राप्त होते है, आध्यात्मिक रामायण (गीता प्रेस) के उत्तरकाण्ड में है इनके जन्

श्री कृष्ण की ही भक्ति क्यों करें

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केवल भगवान् श्रीकृष्ण की ‘ही’ भक्ति करना है, क्योंकि— यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखाः। प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां  तथैव सर्वार्हणमच्युतेज्या॥ जैसे पेड़ की जड़ में खाद डाल दो, पानी डाल दो, तो पेड़ के तने में, डालों में, उपशाखाओं में, पत्रों में, पुष्पों में, फलों में जल पहुँच जाता है, अलग-अलग पत्ते पे पानी नहीं डालना पड़ता। ऐसे ही, केवल श्रीकृष्ण की भक्ति कर लो, तो सबकी भक्ति अपने आप मान ली जायेगी। ~~~जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज।

बुलंदशहर की घटना की जिम्मेवारी किसकी

बुलंदशहर में भीड़ ने पुलिस अधिकारी की हत्या कर दिया जो किअपने आप में बहुत ही दुखद घटना है। सवाल यह है कि इन दुर्घटनाओं का जिम्मेदार कौन है? सरकार ? स्थानीय प्रशासन ? जनता ? तस्कर ? या कोई और ? या फिर कोई नही? शायद इस प्रश्न का उत्तर सबको पता है या शायद किसी को नही पता। न सरकार कुछ बोल रही है न ही प्रशासन हर कोई मौन है। परंतु कबतक ऐसा चलेगा सोचना ये है कि क्या जनता सचमुच इतनी अराजक है या उसे मजबूर होना पड़ा या उसे उकसाया गया ।सरकार जनता प्रशासन सबकी जिम्मेदारी तय करनी पड़ेगी । जनता काफी दिनों से प्रशासन से तस्करी रोकने की मांग कर रही थी फिर भी तस्करी चल रही थी। प्रशासन क्यों मजबूर था ।क्या तस्कर इतने प्रभावशाली थे या प्रशासन की शह थी। कौन जाने क्या बात थी? दंगाई कौन हैं? उनके आक्रोश का क्या कारण है? क्या उनका कृत्य उचित है ? मरने वालों में एक पुलिस अधिकारी और एक आम आदमी भी है। क्या आम आदमी कि इतनी हिम्मत है कि वह पुलिस से आंख मिला सके ? अगर प्रशासन सही समय पर सजगता दिखाता तो यह घटना बच सकती थी। सबको अपनी अपनी जिम्मेवारी तय करनी पड़ेगी।सबको अपनी जिम्मेवारी लेनी पड़ेगी।प्रशासन को जनता की

पुराणों में सात प्रकार की दुष्टा (दुर्भाग्यशाली) स्त्रियां

🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻           ‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼ ♻🌼♻🌼♻🌼♻🌼♻🌼♻ *पुराणों में सात प्रकार की दुष्टा (दुर्भाग्यशाली) स्त्रियां कही गयी हैं ! कुछ पूर्व जन्म के फल भोगती हैं और कुछ इस जन्म में कर्म करके बनती हैं* *यथा :---* *१- वन्ध्या (बांझ)* *२- काकवन्ध्या (जो कभी माँ नहीं बन सकती)* *३- मृतवत्सा (जिसकी संतान पैदा होकर मृत हो जाती हैं या गर्भपात हो जाता हो)* *४- दुर्भगा (दुर्भाग्यशाली)* *५- व्यभिचारिणी* *६- कर्कशा* *एवं* *७- दूसरों का घर तोड़ने वाली* 🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥🍀🔥                  

"शिव-नामकी महिमा"

II ॐ नमः शिवाय II एक बार महर्षि लोमशजी नैमिषारण्य तीर्थमें शौनकादि ऋषियोंके यहाँ पधारे । ऋषियोंने उनका समुचित सत्कार किया । आतिथ्यके पश्चात् उन्होंने विस्तारपूर्वक शिवधर्म सुनानेके लिये लोमशजीसे प्रार्थना की । लोमशजीने उन्हें शिव-चरित्र सुनाते हुए शिव-पूजन-महिमाका गान प्रारम्भ किया । इसी प्रसंगमें उन्होंने कहा – हरे हरेति वै नाम्ना शम्भोश्चक्रधरस्य च । रक्षिता बहवो मर्त्योः शिवेन परमात्मना ।। (स्कन्दपुराण, माहे॰ केदार॰ ५/९२) ‘हे हरे ! और हे हर ! इस प्रकार भगवान् शिव और विष्णुके नाम लेनेसे परमात्मा शिवने बहुतेरे मनुष्योंकी रक्षा की है ।‘ महर्षि लोमशने शौनकादि ऋषियोंसे भगवान् शिव एवं पार्वतीके विवाहका वर्णन कर लेनेके पश्चात् उनकी (शिवकी) नाम-महिमा इस प्रकार बतायी – ते धन्यास्ते महात्मानः कृतकृत्यास्त एव हि । द्वयक्षरं नाम येषां वै जिह्वाग्रे संस्थितं सदा ।। शिव इत्यक्षरं नाम यैरुदीरितमद्य वै । ते वै मनुष्यरूपेण रुद्राः स्युर्नात्र संशयः ।।  (स्कन्दपुराण, माहे॰ केदार॰ २७/२२-२३) ‘जिनकी जिह्वाके अग्रभागपर सदा भगवान् शंकरका दो अक्षरोंवाला नाम (शिव) विराजमान रहता है, वे धन्य हैं

शरीर पर भस्म क्यों लगाते हैं भगवान शिव

🔹🔹🔸🔹🔹🔸🔸🔹🔹🔸🔹🔹 हिंदू धर्म में शिवजी की बड़ी महिमा हैं। शिवजी का न आदि है ना ही अंत। शास्त्रों में शिवजी के स्वरूप के संबंध कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। इनका स्वरूप सभी देवी-देवताओं से बिल्कुल भिन्न है। जहां सभी देवी-देवता दिव्य आभूषण और वस्त्रादि धारण करते हैं वहीं शिवजी ऐसा कुछ भी धारण नहीं करते, वे शरीर पर भस्म रमाते हैं, उनके आभूषण भी विचित्र है। शिवजी शरीर पर भस्म क्यों रमाते हैं? इस संबंध में धार्मिक मान्यता यह है कि शिव को मृत्यु का स्वामी माना गया है और शिवजी शव के जलने के बाद बची भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए। भस्म शिव का प्रमुख वस्त्र है। शिव का पूरा शरीर ही भस्म से ढंका रहता है। संतों का भी एक मात्र वस्त्र भस्म ही है। अघोरी, सन्यासी और अन्य सा