सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जामवंत जी की कथा

जामवंत थे वाली और सुग्रीव की माँ, ब्रह्मा जी के नाती (दौहित्र) थे दोनों! जाने जन्म की कथा...

"वाली और सुग्रीव रामायण के प्रमुख पात्र है लेकिन वो कहा से आये कैसे जन्मे कब हुआ उनका जन्म ये कम ही लोग जानते है. जाने उनके जन्म की कथा जो की रहस्यों से भरपूर है"

धर्म के घिसते स्तर के चलते आज लोग कर्तव्य कर्मो (धर्म) से दूर हो गए है, गुरुकुल तो बंद हो गए है ऐसे में कुछ लोग घर पर ही स्वाध्याय करते है. वेद, शास्त्र और ग्रन्थ इतने वृहद है की सालो लग जाने पर भी कोई पूर्ण नहीं हो सकता है, भारतीय आज जो भी शास्त्र या ग्रन्थ पढ़ रहे है वो भी संक्षित है.

ऐसे में रामायण जैसे ग्रन्थ को बहुत से लोग सिर्फ टीवी देखकर ही जानते है उन्हें उतने में ही लगता है की बस हम रामायण जान चुके है. लेकिन असल रामायण को जानने में पूरी जिंदगी निकल जायेगी लेकिन उसका पार नहीं पा सकेंगे आप, मसलन क्या आप जानते है की जामवंत, वाली और सुग्रीव का जन्म कैसे हुआ?

99% लोगो के जवाब ना ही होंगे क्योंकि ये सच विभिन्न रामायणो के गहन अध्ययन से ही प्राप्त होते है, आध्यात्मिक रामायण (गीता प्रेस) के उत्तरकाण्ड में है इनके जन्म का संक्षित वर्णन. आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की असल में जामवंत ही वाली और सुब्रिव की माँ थे.

एक नर कैसे नर की माता बन सकता है ये ही सोच रहे है न, जाने पूरी कहानी..... 

पहले जामवंत के जन्म की कथा जाने, जामवंत असल में परम् पिता ब्रह्मा जी के ही पुत्र है! सप्तऋषि, सनत्कुमार, प्रजापति और नारद भी ब्रह्मा जी के पुत्र है लेकिन वो सभी उनके मानस पुत्र है (कल्पना से बनाये गए)! लेकिन जामवंत के जन्म का स्त्रोत अलग है जाने वो भी.

एक दिन ध्याम में बैठे बैठे ब्रह्मा जी के आँखों से अश्रुपात (आंसू गिरने लगे) हो गया, उन्ही आंसुओ से प्रकट हुए थे उनके पुत्र जामवंत जो की फिर हिमालय पर रहने लगे. जामवंत ने सागर मंथन में भी वासुकि को देवताओ की तरफ से खिंचा था और वामन अवतार की परिक्रमा भी की थी.

हिमालय पर एक दिन अपने को पानी में देख कर वो बंदर को देख कर चौंक गए और उस सरोवर में कूद गए, जब बाहर आये तो वो एक रूपवती किशोरी में परिवर्तित हो गए. उनने तप इंद्र की दृष्टि पड़ी जो की उनपे मोहित हो गए और उनका तेज (वीर्य) स्त्री रूपी जामवंत के सर के बालो पर गिरा जिससे की बाली (बालो से पैदा इसलिए बाली) का जन्म हुआ.

उसी समय सूर्य देवता भी वंहा से गुजरे वो भी मोहित हो गए, उनका तेज तब उस स्त्री के गर्दन पर गिरा जिससे की सुग्रीव पैदा हुए (सूर्य पुत्र ग्रीवा से पैदा हुए इसलिए सुग्रीव कहलाये). ऐसे दोनों भाई जन्मे तब जामवंत का स्त्रीत्व भी ख़त्म हो गया और वो फिर जामवंत हो गए.

तब ब्रह्मा जी के आदेश पर किष्किन्दा नगरी बसाई गई जिसका राजा बाली बना था, है न अद्भुद और विचित्र कथा?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...