चतुर्दश विद्या

💐।।चतुर्दश विद्या।।💐
संस्कृत वाङ्गमय में चतुर्दश(चौदह)विद्याओं का उल्लेख अनेक स्थलों पर मिलता है।महामुनि वरतन्तु ने अपने शिष्य कौत्स को चतुर्दश विद्याओं को पढ़ाया था।कौत्स के बार बार कहने पर नाराज गुरु ने शिष्य कौत्स से एक एक विद्या के लिए एक एक करोड़ स्वर्णमुद्रा मांग ली--
कोटिश्चतस्र:दश चाहरेति।
      ये चौदह विद्यायें निम्नवत् हैं--
    अंगानि चतुरो वेदा मीमांसा न्यायविस्तर:।
     पुराणं   धर्मशास्त्रं  च  विद्या ह्येताश्चतुर्दश।।
चार वेद(ऋग, यजु:,साम,अथर्व),छःवेदांग(व्याकरण,
ज्योतिष, निरुक्त, कल्प,शिक्षा,छन्द)मीमांसा,न्याय,पुराण
और धर्मशास्त्र।
इन चौदह विद्याओं में व्याकरण भी आठ प्रकार का होता है--ब्राह्म, ऐन्द्र,याम्य,रौद्र,वायव्य,वारुण,सावित्र,वैष्णव।
ज्योतिष भी फलित,गणित,संहिता भेद से तीन प्रकार का होता है।मीमांसा पूर्व और उत्तर भेद से दो प्रकार की होती है।धर्मशास्त्र के रूपमें स्मृतियाँ सुप्रसिद्ध हैं।पुराण अट्ठारह
हैं।चतुर्दशविद्याओं की ख्याति प्राचीनकाल से चलीआरही है।
।।  अष्टादश विद्या ।।
चतुर्दश विद्या में चार उपवेद मिलाने से अष्टादश विद्यायें होती हैं।ये हैं- आयुर्वेद, धनुर्वेद,गन्धर्ववेद और अर्थशास्त्र।
जिस दिन से अष्टादशविद्याओं को लोग जानने लगेंगे उस दिन से भारत का सौभाग्य जाग जाएगा।
आयुर्वेदो   धनुर्वेदो  गांधर्वश्चैव    ते त्रयः।
अर्थशास्त्रं चतुर्थन्तु विद्या ह्यष्टादशैव ताः।।
कतिपय आचार्य अर्थशास्त्र की जगह वास्तुशिल्प या स्थापत्य को मान्यता देतें हैं।अथर्व वेद से स्थापत्य वेद की उत्पत्ति हुई है।अस्तु।
डॉ कामेश्वर उपाध्याय
महासचिव,अखिलभारतीय विद्वतपरिषद।।

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