गुरु शुक्राचार्य चतुर नीतिकार थे। उन्होंने अपनी नीतियों को लिपिबद्ध करके शुक्रनीति नाम के प्रसिद्ध नीतिग्रन्थ की रचना की। इस नीतिसार का जो व्यक्ति अनुसरण करता है, उसका जीवन बेहतर और चरित्र सशक्तन बनता है। एक शुक्र नीति में ऐसी बातों के बारे में बताया है, जिन्हें सदैव साथ रख पाना संभव नहीं है। इस बात को समझ लेने वाला व्यक्ति धर्म को समझ सकता है।
यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।
प्रत्येक व्यक्ति की चाह होती है कि उसकी सुंदरता सदैव बरकरार रहे लेकिन ऐसा नहीं होता। यह प्रकृति का नियम है कि युवा अवस्था सदैव नहीं रहती। कुछ समय के पूर्व युवा अवस्था ढल जाती है।
शुक्रनीति के अनुसार मन की भांति ही धन का स्वबाव भी चंचल होता है। यह भी किसी एक के पास टिक कर नहीं रहता, इसलिए इसके मोह में स्वयं को बांधना ठीक नहीं है।
कहा जाता है कि इंसान की परछाई सदैव उसके साथ रहती है लेकिन परछाई भी मनुष्य का साथ तब तक देती है जब तक वह धूप में चलता है। जब इंसान की परछाई ही सदैव उसका साथ नहीं दे सकती तो ऐसे में किसी अन्य से ये उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
कुछ लोग मिले पद और अधिकार को छोड़ना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि ये पूरे जीवन उनके साथ ही रहे, लेकिन ऐसा संभव नहीं है। अधिकार और पद में समय-समय पर बदलाव होना जरूरी है और ऐसे में अपने मन में ऐसी इच्छा पालना ठीक नहीं है।
इस संसार में जो भी जीव-जंतु, मनुष्य जन्म लेकर आया है उसकी मृत्यु निश्चित है। व्यक्ति जीवन में कितना भी पूजा-पाठ या दवाइयों का सहारा ले लें, लेकिन एक समय के पश्चात मृत्यु अवश्य होनी है। व्यक्ति को पूजा-पाठ और अच्छे कर्मों से पुण्य की प्राप्ति हो सकती है लेकिन मृत्यु निश्चित है इसलिए किसी को भी जीवन से मोह नहीं रखना चाहिए।
व्यक्ति का मन चंचल है। कुछ लोग प्रयास करते हैं कि यह वश में रहे, लेकिन कभी न कभी उनका मन वश से बाहर हो ही जाता है। मन को पूरी तरह वश में करना मुश्किल है, लेकिन योग और ध्यान से इसे काबू किया जा सकता है
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