केवल भगवान् श्रीकृष्ण की ‘ही’ भक्ति करना है,
क्योंकि—
यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखाः।
प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्हणमच्युतेज्या॥
जैसे पेड़ की जड़ में खाद डाल दो, पानी डाल दो, तो पेड़ के तने में, डालों में, उपशाखाओं में, पत्रों में, पुष्पों में, फलों में जल पहुँच जाता है, अलग-अलग पत्ते पे पानी नहीं डालना पड़ता। ऐसे ही, केवल श्रीकृष्ण की भक्ति कर लो, तो सबकी भक्ति अपने आप मान ली जायेगी।
~~~जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज।
क्योंकि—
यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखाः।
प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्हणमच्युतेज्या॥
जैसे पेड़ की जड़ में खाद डाल दो, पानी डाल दो, तो पेड़ के तने में, डालों में, उपशाखाओं में, पत्रों में, पुष्पों में, फलों में जल पहुँच जाता है, अलग-अलग पत्ते पे पानी नहीं डालना पड़ता। ऐसे ही, केवल श्रीकृष्ण की भक्ति कर लो, तो सबकी भक्ति अपने आप मान ली जायेगी।
~~~जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज।
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