कलियुग में साधन

एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा॥
     रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि। संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि॥

भावार्थ – कलियुग में योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत और पूजन आदि  का  अध्यात्म के लिए कोई दूसरा साधन नहीं है। बस, श्री रामजी का ही स्मरण करना श्री रामजी का ही गुण गाना और निरंतर श्री रामजी के ही गुणसमूहों को सुनना चाहिए ।
अध्यात्म का अर्थ है- अपने भीतर के चेतन तत्व को जानना, और दर्शन करना अर्थात अपने आप के बारे में जानना या आत्मप्रज्ञ होना, गीता के आठवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि यदि व्यक्ति  अपने स्वरुप अर्थात जीवात्मा को जान लेता है तो वही अध्यात्म कहलाता है।  "परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते " आत्मा परमात्मा का अंश है यह तो सर्वविदित है।

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