बैकुण्ठ चतुर्दशी

शास्त्रों के अनुसार पूरे साल में एक दिन ऐसा होता है जिस दिन शरीर का त्याग करने वाले को सीधा स्वर्ग में स्थान मिलता है। यह दिन है बैकुण्ठ चतुर्दशी का दिन।
ऐसी मान्यता है इस इस चतुर्दशी तिथि के दिन स्वर्ग का द्वार पूरे दिन खुला रहता है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत करके भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं उनके सभी पाप कट जाते हैं और जीवात्मा को बैकुण्ठ में स्थान प्राप्त होता है इसलिए इसे बैकुण्ठ चतुर्दशी कहा गया है।
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने इसी दिन भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन परमब्रह्म भगवान शिव और विष्णु एकाकार रूप में रहते हैं।
मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन 1000 कमल पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजा करता है वह अपने कुल परिवार के साथ वैकुण्ठ में स्थान प्राप्त करता है।
महाभारत युद्घ के बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तिथि के दिन ही मृतक व्यक्तियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्घ तर्पण की व्यवस्था की थी। इसलिए शास्त्रों में इसदिन श्राद्घ तर्पण करने का भी बड़ा महत्व बताया गया है।

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