पुरुषोत्तम मास में रोज़ एक बार एक श्लोक बोल सकें तो बहुत अच्छा है :-
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं | |
हे भगवान ! हे गिरिराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में धारण करने वाले हे हरि ! हमारे विश्वास और भक्ति को भी तू ही धारण करना | प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करता रहेगा | हे गोवर्धनधारी आपको मेरा प्रणाम है आप समर्थ होते हुए भी साधारण बालक की तरह लीला करते थे | गोकुल में आपके कारण सदैव उत्सव छाया रहता था मेरे ह्रदय में भी हमेशा उत्सव छाया रहे साधना में, सेवा-सुमिरन में मेरा उसाह कभी कम न हो | मै जप, साधना सेवा,करते हुए कभी थकूँ नहीं | मेरी इन्द्रियों में संसार का आकर्षण न हो, मैं आँख से तुझे ही देखने कि इच्छा रखूं, कानों से तेरी वाणी सुनने की इच्छा रखूं, जीभ के द्वारा दिया हुआ नाम जपने की इच्छा रखूं ! हे गोविन्द ! आप गोपियों के प्यारे हो ! ऐसी कृपा करो, ऐसी सदबुद्धि दो कि मेरी इन्द्रियां आपको ही चाहे ! मेरी इन्द्रियरूपी गोपीयों में संसार की चाह न हो, आपकी ही चाह हो !
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं | |
हे भगवान ! हे गिरिराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में धारण करने वाले हे हरि ! हमारे विश्वास और भक्ति को भी तू ही धारण करना | प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करता रहेगा | हे गोवर्धनधारी आपको मेरा प्रणाम है आप समर्थ होते हुए भी साधारण बालक की तरह लीला करते थे | गोकुल में आपके कारण सदैव उत्सव छाया रहता था मेरे ह्रदय में भी हमेशा उत्सव छाया रहे साधना में, सेवा-सुमिरन में मेरा उसाह कभी कम न हो | मै जप, साधना सेवा,करते हुए कभी थकूँ नहीं | मेरी इन्द्रियों में संसार का आकर्षण न हो, मैं आँख से तुझे ही देखने कि इच्छा रखूं, कानों से तेरी वाणी सुनने की इच्छा रखूं, जीभ के द्वारा दिया हुआ नाम जपने की इच्छा रखूं ! हे गोविन्द ! आप गोपियों के प्यारे हो ! ऐसी कृपा करो, ऐसी सदबुद्धि दो कि मेरी इन्द्रियां आपको ही चाहे ! मेरी इन्द्रियरूपी गोपीयों में संसार की चाह न हो, आपकी ही चाह हो !
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