सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

पद्मपुराण के अनुसार स्वस्थ, भाग्यवान् और कर्मठ सन्तान चाहनेवाली गर्भवती महिला के कर्तव्य

पद्मपुराण के अनुसार स्वस्थ, भाग्यवान् और कर्मठ सन्तान चाहनेवाली गर्भवती महिला के कर्तव्य-


परमवीर और अति जिज्ञासु भीष्मजी और ऋषिश्रेष्ठ पुलस्त्यजी के बीच हुए वार्तालाप के संदर्भ में यह लोकोपयोगी प्रसंग आया है। एकबार मुनिवर कश्यपजी की पत्नी दिति ने उनसे अत्यंत समृद्धशाली, परम तेजस्वी और लोकविजयी पुत्र पाने के लिए गर्भ स्थापित करने का आग्रह किया। मुनि ने सहर्ष उसकी याचना स्वीकारकर उसके गर्भ में अपना वीर्य स्थापित कर दिया। फिर कश्यपजी ने दिति को समझाते हुए कहा कि यदि गर्भवती रहते हुए वह कुछ नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करेगी तो उसको अपना मनोवाञ्छित पुत्र अवश्य ही प्राप्त होगा, अन्यथा होनेवाली सन्तान न तो अधिक आयु की होगी और न सुन्दर गुणों से सम्पन्न। उन्होंने गर्भवती स्त्रियों के हितार्थ ये नियम इस प्रकार बताये-

1. उसे संध्या के समय भोजन नहीं करना चाहिए,
2. उसे किसी बृक्ष की जड़ के पास जाना नहीं चाहिए और कदाचित चले गए तो वहाँ ठहरना नहीं चाहिए,
3. उसे गहरे जल में प्रवेश नहीं करना चाहिए,
4. उसे सुने घर में न तो घुसना चाहिए और न रुकना ही चाहिए,
5. सूने घर में बैठकर नख या राख से भूमि पर रेखा नहीं खींचनी,
6. भूसी, कोयले, राख, हड्डी और खपड़े पर खड़ा नहीं होना चाहिए,
7. बाँबी (चूहे, चींटी आदि द्वारा बनाया गया बिल) पर खड़ा नहीं होना चाहिए,
8. अधिक परिश्रम नहीं करना चाहिए,
9. हरदम अलसाकर पड़ा नहीं रहना चाहिए,
10. कभी भी अपवित्र न रहे,
11. अंगड़ाई नहीं लेनी चाहिए,
12. अपने बालों को खोलकर खड़ी न हो,
13. कभी भी मन में उद्वेग (उत्तेजना) नहीं लाना चाहिए,
14. किसी से भी कलह, झगड़ा आदि नहीं करना चाहिए,
15. कभी भी अमङ्गल पूर्ण वचन नहीं बोलना चाहिए,
16. किसी से अधिक हँसी-मजाक नहीं करे,
17. उत्तर की ओर अथवा नीचे की ओर मुँह करके न सोये,
18. वह नंगी होकर, उद्वेग में पड़कर और बिना पैर धोये सोये भी नहीं,
19. सदा मांगलिक और अच्छे कार्यों में लगी रहे,
20. श्रेष्ठ और गुरुजनों के साथ सतत आदर का व्यवहार करे,
21. सबको सत्कार दे,
22. अपनी रक्षा का समुचित प्रबन्ध रखे,
23. पवित्र जल (हो सके तो औषधि युक्त जल) से स्नान करे,
24. अपने पति के प्रिय और हित में तत्पर रह कर सतत प्रशन्न रहे और
25. कभी भी पति की निन्दा न करे।
अतः, सभी स्त्रियों, जिनको भगवान ने गर्भवती होने का सौभाग्य दिया है, वह ध्यान देकर उपरोक्त नियमों का पालनकर सुन्दर, सौभाग्यशाली और दीर्घजीवी सन्तान को प्राप्त करने की चेष्टा करे, जिससे कि उसके साथ-साथ माता-पिता और समाज का हित हो सके।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिशाच भाष्य

पिशाच भाष्य  पिशाच के द्वारा लिखे गए भाष्य को पिशाच भाष्य कहते है , अब यह पिशाच है कौन ? तो यह पिशाच है हनुमानजी तो हनुमानजी कैसे हो गये पिशाच ? जबकि भुत पिशाच निकट नहीं आवे ...तो भीमसेन को जो वरदान दिया था हनुमानजी ने महाभारत के अनुसार और भगवान् राम ही कृष्ण बनकर आए थे तो अर्जुन के ध्वज पर हनुमानजी का चित्र था वहाँ से किलकारी भी मारते थे हनुमानजी कपि ध्वज कहा गया है या नहीं और भगवान् वहां सारथि का काम कर रहे थे तब गीता भगवान् ने सुना दी तो हनुमानजी ने कहा महाराज आपकी कृपा से मैंने भी गीता सुन ली भगवान् ने कहा कहाँ पर बैठकर सुनी तो कहा ऊपर ध्वज पर बैठकर तो वक्ता नीचे श्रोता ऊपर कहा - जा पिशाच हो जा हनुमानजी ने कहा लोग तो मेरा नाम लेकर भुत पिशाच को भगाते है आपने मुझे ही पिशाच होने का शाप दे दिया भगवान् ने कहा - तूने भूल की ऊपर बैठकर गीता सुनी अब इस पर जब तू भाष्य लिखेगा तो पिशाच योनी से मुक्त हो जाएगा तो हमलोगों की परंपरा में जो आठ टिकाए है संस्कृत में उनमे एक पिशाच भाष्य भी है !

मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए।?

 मनुष्य को किस किस अवस्थाओं में भगवान विष्णु को किस किस नाम से स्मरण करना चाहिए। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भगवान विष्णु के 16 नामों का एक छोटा श्लोक प्रस्तुत है। औषधे चिंतयते विष्णुं, भोजन च जनार्दनम। शयने पद्मनाभं च विवाहे च प्रजापतिं ॥ युद्धे चक्रधरं देवं प्रवासे च त्रिविक्रमं। नारायणं तनु त्यागे श्रीधरं प्रिय संगमे ॥ दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम् । कानने नारसिंहं च पावके जलशायिनाम ॥ जल मध्ये वराहं च पर्वते रघुनन्दनम् । गमने वामनं चैव सर्व कार्येषु माधवम् ॥ षोडश एतानि नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत ।  सर्व पाप विनिर्मुक्ते, विष्णुलोके महियते ॥ (1) औषधि लेते समय विष्णु (2) भोजन के समय - जनार्दन (3) शयन करते समय - पद्मनाभ   (4) विवाह के समय - प्रजापति (5) युद्ध के समय चक्रधर (6) यात्रा के समय त्रिविक्रम (7) शरीर त्यागते समय - नारायण (8) पत्नी के साथ - श्रीधर (9) नींद में बुरे स्वप्न आते समय - गोविंद  (10) संकट के समय - मधुसूदन  (11) जंगल में संकट के समय - नृसिंह (12) अग्नि के संकट के समय जलाशयी  (13) जल में संकट के समय - वाराह (14) पहाड़ पर ...

कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार)

 *कार्तिक माहात्म्य (स्कनदपुराण के अनुसार) अध्याय – ०३:--* *(कार्तिक व्रत एवं नियम)* *(१) ब्रह्मा जी कहते हैं - व्रत करने वाले पुरुष को उचित है कि वह सदा एक पहर रात बाकी रहते ही सोकर उठ जाय।*  *(२) फिर नाना प्रकार के स्तोत्रों द्वारा भगवान् विष्णु की स्तुति करके दिन के कार्य का विचार करे।*  *(३) गाँव से नैर्ऋत्य कोण में जाकर विधिपूर्वक मल-मूत्र का त्याग करे। यज्ञोपवीत को दाहिने कान पर रखकर उत्तराभिमुख होकर बैठे।*  *(४) पृथ्वी पर तिनका बिछा दे और अपने मस्तक को वस्त्र से भलीभाँति ढक ले,*  *(५) मुख पर भी वस्त्र लपेट ले, अकेला रहे तथा साथ जल से भरा हुआ पात्र रखे।*  *(६) इस प्रकार दिन में मल-मूत्र का त्याग करे।*  *(७) यदि रात में करना हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठे।*  *(८) मलत्याग के पश्चात् गुदा में पाँच (५) या सात (७) बार मिट्टी लगाकर धोवे, बायें हाथ में दस (१०) बार मिट्टी लगावे, फिर दोनों हाथों में सात (७) बार और दोनों पैरों में तीन (३) बार मिट्टी लगानी चाहिये। - यह गृहस्थ के लिये शौच का नियम बताया गया है।*  *(९) ब्रह्मचारी के लिये, इसस...