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कलयुग में महामंत्र हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ही जप करना क्यों बेहतर है?

          || महामंत्र ||

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे|
हरे  राम  हरे  राम   राम  राम  हरे  हरे||
अनुवाद: यह महामंत्र है|
प्रकाशिका वृत्ति नामक टीका:---

 श्रील जीव गोस्वामीपाद के अनुसार महामंत्र की व्याख्या इस प्रकार है–
‘हरे’ का अर्थ है– सर्वचेतोहर: कृष्णनस्तस्य चित्तं हरत्यसौ– सर्वाकर्षक भगवान् कृष्ण के भी चित्त को हरने वाली उनकी आह्लादिनी शक्तिरूपा ‘हरा’ अर्थात– श्रीमती राधिका|
‘कृष्ण’ का अर्थ है– स्वीय लावण्यमुरलीकलनि:स्वनै:– अपने रूप-लावण्य एवं मुरली की मधुर ध्वनि से सभी के मन को बरबस आकर्षित लेने वाले मुरलीधर ही ‘कृष्ण’ हैं|
.
‘राम’ का अर्थ है–
 रमयत्यच्युतं प्रेम्णा निकुन्ज-वन-मंदिरे–
निकुन्ज-वन के श्रीमंदिर में श्रीमती राधिका जी के साथ माधुर्य लीला में रमण करते करने वाले राधारमण ही ‘राम’ हैं| 
प्रमाण: --हरेकृष्ण महामंत्र कीर्तन की महिमा वेदों तथा पुराणों में सर्वत्र दिखती है| कलिकाल में केवल इसी मन्त्र के कीर्तन से उद्धार संभव है|
अथर्ववेद की अनंत संहिता में आता है–
षोडषैतानि नामानि द्वत्रिन्षद्वर्णकानि हि| कलौयुगे महामंत्र: सम्मतो जीव तारिणे||
सोलह नामों तथा बत्तीस वर्णों से युक्त महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में जीवों के उद्धार का एकमात्र उपाय है|

अथर्ववेद के चैतन्योपनिषद में आता है–.
स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति|

भगवन गौरचन्द्र सदैव महामंत्र का जप करते हैं जिसमे पहले ‘हरे’ नाम, उसके बाद ‘कृष्ण’ नाम तथा उसके बाद ‘राम’ नाम आता है| ऊपर वर्णित क्रम के अनुसार महामंत्र का सही क्रम यही है की यह मंत्र ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण...’ से शुरू होता है, न की ‘हरे राम हरे राम....’ से| जयपुर के संग्रहालय में अभी भी प्राचीनतम पांडु-लिपियों में महामंत्र का क्रम इसी अनुसार देख सकते है|

यजुर्वेद के कलि संतारण उपनिषद् में आता है–
इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं| नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते||

सोलह नामों वाले महामंत्र का कीर्तन ही कलियुग में कल्मष का नाश करने में सक्षम है| इस मन्त्र को छोड़ कर कलियुग में उद्धार का अन्य कोई भी उपाय चारों वेदों में कहीं भी नहीं है|

पद्मपुराण में वर्णन आता है–
द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं|

 प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत्||
जो वैष्णव नित्य बत्तीस वर्ण वाले तथा सोलह नामों वाले महामंत्र का जप तथा कीर्तन करते हैं– उन्हें श्रीराधाकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक की प्राप्ति होती है|

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