सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

शरद पूर्णिमा का महत्त्व


कहा जाता है कि धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में लोग शरद पूर्णिमा को पूर्ण श्रद्धा से माँ लक्ष्मी का पूजन करते है। इस दिन प्रात: स्नान करके माँ लक्ष्मी को कमल का फूल एवं मिष्ठान अर्पण करके उनकी पूजा आराधना अवश्य ही करनी चाहिएजिससे उनका आशीर्वाद जीवन भर बना रहे ।
द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ तब मां लक्ष्मी राधा रूप में अवतरित हुई। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अदभुत एवं दिव्य रासलीलाओं का आरंभ भी शरद पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इसीलिए शरद पूर्णिमा को ‘रास पूर्णिमा’ या ‘कामुदी महोत्सव’ भी कहा जाता है।

हिन्दु शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती पर आती हैं। और यह देखती हैं कि उनका कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को ‘कोजागरा’ भी कहा जाता है। कोजागरा का अर्थ है कौन जाग रहा है।कहते है कि जो जातक इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर अवश्य ही कृपा होती है। ज्योतिषीयों के अनुसार भी जो इस रात को जागकर माता लक्ष्मी की उपासना करता है उसको मनवाँछित लाभ की प्राप्ति होती है और यदि उसकी कुण्डली में धन योग नहीं भी हो तब भी माता उन्हें धन-धान्य से अवश्य ही संपन्न कर देती हैं। उसके जीवन से निर्धनता का नाश होता है,इसलिए धन की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को इस दिन रात को जागकर अवश्य ही माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए ।


मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः स्नान करके पूर्ण विधि विधान से भगवान सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। जिससे उन्हें योग्य एवं मनचाहा पति प्राप्त हो।

हिन्दु धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि माँ लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय है इसलिए हर पूर्णिमा को माता को खीर का भोग लगाने से कुंडली में धन का प्रबल योग बनता है। लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने का और भी विशेष महत्व है।

शरद पूर्णिमा को दूध और चावल की खीर बनायें और उसमें चीनी की जगह मिश्री को डालें । इस खीर में अपनी सामर्थ्य के अनुसार मेवा भी डाले, विशेषकर केसर तो अवश्य ही डालें । खीर बनाने के बाद इसमें कुछ देर के लिए चाँदी की वस्तु डाल दें । इस खीर को रात भर के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में रखें फिर सुबह भगवान को भोग लगाकर इस प्रशाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए । इस तरह से बनी खीर के सेवन से माँ लक्ष्मी की कृपा और निरोगिता प्राप्त होती है । घर परिवार के सदस्यों के बीच में प्रेम रहता है ।

ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में विशेष अमृतमयी गुण भी होता हैं, जिससे बहुत सी बीमारियों का नाश हो जाता हैं। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को लोग गाय के दूध की खीर बनाकर माता लक्ष्मी को भोग लगाकर उसे अपने घरों की छतों पर रखते हैं जिससे वह खीर चंद्रमा की किरणों के संपर्क में आ जाये और उसके बाद अगले दिन सुबह उसका सेवन किया जाता है। इस खीर के सेवन से निरोगिता और दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन बहुत से भक्त खीर का प्रसाद भी वितरण करते है।

इस समय चंद्रमा की उपासना भी करनी चाहिए।

इस दिन तांबे के बरतन में देशी घी भरकर किसी ब्राह्मण को दान करने और साथ में दक्षिणा भी देने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और धन लाभ की प्रबल सम्भावना बनती है। इस दिन ब्राह्मण को खीर, कपड़े आदि का दान भी करना बहुत शुभ रहता है ।

इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीसत्रोत का पाठ एवं हवन करना भी बेहद शुभ माना जाता है।

स्त्री को लक्ष्मी का रूप माना गया है अत: जो भी व्यक्ति इस दिन अपने घर की सभी स्त्रियों माँ, पत्नी, बहन, बेटी, भाभी, बुआ, मौसी, दादी आदि को प्रसन्न रखता है उनका आशीर्वाद लेता है, उनको यथाशक्ति उपहार देता है , माँ लक्ष्मी उस घर से कभी भी नहीं जाती है उस व्यक्ति को जीवन में किसी भी वस्तु का आभाव नहीं रहता है । इस दिन स्त्रियों का आशीर्वाद साक्षात माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद ही होता है, अत: उन्हें किसी भी दशा में नाराज़ नहीं करना चाहिए ।

शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि में चन्द्रमा को एक टक ( बिना पलके झपकाये ) देखना चाहिए । इससे नेत्रों के विकार दूर होते है आँखों की रौशनी बढ़ती है ।

शरद पूर्णिमा के दिन रात को चन्द्रमा की चाँदनी में एक सुई में धागा अवश्य पिरोने का प्रयास करें , उस समय चन्द्रमा के प्रकाश के अतिरिक्त कोई भी और प्रकाश नहीं होना चाहिए। माना जाता है इस प्रयोग को करने से, अर्थात सुई में धागा सफलता पूर्वक पिरोने से वर्ष भर ऑंखें स्वस्थ रहती है ।

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