गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

सबसे बड़ा धन

                सबसे बड़ा धन  


एक गॉव में एक धनी व्यक्ति रहता था. उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी और उसने दसियों नौकर-चाकर लगा रखे थे.

अपने सारे काम वह नौकरों से ही करवाता था और खुद सारे दिन या तो सोता रहता या अय्याशी करता था. धीरे धीरे वह बिल्कुल निकम्मा हो गया था.

उसे ऐसा लगता था कि वह सबका स्वामी है क्योंकि उसके पास बहुत धन है, और इसलिए उसे खुद कुछ भी करने की क्या जरूरत है. यही सोचकर वह दिन रात बस आराम करता रहता था.

कुछ सालों बाद उसे ऐसा महसूस होने लगा कि जैसे उसका शरीर पहले से शिथिल होता जा रहा है. उसे हाथ पैर हिलाने में भी तकलीफ़ होने लगी. यह देखकर वह व्यक्ति बहुत परेशान हुआ.

उसके पास बहुत पैसा था सो उसने शहर से बड़े- बड़े डॉक्टर बुलाये और खूब पैसा खर्च किया, लेकिन उसका शरीर ठीक नहीं हो पाया. अब तो वह बहुत दुखी रहने लगा.

इसी दौरान एक साधु भटकते-भटकते उस गाँव में आये. उन्होने भी उस धनी व्यक्ति की बीमारी के बारे मे सुना. सो उन्होनें सेठ के नौकर से कहा कि वह उसकी बीमारी का इलाज़ कर सकते हैं.

यह सुनकर नौकर सेठ के पास भागा-भागा गया और साधु के बारे में सब कुछ बताया.

अब सेठ ने तुरंत अपने नौकर से साधु को बुला लाने को कहा लेकिन साधु ने कहला भेजा क़ि वह सेठ के पास नहीं आएँगे. अगर सेठ को ठीक होना है तो वह स्वयं यहाँ अपने पांवों पर चलकर आए.

सेठ को साधु का यह व्यवहार बुरा तो लगा लेकिन चूंकि गरज उसकी थी सो दुखी मन से बड़ा कष्ट उठाते हुए हुए वह साधु के स्थान तक पैदल चल कर गया.

सेठ जब वहाँ पहुंचा तो पता चला कि साधु तो कहीं भ्रमण के लिए निकल गए हैं और सेठ को कल आने की कह कर गए हैं.

मन मार कर वह वापस लौट आया और अगले दिन फिर जैसे-तैसे साधु के स्थान पर पहुंचा.

लेकिन दूसरे दिन भी साधु अपने स्थान पर नहीं मिले. साधु के चेले ने फिर से कल आने को कह दिया.

अब तो रोजाना का यही नियम हो गया. साधु रोज उसे बुलाते लेकिन जब सेठ आता तो वे वहाँ नहीं मिलते.

ऐसे करते करते 3 महीने गुजर गये. अब सेठ को लगने लगा जैसे वह ठीक होता जा रहा है उसके हाथ पैर धीरे धीरे काम करने लगे हैं.

अब सेठ की समझ में सारी बात आ गयी कि साधु महाराज आखिर उससे क्यों नहीं मिलते थे. लगातार 3 महीने चलने से उसका शरीर काफ़ी ठीक हो गया था.

तब आखिर एक दिन जाकर उसकी साधु से मुलाक़ात हुई. उन्होंने कहा – “मेरे पास तुम्हें देने के लिए कोई दवा नहीं है. तुम्हारी दवा केवल चलना-फिरना थी, सो तुम्हें मिल गई.

जीवन में कितना भी धन कमा लो लेकिन स्वस्थ शरीर से बड़ा कोई धन नहीं होता. ये शरीर पैसे से नहीं बल्कि मेहनत से स्वस्थ रहता है.”

धनी व्यक्ति को शारीरिक श्रम की महत्ता पहले ही समझ में चुकी थी. इसके बाद उसने जीवन में कभी आलस्य नहीं 

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