गोकोटिदानं ग्रहणेषु काशी,
प्रयागगंगायुतकल्पवासः।
यज्ञायुतं मेरूसुवर्णदानं,
गोविंदनाम्ना न कदापि तुल्यम्।।
दानौ में सर्वश्रेष्ठ, गौ दान का महत्व काशीजी में है, यदि ग्रहण काल में गौ दान काशी में किया जाये तो वह अक्षय हो जाता है। यदि काशी में चंद्र ग्रहण के समय करोड़ों गायों का दान किया जाये तो उस पुन्य का कुछ ठिकाना ही नहीं।
तीर्थराज प्रयाग में स्नान का ही बड़ा महत्व है। यदि प्रयागराज ( गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन स्थल ) में जीवन भर कल्पवास किया जाये तो फिर उस पुण्य का वर्णन करना संभव नहीं है। ऐसे कल्पवास यदि 10,000 बर्ष किये जायें तो वह अक्षय है।
यज्ञ तो भगवान् का ही स्वरूप है, "यज्ञो वै विष्णुः"। ऐसे यज्ञ दस हजार किये जायें तो सबसे अधिक पुण्य कर्म वे ही मानें जायेंगे।
स्वर्ण दान करना महापुण्य है, सुमेरू पर्वत सबसे बड़ा पर्वत है। यदि सुमेरू पर्वत के बराबर स्वर्ण दान किया जाये। तो उसके पुण्य का अनुमान भी नहीं किया जा सकता।
ऊपर जितने भी पुण्यप्रद कर्म गिनाए गए हैं। ये सब मिलकर एक गोबिंद ( कृष्ण ) नाम के समान नहीं हो सकते। कृष्ण (गोपालसहत्र नाम में अपने प्रिय कोई एक ) नाम का महत्व इन सबसे बढ़कर है। क्योंकि ये सारे पुण्य अनंत सुखों की प्राप्ति तो देते हैं। पर समय के साथ ( भोगमान भोगने के बाद) नष्ट हो जाते हैं। और इनसे संसार बंधन छूटता नहीं है।
यदि हरि नाम मरते समय निकाल जाये तो संसार बंधन से मुक्त हो हरि धाम प्राप्त कर लेता है।
पर मृत्यु के समय या अंत काल आने पर मुख से हरि नाम तभी प्रगट होगा जब जीव जीवन परयंत निष्ठा पूर्वक निश्छल प्रेम सहित हरि ध्यान करते हुए हरि नाम उच्चारण में आनंदित होयेगा।
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