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रूप चौदस

रूप चौदस की कहानी –


एक योगी ने खुद को भगवान के ध्यान में लीन करते हुए समाधी लगाई। समाधी लगाने के कुछ दिन बाद ही उनके शरीर में कीड़े पड़ गए।

बालों में भी कीड़े पड़ गए। आँखों की पलकों और भोहों में भी जुएँ पैदा हो गई। इससे परेशान योगी की समाधी जल्द ही टूट गई। अपने शरीर

की दुर्दशा देखकर योगी को बड़ा दुःख हुआ। नारद जी वीणा और खरताल बजाते हुए वहाँ से गुजर रहे थे। योगी ने नारद जी को रोककर पूछा

की प्रभु चिंतन में लीन होने की चाह होने पर भी यह दुर्दशा क्यों हुई।



नारद जी बोले। हे योगिराज आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। क्योंकि यह कैसे करते है आपको पता ही नहीं है।

समाधी में लीन होने से पहले देह आचार कर लेते तो आपकी यह दशा नहीं होती। योगिराज ने पूछा अब क्या करना चाहिए। तब नारद जी ने

कहा की आपको रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल की मालिश करें। इसके बाद अपामार्ग ( चिचड़ी ) का पौधा

जल में डालकर उस जल से स्नान करें। इस दिन व्रत रखते हुए विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें तो आपका शरीर स्वस्थ और

रूपवान हो जायेगा। योगिराज के ऐसे करने पर वे स्वस्थ और रूपवान हो गए।



रूप चौदस का दिन बहुत शुभ दिन है अतः प्रसन्न रहकर भक्तिभाव से अपने इष्ट की पूजा करने से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
1.इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए. ऐसा माना जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्य के उदय होने के बाद नहाता हैं. उसके द्वारा पूरे वर्ष भर में किये गये शुभ कार्यों के फल की प्राप्ति नहीं होती.

2. सूर्य उदय से पहले स्नान करने के बाद दक्षिण मुख करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें. ऐसा करने से व्यक्ति के द्वारा किये गये वर्ष भर के पापों का नाश होता हैं.

3. नरक चतुर्दशी की शाम को सभी देवताओं की पूजा करने के बाद तेल के दीपक जलाकर घर के दरवाजे की चोखट के दोनों ओर, सड़क पर तथा अपने कार्यस्थल के प्रवेश द्वारा पर रख दें. ऐसा माना जाता हैं कि इस दिन दीपक जलाने से पूरे वर्ष भर लक्ष्मी माता का घर में स्थाई निवास होता हैं.

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