श्री नंदकिशोर दास गोस्वामी प्रभु


          श्री नंदकिशोर दास गोस्वामी प्रभु 

     संवत 1815 नंदकिशोर जी विवाह के बाद एक पुत्र के जन्म के बाद गृह त्याग कर वृंदावन चले आये। और अपने साथ निताई - गौर के विग्रह लेते आये, जिनकी आज भी श्रंगारवट में विधिवत् सेवा चल रही है। उनका अलौकिक प्रभाव देख जोधपुर के राजा ने उन्हें बहुत सी भू संपत्ति प्रदान की, जिसका उनके वंशज निताई - गौर की सेवा में उपयोग कर रहे हैं।
       श्री पाद् नंदकिशोर जी के पास भोंदू नाम का एक ब्रजबासी बालक रहता था, जो उनकी गायों की देखभाल करता था। लोग उसे भोंदू इसलिए कहा करते थे कि उसमें छल कपट चतुराई जरा भी नहीं थी। वह नित्य बालभोग प्रसाद पा कर श्री पाद की गायें चराने जमुनापार भांडीरवन में ले जाया करता था, किसी ने उससे कहा कि भांडीरवन में नंदलाल ग्वाल बाल साहित गायें चराने आते हैं। वह यह सोच कर खुश होता कि किसी दिन उनसे भेंट होगी तो वह उनसे मित्रता कर लेगा।
       भोले भाले भोंदू के ह्दय की भाव तरंग उमड़ घुमड़कर जा टकराई भक्तवत्सल भगवान के मनमंदिर से। उनमें भी एक अपूर्व आलोड़ना की सृष्टि हुई और जाग पड़ी एक नयी वासना भोंदू के साथ मित्रता कर खेलकूद कर आनंद लेने की।
      तो हो गयी एक दिन भेंट दोनों में। भेंट को मित्रता में बदलते देर न लगी। भोंदू नित्य कुछ खाने पीने की सामग्री लेकर आता। नंदलाल और उनके साथी साथ खाते पीते और खेलते। कई दिन तक श्री पाद ने देखा, भोंदू को सामन ले जाते। आखिर एक दिन पूछ लिया भोंदू से  - भोंदू यह क्या ले जा रहे हो।
       जे दाल बाटी के ताई हैं श्री पाद।
    दाल बाटी ?  किसके लिए ?
        नंदलाल और बिनके साथी ग्वाल बालन के लिए । हम सब मिलकर रोज दालबाटी बनामें हैं।
       नंदलाल! कौन से नंदलाल रे ?
     बेई बंसीबारे! भांडीरवन में गैया चरामें हैं।
बंसीबारे ! भांडीरवन में गैया चरामें हैं !  अच्छा बता तो उनका मुखारबिंद और वैशभूषा कैसी है?
      बे बड़े मलूक हैं। सिर पै मोर मुकुट धारन करे हैं। कानन में कुण्डल गले में बनमाला धारन करै हैं और पीले रंग की ओढ़ना ओढ़े हैं।
       श्री पाद आश्चर्य चकित नेत्रों से भोंदू की ओर देखते रह गए। उन्हें इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था। पर वे विश्वास किये बिना रह भी नहीं सकते थे। क्योंकि वे जानते थे कि भोंदू झूठ नहीं बोलता।
       उन्होंने कहा कि अच्छा भोंदू एक दिन नंदलाल और उनके साथियों को यहाँ ले आना। उनसे कहना कि श्री पाद के यहाँ दाल बाटी का निमंत्रण है। वे आ जायेंगे न ?
       आमेंगे च्यों नई । मैं बिनकू लै आऊंगो भोंदू ने खुश होकर कहा।
        उस दिन भांडीरवन जाते समय भोंदू सोच रहा था - आज नंदलाल से श्री पाद के निमंत्रण की कहूंगा, तो वह कितना खुश होगा ! पर जब उसने उनसे निमंत्रण की बात कही, तो वे बोले - हम काऊकौ नौतो औतो नाय खामे ।
        भोंदू का चेहरा उतर गया। उसने कहा  - नाय नंदलाल, तोको चलनौ परैगो । मैने श्री पाद से कह दी है, मैं तोय लै जाऊँगो।
         नाय हम नाय जायें। हमकू श्री पाद सो कहा करनौ  ?
         भोंदू रौष करना नहीं जानता था, पर उस समय उसे रौष आ गया। उसने नंदलाल से कुछ नहीं कहा। पर वह अपनी गायों अलग कर कहीं अन्यत्र जाने लगा। जैसे वह नंदलाल से कह रहा हो  - तुझे श्री पाद से कुछ नहीं करना तो मुझे भी तुझसे कुछ नहीं करना। बस हो चुकी तेरी- मेरी मैत्री।
           वह थोड़ी दूर ही जा पाया था कि नंदलाल ने पुकारा - भोंदू ओ भोंदू ! नैक सुन जा।
         भोंदू अब क्या सुनने वाला था ? वह और भी तेजी से गायों को हाँकने लगा। भोंदू सुनने वाला नहीं था। तो भगवान भी उसे छोड़ने कब थे ? वे भागे उसके पीछे पीछे।
         पर वे जिसके पीछे भागें वह भागकर जाय कहाँ ? नंदलाल जा खड़े हुए भोंदू का रास्ता रोक कर और बोले - सुने नाय ?
          उनका स्वर ऊँचा था, पर उसमें विनय का भाव था। भोंदू ने उनके नेत्रों की ओर देखा तो वे सजल थे। उसने कहा  - कहा कहै ?
      मैं कहूँ, मैं श्री पाद को निमंत्रण अस्वीकार नाय करूँ। मैं तो कहूं मैं श्रंगारवट नाय जाऊँगो। तू तो भोरौ है, जानै नाय श्रंगारवट राधारानी को ठौर है। हुआँ दाऊ दादा और मेरे सखा कैसे जामेंगे ? श्री पाद को हेई आने परैगो अपने माथे पै सामग्री लैके। वे अपने हाँथन से दाल बाटी बनायेंगे, तो हम पामेंगे। भोंदू प्रसन्न होकर यह बात श्री पाद से निवेदित की।
       श्री पाद प्रचुर मात्रा में सामग्री अपने मस्तक पर वहन कर भांडीरवन पहुंचे। वे बलराम कृष्ण को ग्वाल-बालों के साथ उनका क्रीड़ा विनोद देखकर कृतार्थ हुए। थोड़ी देर में सबकुछ अंतर्हित हो गया। तब वे मूर्छित हो भूमि पर गिर पड़े। उस समय उन्हें आदेश हुआ - अधीर न हो। घर जाओ और मेरी लीला स्थलियों का वर्णन करो। इस आदेश का पालन कर श्री पाद ने श्री बृंदाबन लीलामृत और श्री श्रीरसकलिका नाम के दो ग्रंथों का प्रणयन किया।

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