शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

प्रद्युम्न

ठाकुर श्रीकृष्ण के श्री रुक्मिणी जी के साथ गृहस्थ जीवन की शुरुआत में प्रथम पुत्र के रूप में साक्षात् कामदेव के अवतार प्रद्युम्न आए हैं!!!!!!

जब जदुबंस कृष्न अवतारा। होइहि हरन महा महिभारा॥
कृष्न तनय होइहि पति तोरा। बचनु अन्यथा होइ न मोरा॥
रति गवनी सुनि संकर बानी। कथा अपर अब कहउँ बखानी॥

भगवान शंकर रति से कहते हैं कि जब पृथ्वी के बड़े भारी भार को उतारने के लिए यदुवंश में श्री कृष्ण का अवतार होगा, तब तेरा पति उनके पुत्र (प्रद्युम्न) के रूप में उत्पन्न होगा। मेरा यह वचन अन्यथा नहीं होगा॥

शिवजी के वचन सुनकर रति चली गई। अब आगे की कथा विस्तार से कहता हूँ।

श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं - हे राजन! बालक प्रद्युम्न अभी दस दिन के भी नहीं हुए थे कि कामरूपी शम्बरासुर वेष बदलकर आया और सूतिकागृह से उनका हरण करके ले गया और समुद्र में फेंककर अपने घर लौट आया क्योंकि शम्बरासुर को पता था कि ये मेरा भावी काल है तो क्यों न बाल्यकाल में ही इसे मार दिया जाए। परंतु शम्बरासुर यह भूल गया था कि *हम कुछ भी कर सकते हैं, परंतु भगवान को आने से और मौत को आने से नहीं रोक सकते। और एक भक्त को इन दो को कभी भूलना भी नहीं चाहिए, “नारायण एक मौत को, दूजे श्री भगवान ।”

श्री रुक्मिणी जी और समस्त प्रजा को लगा और विश्वास हो गया कि प्रद्युम्न मारे गए। परंतु इधर प्रद्युम्न समुद्र में गिरे, उन्हें एक मच्छ निगल गया, उस मच्छ को मछुओं ने बड़े से जाल में पकड़कर मार दिया और देखिए ग़ज़ब की लीला, उस मच्छ को शम्बरासुर की ही रसोई में भेंट कर आए,  ”काल फिरत सिर साँधे” । जिस काल को शम्बरासुर समुद्र में फेंक आया था, वही काल उसकी आहार-रसोई में पहुँच गया।

रसोईयों ने कुल्हडियाँ लेकर उस मच्छ को काटा तो बालक प्रद्युम्न जीवित मिले और उसे रसोईघर की अध्यक्ष रति देवी की अवतार मायावती को सौंप दिया। उनके मन में उस बालक को लेकर शंका हुई। अब किसी सत्चरित्र को शंका हो और किसी भक्त की कृपा न हो ऐसा प्रभु होने नहीं देते हैं। तो स्वयं नारद जी महाराज वहाँ पधारे और बालक का पूर्व जन्म, श्री कृष्ण-रुक्मिणी के विवाह की कथा,  प्रद्युम्न का जन्म होना, मच्छ के पेट में जाना और रसोई तक पहुँचना - सारी कथा कह सुनायी।

रति अवतार श्री मायावती देवी को सब स्मरण में आ गया और वे बड़े प्रेम में मग्न हो प्रसन्न हो गयीं। मायावती अब बालक प्रद्युम्न की पत्नी होते हुए भी पुत्र-भाव से पालन करने लगीं और अब धीरे-धीरे प्रद्युम्न बड़े होने लगे और जब जवान हुए तो इनको ऐसा रूप-लावण्य प्राप्त हुआ कि जो स्त्रियाँ उनकी ओर देखतीं, उनके मन में श्रृंगार रस का उद्दीपन हो जाता।

एक दिन जब प्रद्युम्न से रहा न गया और मायावती के बदलते भाव उनके समक्ष प्रश्न-चिह्न खड़ा करने लगे तब उन्होंने कहा - देवि! आप मेरी माँ के समान हैं परंतु मैं देखता हूँ कि आपके भाव कुछ समय से मेरे प्रति कामिनी जैसे क्यों हो रहे हैं? इसका क्या कारण है सो मुझसे कहें।

तब मायावती ने अपने और उनके पूर्व जन्म की कथा सुनायी, उनके इस जन्म के माता-पिता श्रीकृष्ण-रुक्मिणी हैं - यह बताया, उनके यहाँ तक पहुँचने का बचपन का सारा वृतांत बताया, श्री रुक्मिणी जी को उनको याद कर-करके व्यथित होती हैं - यह भी बताया और उन्हें शम्बरासुर के मरण के लिए प्रेरणा दी तथा महामाया नाम की विद्या सिखायी और फिर शिक्षा-गुरु-रूप से आज्ञा दी कि आप शम्बरासुर का उद्धार करें।

 ठाकुर श्रीकृष्ण के पुत्र श्री प्रद्युम्न जी महाराज प्रभु के ही अंशावतार हैं, प्रभु के श्रीअंग से इस सृष्टि के विस्तार के लिए ही काम का प्रादुर्भाव है, परंतु काम तभी तक विकार नहीं है जब तक हमारा लक्ष्य वंश-विस्तार ही हो लेकिन ज्यों ही काम इन्द्रिय सुख के लिए प्रयुक्त में लाया जाने लगता है तब यह एक विकार का रूप ले लेता है, और हर हाल पतन का कारण बन जाता है, भजन में बहुत बड़ा विक्षेप है यह काम , इसलिए इससे अपने आप को प्रभु की कृपा रूपी बाड़ से बचाएँ ताकि भक्ति का बीज सही से फले और कोई इसे क्षति न पहुँचे।

 बड़ी सावधानीपूर्वक रहकर ही इससे बचा जा सकता है, भजन में रसना (जीभ का स्वाद) के बाद यदि कोई बलशाली शत्रु हमें आहत कर सकता है तो वह है - यह काम, इसीलिए बड़े संयम के साथ भजन करना चाहिए।

श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं - हे राजन! प्रद्युम्न की पत्नी मायावती ने सारी माया सिखा ही दी थी तो अब वे शम्बरासुर के समक्ष गए और बड़े कटु-कटु आक्षेप करने लगे। वे चाहते थे कि ये किसी प्रकार मुझसे झगड़ा कर बैठे और जब कुछ विफल से महसूस हुए तो उन्होंने शम्बरासुर को स्पष्ट रूप से युद्ध के लिए ललकारा।
शम्बरासुर क्रोध में इस प्रकार भर गया जैसे मानो किसी ने विषैले साँप को पैर से ठोकर मार दी हो और वह फूँफकार मारता हुआ सामने आ जाए।

परीक्षित! शम्बरासुर ने बड़े वेग से गदा का प्रहार किया तो उसको काटते हुए भगवान प्रद्युम्न ने अपनी गदा से उसकी ओर वार किया, परंतु शम्बरासुर मायावी था तो उसने मयासुर की बतलायी हुई आसुरी माया का आश्रय लेकर आकाश में उड़ान भरी और वहीं से प्रद्युम्न जी पर अस्त्र-शास्त्रों की वर्षा करने लगा। तो अब श्री प्रद्युम्न जी महाराज ने सत्वमयी महाविद्या का प्रयोग किया और अंतत: तीक्षण तलवार से शम्बरासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया।देवतालोग पुष्पों की वर्षा करते हुए स्तुति करने लगे, जय-जयकार करने लगे।

अब मायावती रति, अपने पति प्रद्युम्न को लेकर आकाश मार्ग से होते हुए सीधा द्वारिकापुरी पहुँचती हैं। परीक्षित! आकाश में दोनों ऐसे लग रहे थे जैसे बिजली और मेघ का जोड़ा हो। उन्होंने प्रभु के महल के अंत:पुर में प्रवेश किया और जब श्रेष्ठ रमनियों ने उन्हें देखा कि ये तो साक्षात् श्रीकृष्ण लगते हैं। बड़ी-बड़ी भुजाएँ, रत्नारे नेत्र, सुघड गर्दन, लम्बा क़द, मंद-मंद मुस्कान, नीली-घुँघराली अलकें हैं, उन्हें देखकर सब स्त्रियाँ इधर-उधर छुप गयीं। परंतु ग़ौर से देखने पर पता लगा कि ये श्रीकृष्ण नहीं हैं, कोई और हैं।

 इतने में ही श्री रुक्मिणी जी वहाँ पधारी हैं तो ज्यों ही उन्होंने  प्रद्युम्न को देखा त्यों ही मन में खोए हुए अपने बालक की स्मृति हो आयी और वात्सल्य-स्नेह की अधिकता से उनके स्तनों से दुग्धामृत बह चला। वे अपने आप से ही ये कौन हैं, कहाँ से आए हैं, इतने सुंदर कैसे हैं, मेरा पुत्र कहाँ है, वह कैसा होगा, इसे देखकर मुझे पुत्र की याद क्यों आ रही है - ऐसे सब प्रश्न करने लगीं। ‘हो-न-हो यह वही बालक है, जिसे मैंने अपने गर्भ में धारण किया था, क्योंकि स्वभाव से ही मेरा स्नेह इसके प्रति उमड़ रहा है और मेरे वाम अंग फड़क रहे हैं।’

निश्चय और संदेह के झूले में उनका मन झूल ही रहा था कि स्वयं पवित्रकीर्ति भगवान श्रीकृष्ण अपने माता-पिता वसुदेव-देवकी के साथ मध्य में आ पहुँचे परंतु चुप खड़े रहे, इतने में ही नारद जी वहाँ आ पहुँचे और सब कुछ कह सुनाया। सभी इतने हर्षित हुए मानो कोई मरकर जी उठा हो, सब प्रद्युम्न जी महाराज को गले से लगाकर लाड़ लड़ाने लगे और उनका ख़ूब अभिनंदन किया।
“जब सभी द्वारिकावासियों को ख़बर मिली तो सबने ख़ूब उत्सव मनाया और आनंद पाया।”

परीक्षित! प्रद्युम्न का रूप-रंग भगवान श्रीकृष्ण से इतना मिलता-जुलता था कि उन्हें देखकर उनकी माताएँ भी उन्हें अपना पतिदेव मानकर मधुरभाव में मग्न हो जाती थीं और उनके सामने से हटकर एकांत में चली जाती थीं।
*ऐसे श्रीनिकेतन भगवान श्रीकृष्ण के प्रतिबिम्बस्वरूप कमावतार भगवान प्रद्युम्न को हम सब प्रणाम करते हैं।

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