श्री विष्णु :
हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु 'परमेश्वर' के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं।
भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं ।
संपूर्ण विश्व श्रीविष्णु की शक्ति से ही संचालित है।
वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं।
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि |
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ||
अर्थ: पद्मके (कमल पुष्प ) समान मुखवाले, बिना पत्र एवं विघ्नवाले पद्म समान, पद्मप्रिय, पद्म समान नयन वाले,विश्वप्रिय – हे मनको भानेवाले श्री विष्णु अपने पद्म रूपी चरणोंके सान्निध्यमें हमें रखें !;
माँ लक्ष्मि !
=======
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥१॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥२॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥३॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥४॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥५॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे !
जय माता दी, जय माता जी! जय माता दी, जय माता जी !
हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु 'परमेश्वर' के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं।
भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं ।
संपूर्ण विश्व श्रीविष्णु की शक्ति से ही संचालित है।
वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं।
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि |
विश्वप्रिये विष्णुमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ||
अर्थ: पद्मके (कमल पुष्प ) समान मुखवाले, बिना पत्र एवं विघ्नवाले पद्म समान, पद्मप्रिय, पद्म समान नयन वाले,विश्वप्रिय – हे मनको भानेवाले श्री विष्णु अपने पद्म रूपी चरणोंके सान्निध्यमें हमें रखें !;
माँ लक्ष्मि !
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नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥१॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥२॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥३॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥४॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥५॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ! ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे !
जय माता दी, जय माता जी! जय माता दी, जय माता जी !
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