श्रीराधाश्यामसुन्दर विग्रह गौड़ीय वेदान्ताचार्य श्री बलदेव विद्या भूषण द्वारा बसंत पंचमी को स्थापित करवाए गए थे। स्वामी जी को ये आभास हुआ कि छोटे से श्यामसुंदर का साज श्रृंगार भली भाँति नहीं हो पाता । तब उन्होंने निलगिरी, उड़ीसा से विशेष पत्थर प्राप्त कर श्री श्यामसुन्दर जी के सुन्दर विग्रह का निर्माण करवाया और इनके साथ ही अष्टधातु की सुन्दर राधिका प्रतिमा का भी निर्माण करवाया था ।
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आज श्रीराधाश्यामसुंदर मंदिर में लाला और लाली जी का विवाह उत्सव भी है।मन्दिर में सबसे छोटे विग्रहों का नाम लाला-लाली जी है । लाला जी वही विग्रह हैं जिन्हें संवत 1578 ई० में "श्रीराधारानी ने अपने हृदय कमल से प्रकट कर श्री श्यामानंद प्रभु को सेवा-पूजा के लिए प्रदान किया था"।
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श्रीश्यामसुंदर के प्राकट्य के दो वर्ष उपरांत एक और अभूतपूर्व घटना घटी। भरतपुर रियासत के राजा के कोष में रातों रात राधारानी (लाली) का एक दिव्य विग्रह स्वयं प्रकट हो गया। उस रात श्री श्यामसुंदर ने श्यामानंद प्रभु को स्वप्न में कहा-मेरी राधारानी भरतपुर के राज प्रासाद में प्रकट हो गई हैं। तुम मेरा उनके साथ मिलन कराओ। उधर स्वयं प्रकटित राधारानी ने भरतपुर के महाराज को भी स्वप्न में आदेश दिया-मेरे श्यामसुंदर श्रीधामवृंदावन में श्यामानंद की कुंज में प्रकट हो चुके हैं। तुम मुझे वहां ले जाकर उनके साथ मेरा विवाह संपन्न कराओ। स्वप्न देखने के बाद राजा की निद्रा भंग हो गई। उन्होंने उसी समय अपनी रानी को जगाकर स्वप्न के विषय में बताया।
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सुबह होते ही जब वे दोनों अपने भंडारगृह में गए तो उन्हें वहां मूल्यवान रत्नों के मध्य राधारानी का स्वयं प्रकटित अपूर्व सुंदर श्रीविग्रह का दर्शन हुआ। राजा-रानी ने श्रीराधाजी के उस दिव्य विग्रह का श्रृंगार करके विधि-विधान से पूजन किया। तत्पश्चात् शुभ मुहूर्त्त देखकर भरतपुर के राजा-रानी अपने राज पुरोहित और मंत्रियों को साथ लेकर श्रीधामवृंदावन में श्यामानंद प्रभु की कुंज में पहुंचे। वे वहां भजन-कुटीर में श्रीश्यामसुंदर की अपूर्व लावण्यमय त्रिभंगी श्रीविग्रह का दर्शन करके भाव-विभोर हो उठे।
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सन् 1580ई. में बसंत पंचमी के शुभ दिन श्रीवृंदावन में श्रीश्यामसुंदर एवं राधारानी ( लाला-लाली जी) के दिव्य विग्रहों का विवाहोत्सव बडे धूमधाम से संपन्न हुआ। राजदंपति ने कन्यादान की रस्म अदा की। इस प्रकार श्यामा-श्यामसुंदर विग्रह-रूप से परिणय सूत्र में बंध गए। विवाहोपरांत भरतपुर के राजा ने श्रीराधाश्यामसुंदर का विशाल मंदिर बनवाया और एक गांव तथा बहुत सी संपत्ति मंदिर की सेवा में समर्पित की।
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श्यामानंद जी ने अपने तिरोभाव से पहले लाला-लाली जी की सेवा पूजा का भार श्री रसिकानंद प्रभु जो कि अनिरुद्ध महाराज के अवतार बताये जाते हैं उन्हें सौंप दिया । तबसे ठाकुरजी की सेवा पूजा रसिकानंद जी के वंशज ही कर रहे हैं ।
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आज भी प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन श्रीधामवृंदावन में श्रीश्यामसुंदर का प्राकट्योत्सव एवं विवाहोत्सव बडी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है।
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सूरमा कुञ्ज
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आज सूरमा कुंज के ठाकुर जी का प्राकट्योत्सव भी है । आज के दिन ही श्रीराधा रानी ने अपने हृदय से श्री कृष्ण विग्रह और श्रीकृष्ण ने अपने हृदय से श्री राधा विग्रह श्रीमुकुंद दास जी को प्रदान किया था ।
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शाह जी मंदिर
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आज के ही दिन शाहजी मंदिर में वहां के ठाकुर श्री जी बसंती कमरे में विराजमान होते हैं। मंदिर की एक विचित्र बात यह है कि बसंती कमरे के बाहर एवं खंभों के मध्य फर्श पर श्रीशाह कुंदनलाल (ललित-किशोरी) और शाह फुंदनलाल (ललित-माधुरी) के रंगीन चित्र मंदिर निर्माण के समय से ही पत्थर काटकर बने हुए हैं। बताते हैं कि परिवारजनों की यह इच्छा थी कि मंदिर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के साथ आई ब्रजधूलि (रज) उनके ऊपर पड़ती रहे, जिससे उनका उद्धार होता रहे।
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विशेष रूप से वर्ष में दो बार (बसंत पंचमी और सावन तीज) के अवसर पर बसंती कमरे में ठाकुर जी के दर्शन मिलना बड़े ही सौभाग्य की बात है। बसंती कमरे की आभा ही निराली है। इसमें सुसज्जित विभिन्न रंगों वाले बेशकीमती झाड़-फानूस, स्वर्णमयी दीवार, विशाल गोलाकार छत पर चंदोवा जैसी पच्चीकारी, ऊपर चारों ओर से झांकती बारह विभिन्न मुद्राओं में मानवाकार रोमन शैली की सखियां कमरे की शोभा को चार चांद लगाती हैं।
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बसंती कमरे के बीचों बीच फव्वारों के सामने स्वर्ण जडि़त सिंहासन पर ठाकुर जी के विग्रह का जब श्रद्धालु दर्शन करता है तब ठगा सा रह जाता है। बसंत पंचमी के अतिरिक्त श्रावण शुक्ल त्रयोदशी एवं चतुर्दशी को भी दो दिन के लिए बसंती कमरा खोला जाता है।
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आज श्रीराधाश्यामसुंदर मंदिर में लाला और लाली जी का विवाह उत्सव भी है।मन्दिर में सबसे छोटे विग्रहों का नाम लाला-लाली जी है । लाला जी वही विग्रह हैं जिन्हें संवत 1578 ई० में "श्रीराधारानी ने अपने हृदय कमल से प्रकट कर श्री श्यामानंद प्रभु को सेवा-पूजा के लिए प्रदान किया था"।
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श्रीश्यामसुंदर के प्राकट्य के दो वर्ष उपरांत एक और अभूतपूर्व घटना घटी। भरतपुर रियासत के राजा के कोष में रातों रात राधारानी (लाली) का एक दिव्य विग्रह स्वयं प्रकट हो गया। उस रात श्री श्यामसुंदर ने श्यामानंद प्रभु को स्वप्न में कहा-मेरी राधारानी भरतपुर के राज प्रासाद में प्रकट हो गई हैं। तुम मेरा उनके साथ मिलन कराओ। उधर स्वयं प्रकटित राधारानी ने भरतपुर के महाराज को भी स्वप्न में आदेश दिया-मेरे श्यामसुंदर श्रीधामवृंदावन में श्यामानंद की कुंज में प्रकट हो चुके हैं। तुम मुझे वहां ले जाकर उनके साथ मेरा विवाह संपन्न कराओ। स्वप्न देखने के बाद राजा की निद्रा भंग हो गई। उन्होंने उसी समय अपनी रानी को जगाकर स्वप्न के विषय में बताया।
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सुबह होते ही जब वे दोनों अपने भंडारगृह में गए तो उन्हें वहां मूल्यवान रत्नों के मध्य राधारानी का स्वयं प्रकटित अपूर्व सुंदर श्रीविग्रह का दर्शन हुआ। राजा-रानी ने श्रीराधाजी के उस दिव्य विग्रह का श्रृंगार करके विधि-विधान से पूजन किया। तत्पश्चात् शुभ मुहूर्त्त देखकर भरतपुर के राजा-रानी अपने राज पुरोहित और मंत्रियों को साथ लेकर श्रीधामवृंदावन में श्यामानंद प्रभु की कुंज में पहुंचे। वे वहां भजन-कुटीर में श्रीश्यामसुंदर की अपूर्व लावण्यमय त्रिभंगी श्रीविग्रह का दर्शन करके भाव-विभोर हो उठे।
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सन् 1580ई. में बसंत पंचमी के शुभ दिन श्रीवृंदावन में श्रीश्यामसुंदर एवं राधारानी ( लाला-लाली जी) के दिव्य विग्रहों का विवाहोत्सव बडे धूमधाम से संपन्न हुआ। राजदंपति ने कन्यादान की रस्म अदा की। इस प्रकार श्यामा-श्यामसुंदर विग्रह-रूप से परिणय सूत्र में बंध गए। विवाहोपरांत भरतपुर के राजा ने श्रीराधाश्यामसुंदर का विशाल मंदिर बनवाया और एक गांव तथा बहुत सी संपत्ति मंदिर की सेवा में समर्पित की।
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श्यामानंद जी ने अपने तिरोभाव से पहले लाला-लाली जी की सेवा पूजा का भार श्री रसिकानंद प्रभु जो कि अनिरुद्ध महाराज के अवतार बताये जाते हैं उन्हें सौंप दिया । तबसे ठाकुरजी की सेवा पूजा रसिकानंद जी के वंशज ही कर रहे हैं ।
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आज भी प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन श्रीधामवृंदावन में श्रीश्यामसुंदर का प्राकट्योत्सव एवं विवाहोत्सव बडी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है।
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सूरमा कुञ्ज
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आज सूरमा कुंज के ठाकुर जी का प्राकट्योत्सव भी है । आज के दिन ही श्रीराधा रानी ने अपने हृदय से श्री कृष्ण विग्रह और श्रीकृष्ण ने अपने हृदय से श्री राधा विग्रह श्रीमुकुंद दास जी को प्रदान किया था ।
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शाह जी मंदिर
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आज के ही दिन शाहजी मंदिर में वहां के ठाकुर श्री जी बसंती कमरे में विराजमान होते हैं। मंदिर की एक विचित्र बात यह है कि बसंती कमरे के बाहर एवं खंभों के मध्य फर्श पर श्रीशाह कुंदनलाल (ललित-किशोरी) और शाह फुंदनलाल (ललित-माधुरी) के रंगीन चित्र मंदिर निर्माण के समय से ही पत्थर काटकर बने हुए हैं। बताते हैं कि परिवारजनों की यह इच्छा थी कि मंदिर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के साथ आई ब्रजधूलि (रज) उनके ऊपर पड़ती रहे, जिससे उनका उद्धार होता रहे।
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विशेष रूप से वर्ष में दो बार (बसंत पंचमी और सावन तीज) के अवसर पर बसंती कमरे में ठाकुर जी के दर्शन मिलना बड़े ही सौभाग्य की बात है। बसंती कमरे की आभा ही निराली है। इसमें सुसज्जित विभिन्न रंगों वाले बेशकीमती झाड़-फानूस, स्वर्णमयी दीवार, विशाल गोलाकार छत पर चंदोवा जैसी पच्चीकारी, ऊपर चारों ओर से झांकती बारह विभिन्न मुद्राओं में मानवाकार रोमन शैली की सखियां कमरे की शोभा को चार चांद लगाती हैं।
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बसंती कमरे के बीचों बीच फव्वारों के सामने स्वर्ण जडि़त सिंहासन पर ठाकुर जी के विग्रह का जब श्रद्धालु दर्शन करता है तब ठगा सा रह जाता है। बसंत पंचमी के अतिरिक्त श्रावण शुक्ल त्रयोदशी एवं चतुर्दशी को भी दो दिन के लिए बसंती कमरा खोला जाता है।
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