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जय श्री पंचमुखी हनुमान

ऐसी मान्यता है कि कलियुग में हनुमानजी की पूजा से न सिर्फ घर की बाधा दूर होती है, बल्कि बिगड़े काम भी बन जाते हैं। कहते हैं कलियुग में समस्त दुखों का नाश महज हनुमानजी की आराधना से है। ऐसी मान्यता है कि कलियुग में हनुमानजी की पूजा से न सिर्फ घर की बाधा दूर होती है, बल्कि बिगड़े काम भी बन जाते हैं। कहते हैं कलियुग में समस्त दुखों का नाश महज हनुमानजी की आराधना से हो जाता है।

बैकुंठ जाते वक्त *मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम* ने अपने परम भक्त हनुमान को इसी उद्देश्य से धरती पर रहने का आदेश दिया था। हनुमानजी के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने पर अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है। जानिए हनुमानजी के विभिन्न स्वरूप और उनकी पूजा से मिलने वाले शुभ फल और उनके लाभ। हनुमानजी के अलग-अलग स्वरूपों की कई प्रतिमाएं और चित्र आसानी से देखे जा सकते हैं। शास्त्रों में अनुसार इनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने पर अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है।

हनुमान जी का पंचमुखी रूप
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लंका में *श्री राम* - रावण युद्ध के समय ऐसा संकट आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण का स्मरण करना पड़ा। अहिरावण तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का अनन्य भक्त था। अपने भाई रावण के संकट को दूर करने का उसने एक उपाय निकाल लिया। यदि *श्री राम* एवं *लक्ष्मणजी​* का ही अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध तो स्वत: ही समाप्त हो जाएगा। अहिरावण ने ऐसी माया रची कि सारी सेना प्रगाढ़ निद्रा में निमग्न हो गयी और वह *श्री राम* और *लक्ष्मणजी​* का अपहरण करके उन्हें निद्रावस्था में ही पाताल-लोक ले गया।

                    *हनुमानजी* के जागने पर जब इस संकट का भान हुआ और विभीषण ने यह रहस्य खोला कि ऐसा केवल अहिरावण ही कर सकता है। संकट मोचन हनुमानजी तत्काल पाताल लोक पहुंचे। द्वार पर रक्षक के रूप में मकरध्वज से युद्ध कर और उसे हराकर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो *श्री राम* एवं *लक्ष्मणजी* को बंधक-अवस्था में पाया। वहां भिन्न-भिन्न दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे। अहिरावण ने मां भवानी के सम्मुख *श्री राम* एवं *लक्ष्मणजी​* की बलि देने की पूरी तैयारी थी।

               अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा। यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया और *श्री राम-लक्ष्मणजी* को मुक्त किया। सागर पार करते समय एक मछली ने उनके स्वेद की एक बूंद ग्रहण कर लेने से गर्भ धारण कर मकरध्वज को जन्म दिया था अत: मकरध्वज हनुमान जी का पुत्र है, ऐसा जानकर *श्री राम* ने मकरध्वज को पातालपुरी का राज्य सौंपने का हनुमान जी को आदेश दिया। हनुमान जी ने उनकी आज्ञा का पालन किया और वापस उन दोनों को लेकर सागर तट पर युद्धस्थल पर लौट आये।

                      " हनुमान जी " के इस अद्भुत स्वरूप के विग्रह देश में कई स्थानों पर स्थापित किए गए हैं। इनमें रामेश्वर में स्थापित पंचमुखी हनुमान मंदिर में इनके भव्य विग्रह के संबंध में एक भिन्न कथा है। पुराण में ही वर्णित इस कथा के अनुसार एकार एक असुर, जिसका नाम मायिल-रावण था, भगवान विष्णु का चक्र ही चुरा ले गया। जब आंजनेय हनुमान जी को यह ज्ञात हुआ तो उनके हृदय में सुदर्शन चक्र को वापस लाकर विष्णु जी को सौंपने की इच्छा जाग्रत हुई। मायिल अपना रूप बदलने में माहिर था। हनुमान जी के संकल्प को जानकर भगवान विष्णु ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिम्ह-मुख तथा हयग्रीव एवं वराह मुख प्रदान किया। पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया। यह आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मायिल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई।ऐसा विश्वास किया जाता है कि उनके इस पंचमुखी विग्रह की आराधना से कोई भी व्यक्ति नरसिम्ह मुख की सहायता से शत्रु पर विजय, गुरुड़ मुख की सहायता से सभी दोषों पर विजय वराहमुख की सहायता से समस्त प्रकार की समृद्धि एवं संपत्ति तथा हयग्रीव मुख की सहायता से ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।

भक्त हनुमान
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इस स्वरूप में हनुमानजी श्रीराम की भक्ति में लीन दिखाई देते हैं। जो लोग इस स्वरूप की पूजा करते हैं, उन्हें कार्यों में सफलता पाने के लिए एकाग्रता और शक्ति प्राप्त होती है। लक्ष्यों को प्राप्त करने में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं।

सेवक हनुमान
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बजरंग बली के इस स्वरूप में हनुमानजी श्रीराम की सेवा में लीन दिखाई देते हैं। इस स्वरूप की पूजा करने पर भक्त के मन में कार्य और रिश्तों के प्रति सेवा और समर्पण की भावना जागृत होती है। व्यक्ति को परिवार और कार्य स्थल पर सभी बड़े लोगों का विशेष स्नेह प्राप्त होता है। सेवक हनुमान' के स्वरूप में भगवान राम के चरणों में हनुमानजी बैठे हुए हैं और श्रीराम उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं।

वीर हनुमान
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वीर हनुमान स्वरूप में साहस, बल, पराक्रम व आत्मविश्वास दिखाई देता है। हनुमानजी अपने साहस और पराक्रम से कई राक्षसों को नष्ट किया और श्रीराम के काज संवारें। वीर हनुमान नाम के अनुरूप हनुमानजी के इस स्वरूप की उपासना करने से बल, पराक्रम और साहस की प्राप्ति होती है। वीर हनुमान स्वरूप की पूजा मात्र से आत्मविश्वास चेहरे पर नजर आता है। साथ ही आपके साहस के आगे शत्रु नतमस्तक हो जाएंगे।

सूर्यमुखी हनुमान
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सूर्य देव हनुमानजी के गुरु हैं। सूर्य पूर्व दिशा से उदय होता है। सूर्य और सूर्य का प्रकाश, गति और ज्ञान के भी प्रतीक हैं। जिस तस्वीर में हनुमानजी सूर्य की उपासना कर रहे हैं या सूर्य की ओर देख रहे हैं, उस स्वरूप की पूजा करने पर भक्त को भी ज्ञान और कार्यों में गति प्राप्त होती है। सूर्यमुखी हनुमान की पूजा से विद्या, प्रसिद्धि, उन्नति और मान-सम्मान प्राप्त होता है।

दक्षिणामुखी हनुमान
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हनुमानजी की वह प्रतिमा जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर होता है, वह हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप है। दक्षिण दिशा काल यानी यमराज (मृत्यु के देवता) की दिशा मानी जाती है। हनुमानजी रुद्र (शिवजी) अवतार माने जाते हैं, जो काल के नियंत्रक हैं। इसलिए दक्षिणामुखी हनुमान की पूजा करने पर मृत्यु भय और चिंताएं समाप्त होती हैं।

उत्तरामुखी हनुमान
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देवी-देवताओं की दिशा उत्तर मानी गई है। इसी दिशा में सभी देवी-देवताओं का वास है। हनुमानजी की जिस प्रतिमा का मुख उत्तर दिशा की ओर है, वह हनुमानजी का उत्तरामुखी स्वरूप है। इस स्वरूप की पूजा करने पर सभी देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है। घर-परिवार में शुभ और मंगल वातावरण रहता है।

          !! जय श्री हनुमान !! 

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