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श्री राधा रानी के एक बार नाम लेने की कीमत

एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया। और कहता है कि संत जी, मेरा एक बेटा है। वो न तो पूजा पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये। संत जी कहते है- "ठीक है बेटा, एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा।" अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत जी के पास गया। अब संत जी उसके बेटे से कहते है- "बेटा, बोल राधे राधे..." बेटा कहता है- मैं क्यू कहूँ? संत जी कहते है- "बेटा बोल राधे राधे..." वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यही कहा कि- "मैं क्यू कहूँ राधे राधे..." संत जी ने कहा- जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान का नाम लिया। कोई अच्छा काम किया। तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। बस एक बार। इतना बताकर वह चले गए। समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने पूछा- कभी कोई अच्छा काम किया है। उसने कहा- हाँ महाराज, मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। आप ...

अठारह पुराण

(1.) ब्रह्मपुराणः---इसे "आदिपुराण" भी का जाता है। प्राचीन माने गए सभी पुराणों में इसका उल्लेख है। इसमें श्लोकों की संख्या अलग-2 प्रमाणों से भिन्न-भिन्न है। 10,000,,,13,000 और 13,787 ये विभिन्न संख्याएँ मिलती है। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में लोमहर्षण ऋषि ने किया था। इसमें सृष्टि, मनु की उत्पत्ति, उनके वंश का वर्णन, देवों और प्राणियों की उत्पत्ति का वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। इसमें कुल 245 अध्याय हैं। इसका एक परिशिष्ट सौर उपपुराण भी है, जिसमें उडिसा के कोणार्क मन्दिर का वर्णन है। (2.) पद्मपुराणः----इसमें कुल 641 अध्याय और 48,000 श्लोक हैं। मत्स्यपुराण के अनुसार इसमें 55,000 और ब्रह्मपुराण के अनुसार इसमें 59,000 श्लोक थे। इसमें कुल खण़्ड हैं---(क) सृष्टिखण्डः--5 पर्व, (ख) भूमिखण्ड, (ग) स्वर्गखण्ड, (घ) पातालखण्ड और (ङ) उत्तरखण्ड। इसका प्रवचन नैमिषारण्य में सूत उग्रश्रवा ने किया था। ये लोमहर्षण के पुत्र थे। इस पुराण में अनेक विषयों के साथ विष्णुभक्ति के अनेक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। (3.) विष्णुपुराणः----  इसमें विष्णु को परम देवता के र...

शनि महिमा

नारद देवताओं के प्रभाव की चर्चा कर रहे थे. देवराज इंद्र अपने सामने दूसरों की महिमा का बखान सुनकर चिढ़ गए. वह नारद से बोले- आप मेरे सामने दूसरे देवों का बखान कर कहीं मेरा अपमान तो नहीं करना चाहते? नारद तो नारद हैं. किसी को अगर मिर्ची लगे तो वह उसमें छौंका भी लगा दें. उन्होंने इंद्र पर कटाक्ष किया- यह आपकी भूल है. आप सम्मान चाहते हैं, तो दूसरों का सम्मान करना सीखिए. अन्यथा उपहास के पात्र बन जाएंगे. इंद्र चिढ़ गए- मैं राजा बनाया गया हूँ तो दूसरे देवों को मेरे सामने झुकना ही पड़ेगा. मेरा प्रभाव दूसरों से अधिक है. मैं वर्षा का स्वामी हूँ. जब पानी नहीं होगा तो धरती पर अकाल पड़ जाएगा. देवता भी इसके प्रभाव से अछूते कहाँ रहेंगे. नारद ने इंद्र को समझाया- वरुण, अग्नि, सूर्य आदि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के स्वामी हैं. सबका अपना सामर्थ्य है. आप उनसे मित्रता रखिए. बिना सहयोगियों के राजकार्य नहीं चला करता.’ ‘आप शंख मंजीरा बजाने वाले राजकाज क्या जानें? मैं देवराज हूँ, मुझे किसका डर?’ इंद्र ने नारद का मजाक उड़ाया. नारद ने कहा-‘किसी का डर हो न हो, शनि का भय आपको सताएगा. कुशलत...

युद्ध मे एक बार प्रभुश्रीराम और दो बार लक्ष्मण को हराने वाले,रावण पुत्र मेघनाद की कथा।

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार जब मेघनाद का जन्म हुआ तो वह समान्य शिशुओं की तरह रोया नहीं था बल्कि उसके मुंह से बिजली की कड़कने की आवाज सुनाई दी थी।यही कारण था की रावण ने अपने इस पुत्र का नाम मेघनाद  रखा।जब मेघनाथ युवा अवस्था में पहुंचा तो उसने कठिन तपश्या के बल पर संसार के तीन सबसे घातक अस्त्र ( ब्र्ह्मास्त्र, पशुपति अस्त्र और वैष्णव अस्त्र ) प्राप्त कर लिया था। मेघनाद ने एक बार देवराज इंद्र के साथ युद्ध लड़ कर उन्हें बंदी बना लिया व अपने रथ के पीछे बांध दिया था. तब स्वयं ब्र्ह्मा जी को इंद्र की रक्षा के लिए प्रकट होना पड़ा तथा उन्होंने मेघनाद से इंद्र को छोड़ने के लिए कहा। ब्र्ह्मा जी की आज्ञा सुन मेघनाद ने इंद्र को बंधन-मुक्त कर दिया। ब्र्ह्मा जी ने मेघनाद से प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा, इस पर मेघनाद ने ब्र्ह्मा से अमरता का वर मांगा जिस को देने के लिए ब्र्ह्मा जी ने अपनी असमर्थता जताई. परन्तु ब्र्ह्मा ने उसे उसके समान ही वर जरूर दिया. अपनी कुल देवी प्रत्यांगीरा के यज्ञ के दौरान मेघनाद को स्वयं त्रिदेव नहीं हरा सकते और नहीं मार सकते थे। ब्रह्म देव ने ही मेघनाद ...

आदिराज पृथु

भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु है। धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ। उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ। उसने भगवान को मानने से इंकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा। तब महर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया। तब महर्षियों ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु के वेष में स्वयं श्रीहरि का अंश अवतरित हुआ है।

शास्त्रीय वाक्य

शास्त्रीय वाक्य तीन प्रकार के होते है-- १-रोचक, २-भयानक, ३-यथार्थ। १ रोचकवाक्य--पुरुषों को धर्म में प्रवृत्ति कराने के लिए जो रुचिकर वाक्य कहे जाते हैं, वे रोचकवाक्य हैं।वैदिक प्रक्रिया में इन्हें विधि के प्रशंसक अर्थवाद कहा जाता है।जैसे----  "गवां मंडूका ददत् शतानि--मेंढकों ने सौ गायें दान दिया।    वनस्पतयः सत्रमासत--वनस्पतियों ने यज्ञ किया।।    सर्पा:सत्रमासत--सर्पों ने यज्ञ किया।।     जरद्गवो गायति मद्रकाणि--बृद्ध नीलगाय ने सामवेद का गान किया।" इत्यादि वाक्यों का तात्पर्य केवल इतना ही है कि गोदान अवश्य करना चाहिए।जब वनस्पति या सर्प भी यज्ञ कर सकते हैं, तो मानव को अवश्य ही करना चाहिए। जब नीलगाय जैसा पशु गान कर सकता है, तो मनुष्य को अवश्य ही सामगान करना चाहिए,"         यदि कोई इनकी अर्थवादता(रोचकता)को न समझकर वास्तवमें सर्पादि द्वारा यज्ञादि समझकर, प्रत्यक्ष में असंभव देखकर वेदोंमें  आक्षेप करे तो वह मूर्ख ही कहा जा सकता है।आजकल ऐसे लोगों की भरमार है।       इसी प्रकार पुराणों में भी  अनेक स्थलोंमें...

मासिकधर्म के विधि- विधान :

मासिक धर्म (माहवारी/पीरियड) के काल में जीर्ण-शीर्ण ( फटे- पुराने)  वस्त्र पहन कर  गोशाला में एकान्तवास करना - ये हिन्दू धर्म की महिलाओं का पिछड़ापन नहीं वरन् गौरव है , क्योंकि ऐसा करके वह त्रिरात्रव्रत का पालन करती हैं और फिर  चौथे दिन आप्लवन  स्नान करके   बिना फटे हुए शोभित नूतन वस्त्र  पहनती हैं । इस विशेष व्रत के पालनकाल में स्त्री ना ही अलंकरण करती है , ना ही स्नान करती है , ना ही दिन में सोती है , ना ही दन्तधावन करती है , ना ही ग्रहादि का निरीक्षण करती है , ना हंसती है , ना ही कुछ आचरण करती है , ना ही अंजलि से जल पीती है  ना ही लोहे या कॉसे  के पात्र में भोजन करती है । वह सनातनधर्मिणी नारी   गोशाला में  भूमि पर शयन कर इस महान् व्रत को सम्यक्  परिपालन कर आत्मसंयम का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत कर  आत्मशोधन  करती हुई  देवताओं को आनन्दित करती है । पाश्चात्यमुखी,  धर्ममूढ़,  अज्ञानी असुरों व विधर्मियों ने   हिन्दू महिलाओं के इस महान् व्रत को  हिन्दुओं का पिछड़ापन बताकर   ह...

भक्तराज नरसिंह जी

नरसिंह भक्त, जो जन्म से ही गूंगे थे, का जन्म 15 वीं शताब्दी के संवत 1470 में तलाजा नामक गाँव जो जिला जूनागढ़, सौराष्ट्र में स्थित है के एक प्रतिष्ठित नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ। पिता का नाम श्री कृष्ण दामोदर दास, माँ का नाम लक्ष्मीगौरी था, जो नरसिंह भक्त को 5 वर्ष की अवस्था में छोड़ कर स्वर्ग सिधार गए थे। अतः इनका पालन पोषण इनकी दादी, जयकुंवरि और इनके ज्येष्ठ भ्राता, वंशीधर की देखरेख में हुआ। दादी के सानिध्य में बालक को धार्मिक संस्कार संतों महात्माओं की सेवा का पूरा-पूरा लाभ मिला। जब नरसिंह भक्त 8 वर्ष के हुए तो दादी ने फागुन शुक्ल पंचमी के दिन जूनागढ़ के ही हाटकेश्वर महादेव मंदिर में जाकर हमेशा की तरह नरसिंह के साथ दर्शन किये और दर्शन के बाद जब लौट रही थीं तो उनकी निगाह एक महात्मा पर पड़ी, जो मंदिर के ही एक कोने में आसन बिछाकर पद्मासन में नारायण-नारायण का जप कर रहे थे। जयकुंवरी अपने नाती संग महात्मा के निकट जाकर चरण वंदना कर अपने नाती के आज दिन तक ना बोलने के विषय में प्रार्थना करते हुए नम्रता से निवेदन करती है कि आपकी कृपा हो जाये तो यह बोलने लग जाये। महात्मा का चेहरा दैवीय शक्ति स...

शिवलिंग की पूजा का महत्व और शिवलिंग की महिमा

ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश में केवल शिव ही हैं जिनके लिंग स्वरुप की पूजा की जाती है. शिवलिंग पूजा का काफी महत्व है. शिवलिंग पर फूल, दूध, दही, जल आदि चढ़ाने से साधक को मनवांक्षित फलों की प्राप्ति होती है. शिव पुरान में शिव लिंग की पूजा और महत्व के बारे में बताया गया है. विभिन्न ऋषियों के यह पूछे जाने पर कि भगवान शिव की लिंग रूप में पूजा क्यों होती है जबकि किसी अन्य देवता की पूजा इस रूप में नहीं की जाती है. सूतजी कहते हैं - शिवलिंग की स्थापना और पूजन के बारे में कोई और नहीं बता सकता. भगवान शंकर ने स्वयं अपने ही मुख से इसकी विवेचना की है. इस प्रश्न के समाधान के लिये भगवान शिवने जो जो कुछ कहा है और उसे मैंने गुरूजी के मुख से जिस प्रकार सुना हैं, उसी तरह क्रमश: वर्णन करुंगा. एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण ‘निष्कल’ (निराकार) कहे गये हैं. रूपवान होनेके कारण उन्हें ‘सकल’ भी कहा गया है. इसलिए वे सकल और निष्कल दोनों हैं. शिव के निराकार होने के कारण ही उनकी पूजा का आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ हैं. अर्थात शिवलिंग शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक हैं. इसी तरह शिव के सकल या स...

भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा

वैकुंठ में श्रीमहाविष्णु का निवास माना जाता है। उनके भवन में कोई अनाधिकार प्रवेश न करे, इसलिए जय और विजय नामक दो द्वारपाल पहरा देते रहते थे। एक बार सनक महामुनि तथा उनके साथ कुछ अन्य मुनि श्रीमहाविष्णु के दर्शन करने उनके निवास पर पहुंचे। जय और विजय ने उन्हें महल के भीतर प्रवेश करने से रोका। इस पर मुनियों ने कुपित होकर द्वारपालों को शाप दिया, "तुम दोनों इसी समय राक्षस बन जाओगे, किंतु महाविष्णु के हाथों तीन बार मृत्यु को प्राप्त करने के बाद तुम्हें स्वर्गवास की प्राप्ति होगी।" सांयकाल का समय था। महर्षि कश्यप संध्यावंदन अनुष्ठान में निमग्न थे। उस समय महर्षि कश्यप की पत्नी दिति वासना से प्रेरित हो अपने को सब प्रकार से अलंकृत कर अपने पति के समीप पहुंची। कश्यप महर्षि ने दिति को बहुविध समझाया, "देवी! मैं प्रभु की प्रार्थना और संध्यावंदन कार्य में प्रवृत्त हूं, इसलिए काम-वासना की पूर्ति करने का यह समय नहीं है।" किंतु दिति ने हठ किया कि उसकी इच्छा की पूर्ति इसी समय हो जानी चाहिए। अंत में विवश होकर कश्यप को उसकी इच्छा पूरी करनी पड़ी। फलत: दिति गर्भवती हुई। मुनि पत्नी दित...

कामविकार

श्री आद्य शंकराचार्य कहते हैं - आयु ढलने पर कामविकार कैसा ? जल सूखने पर जलाशय क्या ? तथा धन नष्ट होने पर परिवार ही क्या ? इसी प्रकार,  तत्त्वज्ञान होने पर संसार ही कहॉ रह सकता है ।  अतः अरे मूढ !  तू सदा गोविन्द के  ही भजन में लग, (क्योंकि मृत्यु आ जाने पर फिर  अभ्यास रक्षा नहीं करेगा ) । वयसि गते  कः कामविकारः,  शुष्के नीरे कः कासारः । नष्टे द्रव्ये कः परिवारः,  ज्ञाते तत्त्वे कः संसार ।। भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ।। ~~~~~~~~~~~~ जिसने जीवन भर  जैसा स्वयं को बनाया है , मृत्युकाल में वह  वैसा ही  हो  कर रह जाता है , उत्तराखण्ड   में एक प्रेरणा कथा प्रचलित है ।  कहा जाता है एक बार एक व्यक्ति मरने लगा , तो लोगों ने  मन में सोचा कि इसने जीवन भर तो भगवान् का नामलिया नहीं , तो क्यों न अन्त में ही इसके मुख से  हरि नाम निकलवाया जाये ,   बहुत प्रयास किया नातेदारों ने हरिनाम मुख से निकलवाने का  , पर वह बोल नहीं पाया , पहाड़ में ठंडे हिमालयी  प्रदेशों में...

स्त्री को ओंकार का उच्चारण करना चाहिए या नहीं ?

🌷🌷       प्रश्न .– स्त्री को ओंकार का उच्चारण करना चाहिए या नहीं ? उत्तर – स्त्री को ॐ कारकी उपासना या उच्चारण नहीं करना चाहिए और जिस मंत्र में ॐ आता है उसका भी शास्त्रों में निषेध किया है | हम तो यहाँ इसके निषेध की प्रार्थना करते हैं | यदि कोई ना सुने तो हमारे को कोई मतलब नहीं | हमारे को ना तो कोई व्यक्तिगत लाभ अथवा हानि है | यह तो विनय के रूप में कहा गया है | वह माने या ना माने यह उनकी मर्जी है | वैदिक मन्त्रों का स्त्री के लिए निषेध है | वैदिक मन्त्रों में हरी ॐ होता है | स्त्री, शुद्र(द्विज को, जिनका जनेऊ संस्कार नहीं हुआ हो; उनको भी) कभी भी नहीं करना चाहिए | अच्छे-अच्छे विद्वानों की बातें सुनकर ही आपको कहा गया है | इतिहास-पुराण तो सुनने का ही नहीं, पढ़ने तक का अधिकार है | . एक बार हम और अच्छे-अच्छे संत आदमी, यहीं ऋषिकेश में जमा हुए थे | मैं तो एक साधारण आदमी ही हूँ | मालवीयजी का यह पक्ष था की – “स्त्रियाँ पौराणिक बातें पढ़-सुन सकती हैं |” और करपात्रीजी महाराज ने कहा – “सुन सकती हैं, किन्तु पढ़ नहीं सकती |” जब हमारे से राय ली, तब हमने तो कहा की-“दोनों ही बाते...

Some Important Full -Forms

Useful information 1. PAN - permanent account number. 2. PDF - portable document format. 3. SIM - Subscriber Identity Module. 4. ATM - Automated Teller machine. 5. IFSC - Indian Financial System Code. 6. FSSAI(Fssai) - Food Safety & Standards Authority of India. 7. Wi-Fi - Wireless fidelity. 8. GOOGLE - Global Organization Of Oriented Group Language Of Earth. 9. YAHOO - Yet Another Hierarchical Officious Oracle. 10. WINDOW - Wide Interactive Network Development for Office work Solution. 11. COMPUTER - Common Oriented Machine. Particularly United and used under Technical and Educational Research. 12. VIRUS - Vital Information Resources Under Siege. 13. UMTS - Universal Mobile Telecommunicati ons System. 14. AMOLED - Active-matrix organic light-emitting diode. 15. OLED - Organic light-emitting diode. 16. IMEI - International Mobile Equipment Identity. 17. ESN - Electronic Serial Number. 18. UPS - Uninterruptible power supply. 19. HDMI - High-Definition Multimedia ...

श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्

              __श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम्__ शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ क्षन्दो के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार के है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे | फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा | और फिर … राजा च...

राधे राधे: जन्मजात स्वभाव

राधे राधे: जन्मजात स्वभाव : एक वन में एक तपस्वी रहते थे। वे बहुत पहुंचे हुए ॠषि थे। उनका तपस्या बल बहुत ऊंचा था। रोज वह प्रातः आकर नदी में स्नान करते और नदी किनारे के ...

माखन चोर की टोली

((((((((   )))))))) . एक बार की बात है भगवान अपनी टोली के साथ तैयार हुए। . भगवान के मित्र बने है सुबल, मंगल, सुमंगल, श्रीदामा, तोसन, आदि। . भगवान सोच रहे है की आज किसके घर माखन चोरी की जाये। . याद आया की “चिकसोले वाली” गोपी के घर चलते है। . भगवान पहुंच गए सुबह सुबह और जोर से दरवाजा खटखटाने लगे। . गोपी ने दरवाजा खोला। तो श्रीकृष्ण को खड़े देखा। बाल बिखेर रखे थे, मुह पर उबासी थी। . गोपी बोली – ‘अरे लाला ! आज सुबह-सुबह यहाँ कैसे ? . कन्हैया बोले – ‘गोपी क्या बताऊँ ! आज सुबह उठते ही, मैया ने कहा लाला तू चिकसोले वाली गोपी के घर चले जाओ.... . और उससे कहना आज हमारे घर में संत आ गए है मैंने तो ताजा माखन निकला नहीं, . चिकसोले वाली गोपी तो भोर में उठ जावे है। ताजो माखन निकल लेवे है। तू उनसे जाकर माखन ले आ। . और कहना कि एक मटकी माखन दे दो, बदले में दो मटकी माखन लौटा दूँगी। . गोपी बोली – लाला ! मै अभी माखन की मटकी लाती हूँ और मैया से कह देना कि लौटने की जरुरत नहीं है संतो की सेवा मेरी तरफ से हो जायेगी। . झट गोपी अंदर गयी और माखन की मटकी लाई और बोली – लाला ये माख...

वैदिक वाङ्मय का परिचय

(१)  ऋग्वेद की शाखा :---- =================== महर्षि पतञ्जलि के अनुसार ऋग्वेद की २१ शाखाएँ हैं, किन्तु पाँच ही शाखाओं के नाम उपलब्ध होते हैं :--- (१) शाकल (२) बाष्कल (३) आश्वलायन (४) शांखायन (५) माण्डूकायन संप्रति केवल शाकल शाखा ही उपलब्ध है ! ऋग्वेद के ब्राह्मण ============= (१) ऐतरेय ब्राह्मण (२) शांखायन ब्राह्मण ऋग्वेद के आरण्यक =============== (१) ऐतरेय आरण्यक (२) शांखायन आरण्यक ऋग्वेद के उपनिषद =============== (१) ऐतरेय उपनिषद् (२) कौषीतकि उपनिषद् ऋग्वेद के देवता ============ तिस्र एव देवताः इति नैरुक्ताः ! (१) अग्नि (पृथिवी स्थानीय ) (२) इन्द्र या वायु (अन्तरिक्ष स्थानीय ) (३) सूर्य (द्यु स्थानीय ) ऋग्वेद में बहु प्रयोग छंद ================ (१) गायत्री , (२) उष्णिक् (३) अनुष्टुप् , (४) त्रिष्टुप् (५) बृहती, (६) जगती, (७) पंक्ति, ऋग्वेद के मंत्रों के तीन विभाग =================== (१) प्रत्यक्षकृत मन्त्र (२) परोक्षकृत मन्त्र (३) आध्यात्मिक मन्त्र ऋग्वेद का विभाजन ============== (१) अष्टक क्रम :---- ८ अष्टक ६४ अध्याय २००६ वर्ग (२)...

श्रीआंजनेय द्वादशनामस्तोत्रम्

 हनुमानंजनासूनुः वायुपुत्रो महाबलः । रामेष्टः फल्गुणसखः पिंगाक्षोऽमितविक्रमः ॥ १॥ उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशकः । लक्ष्मण प्राणदाताच दशग्रीवस्य दर्पहा ॥ २॥ द्वादशैतानि नामानि कपींद्रस्य महात्मनः । स्वापकाले पठेन्नित्यं यात्राकाले विशेषतः । तस्यमृत्यु भयंनास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ॥ जो श्रीहनुमन्त उपासक प्रतिदिन उपरोक्त बारह नामों का पाठ करता है, उसकी सर्वत्र जय होती है, मंगल होता है, यात्राकाल में भय नहीं होता, अकालमृत्यु आदि नहीं होती है।

||राम लक्ष्मण सीता स्तुति||

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् | रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् | सीता माता की जय ! नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥ आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥ नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥ सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥ जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधान की॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥ जय श्री लक्ष्मण ! बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।। रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका।। सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन।। सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर।। सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम। मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरुप श्रीराम।। जय श्री हनुमान..! अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् | सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि | संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। दीनदयाल बिर...

जन्मजात स्वभाव

एक वन में एक तपस्वी रहते थे। वे बहुत पहुंचे हुए ॠषि थे। उनका तपस्या बल बहुत ऊंचा था। रोज वह प्रातः आकर नदी में स्नान करते और नदी किनारे के एक पत्थर के ऊपर आसन जमाकर तपस्या करते थे। निकट ही उनकी कुटिया थी, जहां उनकी पत्नी भी रहती थी। एक दिन एक विचित्र घटना घटी। अपनी तपस्या समाप्त करने के बाद ईश्वर को प्रणाम करके उन्होंने अपने हाथ खोले ही थे कि उनके हाथों में एक नन्ही-सी चुहीया आ गिरी। वास्तव में आकाश में एक चील पंजों में उस चुहिया को दबाए उडी जा रही थी और संयोगवश चुहिया पंजो से छुटकर गिर पडी थी। ॠषि ने मौत के भय से थर-थर कांपती चुहिया को देखा। ठ्र्षि और उनकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी। कई बार पत्नी संतान की इच्छा व्यक्त कर चुकी थी। ॠषि दिलासा देते रहते थे। ॠषि को पता था कि उनकी पत्नी के भागय में अपनी कोख से संतान को जन्म देकर मां बनने का सुख नहीं लिखा हैं। किस्मत का लिखा तो बदला नहीं जा सकता परन्तु अपने मुंह से यह सच्चाई बताकर वे पत्नी का दिल नहीं दुखाना चाहते थे। यह भी सोचते रहते कि किस उपाय से पत्नी के जीवन का यह अभाव दूर किया जाए। ॠषि को नन्हीं चुहिया पर दया आ गई। उन्होंने अपनी...