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तुलसीदास के नन्दनंदन

तुलसीदास जी ने भगवान नंदनन्दन श्यामसुंदर की एक झाँकी राम जी में देखी।श्री कृष्ण जी की जो लालित्यमयी झाँकी है उनमें मोरपंख जरूर रहता है और गोस्वामी तुलसीदास जी पुष्पवाटिका प्रसंग में श्रीमद्भागवत महापुराण के रास पंचाध्यायी को पाँच दोहों में रखते हैं, पाँच दोहों में पुष्पवाटिका प्रसंग, पाँच अध्यायों में रासपंचाध्यायी ।

रासपंचाध्यायी का पहला श्लोक - भगवान अपनी- शरदोत्फुल्लमल्लिका वीतछान्तंमनश्चक्रे योगमायामताश्रितः -- बड़ा कल्याणकारी अक्षर है रासपंचाध्यायी से शुरुआत होती है; क्योंकि जीव का कल्याण करना है और रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी जब पुष्पवाटिका प्रसंग को रखते हैं, तो वह कहते हैं -- वे भी वहाँ से शुरू करते हैं ---

भूप बाग वर देखिय जाई।
जहँ वसन्त ऋतु रही लुभाई।

        जहाँ वसन्त ऋतु रही लोभाई और  रासपंचाध्यायी में -- सहचर्खिणीनां मुदगात्रचामृजन् प्रिया प्रियायाः इव दीर्घदर्शनः।

श्रीमद्भागवत में लिखते हैं ।

ऐसा लगता है, मानो कि प्रकृति वसन्त ऋतु नंदनन्दन श्यामसुंदर के दिव्य दर्शन करने के लिए जैसे प्रियतमा प्रिय के दर्शन करने के लिए ठहर जाती है, अवरुद्ध हो जाती है, ऐसे ही वसन्त ऋतु नंदनन्दन श्यामसुंदर की दिव्य लीला का अवलोकन  करने के लिए ठहर गयी और यहाँ पर -- जहँ वसन्त ऋतु रही लुभाई।वहाँ वर्ण बीच में कहते हैं -

वर्हापीड़ंनटवरविपुहु कर्णयोकर्णिकारं।
दिभ्रविवासः कनककपिसन् वैजयन्तीसनालयः।।

          नंदनन्दन श्यामसुंदर की बड़ी प्यारी छवि है ।वर्य माने मोर, आपीड माने उसका पक्ष-- मोर के पंख को धारण किए हुए प्रभु नंदनन्दन श्यामसुंदर विराजमान हैं, मोर का पंख धारण किया है और यहाँ --

मोरपंख सिर  सोहत नीके।
गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के।।

         गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत प्यारा मोर का पंख धारण करवाते हैं ।एक मोर नृत्य कर रहा है, उसका पंख गिरा और लक्ष्मण जी महाराज ने राम जी के सिर पर रख दिया ।

तो इस प्रकार से राम जी के चरित्र के अलावा किसी अन्य अवतार की लालित्यमयी लीला की छटा मेरे मन को भा गई, मेरे मन को अच्छी लगी, तो वह भी मैंने इसमें उतार दी है ।श्री कृष्ण जी को भी उन्होंने राम में ही दर्शन करा दिया ।अब उस छवि का दर्शन करो।पुष्प वाटिका में तो ऐसा लगता है कि प्रभु श्री राम जी, और उन्होंने एक मंत्र है श्री चैतन्य महाप्रभु जी का महामन्त्र, बहुत लोककल्याण हुआ ; क्योंकि वे कहते हैं -- हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।

कलियुग केवल हरिगुन गाहा।
गावत नर पाबैं भव थाहा।।

          तो बहुत महान मंत्र है ।सोलह अक्षर का महामंत्र है, इसमें कोई शक नहीं, पर एक सज्जन ने मुझे जो अर्थ बताया, वह मुझे बहुत अद्भुत लगा।

उन्होंने कहा कि इसमें जो -- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे है, यह तो कृष्ण जी के लिए है और हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे -- तो इसमें जो हरे राम है, वह राम जी के लिए नहीं, बलराम जी के लिए है, तो हमने कहा -- धन्य है आपकी भावना को।हमारे संतों ने तो, अभी आप कितने भी रामानंद सम्प्रदायों में चले जायँ, वहाँ श्री कृष्ण जी विराजमान हैं और आरती क्या होती है?

  श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं।श्रीमद्भागवत में जब नंदनन्दन श्यामसुंदर ने सत्ताइस दिन तक युद्ध किया जाम्बवंत जी के साथ में, अट्ठाइसवें दिन एक मुष्टिका का प्रहार किया ।तो जाम्बवंत जी ने क्या प्रार्थना की? ---

यस्येषुवित कलितरोक्षपटाक्षमोक्षै।
वर्त्माविशुतछवितनिकृतलोब्धिः।
रक्षाकृतःशेषउज्ज्वलतःकलंकः।

          माने वे कहते हैं कि मुझे श्री राम जी का दर्शन हो जाय।सामने खड़े हैं श्री कृष्ण और वे गीत गा रहे हैं भगवान राम के।श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की पट्टमहिषियों से पूछा -- आपको कैसे सौभाग्य मिला द्वारिकाधीश को अपना पति बनाने का?

  तो जाम्बवती जी कहती हैं कि मेरे पिताजी के साथ में उनका युद्ध हुआ और अट्ठाइसमें दिन इन्होंने छक्के छुड़ा दिए और उसके बाद मेरे पिताजी समझ गये कि ये तो साक्षात् श्री राम जी हैं और प्रभु श्री राम जी मान करके उन्होंने मेरा हाथ स्वयं इनके हाथ में दे दिया ।आँखें बंद करके बोलीं-- मैं बड़ी सौभाग्यशालिनी हूँ कि सीतापति श्री राम हमें प्रियतम के रूप में मिले।कोई भेद ही नहीं है ।

श्रीमद् भागवत के हर एक स्कंध में श्री राम जी को बड़े आदर और श्रद्धा के साथ स्मरण किया गया है ।

इसलिए भेदभाव अगर हम फैलाएँगे तो निश्चित रूप से न तो हम अपना कल्याण करते हैं, न उपासकों का कल्याण करते हैं, न भारतीय संस्कृति का कल्याण करते हैं, न देश का कल्याण करते हैं और न समाज का कल्याण करते हैं ।

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