🌷🌷 प्रश्न
.– स्त्री को ओंकार का उच्चारण करना चाहिए या नहीं ?
उत्तर – स्त्री को ॐ कारकी उपासना या उच्चारण नहीं करना चाहिए और जिस मंत्र में ॐ आता है उसका भी शास्त्रों में निषेध किया है | हम तो यहाँ इसके निषेध की प्रार्थना करते हैं | यदि कोई ना सुने तो हमारे को कोई मतलब नहीं | हमारे को ना तो कोई व्यक्तिगत लाभ अथवा हानि है | यह तो विनय के रूप में कहा गया है | वह माने या ना माने यह उनकी मर्जी है | वैदिक मन्त्रों का स्त्री के लिए निषेध है | वैदिक मन्त्रों में हरी ॐ होता है | स्त्री, शुद्र(द्विज को, जिनका जनेऊ संस्कार नहीं हुआ हो; उनको भी) कभी भी नहीं करना चाहिए | अच्छे-अच्छे विद्वानों की बातें सुनकर ही आपको कहा गया है | इतिहास-पुराण तो सुनने का ही नहीं, पढ़ने तक का अधिकार है |
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एक बार हम और अच्छे-अच्छे संत आदमी, यहीं ऋषिकेश में जमा हुए थे | मैं तो एक साधारण आदमी ही हूँ | मालवीयजी का यह पक्ष था की – “स्त्रियाँ पौराणिक बातें पढ़-सुन सकती हैं |” और करपात्रीजी महाराज ने कहा – “सुन सकती हैं, किन्तु पढ़ नहीं सकती |” जब हमारे से राय ली, तब हमने तो कहा की-“दोनों ही बातें शास्त्रों में आती हैं|”
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शुद्र तथा स्त्री ओंकार का जप ना करें | कहीं-कहीं यह भी मिलता है की – “दंडी स्वामी ही ओंकार का जप कर सकते हैं |” किन्तु राम के नाम का उतना ही महत्व है जितना ओंकार का है | हमारे लिए तो मुक्ति का द्वार खुला हुआ है, हम क्यों ओंकार के जप की जिद करें | मैं तो कहता हूँ की – “अल्लाह-अल्लाह जिस प्रकार मुसलमान करते हैं, वे यदि प्रेम में मग्न होकर करें तो उन्हें भी उतना ही फल मिलेगा |”
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तुलसीदासजी राम-नाम के उपासक थे | उन्होंने कहा- “राम नाम सबसे बढ़कर है|” उन्होंने रामचरित मानस की रचना करके राम नाम को पार उतरने का साधन बता दिया | सूरदासजी ने कहा कि कृष्ण नाम सबसे बढ़कर है | ध्रुव कहेंगे की “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और मुसलमान कहेंगे की “अल्लाह खुदा ही सबसे बढ़कर है |” जैसे कोई पानी को कहें – जल, कोई कहें - आप:, कोई कहें – नीर, कोई कहें – वाटर या पानी, कुछ भी क्यों ना हो, अर्थ तो जल ही होगा | ऐसे ही परमात्मा के बहुत से नाम हैं कोई भी नाम लो मुक्ति मिल सकती है |
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बच्चा कहता है – ‘बू’ तो माँ समझकर उसे दूध पीला देती है | इसी प्रकार हम ओंकार का जप ना करके राम नामका जप करेंगे, तो राम नाम के जप से हमारा उद्धार क्यों नहीं होगा ? अवश्य होगा |
जय श्री कृष्ण
श्री जयदयाल जी गोयन्दका सेठजी
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🌷🌷 स्त्रियों को किसी भी अन्य पुरुष से दीक्षित होने की या किसी पर-पुरुष को गुरु बनाने की आवश्यकता नही है । सिद्धमन्त्र स्वामी अपनी पत्नी को दीक्षा दे सकता है । दीक्षा न दे तो भी पति उसका परम गुरु ही है । विधवा स्त्री केवल श्रीपरमात्मा को ही गुरु समझ कर उन्ही का सेवन करे |
भाई जी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी
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🌷🌷 बजरंगबाण- पाठ का निषेध -
कार्य सिद्धि के लिये अपने उपास्य देव से प्रार्थना करना तो ठीक है, पर उनपर दबाव डालना, उन्हें शपथ या दोहाई देकर कार्य करने के लिये विवश करना, तंग करना सर्वथा अनुचित है | बजरंगबाण में हनुमानजीपर ऐसा ही अनुचित दबाव डाला गया है, जैसे -'इन्हें मारू, तोहि सपथ राम की |' , 'सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै |' , 'जनकसुता - हरि - दास कहावौ | ता की सपथ, बिलंब न लावौ ||' , 'उठ, उठ, चलु, तोहि राम -दोहाई |' दबाव डालने से उपास्य देव प्रसन्न नहीं होते, उलटे नाराज होते हैं | इसलिये मैं 'बजरंगबाण' का पाठ करने के लिये मना किया करता हूँ |
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स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज
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.– स्त्री को ओंकार का उच्चारण करना चाहिए या नहीं ?
उत्तर – स्त्री को ॐ कारकी उपासना या उच्चारण नहीं करना चाहिए और जिस मंत्र में ॐ आता है उसका भी शास्त्रों में निषेध किया है | हम तो यहाँ इसके निषेध की प्रार्थना करते हैं | यदि कोई ना सुने तो हमारे को कोई मतलब नहीं | हमारे को ना तो कोई व्यक्तिगत लाभ अथवा हानि है | यह तो विनय के रूप में कहा गया है | वह माने या ना माने यह उनकी मर्जी है | वैदिक मन्त्रों का स्त्री के लिए निषेध है | वैदिक मन्त्रों में हरी ॐ होता है | स्त्री, शुद्र(द्विज को, जिनका जनेऊ संस्कार नहीं हुआ हो; उनको भी) कभी भी नहीं करना चाहिए | अच्छे-अच्छे विद्वानों की बातें सुनकर ही आपको कहा गया है | इतिहास-पुराण तो सुनने का ही नहीं, पढ़ने तक का अधिकार है |
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एक बार हम और अच्छे-अच्छे संत आदमी, यहीं ऋषिकेश में जमा हुए थे | मैं तो एक साधारण आदमी ही हूँ | मालवीयजी का यह पक्ष था की – “स्त्रियाँ पौराणिक बातें पढ़-सुन सकती हैं |” और करपात्रीजी महाराज ने कहा – “सुन सकती हैं, किन्तु पढ़ नहीं सकती |” जब हमारे से राय ली, तब हमने तो कहा की-“दोनों ही बातें शास्त्रों में आती हैं|”
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शुद्र तथा स्त्री ओंकार का जप ना करें | कहीं-कहीं यह भी मिलता है की – “दंडी स्वामी ही ओंकार का जप कर सकते हैं |” किन्तु राम के नाम का उतना ही महत्व है जितना ओंकार का है | हमारे लिए तो मुक्ति का द्वार खुला हुआ है, हम क्यों ओंकार के जप की जिद करें | मैं तो कहता हूँ की – “अल्लाह-अल्लाह जिस प्रकार मुसलमान करते हैं, वे यदि प्रेम में मग्न होकर करें तो उन्हें भी उतना ही फल मिलेगा |”
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तुलसीदासजी राम-नाम के उपासक थे | उन्होंने कहा- “राम नाम सबसे बढ़कर है|” उन्होंने रामचरित मानस की रचना करके राम नाम को पार उतरने का साधन बता दिया | सूरदासजी ने कहा कि कृष्ण नाम सबसे बढ़कर है | ध्रुव कहेंगे की “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और मुसलमान कहेंगे की “अल्लाह खुदा ही सबसे बढ़कर है |” जैसे कोई पानी को कहें – जल, कोई कहें - आप:, कोई कहें – नीर, कोई कहें – वाटर या पानी, कुछ भी क्यों ना हो, अर्थ तो जल ही होगा | ऐसे ही परमात्मा के बहुत से नाम हैं कोई भी नाम लो मुक्ति मिल सकती है |
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बच्चा कहता है – ‘बू’ तो माँ समझकर उसे दूध पीला देती है | इसी प्रकार हम ओंकार का जप ना करके राम नामका जप करेंगे, तो राम नाम के जप से हमारा उद्धार क्यों नहीं होगा ? अवश्य होगा |
जय श्री कृष्ण
श्री जयदयाल जी गोयन्दका सेठजी
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🌷🌷 स्त्रियों को किसी भी अन्य पुरुष से दीक्षित होने की या किसी पर-पुरुष को गुरु बनाने की आवश्यकता नही है । सिद्धमन्त्र स्वामी अपनी पत्नी को दीक्षा दे सकता है । दीक्षा न दे तो भी पति उसका परम गुरु ही है । विधवा स्त्री केवल श्रीपरमात्मा को ही गुरु समझ कर उन्ही का सेवन करे |
भाई जी श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी
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🌷🌷 बजरंगबाण- पाठ का निषेध -
कार्य सिद्धि के लिये अपने उपास्य देव से प्रार्थना करना तो ठीक है, पर उनपर दबाव डालना, उन्हें शपथ या दोहाई देकर कार्य करने के लिये विवश करना, तंग करना सर्वथा अनुचित है | बजरंगबाण में हनुमानजीपर ऐसा ही अनुचित दबाव डाला गया है, जैसे -'इन्हें मारू, तोहि सपथ राम की |' , 'सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै |' , 'जनकसुता - हरि - दास कहावौ | ता की सपथ, बिलंब न लावौ ||' , 'उठ, उठ, चलु, तोहि राम -दोहाई |' दबाव डालने से उपास्य देव प्रसन्न नहीं होते, उलटे नाराज होते हैं | इसलिये मैं 'बजरंगबाण' का पाठ करने के लिये मना किया करता हूँ |
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स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज
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