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श‌िवजी के पास कहां से आया नाग, डमरु, त्र‌िशूल, त्र‌िपुंड और नंदी?

श‌िवजी के पास कहां से आया नाग, डमरु, त्र‌िशूल, त्र‌िपुंड और नंदी?

भगवान श‌िव का ध्यान करने मात्र से मन में जो एक छव‌ि उभरती है वो एक वैरागी पुरुष की। इनके एक हाथ में त्र‌िशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प माला, स‌िर पर त्र‌िपुंड चंदन लगा हुआ है। माथे पर अर्धचन्द्र और स‌िर पर जटाजूट ज‌िससे गंगा की धारा बह रही है। थोड़ा ध्यान गहरा होने पर इनके साथ इनका वाहन नंदी भी नजर आता है। कहने का मतलब है क‌ि श‌िव के साथ ये 7 चीजें जुड़ी हुई हैं।

आप दुन‌िया में कहीं भी चले जाइये आपको श‌िवालय में श‌िव के साथ ये 7 चीजें जरुर द‌िखेगी। आइये जानें क‌ि श‌िव के साथ इनका संबंध कैसे बना यानी यह श‌िव जी से कैसे जुड़े। क्या यह श‌िव के साथ ही प्रकट हुए थे या अलग-अलग घटनाओं के साथ यह श‌िव से जुड़ते गए।

भगवान श‌िव सर्वश्रेष्ठ सभी प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता हैं लेक‌िन पौराण‌िक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्‍त्रों का ज‌िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्र‌िशूल।

त्र‌िपुरासुर का वध और अर्जुन का मान भंग, यह दो ऐसी घटनाएं हैं जहां श‌िव जी ने अपनी धनुर्व‌िद्या का प्रदर्शन क‌िया था। जब‌क‌ि त्र‌िशूल का प्रयोग श‌िव जी ने कई बार क‌िया है।

त्र‌िशूल से श‌िव जी ने शंखचूर का वध क‌िया था। इसी से गणेश जी का स‌िर काटा था और वाराह अवतार में मोह के जाल में फंसे व‌िष्‍णु जी का मोह भंग कर बैकुण्ठ जाने के ल‌िए व‌िवश क‌िया था।

भगवान श‌िव के धनुष के बारे में तो यह कथा है क‌ि इसका आव‌िष्कार स्वयं श‌िव जी ने क‌िया था। लेक‌िन त्र‌िशूल कैसे इनके पास आया इस व‌िषय में कोई कथा नहीं है।

माना जाता है क‌ि सृष्ट‌ि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब श‌िव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण श‌िव जी के तीन शूल यानी त्र‌िशूल बने।

इनके बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्ट‌ि का संचालन कठ‌िन था। इसल‌िए श‌िव ने त्र‌िशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण क‌िया।

भगवान श‌िव जी को संहारकर्ता के रूप में वेदों और पुराणों में बताया गया है। जब‌क‌ि श‌िव का नटराज रूप ठीक इसके व‌िपरीत है। यह प्रसन्न होते हैं और नृत्य करते हैं। इस समय श‌िव के हाथों में एक वाद्ययंत्र होता है ज‌िसे डमरू करते हैं।

इसका आकार रेत घड़ी जैसा है जो द‌िन रात और समय के संतुलन का प्रतीक है। श‌िव भी इसी तरह के हैं। इनका एक स्वरूप वैरागी का है तो दूसरा भोगी का है जो नृत्य करता है पर‌िवार के साथ जीता है।

इसल‌िए श‌िव के ल‌िए डमरू ही सबसे उच‌ित वाद्य यंत्र है। यह भी माना जाता है क‌ि ‌ज‌िस तरह श‌िव आद‌ि देव हैं उसी प्रकार डमरू भी आद‌ि वाद्ययंत्र है।

भगवन श‌िव के हाथों में डमरू आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। सृष्ट‌ि के आरंभ में जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा के स्वर से सष्ट‌ि में ध्वन‌ि जो जन्म द‌िया। लेक‌िन यह ध्वन‌ि सुर और संगीत व‌िहीन थी।

उस समय भगवान श‌िव ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरू बजाए और इस ध्वन‌ि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। कहते हैं क‌ि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से व‌िस्‍तृत नजर आता है लेक‌िन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकु‌च‌ित हो दूसरे स‌िरे से म‌िल जाता है और फ‌िर व‌िशालता की ओर बढ़ता है। सृष्ट‌ि में संतुलन के ल‌िए इसे भी भगवान श‌िव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।

भगवान श‌िव के साथ हमेशा नाग होता है। इस नाग का नाम है वासुकी। इस नाग के बारे में पुराणों में बताया गया है क‌ि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। सागर मंथन के समय इन्होंने रस्सी का काम क‌िया था ज‌िससे सागर को मथा गया था।

कहते हैं क‌ि वासुकी नाग श‌िव के परम भक्त थे। इनकी भक्त‌ि से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने इन्हें नागलोक का राजा बना द‌िया और साथ ही अपने गले में आभूषण की भांत‌ि ल‌िपटे रहने का वरदान द‌िया।

नंदी के बारे में पुराणों में जो कथा म‌िलती है उसके अनुसार नंदी और श‌िव वास्तव में एक ही हैं। श‌िव ने ही नंदी रूप में जन्म ल‌िया था। कथा है क‌ि श‌िलाद नाम के ऋष‌ि मोह माया से मुक्त होकर तपस्या में लीन हो गए।

इससे इनके पूर्वज और प‌ितरों को च‌िंता हुई क‌ि इनका वंश समाप्त हो जाएगा। प‌ितरों की सलाह पर श‌िलाद ने श‌िव जी की तपस्या करके एक अमर पुत्र को प्राप्त क‌िया जो नंदी नाम से जाना गया।

श‌िव का अंश होने के कारण नंदी श‌िव के करीब रहना चाहता था। श‌िव जी की तपस्या से नंदी श‌िव के गणों में प्रमुख हुए और वृषभ रूप में श‌िव का वहन बनने का सौभाग्य प्राप्त क‌िया।

श‌िव पुराण के अनुसार चन्द्रमा का व‌िवाह दक्ष प्रजापत‌ि की 27 कन्याओं से हुआ था। यह कन्‍याएं 27 नक्षत्र हैं। इनमें चन्द्रमा रोह‌िणी से व‌िशेष स्नेह करते थे। इसकी श‌िकायत जब अन्य कन्याओं ने दक्ष से की तो दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे द‌िया।

इस शाप बचने के ल‌िए चन्द्रमा ने भगवान श‌िव की तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर श‌िव जी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने श‌ीश पर स्‍थान द‌िया।

जहां चन्द्रमा ने तपस्या की थी वह स्‍थान सोमनाथ कहलाता है। मान्यता है क‌ि दक्ष के शाप से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है।

भगवान श‌िव के माथे पर भभूत (राख) से बनी तीन रेखाएं हैं। माना जाता है क‌ि यह तीनों लोको का प्रतीक है। इसे रज, तम और सत गुणों का भी प्रतीक माना जाता है। लेक‌िन श‌ि‌व के माथे पर भभूत की यह तीन रेखाएं कैसे आयी इसकी बड़ी रोचक कथा है।

पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजपत‌ि के यज्ञ कुंड में सती के आत्मदाह करने के बाद भगवान श‌िव उग्र रूप धारण कर लेते हैं और सती के देह को कंधे पर लेकर त्र‌िलोक में हहाकार मचाने लगते हैं। अंत में व‌िष्‍णु चक्र से सती के देह को खंड‌ित कर देते हैं। इसके बाद भगवान श‌िव अपने माथे पर हवन कुंड की राख मलते और इस तरह सती की याद को त्र‌िपुंड रूप में माथे पर स्‍थान देते हैं।

भगवान श‌िव के माथे पर गंगा के व‌िराजमान होने की घटना का संबंध राजा भगीरथ से माना जाता है। कथा है क‌ि भगीरथ ने अपने पूर्वज सगर के पुत्रों को मुक्त‌ि द‌िलाने के ल‌िए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा था। लेक‌िन इस कथा के पीछे कई कथाएं हैं ज‌िनसे भगीरथ का प्रयास सफल हुआ।

कथा है क‌ि ब्रह्मा की पुत्री गंगा बड़ी मनमौजी थी एक द‌िन दुर्वासा ऋष‌ि जब नदी में स्नान करने आए तो हवा से उनका वस्‍त्र उड़ गया और तभी गंगा हंस पड़ी। क्रोधी दुर्वासा ने गंगा को शाप दे द‌िया क‌ि तुम धरती पर जाओगी और पापी तुम में अपना पाप धोएंगे।

इस घटना के बाद भगीरथ का तप शुरू हुआ और भगवान श‌िव ने भगीरथ को वरदान द‌ेते हुए गंगा को स्वर्ग से धरती पर आने के ल‌िए कहा। लेक‌िन गंगा के वेग से पृथ्वी की रक्षा के ल‌िए श‌िव जी ने उन्हें अपनी जटाओं में बांधना पड़ा। कथा यह भी है क‌ि गंगा श‌िव के करीब रहना चाहती थी इसल‌िए धरती पर उतरने से पहले प्रचंड रूप धारण कर ल‌िया। इस स्‍थ‌ित‌ि को संभालने के ल‌िए श‌िव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में स्‍थान द‌िया।

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