रविवार, 31 दिसंबर 2017

युद्ध मे एक बार प्रभुश्रीराम और दो बार लक्ष्मण को हराने वाले,रावण पुत्र मेघनाद की कथा।



वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के अनुसार जब मेघनाद का जन्म हुआ तो वह समान्य शिशुओं की तरह रोया नहीं था बल्कि उसके मुंह से बिजली की कड़कने की आवाज सुनाई दी थी।यही कारण था की रावण ने अपने इस पुत्र का नाम मेघनाद  रखा।जब मेघनाथ युवा अवस्था में पहुंचा तो उसने कठिन तपश्या के बल पर संसार के तीन सबसे घातक अस्त्र ( ब्र्ह्मास्त्र, पशुपति अस्त्र और वैष्णव अस्त्र ) प्राप्त कर लिया था।

मेघनाद ने एक बार देवराज इंद्र के साथ युद्ध लड़ कर उन्हें बंदी बना लिया व अपने रथ के पीछे बांध दिया था. तब स्वयं ब्र्ह्मा जी को इंद्र की रक्षा के लिए प्रकट होना पड़ा तथा उन्होंने मेघनाद से इंद्र को छोड़ने के लिए कहा। ब्र्ह्मा जी की आज्ञा सुन मेघनाद ने इंद्र को बंधन-मुक्त कर दिया।

ब्र्ह्मा जी ने मेघनाद से प्रसन्न होकर उससे वर मांगने को कहा, इस पर मेघनाद ने ब्र्ह्मा से अमरता का वर मांगा जिस को देने के लिए ब्र्ह्मा जी ने अपनी असमर्थता जताई. परन्तु ब्र्ह्मा ने उसे उसके समान ही वर जरूर दिया. अपनी कुल देवी प्रत्यांगीरा के यज्ञ के दौरान मेघनाद को स्वयं त्रिदेव नहीं हरा सकते और नहीं मार सकते थे।

ब्रह्म देव ने ही मेघनाद को इंद्रजीत की उपाधि दी थी. साथ ही तब से इंद्रजीत सिर्फ महारथी ही नहीं अतिमहारथी भी हो गया था. इंद्रजीत का विवाह नागकणः से हुआ था जो पाताल के राजा शेषनाग की पुत्र थी. रामयाण के युद्ध में कुम्भकर्ण के वध के बाद मेघनाद ने इंद्रजीत ने भाग लिया।

पहले दिन के युद्ध में उतरते ही इंद्रजीत  ने सुग्रीव की पूरी सेना को हिला डाला. लक्ष्मण इंद्रजीत के सामने युद्ध को आये परन्तु वे भी अधिक समय तक टिक न सके, लक्ष्मण को कमजोर पड़ता देख राम भी इंद्रजीत के साथ युद्ध में उतरे परन्तु उसके मायावी शक्ति के आगे बेबस थे।

दरअसल युद्ध पे आने से पूर्व मेघनाद ने अपनी कुल देवी का यज्ञ शुरू करवाया था जिसके प्रभाव से वो और उसका रथ अदृश्य हो जाता था. मेघनाद ने अपनी मायावी शक्ति के प्रभाव से राम और लक्ष्मण दोनों को भ्रमित कर दिया तथा मौका पाकर उन पर नागपश का प्रयोग किया जिसके प्रभाव से दोनों मूर्छित होकर गिर पड़े।

नागपाश से मूर्छित व्यक्ति अगले दिन का सूरज नहीं देख सकता था. परन्तु हनुमान जी नागपाश से अपने प्रभु राम व लक्ष्मण को मुक्त करने लिए वैकुंठ लोग गए तथा वहां से नागो के शत्रु गरुड़ को लेकर आये. गरुड़ को देख नाग भयभीत हो गए तथा उन्होंने राम तथा लक्ष्मण को मुक्त कर दिया तथा उनकी मूर्छा टूटी।

अगले दिन लक्ष्मण ने मेघनाद  का सामना फिर से किया तथा दोनों के मध्य भयंकर युद्ध हुआ. तभी मेघनाद के शरीर में लक्ष्मण का एक तीर छू जाने से वह क्रोधित हो तथा उसने लक्ष्मण पर शक्ति बाण छोड़ दिया. शक्ति बाण लगते ही लक्ष्मण जी मूर्छित हो पड़े।

तब लक्ष्मण के प्राण को बचाने के लिए हनुमान जी लंका से वैद्य को उसके घर ही समेत उठाए लाये. वैद्य ने हनुमान को उपाय बताते हुए संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा तब हनुमान जी सारा दोरनांचल पर्वत उखाड़ कर ले आये।

लेकिन तीसरे दिन विभीषण के कहने पर लक्ष्मण वहां जा पहुंचे जहां मेघनाद  यज्ञ कुल देवी का यज्ञ करवा रहा था. यज्ञ में कुलदेवी की पूजा करते समय हथियार उठने की मनाही थी परतु फिर भी वहां रखे यज्ञ पात्रो की सहायता से मेघनाद लक्ष्मण से बचते हुए सकुशल लंका पहुंच गया।

मेघनाद (शुरू से ही जानता था की प्रभु श्री राम नारायण के अवतार है और उनके छोटे भाई शेषनाग के, उसने अपने पिता रावण को अनेको बार समझाया भी की उन्हें प्रभु राम से शत्रुता मोल लेनी नहीं चाहिए. परन्तु रावण के अहंकार एवं मेघनाद के पिता होने के कारण मेघनाद का रावण की आज्ञा का पालन करना उसका परम कर्तव्य था।

अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए एक बार वह फिर से लक्ष्मण के साथ युद्ध करने गया परतु इस बार मेघनाद  जानता था वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त होगा अतः युद्ध से पूर्व वह अपने सभी परजिनों से मिल कर गया।

युद्ध के दौरान उसने सारे प्रयत्न किए लेकिन वह विफल रहा. इसी युद्ध में लक्ष्मण के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया. लक्ष्मण जी ने मेघनाद  का सिर उसके शरीर से अलग कर दिया।

उसका सिर श्रीराम के आगे रखा गया. उसे वानर और रीछ देखने लगे. तब श्रीराम ने कहा, 'इसके सिर को संभाल कर रखो. दरअसल, श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना मेघनाद की पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे। उन्होंने मेघनाद की एक भुजा को, बाण के द्वारा मेघनाद के महल में पहुंचा दिया।

वह भुजा जब मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है. उसने भुजा से कहा अगर तुम वास्तव में मेघनाद की भुजा हो तो मेरी दुविधा को लिखकर दूर करो।

मेघनाद की पत्नी सुलोचना के ये कहते ही भुजा हिलने लगी| यह देख सभी हैरान हो गए| दासी से कलम मंगवाई और भुजा ने लक्ष्मण के गुणगान में कुछ शब्द लिखे| ऐसा देख कर सुलोचना को विश्वास हो गया कि उसके पति की मृत्यु हो गयी है और वह विलाप करने लगी|

फिर सुलोचना ने सती होने का मन बनाया और रावण के पास मेघनाद की भुजा लेकर पहुंची| उसने रावण को सारी कहानी बताई और मेघनाथ का शीश माँगा| पूरा परिवार मेघनाथ की मृत्यु के शोक में था तभी रावण ने सुलोचना से कहा की तुम कुछ क्षण इंतज़ार करो ताकि मैं मेघनाथ के शीश के साथ-साथ शत्रु का शीश भी ले आऊँ|

परन्तु सुलोचना को अपने ससुर पर विश्वास नहीं था इसलिए, मंदोदरी के कहने पर कि श्री राम ही तुम्हारी मदद करेंगे, वह श्री राम के पास चली गयी| तब विभीषण ने उसका परिचय श्री राम को कराया| सुलोचना श्रीराम के सामने अपने पति की मृत्यु का विलाप करने लगी और कहा, ‘हे राम मैं आपकी शरण में आई हूं। मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि में सती हो सकूं|’

श्रीराम सुलोचना को रोता हुआ नहीं देख पाए और कहा कि मैं तुम्हरे पति को पुनः जीवित कर देता हूँ| परन्तु सुलोचना ने मना करते हुए ये कहा, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें। मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे आपके दर्शन हो गए। मेरा जन्म सार्थक हो गया। अब जीने की कोई इच्छा नहीं रही।’

श्रीराम के कहने पर वानर-राज सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए| लेकिन उनका मन नहीं माना कि मेघनाद की कटी हुई भुजा ने लक्ष्मण जी के गुणगान में शब्द लिखे हैं| उन्होंने कहा कि वह सुलोचना की बात को तभी सच मानेंगे जब मेघनाद का कटा हुआ सिर हंसेगा|

सुलोचना के लिए यह बहुत बड़ी परीक्षा थी| उसने कटे हुए सिर से कहा, ‘हे स्वामी! जल्दी हंसिए, वरना आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे।’ इतना सुनते ही इंद्रजीत का सिर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा|

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