शनिवार, 9 दिसंबर 2017

ऐसे बचें नर्क जाने से :-


शुकदेवजी राजा परीक्षित को स्वर्ग-नर्क का भेद बता रहे हैं। परीक्षित ने पूछा शुकदेवजी से- "आप तो इस बात का उत्तर दो कि नर्क जाने से कैसे बचें ?"*
उन्होंने बताया कि नर्क जाने से बचना हो तो तीन काम करो
*ध्यान करो,*
*अर्चन करो*
*और नाम लो।*
*ये तीन काम करिए। थोड़ा सा ध्यान लगाइएगा, ध्यान लगाते ही आपकी ऊर्जा उपर उठने लगती है। ऊर्जा ऊपर उठी तो आपका चरित्र ऊपर उठेगा।*
*यदि आप नाम, स्मरण, ध्यान ठीक से नहीं कर रहे हैं तो आप नीचे जा रहे हैं। आचरण से, क्रोध कर रहे हैं, काम कर रहे हैं, छल कर रहे हैं लोगों से तो आप नर्क में जा रहे हैं।*
*अब शुकदेवजी अजामिल की कथा सुना रहे हैं। अजामिल नाम का 80 वर्ष का एक ब्राह्मण था, उसने अपना जीवन कैसे जिया अब ये बता रहे हैं। परीक्षित ने पूछा शुकदेवजी आपने साधक पुरूषों की मुक्ति और निवृत्ति का मार्ग मुझे बताया जिससे स्वर्ग मिलता है। स्वर्ग पाने पर फिर जन्म मरणमय संसार में आना पड़ता है। अब मुझे वे साधन बताइये कि जिससे मनुष्य नर्क जाने से बच जाए।*
शुकदेवजी बोले-
*"हे राजन। जो पुरूष मन, वाणी और कर्म से किए इस जन्म में शास्त्रों में कहे अनुसार प्रायश्चित नहीं करेगा वह तो नर्क में जाएगा।"*
*"इसलिए मानव को चाहिए कि वह इस जन्म में किए पापों का प्रायश्चित इसी जन्म में कर ले। प्रायश्चित का अभिप्राय है पथ्य विचार। जिस प्रकार पथ्य करने वाले को रोग नहीं घेर पाता उसी प्रकार धर्मज्ञ, श्रद्धावान, धीर पुरुष अपनी*
*तपस्या,*
*ब्रह्मचर्य,*
*इन्द्रिय दमन,*
*मन की स्थिरता,*
*दान,*
*सत्य,*
*भीतर-बाहर की पवित्रता*
*तथा यम,*
*नियम*
*इन नौ साधनों से मन, वाणी और शरीर द्वारा किए गए बड़े से बड़े पापों को भी नष्ट कर देते हैं।"*

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