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श्रीकृष्ण की ही पूजा क्यों की जाए

हमारे शास्त्रों में तो ३३ करोड़ देवी देवताअों का वर्णन है, तो श्रीकृष्ण की ही पूजा क्यों की जाए
अापकी बात सही है कि हमें शास्त्रों में जो वर्णित है उसके अनुसार ही कार्य करना चाहिए। यदि अाप शास्त्र ध्यानपूर्वक पढ़ेंगे तो पायेंगे कि श्रीकृष्ण ही वे परम भगवान् हैं जो सभी देवी–देवताअाें के स्रोत हैं अौर जिनकी पूजा सभी देवी–देवता करते हैं। श्रीकृष्ण भगवद्गीता में बताते हैं –
अहमादिर्हि देवानां – मैं ही सभी देवताअों का स्रोत हूॅं। अहं सर्वस्य प्रभवो – मेरे से ही सबकुछ अाता है।

श्रीकृष्ण मूल परम पुरुषोत्तम भगवान् हैं अाैर विष्णु उनके विस्तार हैं। ब्रह्माजी का जन्म गर्भोदकक्षायी विष्णु की नाभि से प्रकट हुए कमल पर होता है। अाैर अन्य सभी देवताअाें की उत्पत्ति ब्रह्माजी से होती है। अथर्व वेद,गोपाल तपनी उपनिषद (१.२४) में कहा गया है,

यो ब्रह्मनं विदधति पूर्वं यो वै, वेदांश्च गपयति स्म कृष्णः – श्रीकृष्ण ही हैं जिन्होंने प्रारम्भ में ब्रह्माजी को वैदिक ज्ञान दिया था।
नारायण उपनिषद में बताया गया है –
नारायणाद् ब्रह्मा जायते, नारायणाद् प्रजापतिः प्रजायते,
नारायणाद् इन्द्रो जायते, नारायणाद् अष्टो वसवो जयन्ते,
नारायणाद् एकादश रुद्र जयन्ते, नारायणाद् द्वादशादित्यः
नारायण से ही ब्रह्माजी का जन्म हुअा, नारायण से सभी प्रजापति उत्पन्न हुए। नारायण से इन्द्र का जन्म हुअा, नारायण से अाठ वसु उत्पन्न हुए, नारायण से ग्यारह रुद्र पैदा हुए, नारायण से बारह अादित्य का जन्म हुअा।

ब्रह्माजी स्वयं कहते हैं –

ईश्वरः परम कृष्ण सच्चिदानंद विग्रह I
अनादिः अादि गोविंद सर्व कारण कारणम् II

भगवान् कृष्ण ही परम नियन्ता हैं अाैर वे सभी के मूल स्रोत एवं सभी कारणो के कारण हैं।जो व्यक्ति परम भगवान् अौर देवताअों को एक ही स्तर पर मानता है उसे शास्त्र पाषण्डी कहते हैं।
रिग वेद (१.२२.२०) में कहा गया है –
ॐ तद् विष्णुं परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः – भगवान् विष्णु के चरण कमल सभी देवताअों के लिए परम वंदनीय हैं।

शास्त्रों में अाैर भी अनेक श्लोक हैं जिनका अध्ययन करने पर यह प्रमाणित हो जाता है कि श्रीकृष्ण या नारायण या विष्णु ही परम भगवान् हैं। अाैर बाकी सभी उनके अाधिपत्य में हैं। श्रीकृष्ण सरकार में उन राजा या प्रधानमंत्री के समान हैं जिनकी अाज्ञानुसार सभी मंत्री अनेक सेवाअाें में सेवारत रहते हैं।
यह भी सर्वविदित है कि जब भी ब्रह्माण में रावण, हिरण्यकाशिपु, कंस इत्यादि जैसे असुरों द्वारा अापदाएॅं अाती हैं तो सभी देवता ब्रह्माजी के नेतृत्व में भगवान् विष्णु की ही शरण लेते हैं।
तो बुद्धिमत्ता क्या परम भगवान् विष्णु की पूजा करने में नहीं है? यदि हम पेड़ की जड़ में पानी डालेंगे तो क्या हमें कुछ अाैर करने की अावश्यकता है?
अब प्रश्न यह उठता है कि यदि भगवान् विष्णु किसी की कोई भी इच्छा पूर्ण करने में सक्षम हैं तो अधिकांश लोग उनकी शरण न लेकर देवताअों की शरण क्यों लेते हैं?
देवता अपने उपासकों को उनकी इच्छानुसार वस्तुएॅं प्रदान करते हैं अौर वे यह नहीं देखते कि वह वस्तु उसके लिए अच्छी है या बुरी। जैसे कि दुकानदार बच्चे को चाॅकलेट बेचते समय यह नहीं सोचता कि यह चाॅकलेट बच्चे के दांतों के लिए अच्छी है या बुरी। किन्तु श्रीकृष्ण उन प्रेमी पिता के समान हैं जो अपने भक्तों को वो ही प्रदान करते है जो उनकी अाध्यात्मिक प्रगति के लिए अच्छा है अर्थात् जो उनके लिए अावश्यक है न कि जो वह चाहता है।लालची लोग शीघ्र ही फल प्राप्त करने हेतु देवताअों की पूजा करते हैं। किन्तु वे यह नहीं सोचते कि देवताअों द्वारा प्रदान किए फल नश्वर हैं अौर थोड़े समय के पश्चात् नष्ट होने वाले हैं।
अज्ञानता अौर भौतिक अासक्तियों के कारण अधिकांश लोग भौतिक सुखों के पीछे ही पागल हैं अौर वे मुक्ति का शाश्वत् अाध्यात्मिक सुख का न तो ज्ञान रखते हैं अौर न ही उसकी अभिलाषा रखते हैं। अौर जन्म–जन्मातंर तक इस भौतिक जगत् में जन्म, मृत्यु, जरा एवं व्याधि सहित अनेक कष्ट भोगते रहते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देवता जीव को मुक्ति प्रदान नहीं कर सकते, उनके पास इस ब्रह्माण्ड में केवल सीमित अाधिपत्य है। उनकी स्थिति कम्पनी के उस मैनेजर के समान है जिसके पास केवल उसके विभाग का नियन्त्रण है।हिरण्यकाशिपु ने अमरत्व प्राप्त करने के लिए ब्रह्माजी को प्रसन्न करने हेतु हजारों–लाखों वर्षों तक कठोर तपस्या की। किन्तु ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा, मैं स्वयं ही अमर नहीं हूॅं तो तुम्हें कैसे अमरत्व का वरदान दे सकता हूॅं।मुक्ति प्रदान कर शाश्वत् अाध्यात्मिक सुख तो श्रीकृष्ण ही प्रदान कर सकते हैं, श्वेताश्वर उपनिषद् (३.८) में बताया गया है – तं एव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पंथाः विद्यते अयन्य – केवल उन परम भगवान् को जानने के पश्चात् ही कोई मृत्यु को पार कर दिव्यता को प्राप्त कर सकता है, अौर कोई अन्य उपाय नहीं है।शिवजी भी श्रीकृष्ण की विशेष स्थिति की पुष्टि करते हैं – मुक्ति प्रदाता सर्वेषां विष्णुरेव न संशयः – इसमें कोई संदेह नहीं है कि विष्णु ही सभी को मुक्ति प्रदान कर सकते हैं।तो चुनाव हमें करना होगा क्या हम नश्वर सुख चाहते हैं या शाश्वत् अाध्यात्मिक सुख?

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