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तुलसी जी की पूजा

पद्म पुराण में लिखा है
कि जहाँ तुलसी का एक भी पौधा होता है। वहाँ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी निवास करते हैं। आगे वर्णन आता है कि तुलसी की सेवा करने से महापातक भी उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार नष्ट हो जाता है। कहते हैं कि जिस प्रसाद में तुलसी नहीं होता उसे भगवान स्वीकार नहीं करते। भगवान विष्णु, योगेश्वर कृष्ण और पांडुरंग (श्री बालाजी) के पूजन के समय तुलसी पत्रों का हार उनकी प्रतिमाओं को अर्पण किया जाता है। तुलसी - वृन्दा श्रीकृष्ण भगवान की प्रिया मानी जाती है और इसकी भोग लगाकर भगवत प्रेमीजन इसका प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। स्वर्ण, रत्न, मोती से बने पुष्प यदि श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाएँ तो भी तुलसी पत्र के बिना वे अधूरे हैं। श्रीकृष्ण अथवा विष्णुजी तुलसी पत्र से प्रोक्षण किए बिना नैवेद्य स्वीकार नहीं करते।

तुलसी स्तुति का मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसी तोड़ने, पूजने और जल चढ़ाने के विशेष मंत्र *

तुलसी के पत्ते तोड़ते समय बोलने के मंत्र -

ॐ सुभद्राय नमः - ॐ सुप्रभाय नमः

तुलसीनामाष्टक का जप करें अश्वमेध यज्ञ से प्राप्त पुण्य कई जन्मों तक फल देने वाला होता है। यही पुण्य तुलसी नामाष्टक के नियमित पाठ से मिलता है। तुलसी नामाष्टक का पाठ पूरे विधि-विधान से किया जाना चाहिए।

तुलसी पूजा के मंत्र तुलसी जी को जल चढ़ाते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

इस मंत्र द्वारा तुलसी जी का ध्यान करना चाहिए

- देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

धन-संपदा, वैभव, सुख, समृद्धि की प्राप्ति के लिए तुलसी नामाष्टक मंत्र का जाप करना चाहिए-

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।

तुलसी के पत्ते तोड़ते समय इस मंत्र का जाप करना चाहिए-

ॐ सुभद्राय नमः ॐ सुप्रभाय नमः - मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

तुलसी स्तोत्र पढ़ने का महत्व तुलसी जी की पूजा में कई मंत्रों के साथ तुलसी स्तोत्र का भी पाठ किया जाता है।

पद्मपुराण के अनुसार द्वादशी की रात को जागरण करते हुए तुलसी स्तोत्र को पढ़ना चाहिए।

इस दिन भगवान विष्णु जातक के सभी अपराध क्षमा कर देते हैं।
तुलसी स्त्रोत को सुनने से भी समान पुण्य मिलता है।

तुलसी स्त्रोत निम्न हैं-

तुलसी स्तोत्रम् जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥1॥

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥2॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा । कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥3॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥4॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः
॥5॥

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ । कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥6॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥7॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ । आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥8॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः । अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥9॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥10॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता । विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥11॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी । धर्म्या धर्नानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥12॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला । षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥13॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् । तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥14॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे । नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥15॥

इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्ण

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रविवार को दूर्वा  और कार्तिक में आवले की पत्ती नही तोडना चाहिए

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1.कब नहीं तोड़ना चाहिए तुलसी के पत्ते-

शास्त्रों के अनुसार तुलसी के पत्ते कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ने चाहिए।

देव् याज्ञगिक कृत स्मर्ती सार  में  निर्णय सिंधु 

पेज नम्बर  ७१७पर

 बैधृति योग  में " 

व्यतिपात  योग में

 मंगलवार में

शुक्रवार में

अमावश्या में

पूर्णिमा में

सक्रान्ति में

द्वादसी में

जननाशौच में

मरण शौच में

 और सूर्य या चंद्र ग्रहण काल।

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बिना उपयोग तुलसी के पत्ते कभी नहीं तोड़ने चाहिए। ऐसा करने पर व्यक्ति को दोष लगता है। अनावश्यक रूप से तुलसी के पत्ते तोड़ना, तुलसी को नष्ट करने के समान माना गया है।

2. रोज करें तुलसी का पूजन- हर रोज तुलसी पूजन करना चाहिए के साथ ही यहां बताई जा रही सभी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए। साथ ही, हर शाम तुलसी के पास दीपक लगाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो लोग शाम के समय तुलसी के पास दीपक लगाते हैं, उनके घर में महालक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है।

3. तुलसी से दूर होते हैं वास्तु दोष- तुलसी घर-आंगन में होने से कई प्रकार के वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति पर शुभ असर होता है।

4. तुलसी का पौधा घर में हो तो नहीं लगती है बुरी नजर- ऐसी मान्यता है कि तुलसी का पौधा होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती है। साथ ही, सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय नहीं हो पाती है। सकारात्मक ऊर्जा को बल मिलता है।

5. तुलसी का सूखा पौधा नहीं रखना चाहिए घर में- यदि घर में लगा हुआ तुलसी का पौधा सूख जाता है तो उसे किसी पवित्र नदी में या तालाब में या कुएं में प्रवाहित कर देना चाहिए। तुलसी का सूखा पौधा घर में रखना अशुभ माना जाता है।

6. सूखा पौधा हटाने के बाद तुरंत लगा लेना चाहिए तुलसी का दूसरा पौधा- एक पौधा सूख जाने के बाद तुरंत ही दूसरा तुलसी का पौधा लगा लेना चाहिए। सूखा हुआ तुलसी का पौधा घर में होने से बरकत पर बुरा असर पड़ सकता है। इसी वजह से घर में हमेशा पूरी तरह स्वस्थ तुलसी का पौधा ही लगाया जाना चाहिए।

7. तुलसी है औषधि भी- तुलसी का धार्मिक महत्व तो है, साथ ही आयुर्वेद में इसे संजीवनी बुटि के समान माना जाता है। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो कई बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक हैं। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी फैलाने वाले कई सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट कर देती है।

8. रोज तुलसी की एक पत्ती सेवन करने से मिलते हैं ये फायदे- तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही, तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हम सामान्य बुखार से बचे रहते हैं। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से बचाव हो सकता है। तुलसी की पत्ती सेवन करने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी बढ़ जाती है, लेकिन हमें नियमित रूप से तुलसी की पत्ती का सेवन करते रहना चाहिए।

9 . तुलसी के पत्ते चबाना नहीं चाहिए- तुलसी के पत्तों का सेवन करते समय ध्यान रखना चाहिए कि इन पत्तों को चबाए नहीं बल्कि निगल लेना चाहिए। इस प्रकार तुलसी का सेवन करने से कई रोगों में लाभ प्राप्त होता है। तुलसी के पत्तों में पारा धातु के तत्व भी विद्यमान होते हैं जो कि पत्तों को चबाने से दांतों पर लग जाते हैं। ये तत्व दांतों के लिए फायदेमंद नहीं है। अत: तुलसी के पत्तों को बिना चबाए निगलना चाहिए। 10. शिवलिंग पूजन में वर्जित है तुलसी के पत्ते- एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने तुलसी के पति दैत्यों के राजा शंखचूड़ का वध किया था, जिसके फलस्वरूप न तो शिव पूजन में तुलसी काम में लेते है और नाहि शंख से शिवलिंग पर जल चढ़ाते है। मान्यतानुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन जो जातक तुलसी जी पूजा करता है उसे कई जन्मों का पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन तुलसी जी की पूजा में निम्न मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है:

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्ण जीवनी।। एतन्नामाष्टंक चैव स्त्रोत्रं नामार्थसंयुतमू ।
यः पठेत् तां च सम्पूज्य सोडश्वमेधफलं लभेत।।

शिवलिंग और गणेश पूजन में वर्जित है

तुलसी- वैसे तो किसी भी पूजा में तुलसी के पत्तों का खास महत्व होता है।
लेकिन शिव पूजन और गणेश पूजन में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल वर्जित है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और कहानियां प्रचलित हैं।

* तुलसी पूजन के बाद बोलने का तुलसी मंत्र

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीहरिप्रिया।।

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