♥ कलियुग के लक्षण ♥
♥ कलियुग में एकमात्र सम्पत्ति को ही मनुष्य
के उत्तम जन्म, उचित व्यवहार तथा उत्तम गुणों
का लक्षण माना जायेगा । कानून तथा न्याय तो
मनुष्य के बल के अनुसार ही लागू होंगे ॥
♥ पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल ऊपरी आकर्षण के
कारण एकसाथ रहेंगे और व्यापार की सफलता
कपट पर निर्भर करेगी । पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का
निर्णय कामशास्त्र में उनकी निपुणता के अनुसार
किया जायेगा और ब्राम्हणत्व जनेऊ पहनने पर
निर्भर करेगा ॥
♥ मनुष्य का आध्यात्मिक पद मात्र बाह्य प्रतीकों
से सुनिश्चित होगा और इसी आधार पर लोग एक
आश्रम छोड़कर दूसरे आश्रम को स्वीकार करेंगे ।
यदि किसी की जीविका उत्तम नहीं है, तो उस
व्यक्ति के औचित्य में सन्देह किया जायेगा और
जो चिकनी - चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा, वह
विव्दान पंडित माना जायेगा ॥
♥ यदि किसी व्यक्ति के पास धन नहीं है, तो
वह अपवित्र माना जायेगा और दिखावे को गुण
मान लिया जायेगा । विवाह मौखिक स्वीकृति के
व्दारा निश्चित होगा और कोई भी व्यक्ति अपने
आपको जनता के बीच आने के लिए योग्य
समझेगा यदि उसने केवल स्नान कर लिया हो ॥
♥ तीर्थस्थान उसे माना जायेगा, जहाँ जलाशय
हो और जो दूरस्थ स्थान पर हो और सौन्दर्य को मनुष्य की केश - सज्जा पर आश्रित माना जायेगा ।
उदर - भरण करना जीवन का लक्ष्य बन जायेगा
और जो जितना ढीठ होगा उसे उतना ही
सत्यवादी मान लिया जायेगा । जो व्यक्ति परिवार
का पालन - पोषण कर सकता है, वह दक्ष समझा
जायेगा । धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए
किया जाएगा ॥
♥ इस तरह ज्यों - ज्यों पृथ्वी भ्रष्ट जनता से
भरती जायेगी, त्यों - त्यों समस्त वर्णों में से जो
अपने आपको सबसे बलवान दिखला सकेगा, वह
राजनैतिक शक्ति प्राप्त करेगा ॥
♥ जनता ऐसे लोभी तथा निष्ठुर शासकों व्दारा,
जिनका आचरण सामान्य चोरों जैसा होगा, अपनी
पत्नियाँ तथा सम्पत्ति छीन लिये जाने पर पर्वतों
तथा जंगलों की ओर पलायन कर जायेगा ॥
♥ अकाल तथा अत्यधिक कर से सताये हुए
लोग पत्तियाँ, जड़ें, मांस, जंगली शहद, फल, फूल
तथा बीज खाने के लिए बाध्य हो जायेंगे ।
अनावृष्टि से पीड़ित होकर वे पूर्णतया विनष्ट हो
जायेंगे ॥
♥ जनता को शीत, वात, तपन, वर्षा तथा हिम
से अत्यधिक कष्ट उठाना पड़ेगा । लोग आपसी
झगड़ों, भूख, प्यास, रोग तथा तीव्र चिन्ता से भी
पीड़ित होते रहेंगे ॥
♥ कलियुग में मनुष्यों की अधिकतम आयु
पचास वर्ष हो जायेगी ॥
♥ कलियुग समाप्त होने तक सभी प्राणियों के
शरीर आकार में बहुत छोटे हो जायेंगे और
वर्णाश्रम मानने वालों के धार्मिक सिध्दान्त विनिष्ट
हो जायेंगे । मानव समाज वेदों के मार्ग को पूरी
तरह भूला दिया जायेगा और तथाकथित धर्म
प्रायः नास्तिक होगा । राजा प्रायः चोर हो जायेंगे;
लोगों का पेशा चोरी करना, झूठ बोलना तथा व्यर्थ
हिंसा करना हो जायेगा और सारे सामाजिक वर्ण
शूद्रों के स्तर तक नीचे गिर जायेंगे । गौवें बकरियों
जैसी होंगी; आध्यात्मिक आश्रम संसारी घरों से भिन्न
नहीं होंगे तथा पारिवारिक सम्बन्ध तात्कालिक
विवाह बन्धन से आगे नहीं जायेंगे । अधिकांश वृक्ष
तथा जड़ी - बूटियाँ छोटी हो जायेंगी और सारे वृक्ष
बौने शमी वृक्षों जैसे प्रतीत होंगे । बादल बिजली
से भरे होंगे; घर पवित्रता से रहित तथा सारे
मनुष्य गधों जैसे हो जायेंगे । उस समय पूर्ण
पुरुषोत्तम भगवान् पृथ्वी पर प्रकट होंगे । वे शुध्द
सत्त्वगुण की शक्ति से कर्म करते हुए शाश्वत धर्म
की रक्षा करेंगे ॥
♥ पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् विष्णु जो कि सारे
चर तथा अचर प्राणियों के गुरु एवं सबों के
परमात्मा हैं, धर्म की रक्षा करने तथा अपने सन्त
भक्तों को भौतिक कर्मफल से छुटकारा दिलाने के
लिए जन्म लेते हैं ॥
♥ ब्रम्हाण्ड के स्वामी भगवान् कल्कि अपने तेज
घोड़े देवदत्त पर सवार होंगे और हाथ में तलवार
लेकर, ईश्वर के आठ योग ऐश्वर्यों तथा आठ
विशिष्ट गुणों को प्रदर्शित करते हुए पृथ्वी पर
विचरण करेंगे । वे अपना अव्दितीय तेज प्रदर्शित
करते हुए तथा तेज गति से सवारी करते हुए
उन करोड़ों चोरों का संहार करेंगे, जो राजाओं
के वेश में रहने का दुस्साहस कर रहे होंगे ॥
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