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जगदम्बा सीता जी

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीं।
सर्वश्रेयस्करींसीतां नतोऽहम् रामवल्लभाम्।।

उपजहिं जासु अंस ते नाना।
संभु विरंचि विष्णु भगवाना।।
उपजहिं जासु अंश गुण खानी।
अगनित लक्ष्मि उमा ब्रह्माणी।।

जनकसुता जग जननि जानकी।
अतिशय प्रिय करुणानिधान की।
ताके जुग पद कमल मनावउँ।
जासु कृपा निर्मल मति पावउँ।।

           अक्सर, अन्य रामायणों के आधार पर लोग यह कहते हैं कि श्री  किशोरी जी लक्ष्मी जी की अवतार हैं, पर वे तीनों देवियों के ही अलग अलग विभाग हैं ।

यहाँ गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज जानकी जी में ही तीनों विभाग समाहित बता रहे हैं ।उद्भव, स्थिति, संहारकारिणीं --- वे सृजन की भी कारण हैं, वे पालन पोषण की भी कारण हैं और संहार की भी कारण हैं ।उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीं--

 जीव मात्र के समस्त प्रकार के क्लेशों का हरण करने वाली हैं जानकी जी ।पूज्य स्वामी करपात्री जी महाराज ने तो यहाँ तक लिखा ।कहते हैं कि एक संत ने कहा कि हे माँ भगवती जानकी जी राम जी तो कम से कम एक शर्त रखते हैं ।कहते हैं कि जो एक बार चरणों में आ करके कह दे कि मैं तुम्हारा हूँ, मैं उसे अभय प्रदान कर देता हूँ, मुक्ति के द्वार खोल देता हूँ ।

लेकिन जानकी जी का दरबार तो राम जी से भी आगे है, न तो विभीषण जी ने आकर सिर झुकाया, न कागभुसुण्डि जी ने और न जयन्त ने, फिर भी माता जानकी जी ने उनके ऊपर करुणा की वर्षा कर दी और वात्सल्यता की कृपा की।

इसलिए उनका दरबार करुणामय राम जी से भी आगे है ।जिस समय पर हनुमन्तलाल जी महाराज रावण वध के बाद विजय का संदेश लेकर जानकी जी के पास पहुँचे, उस समय जितनी भी निशाचरियाँ थीं, वे माता जानकी के पास थीं ।

हनुमानजी महाराज ने राम जी की विजय का संदेश सुनाया और उन निशाचरियों को देखकर हनुमन्तलाल जी महाराज दाँत किटकिटाने लगे।

जानकी जी ने कहा -- हनुमान ! कुछ चाहिए?

क्या दूँ तुम्हें?

 हनुमानजी ने कहा --- आज्ञा दे दो आप।

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 कौन सी आज्ञा?

 कहा -- जिस समय मैं पहली बार यहाँ पर आया था, इन निशाचरियों को आपको सताते देखा था मैंने ।मेरा मन कर रहा है कि अगर आपकी आज्ञा हो तो इनकी चोटी पकड़कर खींचूँ, इनको मैं दण्डित करूँ ।

माता जानकी के आँखों में आँसू आ गये।उन्होंने कृपामयी दृष्टि से उनको देखा और कहा -- बेटा हनुमान ! इनका कोई कसूर नहीं है।

ये वेचारी विवश थीं ।रावण के हाथों ये विवश थीं ।उसमें ये दण्ड की नहीं, कृपा की पात्र हैं ।

कितनी करुणामयी हैं माता जानकी जी?

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